Sunday, August 4, 2013

Harnot Sr Harnot भूली-बिसरी यादें -अम्‍मा का एक पुराना चित्र

भूली-बिसरी यादें
-अम्‍मा का एक पुराना चित्र

मां इसी तरह अपने पशुओं से प्‍यार किया करती, बतियाति और उन्‍हें जी भर घास-चार खिलाती। इसी तरह मां सप्‍ताह भर मेरे घर आने का इंतजार करती कि अवकाश के दिन मैं घर आउंगा। आज गांव में कोई नहीं है जो इंतजार करें, मेरी बाट देखें और देर रात तक चूल्‍हे के पास बैठ कर रोटी-दाल गर्म करके रखें। घर में ताले लगे हैं, गौशाला में अब कोई पशु नहीं रम्‍भाते। गौशाला के आंगन में आज भी वे खूंटे वैंसे ही हैं जिनमें मां अपनी गायों और बच्छिया को बांधा करतीं। उनके गलावें सड-गल गये हैं। शिमला से जब भी गांव जाता हूं तो उन खूटों के पास जा कर जी भर रो लेता हूं--मांए ऐसी ही होती है, चली जाती हैं पर उम्र भर साथ साथ रहती हैं।
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