Wednesday, June 27, 2012

Fwd: [New post] एड्रिएन रिच की कविताएं



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From: Samyantar <donotreply@wordpress.com>
Date: 2012/6/26
Subject: [New post] एड्रिएन रिच की कविताएं
To: palashbiswaskl@gmail.com


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एड्रिएन रिच की कविताएं

by समयांतर डैस्क

अमेरिकी नारीवादी कवयित्री एड्रिएन सिसिल रिच (16 मई, 1929) अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता व प्रगतिशीलता के लिए विख्यात रही हैं। इसी वर्ष 27 मार्च को उनका देहांत हो गया।

दो प्रेम कविताएं

एकAdrienne_Rich_1980

इस शहर में जहां भी, स्क्रीन जगमागाते हैं
पोर्नोग्राफी से, विज्ञान कथाओं के राक्षस
भाड़े के पीडि़त लोग कोड़े से बिलबिलाते हैं,
हम को भी बढऩा होता है... सिर्फ वैसे ही जैसे/ हम चलते हैं
वर्षा से भीगे कचरे के बीच से, टेबलायडी
क्रूरताओं के
हमारे अपने ही पड़ोस की ।
अपनी जिंदगियों को समझना है हमें उन बासी सपनों से बिना अलग हुए,
जो बजते हैं बेसुरे मैटल संगीत से
वे अपमान,
और लाल बेगोनिया1 खतरनाक तरीके से/ लटका चमक रहा है
रिहायशी बिल्डिंग की छह मंजिला ऊंची/ अटारी से,
या लंबी टांगों वाली छोटी लड़कियां खेलती/ हैं बॉल
जूनियर हाईस्कूल के मैदान में।
हमारे बारे में किसी ने कल्पना नहीं की है। / हम चाहते हैं
रहना पेड़ों की तरह, सीकामोरे2 दमदमाते हैं/ तेजाबी हवा के बीच,
घावों से भरे, फिर भी प्रमुदित खिलते,
हमारी पाशविक कामनाओं की जड़ें हैं शहर में।

1. एक फूल
2. एक किस्म का अंजीर का पेड़

दो

चूंकि हम युवा नहीं हैं, एक-दूसरे से न मिल पाने के वर्षों खोये समय को पूरना होगा हफ्तों में। इस पर भी सिर्फ
समय का यह अजीब मोड़
बतलाता है मुझे हम युवा नहीं हैं।
क्या जब मैं बीस की थी सुबह की सड़कों पर कभी घूमती थी,
मेरा शरीर परम आनंद से सराबोर?
क्या कभी मैंने ऊपर से झांक कर देखा था किसी खिड़की से शहर को
भविष्य के लिए सुनते हुए
जैसे कि मैं सुन रही हूं यहां तंत्रियां तुम्हारी घंटी पर लगीं?
और तुम मेरी ओर बढ़ती हो उसी गति से।
तुम्हारी आंखें नित्य हैं,
शुरुआती ग्रीष्म की नीली आंखोंवाली घास की हरी कौंध
हरा-नीला जंगली क्रेस1 वसंत से धुला।
बीसवें वर्ष में , हां : हमने सोचा था हम सदा रहेंगे।
पैंतालिसवें वर्ष में, मैं जानना चाहती हूं, यहां तक कि हमारी सीमाएं।
मैं तुम्हें छूती हूं जानते हुए कि हम कल नहीं जन्मेंगे
और किसी तरह, हम में एक-दूसरे की जिंदगी में काम आएंगे
और कहीं, हम में से हर एक को मदद करनी होगी
दूसरे की मृत्यु के वरण में।

अनु. : न. प.

1. एक तरह की वनस्पति
1. एक तरह की वनस्पति

अनुवाद

मेरी हमउम्र या मुझसे छोटी
किसी स्‍त्री की अपनी भाषा में लिखी
मूल कविता का अनुवाद मुझे दिखाओ।
कुछ शब्द होंगे: दुश्मन, चूल्हा, दु:ख,
जिनको पढ़ते ही मैं जान लूंगी
वह हमारे वक्त की स्त्री है
उसे हमारे मुद्दे; प्रेम, से मोह है
हमने इसे दीवार पर लताओं से चिपका रखा है
रोटी सा चूल्हों में पकाया है
एडिय़ों पर शीशे सा पहना है
दूरबीनों से उसे देखा है
मानो वह अकालग्रस्त समय में हमारे लिए खाने की सामग्री लाता कोई हेलीकॉप्टर है
या किसी शत्रु देश का कृत्रिम उपग्रह है
मैं उस औरत को कामकाज करते देखती हूं :
चावल हिलाते हुए
स्कर्ट इस्तरी करते हुए
भोर तक पांडुलिपि टाइप करते हुए
फोनबूथ से किसी को फोन करने कोशिश में
एक मर्द के सोने के कमरे में फोन बजता ही रहता है
उसे सुनता है कि वह किसी से कह रहा है
छोड़ो। थक कर रुक ही जाएगी।
वह सुनती है कि वह उसकी बहन को उसकी कहानी सुना रहा है
और बहन उसकी दुश्मन बन जाती है
और बहन भी अपने ही तरीके से दुख जीने की अपनी राह बनाएगी
वह नहीं जानेगी यह सच कि दुख जीने का यही तरीका
औरों का भी है, यह गैरजरूरी और राजनैतिक भी है।

अनु. : लाल्टू

मूल अंग्रेजी

1. Wherever in this city, screens flicker
with pornography, with science-fiction vampires,
victimized hirelings bending to the lash,
we also have to walk . . . if simply as we walk
through the rainsoaked garbage, the tabloid cruelties
of our own neighborhoods.
We need to grasp our lives inseperable
from those rancid dreams, that blurt of metal, those disgraces,
and the red begonia perilously flashing
from a tenement sill six stories high,
or the long-legged young girls playing ball
in the junior highschool playground.
No one has imagined us. We want to live like trees,
sycamores blazing through the sulfuric air,
dappled with scars, still exuberantly budding,
our animal passion rooted in the city.

2. Since we're not young, weeks have to do time
for years of missing each other. Yet only this odd warp
in time tells me we're not young.
Did I ever walk the morning streets at twenty,
my limbs streaming with a purer joy?
did I lean from any window over the city
listening for the future
as I listened here with nerves tuned for your ring?
And you, you move toward me with the same tempo.
Your eyes are everlasting, the green spark
of the blue-eyed grass of early summer,
the green-blue wild cress washed by the spring
. At twenty, yes: we thought we'd live forever.
At forty-five, I want to know even our limits.
I touch you knowing we weren't born tomorrow,
and somehow, each of us will help the other live,
and somewhere, each of us must help the other die.

3. Translations

You show me the poems of some woman
my age, or younger
translated from your language

Certain words occur: enemy, oven, sorrow
enough to let me know
she's a woman of my time

obsessed
with Love, our subject:
we've trained it like ivy to our walls
baked it like bread in our ovens
worn it like lead on our ankles
watched it through binoculars as if
it were a helicopter
bringing food to our famine
or the satellite
of a hostile power

I begin to see that woman
doing things: stirring rice
ironing a skirt
typing a manuscript till dawn
trying to make a call
from a phonebook
the phone rings unanswered
in a man's bedroom
she hears him telling someone else
never mind. she'll get tired—
hears him telling her story to her sister

who becomes her enemy
and will in her own time
light her own way to sorrow

ignorant of the fact this way of grief
is shared, unnecessary
and political

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