Tuesday, August 21, 2012

शोरशराबे की संसदीय कार्यवाही में न बैंक हड़ताल की गूंज सुनायी दी और न मारुति ​​मनेसर की चर्चा,राजनीति को श्रमिक हितों की कोई चिंता नहीं!

शोरशराबे की संसदीय कार्यवाही में न बैंक हड़ताल की गूंज सुनायी दी और न मारुति ​​मनेसर की चर्चा,राजनीति को श्रमिक हितों की कोई चिंता नहीं!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

असम दंगों के बहाने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, कोयला घोटाले को लेकर प्रधानमंत्री की घेराबंदी जैसे घटनाक्रम में अगले लोकसभा चुनाव के लिए सत्ता समीकरण बनाने में सीमाबद्ध देश की राजनीति को श्रमिक हितों की कोई चिंता नहीं है और न सत्ता को बाजार में उपभोक्ताओं के दम पर अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने के लक्ष्य के रास्ते खड़े हुए अवरोध की कोई खास चिंता है। २२ और २३ अगस्त को देशभर के बैंकों में हड़ताल रहेगी।आम लोगों के लिए, माफ कीजिए उपभोक्ताओं के लिए नकदी प्रवाह बंद हो जायेगा। न कोई चेक क्लीअर होगा और न ही मंगलवार को एटीएम में डाली गयी रकम में कोई इजाफा होगा।देश भर में बैंकों की प्रस्तावित हड़ताल और त्यौहारी छुट्टियों के चलते इस हफ्ते बैंकों में सिर्फ ढाई दिन ही काम होगा। इतने बड़े आर्थिक संकट की न सरकार को परवाह है और राजनीति को।कर्मचारियों,श्रमिकों की समस्याओं को सुलझाने के लिए पहल तो दूर की कौड़ी है।मुक्त बाजार की व्यवस्था में श्रमिक वर्ग के साथ राजनीति की नाममात्र सहानुभूति तक नहीं है।मनेसर में पांच सौ कर्मचारियों की बर्खास्तगी के बाद पुलिस पहरे पर मारुति कारखाना खुलने पर भी राजनीति खामोश है।शोरशराबे की संसदीय कार्यवाही में न बैंक हड़ताल की गूंज सुनायी दी और न मारुति ​​मनेसर की चर्चा। जाहिर है कि आर्थिक सुधारों के साथ साथ स्रमिक कानूनों में संशोधन पर भी सर्वदलीय राजनीतिक सहमति बन गयी है।बैंकिंग सेक्टर में प्रस्तावित सुधार और नौकरियों में आउटसोर्सिंग के विरोध में सरकारी बैंकों के कर्मचारी 22 और 23 अगस्त को हड़ताल पर रहेंगे।देश में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की पांच कर्मचारी यूनियनों और चार अधिकारी यूनियनों का प्रमुख संगठन यूएफबीयू, प्रस्तावित बैंकिंग सुधार और खंडेलवाल समिति की रिपोर्ट मनमाने ढंग से लागू किए जाने के खिलाफ है। द यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन (यूएफबीयू) ने अपनी मांगों को लेकर मुख्य श्रम आयुक्त से मंगलवार सुबह बातचीत विफल होने के बाद दो दिन की हड़ताल का निर्णय किया है। यूएफबीयू पांच कर्मचारी संगठनों और सरकारी बैंकों के अधिकारियों के चार संगठनों का प्रतिनिधित्व करता है।बैंक कर्मियों की प्रमुख मांगों में आउटसोर्सिंग पर पाबंदी लगाने, बैंकिंग रेगुलेशन संशोधन एक्ट पर पुनर्विचार करने, कार्य की अवधि नियमित करने, आश्रितों को नौकरी देने, क्षेत्रीय एवं ग्रामीण बैंकों का विलय व उन्हें बंद करने पर रोक लगाना आदि शामिल है। दूसरी ओर, इंडियन बैंक ने बांबे शेयर बाजार को सूचित किया है कि यूएफबीयू के आह्वान पर यदि बैंक कर्मी हड़ताल करते हैं, तो उसकी शाखाओं और कार्यालयों में गतिविधियां प्रभावित होंगी।

इस पर तुर्रा यह कि केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक और फुटकर बाजार में विदेशी कंपनियों को प्रवेश देने की नीति जैसे विभिन्न मुद्दों को लेकर देश भर के व्यापारी गुरुवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन करेंगे।

मजे की बात तो यह है कि प्रधानमंत्री से इस्तीपा दिलवाकर मुख्य विपक्ष भगवा ब्रिगेड और सत्ता पक्ष का भी एक वर्ग अगले प्रधानमंत्री का चेहरा बतौर जिस नरेंद्र मोदी को प्रोजेक्ट कर रहा है, मारुति के करंमचारियों से उनकी भी कोई सहानुभूति नहीं है। तालाबंदी के मौके का फायदा उठाते हुए जैसा​ ​ कि सिंगुर मामले में उन्होंने अपने यहां टाटा नैनो का कारखान लगवा लिया, उसी तर्ज पर हरियाणा से मारुति कारखाना गुजरात में स्थानांतरित करवाने के लिए वे जापान तक दौड़ आये। मारुति सुजुकी के चेयरमैन आर सी भार्गव ने मारुति के प्लांट के मानेसर से किसी और राज्य में जाने की आशंकाओं को दरकिनार कर दिया है। उन्होंने कहा कि मारुति अपने मानेसर प्लांट को किसी और राज्य में नहीं ले जा रही है। प्लांट सिफटिंग की खबर पूरी तरह से गलत है। हालांकि, गुजरात प्लांट में 2015 तक उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है।  इस प्लांट में करीब सवा 1500 कर्मचारी काम करते थे। कंपनी ने पिछले हफ्ते इनमें से 500 कर्मचारियों को एक साथ निकाल दिया। नरेंद्र मोदी तो क्या , बाकी राजनेता भी कामगारों की इस बलि पर खामोश हैं।देश की अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत बताते हुए कंपनी मामलों के मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा कि देश में सर्वांगीण सुधार की जरूरत है। जिसमें राजकाज के मोर्चे पर सुधार पर विशेष ध्यान दिया जाये। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है। मुझे लगता है कि सवाल केवल प्रतिष्ठा का निर्माण करने का है और प्रशासनिक सुधारों को आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाने की जरूरत है।देश के शेयर बाजारों में मंगलवार को तेजी दर्ज की गई। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 194.18 अंकों की तेजी के साथ 17885.26 पर और निफ्टी 54.70 अंकों की तेजी के साथ 5421.00 पर बंद हुआ। बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक सेंसेक्स सुबह 14.06 अंकों की तेजी के साथ 17705.14 पर और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का 50 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक निफ्टी 2.40 अंकों की तेजी के साथ 5368.70 पर खुला।

