Tuesday, January 31, 2012

जो हत्‍यारे हैं, वही कोतवाल बने बैठे हैं!

जो हत्‍यारे हैं, वही कोतवाल बने बैठे हैं!



 आमुखसंघर्षस्‍मृति

जो हत्‍यारे हैं, वही कोतवाल बने बैठे हैं!

31 JANUARY 2012 NO COMMENT
[X]
Click Here!

♦ बबीता उप्रेती

हेम-आजाद फर्जी मुठभेड़: सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट ने फिर लगायी फटकार


णतंत्र दिवस की 62वीं वर्षगांठ से कुछ दिन पहले आजाद और हेम पांडे के फर्जी मुठभेड़ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को दूसरी बार कड़ी फटकार लगायी। याद दिला दूं कि 2 जुलाई 2010 को आंध्र प्रदेश पुलिस ने सीपीआई माओवादी संगठन के वरिष्ठ नेता चेरूकुरी राजकुमार आजाद और पत्रकार हेम पांडे की अदीलाबाद के जंगलों में ले जाकर हत्या कर दी थी। तभी से पुलिस इसे मुठभेड़ का रूप देती रही। पूंजीपतियों की सुरक्षा और आम जन के शोषण के लिए बनी पुलिस का ये रुख लाजमी था। मानवता समर्थक कुछ लोग इस मामले में न्यायिक जांच की मांग शुरू से करते रहे हैं लेकिन ग्रीनहंट, सलवाजुडूम जैसे ऑपरेशन चलाकर उद्योगपतियों की दलाली में लगे देश के गृहमंत्री ने जांच से साफ इनकार कर दिया। जबकि एक स्वस्थ्य समाज किसी भी प्रकार की जांच से परहेज नहीं करता, फिर भारत तो कथित रूप से दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।


पत्‍नी विनीता के साथ हेमचंद्र पांडेय

इसके बाद हमें सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाना पड़ा। 18 अप्रैल 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नसीहत देते हुए कहा कि कोई भी स्वस्थ्य लोकतंत्र अपने बच्चों की इस तरह हत्या करने की इजाजत नहीं देता। कोर्ट के आदेश पर ही जांच सीबीआई को सौंपी गयी। हालांकि जांच के इन दस महीनों में सीबीआई ने अपने आकाओं को बचाने के लिए जोड़तोड़ के अलावा कुछ नहीं किया। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा कि सीबीआई की विश्वसनीयता कठघरे में हो। 1963 में भ्रष्टाचार और राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण को रोकने के लिए बनायी गयी जांच एजेंसी के ये 48 साल भ्रष्टाचारियों और सांप्रदायिक जहर फैलाने वालों को बचाने में ही निकले। देश में अकेले इस जांच एजेंसी ने भी अपना काम पूरी ईमानदारी से किया होता, तो आज गणतंत्र दिवस की 62वीं वर्षगांठ मनाने के बाद ही सही, हम कहते, देश में कानून काम कर रहा है। फिलहाल ऐसा नहीं है। पत्रिकाएं, किताबें, अखबार पलटने पर कहीं नहीं दिखता कि सीबीआई ने कभी किसी को न्याया दिलाया हो। हां, इसके उलट सफेदपोश हत्यारों को बचाने के किस्से मुंह चिढ़ाते हैं। कई बार तो सीबीआई ने बगैर जांच के ही अपराधियों को क्लीन चिट दी। इसका ताजा उदाहरण पिछले दिनों दिखाई दिया, जब 2जी घोटाले में शामिल चिंदबरम के बचाव में सीबीआई उनके प्रवक्ता की तरह बोलने लगी। नेताओं के आगे सीबीआई लंबे समय से नाक रगड़ती आयी है। इस एजेंसी ने यदि अपना काम निष्ठा से किया होता, तो आज कई नेता जो जनता का खून चूसने के बावजूद मुख्यमंत्री बने बैठे हैं, वे अपनी सही जगह पर सलाखों की पीछे होते।

हेम और आजाद मामले में सीबीआई को फटकार लगाने के दो दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक और महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जो गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी के लिए निश्चित तौर पर बड़ा झटका हो सकता है। 2003 से 2006 के बीच गुजरात में हुई 21 मुठभेड़ों की जांच के आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने दिये हैं। जबकि सीबीआई लंबे समय से मोदी को ही नहीं, उसके पाले हुए खूनी पुलिस अफसरों को भी बचाती आयी है। 23 नवंबर 2005 को गुजरात पुलिस ने अपने ही मुखबिर शोहराबउद्दीन और उसकी पत्नी की फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी। इस मामले के मुख्य आरोपियों में शामिल अहमदाबाद के पूर्व डीसीपी अभय चुड़ामासा को सीबीआई चार साल तक बचाने की कोशिश करती रही। जबकि चुड़ामासा के खिलाफ सीबीआई के पास शोहराबउद्दीन के साथ मिलकर उद्योगपतियों से रंगदारी वसूलने की शिकायत लंबे समय से थी। इसके बावजूद सीबीआई हाथ में हाथ धरे बैठी रही। हालांकि अत्यधिक दबाव पड़ने पर अप्रैल 2010 में सीबीआई को चुड़ामासा को गिरफ्तार करना पड़ा।

ऐसे और भी कई मामले हैं, जहां जांच एजेंसी और राजनेताओं की मिलीभगत से आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने वाले पुलिस अफसरों को बचाने की भरपूर कोशिश हुई और हो रही है। इसका दूसरा पहलू ये भी है कि जांच एजेंसी, पुलिस और अपराधी तीनों मिलकर राजनेताओं के लिए काम कर रहे हैं। ऐसे में सीबीआई से ये उम्मीद करना कि वह हेम जैसे पत्रकारों की हत्या में शामिल पुलिस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करेगी, बेमानी होगा। हेम उन पत्रकारों में शामिल थे, जो जब तक जिंदा रहे, इस गठजोड़ के खिलाफ बोले। आज विडंबना ये है कि उसकी हत्या में शामिल लोग ही उसकी हत्या की जांच कर रहे हैं।

सौजन्‍य : रोहित जोशी

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Census 2010

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors