Wednesday, July 25, 2012

Fwd: TaraChandra Tripathi updated his status: "संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। सारे महोमहापाध्याय आँख मूद...



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Date: 2012/7/25
Subject: TaraChandra Tripathi updated his status: "संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। सारे महोमहापाध्याय आँख मूद...
To: Palash Biswas <palashbiswaskl@gmail.com>


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TaraChandra Tripathi
TaraChandra Tripathi updated his status: "संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। सारे महोमहापाध्याय आँख मूद कर दुहराते गये। आचार्य का वचन प्रमाण हो गया। मस्तिष्क ने संशय भी किया तो भाषागत अहं सामने आ गया। फतवा जारी हो गया। संशयात्मा विनश्यति। आचार्य ने कहा शास्त्र के प्रमाण को नहीं मानेगा तो परिणाम भोगना पडे़गा। पीढ़ी दर पीढ़ी यही रटाते चले गये। मूल विचार को सत्य मानते हुए पूर्ववर्ती विद्वानों के विचारों पर तर्क वितर्क होते रहे। कोल्हू का बैल न मालूम कितने मील चला, पर अपने स्थान से तिल भर भी आगे बढ़ा हो ऐसा नहीं हुआ। सोचने की आवश्यकता ही नहीं। 'अमुक विद्वान' के अनुसार ही काफी है। कुमाऊनी शौरसेनी से उत्पन्न हुई। पूछा कैसे? उत्तर मिला, डा.उदय नारायण तिवारी ने कहा है। कुमूँ शब्द संस्कृत के कूर्माचल का अपभ्रंश है। फिर वही अमुक विद्वान के अनुसार। मैंने पूछा हर क्षेत्र में हजारों नाम होते हैं, क्या उनके नामकरण के लिए विद्वानों को बुलाया जाता होगा या गाँव वाले ही अपने हिसाब नाम रख देते होंगे? यदि अधिक बहस करो तो उत्तर मिलता है। शास्त्र ही प्रमाण है। अल्मोड़ा जनपद में एक स्थान का नाम है लमगा्ड़। गाड़ नहीं गा(ह्रस्व गा्)ड़। अर्थ होगा लंबा खेत। पहाड़ में लंबे खेत होते ही बहुत कम हैं। बस अपनी इसी विशेषता के कारण बन गया पहचान संकेत। गाँब बसा, बाजार बनी, ब्लाक का मुख्यालय बन गया। नाम लमगा्ड़ ही रहा। हिन्दी उच्चारण ने कर दिया लमगड़ा। भाषा शास्त्री ने बना दिया लंबगर्त। लंबा गढ़ा। अरे भाषा शास्त्रियो! अतीत में छोटी छोटी बसासतों के नाम किसी रघुनाथ प्रसाद, दिगविजयसिंह, ज्योतिरादित्य ने नहीं रखे नाम तो उन, लिख लोड़ा पढ़ पत्थर, लोगों ने रखे थे, जिनके अपने नाम ही खुद ही झुंगरिया, डुंगरिया, गोबरिया, तिलुवा, थेपड़सिंह, चिपड़सिंह, घुसेड़ीदेवी, बौणीदेवी, जसुली, झुपुली जैसे थे।"
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