यूएफबीयू से संबद्ध नेशनल ऑर्गनाइजेशन आफ बैंक वर्कर्स(एनओबीडब्ल्यू) के महासचिव अश्वनी राणा ने कहा, 'बातचीत और सुलह के प्रयास विफल हो गए। सरकार और आईबीए ने हमारी मांगों का कोई जवाब नहीं दिया। अखिल भारतीय बैंक हड़ताल 22 और 23 अगस्त को होगी।'उन्होंने कहा, 'बैठक में 9 यूनियनें और इंडियन बैंक्स असोसिएशन(आईबीए) के उपाध्यक्ष मौजूद थे। सरकार और आईबीए हमारी मांगों को नहीं सुन रहे हैं। हम हड़ताल पर जाने को मजबूर हैं।' इस बीच, इंडियन बैंक ने बंबई शेयर बाजार को दी सूचना में बताया, 'बैंक कर्मचारियों का एक समूह प्रस्तावित हड़ताल में शामिल हो सकता है...इससे बैंक की शाखाओं और कार्यालय का कामकाज प्रभावित हो सकता है।'

उल्लेखनीय है कि बैंकिंग कानून संशोधन विधेयक, 2011 में निजी बैंकों में शेयरधारकों का मताधिकार मौजूदा 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 26 प्रतिशत तक बढ़ाने का प्रावधान है। इसमें बड़े निवेशकों के लिए बैंक निदेशक मंडल को अपने अधिकार में लेना आसान होगा।देशभर में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की करीब 87,000 शाखाएं हैं और देश में बैंकिंग कारोबार में इन बैंकों की हिस्सेदारी करीब 75 प्रतिशत है।

इस बीच सुधारों के लिए रेटिंग एजंसियों के दबाव का सिलसिला जारी है।दिग्गज रेटिंग एजेंसी स्टैन्डर्ड एंड पूअर्स(एसएंडपी) ने बुधवार को भारतीय बैंकों पर फिर चेतावनी जारी की है। एसएंडपी ने जारी रिपोर्ट में कहा है कि अगले 2 साल तक भारतीय बैंकों के एनपीए बढ़ते रहेंगे। इसके पीछे एसएंडपी ने ग्रोथ में कमी को जिम्मेदार बताया है।एसएंडपी के मुताबिक घटती ग्रोथ के साथ छोटी और मझोली कंपनियों की हालत भी बिगड़ रही है। ऐसे में एनपीए का खतरा बढ़ता जा रहा है। हालांकि रेटिंग एजेंसी ने यह भी कहा है कि सरकार की ओर से जारी कैपिटलाइजेशन के चलते बैंकों का बोझ कम होगा। इससे पहले एसएंडपी कई बड़े सरकारी और निजी बैंकों की रेटिंग घटा चुका है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने आज कहा कि  बैंकों पर उनकी अपनी समूह इकाईयों में लगाई जानी वाली पूंजी के बारे में रिजर्व बैंक के प्रस्तावित दिशानिर्देश के अमल में आने से स्टेट बैंक और आईसीआईसीआई बैंकों पर बुरा असर पड़ सकता है।  रिजर्व बैंक ने पिछले सप्ताह ही बैंकों के लिये उनकी खुद की गैर वित्तीय और वित्तीय इकाईयों को दी जाने वाली पूंजी को एक सीमा में बांधे रखने के बारे में दिशानिर्देशों का एक मसौदा जारी किया।  इसके अनुसार किसी बैंक का समूह की गैर वित्तीय इकाई में लगने वाला धन उसकी चुकता पूंजी और आरक्षित राशि 'नेट वर्थ'के पांच प्रतिशत तक तथा वित्तीय सेवा कंपनियों के मामले में 10 प्रतिशत तक सीमित रहना चहिए।मूड़ीज के अनुसार रिजर्व बैंक के इन प्रस्तावित नियमों से उन कंपनियों पर बुरा असर पड़ेगा जो ब्रांड, पूंजी और समर्थन के लिये अपने प्रवर्तक बैंक पर निर्भर रहते हैं। विशेषकर ऐसी इकाईयां जिनका व्यापक अंतरराष्ट्रीय संचालन नेटवर्क है और ऐसी कंपनियां जिनका बीमा, प्रतिभूति और संपत्ति प्रबंधन व्यवसाय है जिसमें उन्हें अपनी कारोबारी जरुरतों के लिये पूंजी और नकदी की आवश्यकता पड़ती है।  मूड़ीज ने कहा कि रिजर्व बैंक के इन दिशानिर्देशों के अमल में आने पर प्रभावित होने वाले बैंकों में आईसीआईसीआई बैंक, भारतीय स्टेट बैंक, बैंक ऑफ बडौदा, बैंक ऑफ इंडिया और कोटक महिन्द्रा बैंक शामिल है।



