Thursday, January 2, 2014

कारपोरेट राज और सीआईए की असंवेधानिक आधार योजना को सबसे पहले खारिज करें आप। तिलिस्म टूट नहीं रहा कहीं से,और अभेद्य हो रहा है रानीति के कारपोरेट कायाकल्प से।प्रबंधकीय कला कौशल और तकनीक से।जनपक्षधरता को मोर्चा तो है ही नहीं,जो है वह आपसे के घामासान से लहूलुहान है।

कारपोरेट राज और सीआईए की असंवेधानिक आधार योजना को सबसे पहले खारिज करें आप।


तिलिस्म टूट नहीं रहा कहीं से,और अभेद्य हो रहा है रानीति के कारपोरेट कायाकल्प से।प्रबंधकीय कला कौशल और तकनीक से।जनपक्षधरता को मोर्चा तो है ही नहीं,जो है वह आपसे के घामासान से लहूलुहान है।


पलाश विश्वास


आज का संवाद

कारपोरेट राज और सीआईए की असंवेधानिक आधार योजना को सबसे पहले खारिज करें आप।


सबसे पहले तो यह बातगांठ में बांध लेने की अनिवार्यता है कि राज्यतंत्र को जल का तस बनाये रखकर आप किसी परिवर्तन की उम्मीद कर ही नहीं सकते। फिर आप जो भी करते हैं,उससे सिर्फ दमन के चेहरे बदलते हैं,जनसंहार की व्यवस्था बदलती नहीं है।


आप सभी को जो नववर्ष मनाने की हालत में हैं और उत्सव में अब भी शामिल हैं,नववर्ष की शुभकामनाएं।मैंने अलग से किसी को शुभकामना संदेश भेजा नहीं है और न भेजने की मनःस्थिति में हूं। मेरे बेरोजगार बेटे को मजदूरी के अलावा कोई विकल्प देने में असमर्थ हूं। इन हालात में मेरे लिए नववर्ष का मेरे लिए कोई मायने नहीं है।मेरे लिए कोई छत है नहीं ,जो रोजगाल फिलहाल है,अब कब तक उससे रोटी की उम्मीद करुं ,नहीं जानता।लेकिन जिन मित्रों ने विभिन्न माध्यमों से नववर्ष की शुभकानाएं भेजी है,उन सबको हमारी तरफ से शुभकामनाएं।उम्मीद है कि विपरीत परिस्थितियों में नववर्ष कहने वाले लोगों के लिए कम से कम नववर्ष शुभ ही होगा।बाकी जनता तो बाजार में लात जूते खाने के लिए है।


सरकार ने आने वाले हफ्तों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की नीति को उदार बनाने का संकेत दिया ताकि देश में विदेशी निवेश आकर्षित किया जा सके।


वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने एक बयान में कहा, 'सरकार आगामी हफ्तों में एफडीआई नीति को और उदार बनाने का प्रयास जारी रखेगी ताकि भारत में विदेशी निवेश आकर्षित करने के मामले में अपनी अग्रणी स्थिति बरकरार रख सके।'


पिछले साल सरकार ने दूरसंचार, रक्षा, सरकारी तेल रिफाइनरियों, जिंस बाजार, बिजली एक्सचेंज और शेयर बाजार जैसे कई क्षेत्रों में एफडीआई मानदंडों में ढील दी।


उन्होंने कहा कि भारत को 2013 में वैश्विक स्तर पर एफडीआई के लिए सर्वाधिक वरीय गंतव्य बताया गया है। सरकार के फैसले की वैश्विक निवेशक समुदाय में गूंज रही और हमने पिछले कुछ महीनो में इसका नतीजा देखा है।


मंत्रालय अब रेल और निर्माण गतिविधियों में एफडीआई मानदंडों में ढील देने पर काम कर रहा है। चालू वित्त की अप्रैल से अक्टूबर की अवधि के दौरान भारत में 12.6 अरब डॉलर का एफडीआई आया जो पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 15 प्रतिशत कम है।


शर्मा ने 2014 में अर्थव्यवस्था में बेहतरी की उम्मीद जताते कहा कहा कि आने वाले महीनों में देश भर में औद्योगिक गलियारों के विकास की प्रक्रिया बढ़ेगी और दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारे (डीएमआईसी) वाले दायरे में कुछ पहले नई टाउनशिप के विकास पर काम शुरू होगा।


देश के शेयर बाजारों में गुरुवार को गिरावट दर्ज की गई। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 252.15 अंकों की गिरावट के साथ 20,888.33 पर और निफ्टी 80.50 अंकों की गिरावट के साथ 6,221.15 पर बंद हुआ।


बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 39.43 अंकों की तेजी के साथ 21,179.91 पर खुला और 252.15 अंकों या 1.19 फीसदी की गिरावट के साथ 20,888.33 पर बंद हुआ। दिनभर के कारोबार में सेंसेक्स ने 21,331.32 के ऊपरी और 20,846.67 के निचले स्तर को छुआ।


नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का 50 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक निफ्टी 0.40 अंकों की गिरावट के साथ 6,301.25 पर खुला और 80.50 अंकों या 1.28 फीसदी की गिरावट के साथ 6,221.15 पर बंद हुआ। दिनभर के कारोबार में निफ्टी ने 6,358.30 के ऊपरी और 6,211.30 के निचले स्तर को छुआ।


आम लोगों की अपनी पार्टी बन गयी है।ज्यादातक खास लोग इस पार्टी में दाखिल हो रहे हैं।पेशेवर दुनिया के प्रबंधकीय दक्ष तमाम लोग। राजनीति तेजी से प्रबंधन का मामला बनता जा रहा है।नि-संदेङ पहल और बढ़त आम आदमी पार्टी की है।जनादेश और विकल्प बनाने वाली तमाम शक्तियां,आईटी कंपनियां, पेशेवर दुनिया, सरकारी कर्मचारी,एनजीओ संसार,फिक्की,सीईई,चैंबर्स, रेटिंग एजंसियां,अर्थशास्त्री,मीडिया विशेषज्ञ,सोशल मीडिया के लोग और तमाम वेश्विक तंत्र की कारपोरेट और बाजार की शक्तियां आप को नये सुनामी विकल्प बतौर पेश कर रहे हैं। लालाबहादुर शास्त्री के पोते,मीरा सान्याल,इंफोसिस बालाकृष्णण और राजनीति और प्रशासन के तमाम ईमानदार छवि वाले हुजूम का समर्थन आप को है। उन सबको नव वर्ष की शुभकामनाएं।


