सब्सिडी में कटौती और आर्थिक सुधारों में तेजी प्रणव का मंत्र अर्थ व्यवस्था की सेहत लौटाने के लिए!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
पूरे देश की नजर है कि वित्त मंत्री पद से इस्तीफा से पहले जाते जाते वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी क्या चमत्कार कर दिखाने वाले हैं , जिसका उन्होंने देशवासियों से वायदा किया है। पर राष्ट्रपति चुनाव में इस बार आर्थक मुद्दे ही फोकस पर रहेंगे ,यह तय हो गया है। इसी के मद्देनजर बतौर रणनीति सब्सिडी में कटौती और आर्थिक सुधारों में तेजी प्रणव का मंत्र अर्थ व्यवस्था की सेहत लौटाने के लिए!आर्थिक मुद्दे पर न सिर्फ संघ परिवार के निशाने पर हैं दादा, बल्कि वामपंथियों में भी उनके समर्थन को लेकर फूट पड़ गयी है। जिसके चलते रायसिना रेस में उनके प्रतिद्वंद्वी अपने को अभी लड़ाई में मान रहे हैं।राष्ट्रपति चुनाव के लिए भाजपा समर्थित उम्मीदवार पीए संगमा ने वित्त मंत्री और संप्रग उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी पर निशाना साधते हुए उन्हें देश की आर्थिक मंदी के लिए जिम्मेदार ठहराया। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि विजेता के तौर पर उभरने के लिए वह अब किसी चमत्कार का इंतजार कर रहे हैं, हालांकि उन्होंने इस बात को खारिज कर दिया कि जो लोग उनका समर्थन कर रहे हैं वह उनका इस्तेमाल कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी विदेश यात्रा से फारिग होकर तुरंत अपने विदा होते वित्त मंत्री की सफाई में लामबंद हो गये हैं।पर मुंबई में मंत्रालय की आग बूझते न बूझते दिल्ली के नार्थ ब्लाक जैसे अति सुरक्षित अति संवेदनशील भवन में गृह मंत्रालय में लगी आग चाहे जिस वजह से लगी हो, इसके पीछे सुनियोजित साजिश और अगले वक्त होने वाली घेरेबंदी से बच लिकलने की जुगत दिखायी दै रही है लोगों को। यह आग अब कहां कहां फैलती है, देखना यही बाकी है।।आज दोपहर 2.35 मिनट पर दिल्ली के नार्थ ब्लाक में गृह मंत्रालय के दफ्तर की पहली मंजिल को आग की लपटें उठने लगीं। पलभर में चारों तरफ धुएं का गुबार नजर आने लगा। एक के बाद एक दमकल की 6 गाड़ियां मौके पर पहुंची। कुछ ही देर में आग पर काबू पा लिया गया लेकिन तब तक गृह मंत्रालय में हड़कंप मच चुका था। हालांकि छुट्टी होने की वजह से बिल्डिंग के भीतर कुछ ही लोग थे लेकिन खुद गृह मंत्री और गृह सचिव मौके पर पहुंच गए।
वर्ष 1991 में अर्थव्यवस्था के हालात को देश का अभी तक का सबसे बड़ा आर्थिक संकट माना जाता है। तब तत्कालीन सरकार को देश के सोने को विदेश में गिरवी रखने के लिए मजबूर होना पड़ा था। फिक्की ने तब की आर्थिक पृष्ठभूमि और मौजूदा हालात का तुलनात्मक अध्ययन किया है। परोक्ष तौर पर फिक्की ने कहा है कि तब भी सरकार की गलत आर्थिक नीतियों की वजह से अर्थव्यवस्था की दुर्गति हुई थी और इस बार भी कुछ ऐसा ही रहा है।सिर्फ कॉरपोरेट्स और विदेशी निवेशक ही नहीं, सेबी प्रमुख यू के सिन्हा भी आर्थिक सुधारों में देरी पर सरकार से खफा हैं।यू के सिन्हा ने जोर देकर कहा कि अगर सुधारों में और देरी की गई तो स्थिति को जल्द सुधारना मुश्किल होगा। कई सुधारों पर सालों से काम चल रहा है, फिर भी उन्हें अमल में लाने में देरी कि जा रही है।