आम लोगों के लिए खतरे की घंटी है कि सरकारी तेल कंपनियों के बढ़ते घाटे को काबू करने के लिए रेटिंग एजेंसी ने क्रिसिल ने सरकार को डीजल, केरोसिन और रसोई गैस की कीमतों में तत्काल बढ़ोतरी करने की सलाह दी है। क्रिसिल का कहना है कि इससे सरकार को अपनी वित्तीय स्थिति सुधारने में भी मदद मिलेगी।क्रिसिल ने कहा है कि बढ़ती अंडररिकवरी के चलते घाटे के बोझ तले चरमरा रही तेल विपणन कंपनियों और सरकार की बिगड़ती जा रही वित्तीय स्थिति को सरकारी नियंत्रण वाले ईंधनों, खासकर डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी करके ही काबू में लाया जा सकता है। मौजूदा समय में तेल कंपनियों पर करीब 60 फीसदी बोझ (अंडररिकवरी) डीजल की कम कीमतों के चलते ही पड़ रहा है। ऐसे में जरूरी है कि सरकारी नियंत्रण के तहत आने वाले ईंधनों के दाम तत्काल 10 से 15 फीसदी तक बढ़ा दिए जाएं और धीरे-धीरे इन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमतों से प्रत्यक्ष रूप से जोड़ दिया जाए। क्रिसिल ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि देश की तीन प्रमुख सरकारी तेल विपणन कंपनियों आईओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल को अप्रैल-जून तिमाही में अंडररिकवरी और सरकारी सहायता न मिलने के चलते 40,500 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा है। आईओसी ने वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 22,000 करोड़ रुपये का घाटा दर्शाया है, जोकि देश की किसी भी तेल कंपनी का अबतक का सबसे बड़ा तिमाही घाटा रहा। रिपोर्ट में कहा गया है कि डीजल की कीमतों में पिछली बढ़ोतरी जून 2011 में की गई थी। उसके बाद कच्चे तेल की कीमतों में हुई वृद्धि और रुपये में आई गिरावट के चलते सरकारी तेल कंपनियों का घाटा बीती तिमाही में बढ़ कर 47,800 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। वित्त वर्ष 2011-12 में कंपनियों का घाटा 77 फीसदी के उछाल के साथ 1,38,500 करोड़ रुपये के ऊंचे स्तर पर पहुंच गया था और चालू वित्त वर्ष में भी इसमें भारी बढ़ोतरी होना तय है। वर्तमान में तेल कंपनियों को डीजल पर 14 रुपये प्रति लीटर, केरोसिन पर 29 रुपये प्रति लीटर और रसोई गैस पर 250 रुपये प्रति सिलिंडर का नुकसान उठाना पड़ रहा है।

बैंकों के मुख्य गेट पर बुधवार व वीरवार को ताले लग जाएंगे, जिस कारण लोगों को नकदी निकालने व जमा करवाने से वंचित होना पड़ेगा। वहीं करोड़ों रुपयों के चेकों की क्लीयरिंग भी रुक जाएगी। देश के दस लाख से अधिक अधिकारी व कर्मचारी मांगों के प्रति हड़ताल करेंगे। यूनाइटेड फोरम आफ बैंकर्स यूनियन के आहवान पर 23 व 24 अगस्त को हो रही हड़ताल के कारण लोगों ने मंगलवार को ही बैंकों में से नकदी निकलना उचित समझा।एटीएम में भी मंगलवार जितनी राशि डाली गई उतनी ही रहेगी। सभी बैंकों ने मुख्य गेटों पर दो दिवसीय हड़ताल के पोस्टर लगा दिए हैं तथा बैंक यूनियनों ने मिलकर सरकार के खिलाफ कस्बा, नगर, महानगर में रैली करने की रूपरेखा बनाई है।

गौरतलब है कि केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने बैंकों को निर्देश दिया है कि वह आम आदमी के लिए कर्ज सस्ता करें । घर, कार और कंज्यूमर डयूरेबल से लेकर शिक्षा कर्ज की ब्याज दरों में कटौती की सख्त जरूरत है।ऐसा करने से जहां आम आदमी की क्रय क्षमता बढ़ेगी वहीं उद्योगों में उत्पादन में बढ़ोतरी हो सकेगी जिसके चलते निवेश का चक्र तेज होगा। आम आदमी की शिकायत है कि उस पर ईएमआई का बोझ बढ़ रहा है और कर्ज चुकाने की अवधि बढ़ रही है। इन दोनों मोर्चों पर राहत का उपाय ब्याज दरों में कटौती है।शनिवार को  सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रमुखों की बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन में चिदंबरम ने यह बातें कही। इसके साथ ही उन्होंने सूखा प्रभावित किसानों को कर्ज अदायगी में राहत देने की घोषणा भी की। वहीं उन्होंने बैंकों को एटीएम की संख्या को 63,000 के मौजूदा स्तर से दो वर्ष में दोगुना करने का निर्देश दिया ताकि करीब 11 लाख करोड़ रुपये की जो राशि लोगों के पास है वह सिस्टम में आ सके और उसका फायदा देश की अर्थव्यवस्था को मिल सके। वित्त मंत्री ने एटीएम को नगदी स्वीकार करने वाली मशीन भी बनाने के निर्देश दिए। चिदंबरम ने कहा कि देश के बैंकिंग क्षेत्र की सेहत कुछ अन्य देशों की तुलना में बहुत अच्छी है। यदि देश में निवेश का माहौल फिर से बेहतर हो जाए तो हमारी ज्यादातर दिक्कतें दूर हो जाएंगी। इसलिए हमने बैंकों उन क्षेत्रों पर ध्यान देने को कहा है, जहां पैसे की ज्यादा जरूरत है।

डोएचे बैंक ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रेटिंग डाउनग्रेड करके होल्ड कर दी है। साथ ही ब्रोकरेज हाउस ने बैंक के स्टॉक के लिए 2,110 रुपए का टारगेट प्राइस तय किया है। ऐसेट क्वॉलिटी के मामले में एसबीआई के नतीजे एक बार फिर खराब रहे। इसका स्लिपेज 5 फीसदी तक पहुंच गया, जो कि बाजार के अनुमान से कहीं ज्यादा है।कमजोर मैक्रो हालात और मानसून की स्थितियों के कारण निकट भविष्य में ऐसेट क्वॉलिटी को लेकर चुनौतियां बनी रह सकती हैं। बैंक के स्टॉक में हाल में करेक्शन देखने को मिला है और वित्त वर्ष 2013 की अनुमानित बुक के 1.1 गुने पर इसका वैल्यूएशन आकर्षक दिखाई देता है। निकट भविष्य में स्टॉक में तेजी आने की वजह फिलहाल नहीं दिख रही है। इन सेग्मेंट्स में ग्रास एनपीएल क्रमश: 9.3, 7.2 और 9.8 फीसदी के स्तर पर है।

बिहार सरकार ने 21 राष्ट्रीय बैंकों को ब्लैकलिस्ट कर दिया है। बिहार सरकार ने ग्राहकों को कर्ज न देने के कारण 21 राष्ट्रीय बैंकों को ब्लैकलिस्ट करने का फैसला किया है। ऐसे में अब इन 21 राष्ट्रीय बैंकों में से बिहार सरकार ने अपनी जमाराशि पूरी तरह निकालने के साथ इन बैंकों में अपना खाता बंद करने का फैसला किया है। राज्य सरकार ने इन बैंकों से राज्य सरकार के सभी खाते बंद करने का आदेश दिया है।