दिल्ली में ,देश के सबसे ज्यादा प्रतिव्यक्ति आय वाले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में मुप्त पानी मिल रहा है।बधाई।बिजली की दरों में पचास फीसदी कटौती भी हो गयी। बधाई।बाकी देश में पेयजल वंचित लोगों को,तमाम बिजली उपकरणों के साथ नत्थी उपभोक्ता जीवन में बढ़ते बिजली बिल के सरदर्द से निजात दिलाने की पहल के लिए भी आपको बधाई।


नया साल का जश्न अभी जारी है।कल रात छुट्टियों से लौटते हुए सोदपुर स्टेशन में उतरते वक्त ट्रेन में चढ़ने वालों के धक्के से मैं नीचे पलटकर गिरते गिरते बाल बाल बचा।मुंह पर मुक्का मारने की तरह धक्का मार रहे थे लोग।आपाधापी में चश्मा तो बच गया लेकिन टोपी पता नहीं,कहां गुम हो गयी। मैं सुंदरवन इलाके में वकखाली समुद्रतट गया हुआ था और सविता साथ थी।वह इलाका अस्पृश्यों और मुसलमानों की मिली जुली आबादी है। सारी रकारपोरेटकंपनियां उधर गांव गांव में दाखिल है और वहां के मूलनिवासी बेदखल हो रहै हैं।सारा का सारा समुद्रतट बाजार में तब्दील है।


अखबार तो पढ़ रहा था,लेकिन सूचनाएं थीं नहीं। घर लौटकर टोपी खोने और निजी असुरक्षा और अनिश्चितताओं से घिरे रहने की वजह से कंप्यूटर पर रात को बैठने का मन ही नहीं हुआ।सुबह इकानामिक टाइम्स पढ़ने पर नये साल की सौगातों के बारे में थोड़ी धारणा बन सकी है।सुबह टीवी खोलते ही एलपीजी गैस की कीमतों के खिलाफ कोलकाता में आटरिक्शा वालों का प्रदर्शन देखने को मिला।लेकिन पंक्तिबद्ध होकर सीआई को आंकों की पुतलियां और उंगलियों की छाप देने के लिए बेताब,दिल्ली में मुफ्त पानी और आधी कीमत पर बिजली का जश्न मनाने वाले लोग देशभर में कहीं भी रातोंरात एलपीजी सिलिंडर की कीमत में एकमुश्त 219 रुपये की वृद्धि के खिलाफ सड़क पर नहीं दीखे। कोलकाता के आटोवाले एलपीजी कीमतों में वृद्धि के लिए सड़कों पर नहीं हैं हालांकि,वे तो आटोरिक्शा के किराये में वद्धि के लिए आंदोलन कर रहे हैं।


अब रिलायंस के फायदे के लिए गैस की कीमतों को पहली अपैल सो दो गुणा वृद्धि तकी जा रही है, उससे सब्सिडी तो खत्म होनी ही है।आम चुनाव निपट जाने के बाद सब्सिडी का सारा खेल खत्म होने वाला है। इसी बीच तेलक्षेत्रों की नीलामी का नेल्प बंदोबस्त खत्म करके निजी कंपनियों को टैक्स होली डे देने के लिए नया बंदोबस्त भी किया जा रहा है।आप इन चीजों का विरोध करते नहीं हैं और न आपको मुकम्मल सूचनाएं ही होती है तो गैस या पेट्रोल डीजल जो दरअसल पहले से विनियंत्रित हैं,उसमें किश्त दर किश्त रुक रुक कर बारिश की तरह हो रही वृद्धि को कैसे रोकेंगे आप।


जनादेश का निर्माण जारी है। केंद्र में अल्पमत सरकार है।जिसका जाना तय है।लेकिन आर्थिक नरमेध अभियान में तेजी रोज बढ़ती ही जा रही है।पेशेवर लोगों के राजनीति की कमान थाम लेने से परंपरागत राजनेताओं की रोजी रोटी संकट में हैं,अब बालाकृष्णन, मीरा सान्याल, एपल शास्त्री,नंदन निलेकणि जैसे लोग ही देश के कर्णधार होगें।जिनकी प्रबंधकीय दक्षता लाजवाब है।आप की ओर से टीवी के परदे पर अवतरित होने वाले चेहरों के आंकड़ेबाज चामत्कारिक बयान की चकाचौंध ही अब राजनीति है।जाहिर है कि तिलिस्म टूट नहीं रहा कहीं से,और अभेद्य हो रहा है रानीति के कारपोरेट कायाकल्प से।प्रबंधकीय कला कौशल और तकनीक से।जनपक्षधरता को मोर्चा तो है ही नहीं,जो है वह आपसे के घामासान से लहूलुहान है।


खास खबर तो यह है कि विनिवेश और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के कुछ धमाकेदार फैसले हो गये हैं।सबसे बड़ा फैसला देश की सबसे बड़ी लाइफलाइन रेलवे को लेकर है।रेलवे में एफडीआई के बहाने रेलवे के विनिवेश का रास्ता भी खुल गया है।


इसी बीच हमारे मित्र गोपाल कृष्ण जी ने बाकायदा एक प्रेस बयान जारी करके अरविंद केजरीवाल और आप की सरकार से मांग की है कि असंवैधानिक आधारकार्ट योजना को वे खारिज कर दें। ममता बनर्जी ने रसोई गैस जैसी जरुरी सेवाओं से आधार को नत्थी करवाने के खिलाफ बंगाल विधानसभा में सर्वदलीय प्रस्ताव पास किया है,लेकिन ममता दीदी ने गैरकानूनी आधार योजना को खारिज करने की मांग अभी उठायी ही नहीं है।हम उम्मीद करते हैं कि भ्रष्टाचारमुक्त भारत बनाने की दिशा में तोजी से जनविकल्प ननती जा रही आप सिर्फ बिजली कंपनियों की आडिट करवाने तक सामित न रहकर कारपोरेट भ्रष्टाचार के सफाये के लिए भी काम करेगी। इसके लिए जरुरी है कि कारपोरेट राज और सीआईए की असंवेधानिक आधार योजना को सबसे पहले खारिज करें आप।