बदहाल अर्थव्यवस्था और देश की गिरती साख को सुधारने के लिए संप्रग सरकार ने दो दर्जन ऐसे क्षेत्रों का चयन किया है जहां फैसलों की रफ्तार तेज की जाएगी। इसकी शुरुआत सोमवार से ही हो जाएगी जब केंद्र सरकार के साथ रिजर्व बैंक भी निवेशकों की विश्वास बहाली के लिए कुछ बड़े उपायों का एलान करेगा।प्रधानमंत्री कार्यालय ने विभिन्न मंत्रालयों, योजना आयोग, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के साथ गहन विचार विमर्श के बाद 24 ऐसे क्षेत्रों का चयन किया है जिन्हें अर्थव्यवस्था में जान डालने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस सूची में अगर सब्सिडी बोझ को कम करने का खाका शामिल है तो अंतरराष्ट्रीय कर विवादों को समाप्त करने का नुस्खा भी। सब्सिडी कम करने के लिए सरकार अब आम जनता पर डीजल मूल्य वृद्धि का बोझ भी डालने से परहेज नहीं करेगी। इसी तरह से विदेशी निवेशकों की आंखों में किरकिरी बन चुके प्रस्तावित सामान्य परिवर्तन रोधी नियमों 'गार' को भी पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा।पेंशन, बैंकिंग और बीमा क्षेत्र में आर्थिक सुधार को आगे बढ़ाने का रोडमैप भी है। साथ ही देश की ऊर्जा क्षेत्र की दिक्कतों का लेखा जोखा भी है। बिजली क्षेत्र को कोयले की दिक्कत किस तरह से दूर की जाए, इसके बारे में भी कुछ महत्वपूर्ण सुझाव हैं। सूत्रों के मुताबिक आर्थिक सुधार के इस एजेंडे को लागू करने में प्रधानमंत्री कार्यालय की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। विल, वाणिज्य, कोयला, बिजली, पेट्रोलियम जैसे आर्थिक मंत्रालय में पीएमओ का हस्तक्षेप बढ़ेगा। वैसे, इस बात के भी संकेत हैं कि संप्रग-2 के शेष बचे कार्यकाल में आर्थिक मंत्रालयों की पूछ बढ़ेगी। आर्थिक सुधार के इस एजेंडे को लागू करने की शुरुआत इसी हफ्ते हो जाएगी। इसके कुछ फैसलों को आगामी मानसून सत्र में सदन की मंजूरी के बाद लागू किया जाएगा। रिटेल में एफडीआइ लाने, गार को खत्म करने, डीजल कीमत बढ़ाने तथा प्रवासी भारतीयों से जमा राशि जुटाने के लिए विशेष स्कीम लाने जैसे फैसले अगले कुछ दिनों के भीतर ही ले लिए जाएंगे। लेकिन पेंशन, बीमा, बैंकिंग क्षेत्र में सुधार के एजेंडे को लागू करने के लिए मानसून सत्र में संबंधित विधेयक पेश किए जाएंगे।
अर्थ व्यवस्था का हाल यह है कि विश्लेषकों का कहना है कि रुपया और नीचे जा सकता है और यह जल्द ही एक डॉलर के मुकाबले 58 के स्तर पर पहुंच सकता है, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा उठाए गए विनियामक कदमों का मुद्रा पर कोई खास असर होता नहीं दिखता।लेकिन मौद्रिक नीति की अपनी सीमाएं हैं। आरबीआई के हस्तक्षेप का कोई खास असर नहीं होगा, क्योंकि मुद्दा ढांचागत है।मौद्रिक करतबों के लिए प्रणव दा की ख्याति है और सोमवार को वे यही करतब दोहरायेंगे,ऐसी संभावना है।पर वित्तीयनीति में परिवर्तन न हुआ तो ढांचागत मुद्दे कैसे सुलझाये जा सकते हैं, पर प्रणव दादा तो ढांचे में गड़बड़ी मानते ही नहीं है। जाहिर है सत्तावर्ग बाजार को खुश करने लिए फिर आम आदमी यानी निनानब्वे फीसद जनता पर करों का बोझ लादने की कवायद में लगा है और सत्तावर्ग के हितों के मद्देनजर कोई वित्तीय नीति अपनाने को तैयार नहीं है।मालूम हो कि प्रधानमंत्री ने रियो में ही कड़े कदमों का खुलासा कर दिया है। ग्लोबल आर्थिक संकट और घरेलू सुस्ती से निपटने के लिए सख्त फैसलों की दरकार है। भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जी-20 शिखर सम्मेलन के मंच से दोनों ही मामलों में पहल करने का एलान किया। उन्होंने दुनिया भर के निवेशकों ने भरोसा दिलाया कि उनकी सरकार घरेलू अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए सब्सिडी में कटौती जैसे कड़े कदम उठाएगी। साथ ही सरकार आर्थिक सुधारों में भी तेजी लाएगी।