बिहार सरकार ने जिन 21 बैंकों को ब्लैकलिस्ट किया है उनमें विजया बैंक, यूको बैंक, देना बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, आंध्रा बैंक, इंडियन बैंक, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, जम्मू एंड कश्मीर बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, पंजाब एंड सिंध बैंक और स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर जैसे सरकारी बैंक का नाम शामिल है।

हालांकि एसबीआई, पीएनबी और केनरा बैंक के लोन देने के अच्छे रिकॉर्ड को देखते हुए इन्हें ब्लैकलिस्ट नहीं किया गया है। वहीं बिहार सरकार ने एक्सिस बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, फेडरल बैंक, साउथ इंडियन बैंक, आईएनजी वैश्य बैंक और कोटक महिंद्रा बैंक जैसे प्राइवेट सेक्टर के बड़े बैंकों को भी ब्लैकलिस्ट कर दिया है।

दरअसल बिहार सरकार कई वर्षों से बैंकों से लोन रेश्यो सुधारने को कह रही है। सरकार का कहना है कि बिहार राज्य उभर रहा है और यहां नए कारोबारियों, किसानों और छोटे कारोबारियों को पैसे की जरूरत है। लेकिन बैंक सरकार की मांग को नजरअंदाज करते रहे हैं और लोन देने से कतरा रहे हैं। इसी वजह से राज्य सरकार ने नाराज होकर ये कार्रवाई की है।

दूसरी ओर,मारुति सुजुकी के मानेसर प्लांट में भारी सुरक्षा इंतजाम के साथ मंगलवार सुबह आंशिक कामकाज फिर से शुरू हो गया।आइएमटी मानेसर स्थित मारुति सुजुकी प्लांट में रविवार को हवन का आयोजन किया गया। कंपनी के आला अधिकारियों से लेकर सुपरवाइजर तक शरीक हुए। आसपास से बड़ी संख्या में ग्रामीण भी शरीक हुए। वहीं, सुजुकी मोटर कार्प (एसएमसी) के चेयरमैन ओसामु सुजुकी बुधवार को अपने एक सप्ताह के दौरे पर भारत पहुंच रहे हैं। सुजुकी बुधवार को हिंसा प्रभावित मानेसर प्लांट के हालात का जायजा लेने के अलावा हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से मुलाकात करेंगे।देश की नामी कार कंपनी मारुति सुजुकी के मानेसर प्लांट में आज सुबह 9 बजे से काम शुरू हो गया। करीब 1 महीने की तालाबंदी के बाद प्लांट में काम भारी सुरक्षा इंतजाम के बीच हो रहा है। कंपनी अभी लगभग 300 मजदूरों के साथ सिंगल शिफ्ट में उत्पादन शुरू करेगी। इस शिफ्ट का समय सुबह 8.30 बजे से शाम 4.30 बजे होगा। भारी बारिश के बीच मंगलवार सुबह फैक्ट्री गेट के सामने कर्मचारी प्लांट में प्रवेश करने के लिए लाइन में खड़े हुए। हरियाणा पुलिस ने कंपनी की सुरक्षा में 500 जवानों को तैनात किया है। इनसे से 200 जवान प्लांट के भीतर और 300 सुरक्षाकर्मी कंपनी के चारो ओर लगाए गए हैं। इसके अलावा, कंपनी ने अपने विशेष सुरक्षा दस्ते के 100 सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया है। इस विशेष दस्ते में एक्स सर्विसमैन शामिल हैं।गौरतलब है कि मानेसर प्लांट में पिछले माह 18 जुलाई को भड़की हिंसा और आगजनी की घटना के बाद 21 जुलाई को तालाबंदी कर दी गई थी। कंपनी ने गत 16 अगस्त को 21 अगस्त से उत्पादन फिर शुरू किए जाने की घोषणा की थी। इस हिंसक घटना में प्लांट के जीएम एचआर अवनीश कुमार देव की मौत हो गई थी और 100 से अधिक अधिकारी घायल हो गए थे। कंपनी ने तालाबंदी खोले जाने की घोषणा के साथ 500 नियमित कर्मचारियों को निलंबित किए जाने के लिए नोटिस जारी कर किया है। इसके अलावा, भविष्य में प्लांट में कामकाज शांतिपूर्ण ढंग से चले इसके लिए उत्पादन इकाई में कांट्रैक्ट पर काम करने वालों को नहीं रखने का फैसला किया है। मानेसर प्लांट की सालाना उत्पादन क्षमता 5.5 लाख कार बनाने की है। यहां कंपनी की स्विफ्ट, स्विफ्ट डिजायर, एसएक्सफोर और ए स्टार मॉडल तैयार किए जाते हैं।

उधर, मारुति सुजुकी के चेयरमैन आर सी भार्गव ने मारुति के प्लांट के मानेसर से किसी और राज्य में जाने की आशंकाओं को दरकिनार कर दिया है। उन्होंने कहा कि मारुति अपने मानेसर प्लांट को किसी और राज्य में नहीं ले जा रही है। प्लांट सिफटिंग की खबर पूरी तरह से गलत है। हालांकि, गुजरात प्लांट में 2015 तक उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है।कंपनी ने १६ अगस्त को २१ अगस्त से उत्पादन फिर शुरु किए जाने की घोषणा की थी। कंपनी ने तालाबंदी खोले जाने की घोषणा के साथ नियमित कर्मचारियों को निलंबित किए जाने के लिए नोटिस जारी किए जाने की जानकारी दी थी। इसके अलावा भविष्य में संयंत्न में कामकाज शांतिपूर्ण ढंग से चले इसके लिए उत्पादन इकाई में अनुबंध पर काम करने वालों को नहीं रखने का फैसला लिया था।

कंपनी के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, ओसामु सुजुकी अपनी यात्रा के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात करेंगे। ओसामु आगामी 28 अगस्त को मारुति सुजुकी इंडिया की सालाना आमसभा में भी शिरकत करेंगे। सूत्रों के मुताबिक, 23 अगस्त को वह गुड़गांव में मारुति सुजुकी के प्रबंधन और कर्मचारियों की आंतरिक बैठक लेंगे। मानेसर प्लांट में हुई हिंसा में घायल हुए कर्मियों से वह मुलाकात कर सकते हैं। जबकि, 24 अगस्त को ओसामु नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे और उसके अगले दिन गुजरात के मेहसाणा में 700 एकड़ में बन रहे प्लांट का दौरा करेंगे। यहां मारुति सुजुकी 4,000 करोड़ रुपये की लागत से नए प्लांट की स्थापना करने जा रही है। इसके 2015-16 तक पूरा होने की उम्मीद है।