अरविंद जी और उनकी टीम कितना जनप्रतिबद्ध है ,उसके लिए हमारे पास आधार कसौटी है क्योंकि जनप्रतबद्धता पर जिनका अबतक एकाधिकार है,वे भी आधार को खारिज करने की मांग नहीं कर रहे हैं। गौरतलब है कि मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने गुरुवार को बिना सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर की कीमत में की गई वृद्धि को अनुचित करार दिया। पार्टी ने साथ ही सरकार से रसोई गैस (एलपीजी) आपूर्ति को आधार कार्ड से नहीं जोड़े जाने की मांग की। पार्टी ने कहा कि तेल कंपनियों द्वारा प्रत्येक सिलेंडर पर 220 रुपये कीमत में वृद्धि को आम लोग सहन नहीं कर पाएंगे।


पार्टी ने कहा कि सब्सिडी वाले सिलेंडरों की संख्या नौ पर सीमित है इसलिए लोगों को अब गैस अत्यधिक महंगी कीमत पर खरीदना होगा।माकपा ने कहा कि तेल कंपनियों द्वारा सब्सिडी वाले सिलेंडर के लिए आधार पहचान नंबर की मांग करना अवैध है।


उसके मुताबिक कि लोगों को सिलेंडर से वंचित रखने का यह एक नया तरीका है। यह सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लंघन है, जिसमें आधार के उपयोग का आखिरी फैसले तक बाध्यकारी नहीं बनाने के लिए कहा गया था। पार्टी ने मांग करते हुए कहा कि केंद्र सरकार को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए।


दूसरी ओर, गैर सब्सिडी वाले एलपीजी सिलिंडर की कीमत बुधवार को 220 रुपये बढ़ा दी गई। कस्टमर्स को ऐसा सिलिंडर साल में 9 सब्सिडाइज्ड सिलिंडर्स का अपना कोटा खत्म करने के बाद खरीदना पड़ता है। सरकारी ईंधन कंपनियों ने इंटरनैशनल रेट्स में बढ़ोतरी का हवाला देते हुए बताया कि दिल्ली में 14.2 किलो के एलपीजी सिलिंडर का दाम अब 1,241 रुपये हो गया है, जो अब तक 1,021 रुपये था।


पिछले एक महीने में नॉन-सब्सिडाइज्ड एलपीजी सिलिंडरों के रेट में यह तीसरी बढ़ोतरी है। पहली दिसंबर को दाम 63 रुपये बढ़ाकर 1,017.50 रुपये किया गया था। उसके बाद 11 दिसंबर को इसमें 3.50 रुपये का और इजाफा किया गया, जब सरकार ने एलपीजी डीलर्स और डिस्ट्रीब्यूटर्स के लिए कमीशन बढ़ाया था।


सरकार ने सितंबर 2012 में तय किया था कि एक परिवार को एक साल में 6 सब्सिडाइज्ड एलपीजी सिलिंडर ही मिलेंगे। जनवरी 2013 में यह कोटा बढ़ाकर 9 सिलिंडर कर दिया गया था। इससे ज्यादा सिलिंडर की जरूरत होने पर उसे लोगों को मार्केट रेट पर खरीदना होता है।



सरकारी ऑयल कंपनियां हर महीने की पहली तारीख को नॉन-सब्सिडाइज्ड एलपीजी सिलिंडरों के रेट रिवाइज करती हैं। ऐसा एवरेज इंपोर्ट कॉस्ट और पिछले महीने रहे रुपया-डॉलर के रेट के आधार पर किया जाता है।


सरकार रेलवे में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति देने पर विचार कर रही है। रेलवे ने इस बारे में स्पष्ट किया है कि इस तरह का निवेश केवल कुछ चुनिंदा क्षेत्रों तक ही सीमित होगा।


रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अरुणेंद, कुमार ने कहा, 'बंदरगाहों व अन्य औद्योगिक इकाइयों को कनेक्टिविटी के लिए ट्रैक बिछाने को एफडीआई की अनुमति होगी।' हालांकि, इसके साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि ट्रेनों के परिचालन, सुरक्षा आदि में एफडीआई की अनुमति नहीं दी जाएगी। फिलहाल बंदरगाहों को रेलवे से जोड़ने की परियोजना में पीपीपी की अनुमति है।


मंत्रालय के अनुसार उसने एफडीआई की योजना औद्योगिक संवर्धन एवं योजना विभाग (डीआईपीपी) को सौंप दी है। विभाग अगले साल की शुरुआत में इसपर केबिनेट नोट तेयार कर सकता है।


इकनॉमी को सुस्ती से उबारने के लिए केंद्र सरकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के नए रास्ते खोलने में जुटी है।


मल्टी ब्रांड रिटेल और टेलीकॉम में दो बड़े एफडीआई प्रस्तावों को मंजूरी देने के बाद अब रेलवे से जुड़े क्षेत्रों को एफडीआई का तोहफा मिल सकता है। इस बारे में औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) के प्रस्ताव को जल्द कैबिनेट की मंजूरी मिलने की उम्मीद है।


सोमवार को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने भी अगले कुछ हफ्तों के भीतर एफडीआई नीति को और अधिक उदार बनाने के संकेत दिए हैं। शर्मा की ओर से जारी बयान के मुताबिक, विदेशी निवेश के मामले में भारतीय की दावेदारी मजबूत करने के लिए अगले कुछ हफ्तों में एफडीआई नीति को और अधिक उदार बनाया जाएगा।


पिछले साल सिविल एविएशन, टेलीकॉम और रिटेल जैसे क्षेत्रों में एफडीआई की छूट बढ़ाने के बाद अब सरकार की नजर रेलवे, इंफ्रास्ट्रक्चर और कंस्ट्रक्शन से जुड़े क्षेत्रों पर है।