आरबीआइ द्वारा लगातार कई विनियामक कदम उठाए जाने के बावजूद रुपये में गिरावट जारी है। आंशिक रूप से परिवर्तनीय रुपया शुक्रवार को दिन के कारोबार के दौरान रिकार्ड स्तर पर गिरकर एक डॉलर के मुकाबले 57.33 पर पहुंच गया। सप्ताह के सभी पांचों कारोबारी दिन में नाकारात्मक रुख के साथ रुपया अंतिम कारोबारी दिन एक डॉलर के मुकाबले 57.12 पर बंद हुआ।पिछले एक वर्ष में रुपये की कीमत एक डॉलर के मुकाबले पूरे 22 प्रतिशत कम हुई है। अप्रैल से लेकर अबतक रुपये में 11 प्रतिशत का अवमूल्यन हुआ है। वास्तव में जनवरी 2008 में एक डॉलर के मुकाबले 39 के सर्वोच्च स्थान पर पहुंचने के बाद से रुपये में 46 प्रतिशत से अधिक का अवमूल्यन हुआ है।मनमोहन ने स्वीकार किया कि भारत घरेलू स्तर भी आर्थिक विकास की रफ्तार घटने की समस्या से जूझ रहा है। इसके बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है। निवेशकों का भरोसा फिर से लौटाने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे। नीतियां पारदर्शी, स्थिर व देशी-विदेशी निवेशकों को समान अवसर उपलब्ध कराएंगी।भारत सरकार राजकोषषीय घाटे को कम करने के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है। सब्सिडी में कटौती के लिए कठोर निर्णय भी लेंगे। इन सबसे भारतीय अर्थव्यवस्था जल्दी ही फिर से पटरी पर लौट आएगी। इसे वापस 8-9 फीसद विकास की दर पर ले जाना सरकार का लक्ष्य है।
लगातार कमजोर होते रुपये से परेशान अर्थव्यवस्था को वित्त मंत्री ने भरोसा दिलाने की कोशिश है। आज पत्रकारों से बात करते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि अब भी भारतीय इकोनॉमी के फंडामेंटल्स मजबूत हैं।देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आरबीआई और वित्त मंत्रालय सोमवार को मंथन करेगा। इस मंथन में अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने और बाजार को मजबूती देने के उपायों पर विचार होगा। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था देने के लिए सोमवार को प्लान की घोषणा की जा सकती है।मुखर्जी के मुताबिक, आर्थिक मामलों के विभाग और आरबीआई गवर्नर डी सुब्बाराव से अर्थव्यवस्था और बाजार में छाई निराशा को दूर करने के लिए अब तक उठाए गए कदमों पर भी चर्चा होगी।उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति का दबाव है, रुपया टूट रहा है और अर्थव्यवस्था की रफ्तार 6.5 प्रतिशत रह गई है। इसे देखते हुए संदेह नहीं है कि देश की अर्थव्यवस्था में कमजोर है। इसे लेकर वित्त मंत्रायल चिंतित जरूर है लेकिन हताश नहीं है।उन्होंने कहा जहां तक देश की मूल मजबूती का सवाल है यह अभी भी पहले की तरह मजबूत हैं। चालू वर्ष में जनवरी-जून के दौरान विदेशी संस्थानों ने 8 अरब डॉलर का निवेश किया है, जोकि 2011 में निगेटिव था। इस वर्ष विदेशी प्रत्यक्ष निवेश 46 से 48 अरब डॉलर के बीच रहने की उम्मीद है।
प्रणव मुखर्जी 26 जून को वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा देंगे। इससे पहले 24 जून को उनके पद छोड़ने के कयास लगाए जा रहे थे।प्रणव मुखर्जी जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में खड़े होने वाले हैं। नतीजन 26 जून से वो देश के वित्त मंत्री नहीं रहेंगे। प्रणव मुखर्जी की जगह कौन लेगा, इसका फिलहाल कोई ऐलान नहीं हुआ है। राजनीतिक गलियारों में अनुमान लगाए जा रहे हैं कि उनके बाद कुछ समय के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वित्त मंत्रालय संभाल सकते हैं।साल 2009 में वित्त मंत्री बनने वाले प्रणव मुखर्जी ऐसे वक्त पर इस्तीफा दे रहे हैं जब भारत की अर्थव्यवस्था धीमी ग्रोथ और महंगाई जैसी परेशानियों से जूझ रही है।