मारुति सुजुकी कंपनी के मानेसर प्लांट में उत्पादन कार्य शुरू होने से औद्योगिक जगत में खुशी है। मारुति की वेंडर कंपनियां जयभारत, कृष्णा मारुति आदि के श्रमिक व अधिकारी खुश नजर आए। मारुति वेंडर के लिए जॉब वर्क करने वाली कंपनियों में तो दीवाली जैसा माहौल था। संचालक से लेकर श्रमिक तक खुश थे। कई संचालकों ने तो छंटनी किए गए श्रमिकों को फिर काम पर बुलाने की कवायद शुरू कर दी है।

मानेसर से गुड़गांव और फरीदाबाद तक व दूसरे राज्यों में करीब 600 बड़ी व छोटी इकाइयां हैं, जहां मारुति कारों के पुर्जे बनते हैं। मानेसर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के महासचिव मनोज त्यागी बताते हैं कि मानेसर के सेक्टर-तीन में लगभग 80 फीसदी ऐसी इकाइयां हैं, जो मारुति के लिए पुर्जे तैयार करती हैं। मारुति का काम शुरू होने की घोषणा निश्चित रूप से उनके लिए जीवनदायी साबित हुआ है।

मारुति के लिए रबड़ उत्पाद बनाने वाली कंपनी बोनी पालीमर प्रमुख महेश पुनिया ने कहा, हम खुश हैं।

एक महीने के बाद आज हमने थोड़ा माल भेजा है पर एक उम्मीद जगी है कि अब हमारा काम फिर से रफ्तार पकड़ लेगा। वह कहते हैं कि हम प्रतिदिन छह से सात लाख रुपये का मटेरियल मारुति को आपूर्ति करते रहे हैं। काम बंद होने से हमारी स्थिति खराब थी। सुमन ऑटो कंपनी के देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि मारुति के मानेसर प्लांट के बंद होने से हमें काफी घाटा उठाया पड़ा। मारुति के बंद होने से छोटी कंपनियों के लोगों की नौकरी पर भी खतरा उत्पन्न हो गया था। अगर मारुति लंबे समय तक बंद रहती या यहां से चली जाती, तो बहुत सारे लोग बेरोजगार होते ही, बहुत सारी कंपनियां भी बंद हो जातीं। सोना स्टेयरिंग के मैन्यूफैक्चरिंग हेड अखिल जैन बताते हैं कि मारुति के बंद होने से काफी घाटा उठाना पड़ा। हमारे लिए मारुति का शुरू होना बड़ी खुशी है। एके सोमवंशी बताते हैं कि मानेसर और गुड़गांव ही नहीं, फरीदाबाद की कई कंपनियां मारु ति के पुर्जे बनाती हैं। उनके लिए यह सूचना निश्चित रूप से खुशखबरी है। सेक्टर-37 स्थित जॉब डॉट कंपनी के संचालक सुरेश कहते हैं कि आज तो हमारे लिए दीवाली जैसा दिन है। हम सबकी खुशी मारुति की प्रगति है। आनंद इंटर प्राइजेज के विनोद छाबड़ा ने कहा, मारुति के चालू होने से हमें इतनी खुशी हुई कि हम व्यक्त नहीं कर सकते। 33 दिनों से रोटी नहीं हजम हो रही थी।

नए आर्थिक सुधारों के समर्थकों का कहना है कि जब तक नए आर्थिक सुधारों को लागू नहीं किया जाएगा तब तक न तो आवश्यक  मात्रा में पूंजी निवेश होगा तथा न ही अर्थव्यवस्था में शिथिलता दूर हो पावेगी। नए आर्थिक सुधारों के  लागू होने से ही जीडीपी ग्रोथ एवं रोजगार के अवसर बढ़ेंगे तथा विदेशी मुद्रा प्रवाह बढ़ेगा, रुपये में भी मजबूती आएगी, शेयर बाजार उठ सकेगा तथा सरकार का बजट घाटा भी नियंत्रित हो सकेगा। विदेशी वित्तीय संस्थानों, कंसल्टेंसी  एवं क्रेडिट  रेटिंग संस्थानों का भी यही चिन्तन है  कि सप्लाय साइड उपायों अर्थात्  बड़े पैमाने पर उत्पादन करके बाजार में वस्तुओं की पूर्ति बढ़ाकर मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण पाया जा सकता है इन सभी की राय है कि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को नए आर्थिक सुधारों को लागू करने के लिए 1991-96  के अपने वित्तमंत्री के कार्यकाल के समान ही साहसपूर्ण कदम उठाने चाहिए।पिछले दिनों अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा भी भारत में अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाने के लिए आर्थिक सुधारों की नई लहर की बात कही गई। अभी हाल में ही 'एक्सेंच्यूर इंस्टीटयूट आफ हाय परफारमेंस' द्वारा अपने एक 'न्यू वेव फॉर इकोनोमिक ग्रोथ' रिपोर्ट  में संयुक्त राय अमरीका, जर्मनी, युनाइटेड किंगडम तथा भारत की अर्थव्यवस्था का विकास मॉडल तैयार करके बताया गया है कि किस प्रकार उच्च आर्थिक विकास की नई लहर लाई जा सकती है?  किन्तु व्यापार जगत में जब आर्थिक सुधारों की बात की जाती है तो उससे आशय मल्टी ब्राण्ड खुदरा बाजार में विदेशी निवेश, पेंशन फंड निवेश, बीमा क्षेत्र, उद्योगोन्मुखी श्रम कानूनों को लागू करने, पेट्रोलियम पदार्थों व यूरिया के विनियंत्रण, सब्सिडी घटाने  तथा अर्थव्यवस्था को और अधिक उदार बनाने से होता है अर्थात् इन सुधारों की लहर आनी चाहिए। दलील यह दी जा रही है कि गत 18 महीनों के दौरान निर्यात में उल्लेखनीय कमी आई है, खासतौर पर श्रम आधारित क्षेत्रों में। गत वित्त वर्ष में चालू खाता घाटा रिकॉर्ड स्तर तक गिर गया। इतना ही नहीं अल्पावधि के विदेशी ऋण को लेकर भारत की संवेदनशीलता में इजाफा हुआ है। भारत यही उम्मीद कर सकता है कि यूरोपीय संकट अधिक गंभीर न हो और विदेशी पूंजी बाहर न जाए। वर्ष 2008 में बाहरी कमजोरी से निपटने के लिए सरकार के पास भी धन था और घरेलू मांग भी मजबूत थी। इस बार ये दोनों संकट में हैं। गत वर्ष देश का राजकोषीय घाटा 4.6 फीसदी के तय लक्ष्य से 1.3 फीसदी पिछड़ गया था। इस वर्ष इसके लिए 5.1 फीसदी का लक्ष्य तय किया गया है। सरकार के समक्ष यह राजकोषीय संकट उस वक्त आया है जबकि वह अपने संसाधनों का इस्तेमाल मांग के संकट से निपटने के लिए कर सकती थी।