डीआईपीपी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, ऑपरेशन को छोड़कर रेलवे से जुड़े अन्य क्षेत्रों में 100 फीसदी एफडीआई के प्रस्ताव पर रेल मंत्रालय सहमत को गया है। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की आगामी 2 या 9 जनवरी को होने वाली बैठकों में रेलवे में एफडीआई को मंजूरी मिल सकती है। रेलवे में एफडीआई का मुददा सीसीईए के एजेंडे में शामिल है।


फिलहाल मास रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम (एमआरटीएस) को छोड़कर रेलवे में एफडीआई पूरी तरह प्रतिबंधित है। डीआईपीपी की ओर से तैयार प्रस्ताव के मुताबिक, रेल संचालन और सुरक्षा से जुड़े क्षेत्रों में अभी भी एफडीआई की छूट नहीं होगी। सिर्फ रेलवे से जुड़े बुनियादी ढांचे जैसे रेल कॉरिडोर, हाई-स्पीड ट्रेन सिस्टम और फ्रेट कॉरिडोर के लिए ही विदेशी निवेश का रास्ता खोला जाएगा। इसके लिए सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर की परिभाषा बदलनी पड़ सकती है।


100 के बजाय 74 फीसदी की छूट

उद्योग मंत्रालय रेलवे से जुड़े क्षेत्रों में 100 फीसदी एफडीआई चाहता है, लेकिन रेल मंत्रालय के रुख को देखते हुए यह सीमा 74 फीसदी तक सीमित हो सकती है। बुनियादी ढांचे के विकास के लिए धन की कमी से जूझ रही रेलवे को विदेशी निवेश की जरूरत है। लेकिन चीन और जापान की इंफ्रा कंपनियों के भारत में संभावित दबदबे को लेकर कई तरह की शंकाएं भी जताई जा रही हैं।



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Sahara Samay

आप भूमि चाहते हैं, जाइए और जमीन खरीदिए : जयराम रमेश

Sahara Samay

- ‎4 घंटे पहले‎







नए भूमि अधिग्रहण कानून के लागू होने के बाद सरकार ने उद्योग की आशंकाओं को दूर करने की कोशिश की. ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा, 'आप भूमि चाहते हैं। जाइए और जमीन खरीदिए.' रमेश ने यह बात तब कही जब उनसे नए कानून के लागू होने के दिन निजी उद्योग को उनके संदेश के बारे में पूछा गया. निवेशकों ने आशंका जाहिर की है कि नया कानून उद्योग और आधारभूत संरचना के विकास के लिए भूमि अधिग्रहण को महंगा बना देगा. नए कानून ने एक सौ साल से अधिक पुराने भूमि अधिग्रहण कानून की जगह ली है. रमेश ने कहा कि नया कानून सिर्फ केंद्र और राज्य के प्राधिकारों द्वारा किसी सार्वजनिक उद्देश्य ...


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आईबीएन-7

3600 करोड़ का अगस्टा वेस्टलैंड सौदा रद्द

आईबीएन-7

- ‎9 घंटे पहले‎







नई दिल्ली। भारत ने भ्रष्टाचार का आरोप लगने के मद्देनजर अगस्टा वेस्टलैंड सौदे को रद्द कर दिया है। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री के बीच बुधवार सुबह हुई बैठक के बाद ये फैसला किया गया। 3600 करोड़ रुपये का ये सौदा वीवीआईपी हेलीकॉप्टर की खरीद के लिए किया गया था। बीते साल नवंबर महीने में ही सरकार के रुख में बदलाव के संकेत मिलने लगे थे। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने तभी दावा किया था कि सौदे को रद्द करने के लिए सरकार के पास पर्याप्त सबूत हैं। रक्षा मंत्रालय और कानून मंत्रालय इस सौदे की समीक्षा कर रहे थे। दोनों मंत्रालयों को यकीन था कि अगस्टा ...



अब तमाशा देखिये,. दिल्‍ली विधानसभा में गुरुवार को आम आदमी पार्टी की सरकार के विश्‍वास मत के दिन भारतीय जनता पार्टी के नेता डॉक्‍टर हर्षवर्धन ने मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर जम कर हमले किए तो वहीं, कांग्रेस के नेता अरविंदर सिंह लवली ने भाजपा पर निशाना साधा। एक ओर जहां लवली ने स्‍पष्‍ट तौर पर कहा कि अगर 'आप' अच्‍छा काम करेगी तो वह पांच साल तक समर्थन देंगे, दूसरी ओर हर्षवर्धन ने केजरीवाल को समर्थन देने से इनकार कर दिया। हर्षवर्धन ने कहा कि वह अरविंद केजरीवाल के कई फैसलों और बयानों के खिलाफ हैं, इसलिए हम उनके साथ नहीं जा सकते हैं।


इ्न्फोसिस के बोर्ड मेंबर रहे वी बालाकृष्णन आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए हैं। मंगलवार को ही उन्होंने इंफोसिस के साथ अपने 22 साल लंबे करियर का समापन किया था। बाला ने ईटी नाउ से बुधवार को कहा कि मैंने मेंबर बनने के लिए 10 रुपये दिए। उन्होंने कहा कि 'आप' किसी भी आईआईटीयन की ओर से शुरू की गई सबसे सफल स्टार्ट-अप है। मैं देश में हो रही इस क्रांति का हिस्सा बनना चाहता हूं।


कुछ दिन पहले ही भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पोते आदर्श शास्त्री ने ऐपल में अपनी जॉब छोड़कर आप की सदस्यता ली थी। 'आप' से एक के बाद एक प्रोफेशनल्स के जुड़ने के बारे में एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख ने कहा कि यह भारतीय राजनीति में एक नए दौर की शुरुआत है। मैं बाला को जानता हूं। वह बेहद ईमानदार और सक्षम व्यक्ति हैं।


बालाकृष्णन के मेंटर और इन्फोसिस के चेयरमैन एन आर नारायणमूर्ति भी 'आप' की दिल खोलकर तारीफ कर चुके हैं। ईटी नाउ को दिए हालिया इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में इसकी शानदार सफलता ने साबित कर दिया है कि वोटर ऐसी पार्टी को गले लगाने को तैयार हैं, जो क्लीन गवर्नेंस का वादा करे।