इस बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि भारत जैसी विशाल अर्थव्यवस्था अपनी समस्याओं के हल के लिए बाहर से किसी बहुत बड़ी मदद की उम्मीद नहीं कर सकती, देश को अपनी समस्याओं का समाधान खुद निकालना होगा।सिंह ने यह बात ऐसे समय की है जबकि घरेल अर्थव्यवस्था मुश्किलों में है और अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सरकार कुछ नए उपाय करने की तैयारी में दिखती है। अपनी आठ दिन की विदेश यात्रा से वापस लौटते हुए अपने विशेष विमान में पत्रकारों से बातचीत में प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें खुद ही उपयुक्त कदम उठा कर अपनी अर्थव्यवस्था को समस्याओं से उबारना होगा।
मेक्सिको में जी-20 शिखर सम्मेलन और ब्राजील में रियो में पहले पृथ्वी सम्मेलन के 20 साल बाद आयोजित वैश्विक सम्मेलन में भाग लेने के बाद स्वदेश लौटते हुए सिंह ने कहा कि पिछले कुछ दिन की घटनाओं से उन्हें इस बात का पहले से कहीं अधिक यकीन हो गया है कि भारत जैसे आकार के देश के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय समाधान नहीं है।उन्होंने कहा कि हमें अपनी अर्थव्यवस्था की योजना इस सोच के साथ तैयार करनी होगी कि हमें कठिनाई के समय बाहर से इतनी बड़ी मदद नहीं मिलेगी कि हम उसके भरोसे संकट को पार कर जाएं। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति चुनाव में उतरने से पहले कल सरकार वित्तीय बाजारों का भरोसा बढ़ाने तथा अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए कुछ उपायों की घोषणा कर सकती है। प्रधानमंत्री ने वादा किया कि राजकोषीय प्रबंधन की समस्या का हाल प्रभावी तथा विश्वसनीय तरीके से किया जाएगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भुगतान संतुलन के घाटे तथा चालू खाते के घाटे के प्रबंधन की कुछ समस्या है। इन समस्याओं को हल कर लिया जाएगा। प्रधानमंत्री सिंह ने कहा कि इन चीजों पर विस्तार से बात करना मेरे लिए उचित नहीं होगा। पर आपको भरोसा दिलाता हूं कि मैं इस बात को जानता हूं कि हमें वृद्धि की रफ्तार बढ़ाने के लिए काम करना होगा। देश की जनता चाहती है कि भारत सरकार इस दिशा में काम करे। सिंह ने कहा कि भारत वित्तीय संतुलन कायम करने के लिए पहले से कहीं अधिक मेहनत करेगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें भुगतान संतुलन की समस्या तथा विदेशी निवेश के लिए माहौल बनाने के लिए व्यवस्थित तरीके से काम करना होगा। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और पोर्टफोलियो निवेश दोनों को बढ़ावा देने की जरूरत है। सिंह ने कहा कि भारत की राजनीतिक प्रणाली अर्ध-संघीय। सहकारी संघवाद के चलते केंद्र और विभिन्न राज्यों में सत्तारूढ़ सभी राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि वे मिल कर देश को आर्थिक वृद्धि की उस तीव्र राह पर फिर वापस लाने के लिए विश्वसनीय तरीके निकालने जिस तीव्र राह पर देश 2011—12 तक चल रहा था।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस समय बहुत सी परेशानियों की जड़ भारत से बाहर है पर साथ में यह भी स्वीकार किया कि कुछ समस्याएं हमारे देश के अंदर की ही हैं। सिंह ने कहा कि 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट की वजह से हमारी वृद्धि दर प्रभावित हुई। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 9 से घटकर 6.7 प्रतिशत पर आ गई। अगले दो साल में हमारी स्थिति सुधरी, लेकिन फिर यूरो क्षेत्र का संकट आ गया। इससे कई विकासशील देशों से पूंजी निकाली गई।