संसद में पेश वर्ष 2008-09 की आर्थिक समीक्षा में केंद्र सरकार ने श्रम और रोजगार से जुड़े कई कानूनी प्रावधानों में सुधार पर जोर दिया है। समीक्षा के मुताबिक राज्य कर्मचारी बीमा, कर्मचारियों की छंटनी, ठेके पर काम से जुड़े कानूनों और फैक्ट्री एक्ट के प्रावधानों में संशोधन की जरूरत है।


आर्थिक समीक्षा में राज्य कर्मचारी बीमा के प्रशासनिक शुल्क (3 फीसदी) और भुगतान में देरी पर लगने वाली पेनल्टी व ब्याज (17 फीसदी) की समीक्षा की जरूरत बताई है। कर्मचारियों की छंटनी के लिए फिलहाल औद्योगिक विवाद कानून के तहत सरकार की मंजूरी लेना जरूरी है। आर्थिक समीक्षा में छंटनी से पहले सरकारी मंजूरी की अनिवार्यता समाप्त कर बदले में मुआवजे के तौर पर सालभर की सेवा पर 15 दिन के वेतन को बढ़ाने का सुझाव भी दिया है। इसी तरह कॉन्ट्रेक्ट से जुड़े कानूनों में सुधार कर नॉन कोर गतिविधियों में भी कॉन्ट्रेक्ट लेबर को मंजूरी देने और कॉन्ट्रेक्ट लेबर मुहैया कराने वाली कंपनी को भी श्रम कानूनों के दायरे में लाने का प्रस्ताव है।



देश में किस तरह की दक्षता और योग्यता रखने वाले कितने लोग रोजगार के लिए उपलब्ध हैं, इसका पूरा ब्यौरा रखने के लिए आईटी आधारित रोजगार सूचना तंत्र विकसित करने की जरूरत जाहिर की है। इस तंत्र के जरिए देश में उपलब्ध मानव संसाधन की स्थिति और उनकी मांग व आपूर्ति का आकलन करने में काफी मदद मिल सकेगी। आर्थिक सर्वे में रोजगार सूचना तंत्र विकसित करने के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल अपनाने का भी सुझाव दिया है।

श्रम कानूनों में सुधार की जोरदार वकालत की पीएम ने

नवभारत टाइम्स | Dec 9, 2005

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने श्रम कानूनों में सुधार की जोरदार वकालत की है। उन्होंने साफ-साफ कहा कि देश की आर्थिक प्रगति के लिए और विश्व बाजार में अपने को प्रतियोगी स्तर पर रखने के लिए मौजूदा श्रम कानूनों में सुधार करना होगा। उन्हें परिस्थितियों के मुताबिक लचीला बनाना होगा। मनमोहन सिंह ने इंस्पेक्टर राज को पूरी तरह से समाप्त करने की भी वकालत की है।

प्रधानमंत्री ने शुक्रवार को भारतीय श्रम सम्मेलन के 40वें सत्र का उद्घाटन किया। इस अवसर पर मनमोहन सिंह ने श्रमिक संगठनों से कहा कि वे देश की आर्थिक प्रगति को गति देने के लिए श्रम कानूनों में संशोधन करने के प्रयासों में सरकार को सहयोग दें। सामाजिक सुरक्षा और श्रमिक अधिकारों के संरक्षण के साथ-साथ हम लचीले और तर्कसंगत श्रम कानूनों के जरिए विकास के लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ सकते हैं। दशकों पुराने और बेमतलब हो गए श्रम कानूनों की वजह से आर्थिक वृद्धि पर बुरा असर पड़ रहा है। ये कानून बाधा का काम कर रहे हैं। इनसे श्रमिकों के हितों पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है।

उन्होंने कहा कि कठोर श्रम कानूनों के कारण रोजगारजनक उद्योगों में अपेक्षित निवेश नहीं हो पा रहा है। श्रम कानूनों को लचीला और पारदर्शी बनाने से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी। श्रमिकों के मूलभूत अधिकारों की सुरक्षा के लिए सरकार की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए कहा कि व्यापक सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ लचीली श्रम कानून व्यवस्था भी चल सकती है। इसके जरिए बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के साथ तालमेल रखा जा सकता है।

इंस्पेक्टर राज को पूरी तरह से समाप्त करने की वकालत करते हुए मनमोहन ने चीन का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि चीन में किसी फैक्ट्री में ज्यादा से ज्यादा 5 इंस्पेक्टर जांच-पड़ताल के लिए जाते हैं, जबकि हमारे यहां 30 से भी अधिक इंस्पेक्टर तैनात किए जाते हैं। इस तरह के इंस्पेक्टर राज की दहशत से मुक्ति पानी होगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि आर्थिक वृद्धि की दर को अगले कुछ सालों में 8 से 10 फीसदी करके देश में रोजगार के काफी अवसर सृजित किए जा सकते हैं।

इस दो दिवसीय सम्मेलन के पहले दिन श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने सामाजिक सुरक्षा के प्रति सरकार के उदासीन रवैये को लेकर यूपीए सरकार को काफी खरी-खोटी सुनाई। प्रधानमंत्री की उपस्थिति में श्रमिक संगठनों की ओर से भारतीय मजदूर संघ के गिरीश अवस्थी ने कहा कि औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 5(बी) में केंद्र सरकार संशोधन करना चाहती है, इसका सभी श्रमिक प्रतिनिधि विरोध करते हैं। दूसरी तरफ मालिकों के प्रतिनिधि आर.के.सोमानी ने आर्थिक विकास के लिए पुरानी श्रमिक नीतियों और कानूनों को शीघ्र बदलने की जोरदार मांग की।