माना जा रहा था कि एस डी शिबुलाल के अगले साल रिटायर होने पर बालाकृष्णन इंफोसिस के सीईओ पद के तगड़े दावेदार होंगे। बालाकृष्णन ने कहा कि 'आप' में उनकी भूमिका और उनके चुनाव लड़ने की गुंजाइश के बारे में बात करना अभी जल्दबाजी होगी। उन्होंने कहा कि अभी उनकी केजरीवाल या 'आप' के किसी लीडर से बातचीत नहीं हुई है।


बालाकृष्णन ने पिछले महीने कहा था कि वह वेंचर कैपिटलिस्ट के रूप में यंग आंत्रप्रेन्योर्स की मेंटरिंग करना पसंद करेंगे। बाला, मोहनदास पई, गिरीश परांजपे और दीपक घईसास जैसे सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री के पुराने दिग्गजों ने हाल में एक्सफिनिटी नाम से एक फंड लॉन्च किया था। इसके जरिए इंडिया में टेक्नॉलजी स्टार्ट-अप्स में इनवेस्टमेंट किया जाना है।


इन्फोसिस के पूर्व संस्थापक नंदन नीलेकणी के कांग्रेस कैंडिडेट के रूप में चुनाव में उतरने की संभावना के बारे में पूछे जाने पर बाला ने कहा कि मैंने उनसे वादा किया है कि मैं उनके लिए प्रचार करूंगा।


आम आदमी पार्टी की जड़ें इंडिया अगेंस्ट करप्शन नामक संगठन से जुड़ी हैं, जिसकी कमान अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल के हाथों में थी। हजारे और केजरीवाल ने लोकपाल बिल के लिए देश में असाधारण तरीके से लोगों को आंदोलित कर दिया था। हालांकि उस मूवमेंट के करीब एक साल बाद आम आदमी पार्टी का विधिवत गठन किया गया। दिल्ली विधानसभा चुनाव में इसने जमे-जमाए सियासी उस्तादों को ध्वस्त कर शानदार जीत दर्ज की थी।


आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को विरोधी पार्टियां राजनीति में नौसिखिया करार देती रही हैं, लेकिन अब वह विरोधियों को राजनीति सिखाने का दम भर रहे हैं। केजरीवाल ने बुधवार को बीजेपी और कांग्रेस की ओर इशारा करते हुए कहा कि इन्हें राजनीति करना हम सिखाएंगे।


दरअसल, दिल्ली में बिजली की दरों पर सब्सिडी के जरिए उपभोक्ताओं को राहत देने के ऐलान के बाद इसी तर्ज पर हरियाणा ने भी बिजली की दर में कमी कर दी है। इसके अलावा कांग्रेस के सांसद संजय निरुपम ने महाराष्ट्र में अपनी ही सरकार के खिलाफ जाते हुए मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को पत्र लिखकर बिजली की दर कम करने का अनुरोध किया है। सीएम ने तत्काल इस पत्र का जवाब देते हुए इस पर विचार करने का आश्वासन दिया है।


दिल्ली की तर्ज पर दूसरे राज्यों में बिजली दरों में कटौती की कवायद को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में केजरीवाल ने कहा कि मैं तो पहले से ही कहता रहा हूं कि इनको राजनीति सिखाएंगे। इससे पहले भी केजरीवाल कह चुके हैं कि हमने शुरुआत में ही कहा था कि बीजेपी और कांग्रेस को राजनीति सिखाएंगे और आज वही हो रहा है।


इसी बीच ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश को लगता है, कि नये भूमि अधिग्रहण अधिनियम को ईमानदारी से लागू किया जाये तो माओवादी खतरे से निपटा जा सकता है!यह वक्तव्य भी अत्यंत भ्रामक है। भूमि भूमिग्रहण कानून का सकसह निर्बाध बेददखली के लिए कानूनी आधार तैयार करना है,जो जाहिरा तौर पर भूमि सुधार या भूमि संबंधों के संवेदनशील मुद्दों को किसी भी बिंदू पर स्पर्श ही नहीं करते।अब मजा यह है कि इस भूमि अधिग्रहण कानून को प्रभावी बनाने के लिए फिर ग्यारह और कानून बदले जाने हैं,जो कारपोरेट अश्वमेध और विदेशी पूंजी प्रवाह को अबाध बनायेंगे।


देश में नया भूमि अधिग्रहण कानून पहली जनवरी से लागू हो गया। इसमें मुआवजे के अलावा भूमि अधिग्रहण के कारण प्रभावित होने वाले परिवारों के पुनर्वास पर खासा जोर दिया गया है। यह एक अहम रिफॉर्म है जो लैंड एक्विजिशन के प्रॉसेस को ज्यादा ट्रांसपैरेंट बनाने के लिए किया गया है। हालांकि, करीब छह सेक्टर्स में 13 कानूनों में बदलाव से ही भूमि अधिग्रहण कानून को सफलता से लागू करने में मदद मिलेगी।

रूरल डिवेलपमेंट मिनिस्टर जयराम रमेश ने बुधवार को कहा कि आज राइट फॉर कंपेंसेशन एंड ट्रांसपैरेंसी इन रिहैबिलिटेशन एंड रिसेटलमेंट एक्ट 2013 लागू हो गया। लैंड एक्विजिशन एक्ट 1894 का वजूद खत्म हुआ और अब आगे किसी भी भूमि अधिग्रहण गतिविधि में इसका प्रयोग नहीं हो सकेगा।

रमेश ने कहा कि सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस कानून को लागू करने पर सहमति जताई है, लिहाजा इससे संबंधित कानूनों में भी आने वाले दिनों में बदलाव कर दिए जाएंगे। उन्होंने कहा इसमें इस बात से फर्क नहीं पड़ेगा कि अगले चुनाव के बाद किस दल की सरकार बनती है।

उन्होंने कहा कि मैंने कोल, माइंस और रोड्स सहित सभी संबंधित मंत्रालयों को अगले एक साल में जरूरी बदलाव करने के लिए लेटर लिखे हैं ताकि मुआवजे और पुनर्वास के प्रावधान लागू किए जा सकें।

