Friday, August 23, 2013

सुनीता भास्कर जनकवि गिर्दा, आन्दोलनकारी गिर्दा,क्रन्तिकारी गिर्दा, फक्कड़ गिर्दा, गंभीर दार्शनिक चिंतक के साथ ही मनमौजी गिर्दा...अति भावुक कर देने वाली एक अश्रुपूर्ण श्रदांजलि गिर्दा तुमार लिजी...... मेरी मित्र मंडली

जनकवि गिर्दा, आन्दोलनकारी गिर्दा,क्रन्तिकारी गिर्दा, फक्कड़ गिर्दा, गंभीर दार्शनिक चिंतक के साथ ही मनमौजी गिर्दा...अति भावुक कर देने वाली एक अश्रुपूर्ण श्रदांजलि गिर्दा तुमार लिजी......
मेरी मित्र मंडली के जो लोग गिर्दा नाम से वाकिफ नहीं उन्हें इतना ही परिचय दुंगी गिर्दा का कि उत्तराखंड में का नशा नहीं रोजगार दो का आन्दोलन हो चाहे लीसा श्रमिकों का आन्दोलन, उत्तराखंड राज्य आन्दोलन हो या गैरसैण राजधानी आन्दोलन,या अंत में उत्तराखंड की नदियों को बाहरी कंपनियों को औने पौने दामों में बेचे जाने के खिलाफ नदी बचाओ आन्दोलन ..हर किसी में गिर्दा की सजीव उपस्तिथि और जनगीतों ने इन सभी को अपने जनगीतों से जुबां देने का काम किया...गिर्दा के चार दशकों तक लगातार गाये गए एतिहासिक गीत हम लड़ते रयां दीदी हम लड़ते रूंल के एक मिसरे की एक बानगी दूंगी......
लूछालूछ कचहरी में नी हो ब्लाक ने में लूटा, 
मरी भैंसा का कान काटी खने की नि हो छुटा
कुकुरी गास नियत नि हो यस जातां करूल..हम लड़ते रयां भूली हम लड़ते रूंल...(ऐसी योजनायें सरकार न चलाये जो आम आदमी को भ्रष्ट बनाती हों और कुत्ते की जैसी नियत देती हों.. वह एक एक ग्रास के लिए भी मालिक की और ताके रहता है.. )आज वृहत्तर रूप में मीड डे मील जैसी हर योजना को लें तो यही आभास होता है सरकार आम आदमी को भिखारी या याचक जैसा ही बनाये रखना चाहती है....
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