श्रम कानूनों में सुधार पर सरकारें नहीं देती ध्यान
अदालती आईना
एम. जे. एंटनी /  August 22, 2010
http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=38226

कानून बनाने वाले इन दिनों कॉरपोरेट निकायों की समस्या के समाधान की खातिर विधेयक पारित करने में व्यस्त हैं, लेकिन सालों से उन्होंने श्रम कानून पर गंभीरता से नजर नहीं डाली है। मुख्य विधान औद्योगिक विवाद अधिनियम में 'उद्योग' शब्द की परिभाषा एक ऐसा ही मामला है।

पिछले तीन दशक से यह व्याख्या संबंधी समस्या पैदा करता रहा है। सरकारी आलस्य को देखते हुए उच्चतम न्यायालय ने पांच साल पहले इसे स्पष्ट करने का फैसला किया था, लेकिन अदालत अब तक ऐसा नहीं कर पाई है। यह अधिनियम विवादों के तेजी से, प्रभावी और मितव्ययी तरीके से निपटान के लिए था, लेकिन देरी और खर्च के मामले में यह दीवानी अदालतों से बेहतर साबित नहीं हो पाया है।

नए औद्योगिक वातावरण में गंभीर समस्याओं में से एक है दशकों से अस्थायी व दिहाड़ी मजदूरों को नियुक्त करना और वह भी स्थायी कर्मचारियों को दिए जाने वाले लाभ के बिना। उच्चतम न्यायालय ने सरकारी अधिकरणों व सार्वजनिक उपक्रमों को मॉडल नियोक्ता करार दिया है, लेकिन इस मामले में वे निजी क्षेत्र के मुकाबले कम दोषी नहीं हैं।

अदालत में पिछले सप्ताह निपटाए गए एक मामले (कर्नाटक राज्य बनाम एम. एल. केसरी) में  टंकक और सहायक को 25 साल तक दिहाड़ी मजदूरी पर रखा गया और वह भी श्रम कानून की सुरक्षा के बिना। 15 साल बाद उन्होंने अपने अधिकारों के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया। आठ साल तक विभिन्न अदालतों में मामले की सुनवाई होने के बाद अंतत: उच्चतम न्यायालय ने उन्हें आधी जीत दिला दी और अब वे नियोक्ता केपास दोबारा आ गए हैं।

पिछले हफ्ते एक और मामला अदालत के सामने आया था (हेल्थ फॉर मिलियन्स बनाम केंद्र सरकार) और इसमें पता चला कि पारित होने के साथ ही श्रम कल्याण कानूनों को करीब-करीब भुला दिया गया है। इसमें बिल्डिंग ऐंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स ऐक्ट 1996 का संदर्भ पेश किया गया था, जिसकेतहत कामगारों को लाभ पहुंचाने की खातिर एक फंड की स्थापना की जानी होती है।

लेकिन कुछ ही राज्यों ने ऐसा किया है और इससे भी कम अदालत में पेश हुए हैं, इस वजह से न्यायाधीश को चेतावनी जारी करने को मजबूर होना पड़ा है कि मुख्य सचिवों को समन भेजा जाए। अदालत का प्रत्युत्तर देने वाले कुछ राज्यों का प्रदर्शन नगण्य था। राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी करने की वजह से दिल्ली में काफी ज्यादा निर्माण कार्य हो रहा है, दिल्ली सरकार ने 350 करोड़ रुपये पांच साल पहले जमा किए थे, लेकिन श्रम कल्याण पर सिर्फ 15 लाख रुपये खर्च किये हैं।

इस साल जनवरी में अदालत ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि उपकर के तौर पर वसूली गई इमारत की लागत की 2 फीसदी रकम वह 1996 के अधिनियम के मुताबिक निर्माण कार्य में जुटे मजदूरों के कल्याण पर व्यय करे। दिल्ली के अधिवक्ता सिर्फ स्पष्ट बयान दे सकते हैं कि यह रकम खेलों की खातिर निर्माण कार्य में जुटे मजदूरों के लिए दी जा चुकी है।

एशियाड 1982 के मौके पर न्यूनतम मजदूरी नियमों केक्रियान्वयन और कामगारों को आधारभूत सुविधा मुहैया कराने के लिए अदालत को चरणबद्ध आदेश जारी करना पड़ा था, जिसे अनिच्छापूर्वक लागू किया गया था (पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम केंद्र सरकार)। अब राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन का वक्त आ गया है और इस समय भी वैसे ही आरोप हैं। लेकिन फिलहाल अदालत ने हस्तक्षेप नहीं किया है।

यहां बाल श्रम पुनर्वास व कल्याण फंड भी है। एम. सी. मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा 10 साल पहले दिए गए फैसले के जरिए इसकी स्थापना हुई थी। याचिका में मुख्य रूप से तमिलनाडु पटाखा उद्योग में बच्चों के शोषण को रेखांकित किया गया था, लेकिन चूंकि यह समस्या राष्ट्रव्यापी है, लिहाजा अदालत ने इस फंड की स्थापना के लिए करीब-करीब कानून बना दिया था।

श्रम निरीक्षकों को बाल श्रमिकों की पहचान करने और उनके नियोक्ताओं को प्रति बाल श्रमिक 20 हजार रुपये फंड में जमा करवाने को कहा गया था। माना जा रहा था कि मुक्त कराए गए हर बाल श्रमिक के बदले सरकार 5 हजार रुपये का योगदान करेगी। इस तरह से फंड में 25 हजार रुपये प्रति बाल श्रमिक के हिसाब से रकम होती। इस फंड का इस्तेमाल बचाए गए बच्चों की शिक्षा और उनके पुनर्वास पर इस्तेमाल के लिए था। लेकिन बाद में शायद ही कुछ हुआ होगा और कुछ ही लोगों ने इस फंड के बारे में सुना होगा।

अनुबंधित श्रमिक प्रणाली गहनता के साथ फैल गई है, बावजूद इसके कि इसे विनियमित करने के लिए पुराना कानून है। नियोक्ता कल्याणकारी कानूनों का आर्थिक भार विचौलियों पर डाल देते हैं और जिम्मेदारियों की उपेक्षा करने की खातिर वे बाहुबल और कानूनी दांवपेंच का इस्तेमाल करते हैं।