इंडस्ट्री के कुछ सेक्टर्स से हालांकि नए कानून को लेकर डर जताया जा रहा है। उनका कहना है कि कानून के चलते भूमि अधिग्रहण का प्रॉसेस लंबा खिंच सकता है और जमीन की कीमत में भी तेज उछाल आ सकता है। इससे पहले पश्चिम बंगाल, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फैक्टरियां और दूसरे प्रोजेक्ट्स लगाने के लिए जमीन अधिग्रहण के मुद्दे पर किसानों से प्रशासन का टकराव हुआ था। इसे देखते हुए सरकार को नया कानून बनाने का कदम उठाना पड़ा।

इस कानून को पूरी तरह से लागू करने के लिए जिन कानूनों में बदलाव की जरूरत होगी, उनमें कोल बियरिंग एरिया एक्विजिशन एक्ट 1957, नेशनल हाइवे एक्ट 1956 और लैंड एक्विजिशन माइंस एक्ट 1885 अहम हैं।

नया भूमि अधिग्रहण कानून संसद ने पिछले साल मानसून सत्र में पास किया था। उसके बाद इसे नोटिफाई किया गया। हालांकि इस एक्ट के नियमों को अंतिम रूप 15 फरवरी तक दिया जाएगा।

नए कानून ने एक शताब्दी से भी ज्यादा पुराने लैंड एक्विजिशन एक्ट 1894 की जगह ली है। इस कानून की सबसेअहम बात यह है कि प्राइवेट प्रोजेक्ट्स के मामले में जिन लोगों की जमीन अधिग्रहण के दायरे में आएगी , उनमेंसे 80 पर्सेंट लोगों की रजामंदी डिवेलपर्स को लेनी होगी। वहीं पब्लिक - प्राइवेट पार्टनरशिप के मामले में 70पर्सेंट लैंड ओनर्स की मंजूरी की जरूरत होगी। इसके अलावा , इस कानून में व्यवस्था की गई है कि ग्रामीणइलाकों में भूमि के मौजूदा रेट का चार गुना मुआवजा और शहरी इलाकों में दोगुना मुआवजा दिया जा एगा।


New Land Act Mandates Critical Reforms

The act orders compensation limits and resettlement of affected families

OUR BUREAU NEW DELHI


India's new land acquisition Act came into force on Wednesday, mandating compensation limits and the resettlement and rehabilitation of affected families, a critical reform aimed at making the process fairer and more transparent. However, the amendment of 13 different laws across half a dozen sectors over the year will be important for the successful implementation of the legislation.

"Today, the Right to Fair Compensation and Transparency in Rehabilitation and Resettlement Act 2013 comes into force. The Land Acquisition Act 1894 stands repealed and cannot be invoked in any other acquisition proceedings from this day forth," rural development minister Jairam Rmesh said.

According to Ramesh, all key political parties are agreed on the implementation of the law and therefore amendments in related Acts will take place in due course, irrespective of which party comes to power after the next election.

"I have written to the concerned ministries including coal, mines and roads to bring about necessary amendments in the laws in the next one year so that the provisions of compensation and rehabilitation and resettlement could be implemented," he said.

Some sections of industry are critical of the new law as they feel the process will take even longer and lead to a steep rise in the price of land. Clashes over land being taken away from farmers for setting up factories and other projects, especially in West Bengal, Haryana and Uttar Pradesh, threatened to bring development activity to a virtual standstill, forcing the government to come up with legislation that would ensure equitable compensation to farmers. Among the important laws that need to be amended are the Coal Bearing Area Acquisition Act of 1957, the National Highway Act of 1956 and the Land Acquisition Mines Act of 1885.

The new land acquisition Act was passed by Parliament during the monsoon session last year and was thereafter notified. However, the rules governing the Act will be finalized by February 15, having been notified in the gazette for formal public consultations.

The rules governing the Act will lay down the framework for social impact assessments and obtaining the consent of affected families.

It replaces the more-than-century-old Land Acquisition Act of 1894 by establishing new rules for compensation as well as resettlement and rehabilitation. The most important feature of the law is that it requires developers to get the consent of up to 80% of people whose land needs to acquired for private projects and 70% of the land owners in the case of publicprivate partnership projects.

Replacement Act


• THE NEW ACT PROVIDES

for minimum compensation of4 times to farmers in rural and 2 times in urban areas


• CONSENT OF 80% OF

farmers is required for purchasing land for public use and 70% in case of PPPs


• INDUSTRIALISTS FEEL THE

Act will lead to delays in land acquisition and an exorbitant increase in compensation








इकानोमिक टाइम्स

किसानों को उचित और निष्पक्ष मुआवजा देने से संबंधित नया भूमि अधिग्रहण कानून एक जनवरी से लागू हो जाएगा.

महत्वपूर्ण परियोजनाओं के नाम पर किसानों से उनकी उपजाऊ भूमि का जबरन अधिग्रहण करना अब राज्य सरकारों के लिए संभव नहीं हो सकेगा.


अब भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 रद्द हो गया है और आगे से भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में उसका इस्‍तेमाल नहीं किया जायेगा। भूमि अधिग्रहण, पुर्नवास एवं पुर्नस्थापन अधिनियम, 2013 में उचित क्षतिपूर्ति एवं पारदर्शिता अधिकार आज से लागू हो गया है।

आज यहाँ पत्रकारों से बातचीत करते हुये श्री रमेश ने कहा कि यदि नये अधिनियम को सही तरीके से लागू किया जाये तो झारखंड, ओडिशा और छत्‍तीसगढ़ जैसे राज्‍यों में माओवादी खतरे से निपटने में सहायता मिलेगी। उन्‍होंने कहा कि 1894 के पुराने अधिनियम में इन राज्‍यों के जनजा‍तीय लोगों को भारी विस्‍थापन होने के बावजूद उचित मुआवजा नहीं मिल पाता था। उन्होंने बताया कि भूमि अधिग्रहण से सम्बंधित ऐसे 13 केन्‍द्रीय अधिनियम मौजूद हैं, जिनमें नये भूमि अधिग्रहण अधिनियम के अनुरूप साल भर में संशोधन करने की आवश्‍यकता है ताकि विस्‍थापित लोगों को मुआवजा मिल सके।

