Kavita Krishnapallavi राधाकृष्णन एक दार्शनिक तो कहीं से नहीं थे, वे मात्र हिन्दू धर्म-दर्शन के एक सतही, कूपमण्डूक और दकियानूस व्याख्याकार मात्र थे। अपने ''नव वेदान्ती'' दर्शन में उन्होंने अद्वैत वेदान्त के साथ विलियम जेम्स, फ्रांसिस हर्बर्ट ब्रैडले, हेनरी बर्गसां और फ्रेडरिक फॉन हयूगेल जैसे पश्चिम के मीडियाकर प्रत्ययवादी दार्शनिकों के विचारों की खिचड़ी पकाई है।
समाज के सच्चे शिक्षक तो राहुल सांकृत्यायन, राधा मोहन गोकुल, गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे ज्ञान प्रसारक थे। या फिर जयचंद विद्यालंकार, छबील दास आदि (डी.ए.वी. कॉलेज लाहौर में भगत सिंह और उनके साथियों के शिक्षक) जैसे लोग थे। 'शिक्षक दिवस' ऐसे लोगों की स्मृति को समर्पित होता तो इसकी कोई सार्थकता भी होती। लेकिन उन डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिन्हें गौरांग महाप्रभुओं से ठीक उसी वर्ष 'सर' की उपाधि मिली थी, जिस वर्ष भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी की सज़ा हुई थी। राष्ट्रीय आंदोलन में यह व्यक्ति कहीं नहीं था। राधाकृष्णन एक दार्शनिक तो कहीं से नहीं थे, वे मात्र हिन्दू धर्म-दर्शन के एक सतही, कूपमण्डूक और दकियानूस व्याख्याकार मात्र थे। अपने ''नव वेदान्ती'' दर्शन में उन्होंने अद्वैत वेदान्त के साथ विलियम जेम्स, फ्रांसिस हर्बर्ट ब्रैडले, हेनरी बर्गसां और फ्रेडरिक फॉन हयूगेल जैसे पश्चिम के मीडियाकर प्रत्ययवादी दार्शनिकों के विचारों की खिचड़ी पकाई है। राधाकृष्णन की मूर्खता की हद यह थी कि अन्य सभी धर्मों को वह हिन्दू धर्म के निम्नतर रूप मानते थे और उनका ''हिन्दूकरण'' करने की कोशिश करते थे। राधाकृष्ण्ान पर अपने ही एक छात्र जदुनाथ सिन्हा की थीसिस चुराकर भारतीय दर्शन की पुस्तक लिखने का भी आरोप लगा था और 'मॉडर्न रिव्यू' में सिन्हा के साथ उनका एक लम्बा पत्र व्यवहार छपा था। जदुनाथ सिन्हा की थीसिस आने आप में ब्राहम्णवाद की दार्शनिकीकरण की एक घटिया कोशिश मात्र थी। शासक वर्ग और सत्तातंत्र नये-नये उत्सवों-त्योहारों-दिवसों को प्रचारित-स्थापित करके प्रतिगामी मूल्यों और छद्म नायकों को स्वीकार करने के लिए हमारे मानस को अनुकूलित करता है। -- कविता कृष्ण्ापल्लवी
--
Vidya Bhushan RawatOne can read biography written by his son and eminent historian Sarvapally Gopal to know more about Radhakrishnan. One does not know what has he done for teachers or even for students.
Shraddhanshu Shekharis me kahi Savitri phule aur Fatma Shekh ka naam nahi aaya ...unhe ignore kar ke adhunik mahilao ki shiksha ke prati yogdan ko andekha kyu kiya jata hai communisto dwara hmm??
Kavita KrishnapallaviShraddhanshu Shekhar जी ज्योतिबा फुले, सावित्री फुले, फातिमा शेख जैसों को अनदेखा करने का सवाल ही नहीं उठता। बहुत सारे नामों में से मैंने महज कुछ नाम लिये हैं उदाहरण के तौर पर।
Neelabh Ashkकविता, जिस महत्वपूर्ण लड़ाई में हम सब जुटे हैं, उसमें स्मृति को ताज़ा करते रहना बहुत ज़रूरी है. मुझे तुम जैसे साथियों पर गर्व है और विश्वास कि हमारा काम हमारा परचम कभी ख़ाली नहीं जायेगा.
Vijay Shawमुश्किल यह है मित्र कि हमारे देश मे इतिहास को विकृत कर लिखने की प्रवृति शुरू से ही है। पहले यह काम कांग्रेस ने किया और अब यह जिम्मा संघ परिवार ने उठा लिया है। अपने अपने तरीके से स्वयं का इतिहास लिखने की साजिश। और यही कारण है कि आज भी इस देश मे अंग्रेजी हुकूमत की दलाली करने वाले पूजे जाते है और भगत सिंह जैसे महान देशभक्त क्रान्तिकारी उपेक्षित है। आपका यह आलेख महत्वपूर्ण है। यह न केवल इतिहास लेखन की इस परिपाटी को चुनौती देता है बल्कि इसके पुनरावलोकन की जोरदार वकालत भी करता है। मै इस पोस्ट को अपने तमाम मित्रों को शेयर करता हूँ।
Sathyendra SinghComnist ne ajadi ka birodh kiya tha subash chand bos ka birodh kiya tha acha coment acha kam kijiye aik samuday bishesh ko khus karne ka kam chodiye nahi to ouska hasar aapke samne hai nahi to bangal me aane me sadiyo lagjyega meri subh kamna aapke sath hai bhagwan aapko. ..................
No comments:
Post a Comment