साल 2003 में दिए गए एक फैसले (जिसमें बीएचईएल शामिल थी) पर उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी थी : असंख्य उपकरणों, इनमें से आधे परत दर परत कानूनी प्रारूप में लिपटे जो कि छिपाव की जरूरत पर निर्भर करता है, उद्योग का प्रकार, स्थानीय स्थिति और इस तरह की दूसरी चीजों का तब सहारा लिया जाता है, जब श्रम कानून वास्तविक नियोक्ता पर कल्याणकारी दायित्व होता है।

इस साल की शुरुआत में, उच्चतम न्यायालय ने बयान जारी किया कि श्रम कल्याण से जुड़े कानून की बाबत न्यायपालिका का दृष्टिकोण गोचर रहा है। अगर टैगोर को उद्धरित किया जाए, जिन्होंने कहा था कि एक सदी से ज्यादा समय तक हम समृद्ध पश्चिम द्वारा रथ के नीचे घसीटे जाते रहे, धूल और शोर केबीच, असहाय के तौर पर। अदालत ने इसमें जोड़ा कि हमें वैश्वीकरण की चकाचौंध से गुमराह नहीं होना चाहिए।

भारतीय बैंकिंग व्यवस्था
भारत में संस्थागत बैंकिंग की स्थाई शुरूआत 1806 ई. मे हुई थी। निजी अंशधारित तीन पे्रसीडेंसी बैंकों की स्थापना की गई, जो इस प्रकार हैं-सन 1806 में बैंकआफ बंगाल, सन 1840 में बैंक आफ बांबे तथा सन 1943 में बैंक आफ मद्रास।
भारत सरकार ने सन 1860 में एक संयुक्त पूंजी कंपनी अधिनियम पारित किया जिसके बाद भारत में अनेक संयुक्त पूंजी बैंक स्थापित हो गए। इनमें से प्रमुख बैंक थे-इलाहाबाद बैंक(1865), एलांस बैंक आफ शिमला(1881), अवध कामर्शियल बैंक (1881), पंजाब नेशनल बैंक (1894) और पीपुल्स बैंक आफ इंडिया(1901)।
संयुक्त पूंजी पर आधारित भारतीयों द्वारा संचालित प्रथम बैंक अवध कामर्शियल बैंक था, जिसकी स्थापना 1881 में हुई।
अन्य वाणिज्यिक बैंक-
1. 19 जुलाई 1969 को 14 व्यावसायिक बैंकों का राष्टï्रीय करण किया गया, जिनकी जमा पूंजी 50 करोड़ रूपए से अधिक थी।
2. 15 अप्रैल 1980 को 6 अन्य वाणिज्यक बैंकों का राष्टï्रीय करण किया गया, जिनकी जमा पूंजी 200 करोड़ रूपए से अधिक थी।
3. 4 सितंबर 1980 को न्यू बैंक आफ इंडिया का पंजाब बैंक में विलय कर दिया गया।
वर्तमान में कुल व्यावसायिक बैंकों की संख्या 27 है जिनमें राष्टरीयकृत व्यावसायिक बैंक हैं और 8 (SBI और समूह) आंशिक रूप से राष्टरीयकृत व्यावसायिक बैंक हैं।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
1. भारत में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की शुरूआत 1975 में हुई।
2. वर्तमान में भारत में क्षेत्रीय बैंकों की संख्या 196 है।
3. केलकर समिति की संस्तुतियों के आधार पर 1987 के उपरांत किसी नए क्षेत्रीय बैंक की स्थापना नहीं की गई।
4. सिक्किम और गोवा में क्षेत्रीय बैंक नहीं हैं।
नाबार्ड- इसकी स्थापना 1982 में हुई। यह वर्तमान में भारत में कृषि एंव ग्रामीण क्षेत्र के विकास से संबंधित शीर्ष वित्तीय संस्था है। यह प्रत्यक्ष ऋण आवंटित नहीं करता है। पहले नावार्ड  का कार्य भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा संचालित होता था। 1995 में नाबार्ड के अंदर ग्रामीण आधारभूत संरचना के विकास के दृष्टिकोण से एक प्रकोष्ठ की स्थापना की गई, जिसका नाम रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड रखा गया। इस निधि का नाम बदलकर वर्तमान में जय प्रकाश नरायण निधि कर दिया गया।
बैंकिंग सुधार- भारतीय अर्थव्यवस्था में 1991 के आर्थिक संकट के उपरान्त बैंकिंग क्षेत्र के सुधार के दृष्टिïकोण से जून 1991 में एम. नरसिंहम की अध्यक्षता में नरसिंहम समिति अथवा वित्तीय क्षेत्रीय सुधार समिति की स्थापना की गई। जिसने अपनी संस्तुतियां दिसंबर 1991 में प्रस्तुत की। नरसिंहम समिति की द्वितीय में स्थापना 1998 में हुई, जिसकी संस्तुतियों को अभी लागू करने की प्रक्रिया चल रही है।
गोइपोरिया समिति- बैंकों में ग्राहक सुविधा सुधारने के लिए 1990 में एम.एन. गोइपोरिया की अध्यक्षता में एक समिति का गठन हुआ जिसने 1991 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस समिति के सुझाओं पर ध्यान देते हुए बैंकिंग लोकपाल योजना की शुरूआत 15 जून 1995 में की गई।
बैंकिंग लोकपाल योजना- भारतीय रिजर्व बैंक ने 15 जून 1995 से देश में इस योजना को शुरू किया। जिसमें बैंकों के ग्राहकों की शिकायतों का समाधान करने के लिए ग्राहक प्रहरी नियुक्त करने की व्यवस्था है। अब तक 15 अलग-अलग क्षेत्रों के लिए नियुक्त की जा चुकी है। इस योजना में सभी अनुसूचित बैंक और व्यावसायिक बैंक सम्मिलित हैं, लेकिन क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को इस योजना के दायरे से बाहर रखा गया है।
वर्मा समिति- कमजोर बैंकों की पुर्नसंरचना को ध्यान में रखते हुए 1998 में एम.एस. वर्मा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है। जिन्होंने अपनी रिपोर्ट 1999 में प्रस्तुत की। समिति ने यूको बैंक, इंडियन बैंक और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया को कमजोर घोषित किया और पुन:पूंजीकरण की सिफारिश की।

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