श्री रमेशने कहा कि नये अधिनियम को लागू करने के लिये ग्रामीण विकास मन्त्रालय ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं। उन्होंने बताया कि मूल कानून में उल्लिखित कुछ प्रमुख प्रक्रियाओं को स्‍पष्‍ट करने के लिये नियम बनाये गये हैं। पाँच सितम्‍बर, 2013 को जब नये कानून को संसद के दोनों सदनों में पारित किया गया तो उसके फौरन बाद नये अधिनियम के नियम बनाने पर काम शुरू हो गया था। सभी वर्गों के हितधारकों से परामर्श करने के बाद नियमों का मसौदा तैयार किया गया और उसे मँजूरी के लिये विधि मन्त्रालय को भेजा गया। उन्होंने जानकारी दी कि विधि मन्त्रालय द्वारा अन्तिम रूप दिये जाने के बाद इन नियमों को जनता के साथ औपचारिक परामर्श करने के लिये गजट में आधिकारिक रूप से अधिसूचित किया गया। इन नियमों के मसौदे को अन्तिम रूप देने के पहले जब मन्त्रालय परामर्श प्रक्रिया चला रहा था, उस दौरान कानूनी तौर पर यह जरूरी था कि 45 दिन के अन्दर जनता से टिप्‍पणियाँ माँगने के लिये एक औपचारिक घोषणा की जाये।

ग्रामीण विकास मन्त्री ने कहा कि इन नियमों के तहत सामाजिक प्रभाव मूल्‍याँकन के लिये प्रक्रियाएं तय की जायेंगी और इन नियमों से प्रभावित परिवारों की रजामन्दी लेने का विवरण प्राप्‍त होगा। उन्होंने स्‍पष्‍ट किया कि नियमों के लागू होने के पूर्व भी नया कानून काम कर सकता है। चूँकि कानून को इस प्रकार बनाया गया है कि वह एक सम्‍पूर्ण और मजबूत कानून है, जो नियमों के अभाव में भी पूरी तरह से काम करने में सक्षम है।


बैंकिंग एवं वित्तीय क्षेत्र की बहुराष्ट्रीय कंपनी एचएसबीसी के एक प्रतिष्ठित मासिक सर्वेक्षण के अनुसार दिसंबर के दौरान भारत में विनिर्माण क्षेत्र की की वृद्धि दर में हल्की गिरावट दर्ज की गई।

विनिर्माण क्षेत्र के उद्योगों के परचेजिंग मैनेजरों के बीच किए गए सर्वेक्षण पर आधारित एचएसबीसी पीएमआई सूचकांक दिसंबर में हल्का घटकर 51.3 रहा। नवंबर में पीएमआई विनिर्माण सूचकांक 50.7 अंक था।

सूचकांक 50 से ऊपर होने का अर्थ है कि दिसंबर में भारत में विनिर्माण गतिविधियों में वृद्धि जारी रही पर इस क्षेत्र में उत्पादन वृद्धि की दर नवंबर की तुलना में हल्की हुई।

एचएसबीसी के भारत और आसियान क्षेत्र संबंधी अर्थशास्त्री लीफ एस्केसेन ने कहा, 'आज के आंकड़े दर्शाते हैं कि विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर हल्की बनी हुई है और बुनियादी अड़चनों के बने रहने के नाते इसके रफ्तार पकडऩे में कठिनाई हो रही है।'

एचएसबीसी ने कहा कि भारत के विनिर्माण क्षेत्र के लिए 2013 सकारात्मक धारणा के साथ समाप्त हो रहा है। परिचालन का वातावरण लगातार दूसरे महीने दिसंबर में भी बेहतर हुआ है।

उत्पादन और नए ऑर्डरों में वृद्धि दिखी है। यद्यपि एचएसबीसी का कहना है कि दिसंबर में विनिर्माताओं को मिले ऑर्डरों की वृद्धि दर अपेक्षाकृत हल्की रही।



रिलांयस को देनी होगी 1.2 अरब डॉलर की बैंक गारंटी, गैस की कीमतें भी हो सकती हैं दोगुनी


-हरेश कुमार||

रिलायंस को आंध्र प्रदेश के कृष्णा-गोदावरी बेसिन से निकलने वाली गैस के लिए नए साल 2014 में अप्रैल से दोगुणी कीमत पाने के लिए सरकार को बैंक गारंटी देनी होगी. अभी रिलायंस को 4.4 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू (प्राकृतिक गैस मापने की इकाई) मिल रहा है जिसे सरकार द्वारा गठित रंगराजन समिति ने बढ़ाकर करीब 8.2 डॉलर करने को मंजूरी दे दी है. रिलायंस इंडस्ट्रीज और उसकी सहयोगी कंपनियों जिसमें ब्रिटिश पेट्रोलियम यानि बीपी पीएलसी व कनाडा की निको रिसोर्सेस को अगले तीन साल के दौरान अधिकतम 1.2 अरब डॉलर की बैंक गारंटी देनी पड़ सकती है.

यह बैंक गारंटी रिलायंस इंडस्ट्रीज को नए गैस मूल्य पर होने वाली अतिरिक्त आमदनी के बराबर है. सूत्रों के अनुसार अगर यह साबित हो जाता है कि कंपनी ने गैस की जमाखोरी की है या फिर जानबूझकर 2010-11 से अपने मुख्य तेल क्षेत्रों धीरूभाई 1 व 3 से उत्पादन कम किया है, तो इस बैंक गारंटी को भुना लिया जाएगा. लेकिन अगर सरकार को लगा कि प्राकृतिक गैस के उत्पादन में रिलायंस ने जानबूझकर कोई गलती नहीं की है तो रिलायंस और उसकी सहायक कंपनी को उसके पैसे वापस मिल जायेंगे.