आर्थिक सुधारों को लेकर अपने बयानों से चर्चा में रहने वाले वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने एक बार फिर गठबंधन की राजनीति को निशाने पर लिया है। उन्होंने कहा है कि गठबंधन की राजनीति से सरकार के निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है।
मौजूदा आर्थिक हालातों को देखते हुए बसु ने कहा है कि वित्त मंत्रालय यदि प्रधानमंत्री के पास रहता है तो यह देश के लिए बहुत अच्छा होगा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कुशल अर्थशास्त्री हैं और 1991 में उन्होंने आर्थिक सुधारों को गति दी थी। उन्होंने कहा कि आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए सरकार को इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा। सरकार को घटक दलों को विश्वास में लेकर इस दिशा में जल्द काम करना चाहिए।
बसु ने कहा कि अगला वित्त मंत्री कौन होगा यह कहना अभी संभव नहीं है क्योंकि इसका निर्णय राजनीतिक स्तर पर होता है। लेकिन अच्छा यही होगा जो भी व्यक्ति इस पद पर आसीन हो वह पूरी तरह से इसके काबिल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि नौकरशाही को यह मानना चाहिए कि वे राष्ट्रहित में अपना काम कर रहे हैं। गठबंधन सरकार में सर्वसम्मति से निर्णय लिए जाते हैं। इसमें कुछ मतभेद हो सकते हैं।
रुपये में लगातार हो रही गिरावट पर बसु ने कहा कि वर्तमान स्थिति की वर्ष 1990 से तुलना नहीं की जा सकती है क्योंकि 1990 में प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी लगभग शून्य थी। जबकि वर्तमान में यह चार प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। उस समय देश में विदेशी मुद्रा भंडार पांच अरब डालर से भी कम था। लेकिन अभी यह तीन सौ अरब डॉलर के आसपास है। निर्यात भी बढ़ रहा है।
दूसरी ओर राष्ट्रपति चुनाव के लिए भाजपा समर्थित उम्मीदवार पीए संगमा ने वित्त मंत्री और संप्रग उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी पर निशाना साधते हुए उन्हें देश की आर्थिक मंदी के लिए जिम्मेदार ठहराया।पूर्व लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि विजेता के तौर पर उभरने के लिए वह अब किसी चमत्कार का इंतजार कर रहे हैं, हालांकि उन्होंने इस बात को खारिज कर दिया कि जो लोग उनका समर्थन कर रहे हैं वह उनका इस्तेमाल कर रहे हैं।
संगमा ने कहा कि यदि रुपया अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है, यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साख घट गई है, यदि इतना अधिक भ्रष्टाचार है तो इसका जिम्मेदार कौन है। भाजपा, अन्नाद्रमुक और बीजद समर्थित संगमा ने यहां स्वर्ण मंदिर की यात्रा के दौरान संवाददाताओं से यह बात कही।
उन्होंने कहा कि आप व्यक्तिगत रूप से देखें, वह वित्त मंत्री हैं जो महंगाई, भ्रष्टाचार, रुपये के अवमूल्यन के लिए जिम्मेदार हैं और कालाधन को वापस लाने के मुद्दे के लिए प्रधानमंत्री और उनका कैबिनेट सामूहिक रूप से जिम्मेदार है लेकिन व्यक्तिगत रूप से इसकी जिम्मेदारी वित्त मंत्री की है।
संगमा ने यह भी कहा है कि राष्ट्रपति चुनाव से पहले ही उन्हें दौड़ से बाहर समझना सही नहीं है। उन्होंने दावा किया ईश्वर उनके साथ है। उन्होंने कहा कि हां, इस दुनिया में चमत्कार हो सकता है और होता है। मैं चमत्कार में यकीन रखता हूं। दरअसल, उनसे यह कहा गया था कि सिर्फ चमत्कार ही उन्हें जीत दिला सकता है क्योंकि 60 फीसदी से अधिक निर्वाचक कांग्रेस के उम्मीदवार के पक्ष में समर्थन दे चुके हैं।
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