गौरतलब है कि मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने 20 दिसंबर को अप्रैल 2014 से गैस की कीमतें दोगुनी करने की अनुमति दी थी, लेकिन इसके साथ शर्त यह थी कि कंपनी को बैंक गारंटी जमा करनी होगी. अब रिलायंस ने इसे स्वीकार तो कर लिया है लेकिन यह निर्णय उसके लिए ना तो निगलते बन रहा है और ना ही उगलते. रिलायंस की स्थिति सांप-छुछूंदर जैसी हो गई है. ना कुछ कहते बन रहा है और ना ही नकारते. हां, दिखाने के लिए उसने सरकार द्वारा मांगी जा रही बैंक गारंटी देने पर अपनी मुहर लगा दी है.

अब देखना है कि सरकारी पक्ष सिर्फ दिखावे के लिए जांच करके लीपापोती कर रहा है या सच में उसकी नीयत सही है और जनता को राहत देने और देश की प्राकृतिक संपदा को बचाना सरकार का लक्ष्य है. जो अभी तक कहीं दिख नहीं रहा. चाहे हम कोल ब्लॉक आवंटन को देखें या 2 जी स्पेक्ट्रम या कोई औऱ घोटाला सबमें देश के खजाने को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. महज कुछ लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए इस देश में जिस तरह से नौकरशाहों, राजनीतिज्ञों और कॉरपोरेट जगत का गठजोड़ कार्य करता है उससे लोगों को इस जांच से कुछ अलग मिलने वाला दिखता नहीं है. क्योंकि सरकारी जांच निष्पक्ष तरीके से होगी इसकी क्या गारंटी है. सबको मालूम है कि प्राकृतिक गैस का उपयोग उर्वरक बनाने से लेकर बिजली बनाने व अन्य उपयोगों में होता है.

देश में ओएनजीसी, गेल और ओआईएल जैसी तीन बड़ी सरकारी गैस कंपनियों को प्राकृतिक गैस के उत्पादन का विकास करने के लिए आगे करने के बजाये सरकार ने इस लूट के लिए एक नई नीति की घोषणा की जिसे न्यू एक्सप्लोरेशन लाइसेंसिंग पॉलिसी यानी संक्षेप में नेल्प कहा जाता है और इसी को आधार बनाकर हमारे देश के बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों को खोजने और डेवलप करने का अधिकार निजी कंपनियों को दिया गया. सबसे आश्चर्यजनक तो बात यह है कि देश की तीनों गैस कंपनियां जो विदेशों में प्राकृतिक गैस और पेट्रॉलियम की खोज में लगी है, उसे ना देने के लिए बहाना बनाया गया कि सरकार के पास पैसा नहीं है और एक ऐसी कंपनी को गैस की खोज का काम दिया गया जिसके पास इसके लिए ना तो तकनीक थी और ना ही कोई विशेष अनुभव. सरकारी स्तर पर इसे ठेका देने के लिए फाइलों और नीतियों में एक जबरदस्त खेल खेला गया था.

जैसा कि सबको मालूम है कि रिलायंस को गैस की बढ़ी हुई कीमत देने का विरोध हो रहा है. इसका मुख्य कारण जानकारों के अनुसार, कंपनी ने जानबूझकर धीरुभाई ब्लॉक 6 से जानबूझकर उत्पादन में कमी कर दी है और गैस की कीमत बढ़ाए जाने के बाद वह उत्पादन में तेजी लायेगी. दूसरी तरफ, कंपनी का कहना है कि डी6 में पानी और रेत भर गया है जिसकी वजह से गैस का उत्पादन घटा है. इस मामले की जांच सरकार कर रही है.

नए आंकड़ों के अनुसार, डी6 ब्लॉक के डी 1 और डी 3 फील्ड के बाकी बचे भंडार में से अब 0.75 ट्र्लियन क्यूबिक फीट (टीसीएफ) गैस ही उत्पादित की जा सकती है. यहां से फिलहाल 80 लाख घनमीटर गैस रोजाना उत्पादित हो रहा है. इसे देखते हुए अगले तीन साल में 0.3 टीसीएफ गैस उत्पादित होगी. इस पर बैंक गारंटी कुल 1.2 अरब डॉलर बनती है.

रंगराजन फॉर्मूले के लागू होने के बाद गैस का दाम 4.4 डॉलर प्रति एमबीटीयू से बढ़कर 8.2-8.4 डॉलर प्रति इकाई हो जाएगा. इस तरह से 1000 खरब घनफुट के उत्पादन पर पुराने व नए मूल्य का अंतर 4 अरब डॉलर बैठेगा. सूत्रों के अनुसार, मौजूदा उत्पादन करीब 80 लाख स्टैंडर्ड क्यूबिक मीटर रोजाना के हिसाब से डी-1 व डी-3 का उत्पादन अगले तीन साल में 0.3 टीसीएफ होगा. अगर आंकड़ों पर गौर करें तो 0.3 टीसीएफ की बैंक गारंटी 1.2 अरब डॉलर बैठती है. इसमें से आरआईएल की हिस्सेदारी (जिसके पास 60 प्रतिशत शेयर हैं) 6 करोड़ डॉलर प्रति तिमाही होगी. बीपी की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत है जबकि बाकी 10 प्रतिशत निको के पास है.

उल्लेखनीय है कि डी-1 व डी-3 में अप्रैल 2009 में उत्पादन शुरू हुआ और यहां मूल रूप से 10.03 टीसीएफ गैस भंडार का अनुमान था. लेकिन पहले तीन सालों में उत्पादन को देखते हुए पिछले साल इसे घटाकर 2.9 टीसीएफ कर दिया गया था क्योंकि पानी व बालू के जमाव के चलते एक के बाद एक कुएं बंद होने लगे. 2.9 टीसीएफ गैस में से करीब 2.2 टीसीएफ गैस का उत्पादन पहले साढ़े चार सालों में हो चुका है जबकि बाकी 0.75 टीसीएफ का उत्पादन अभी बाकी है.

सूत्रों के अनुसार नई दरें बिना किसी पूर्व शर्त के केजी डी-6 के दूसरे क्षेत्रों में भी लागू होंगी. एमए तेल एवं गैस के अलावा आर सीरिज तथा सैटेलाइट खोजें को भी नया मूल्य बिना पूर्व शर्तों के मिलेगा. पिछले तीन सालों में कम उत्पादन के चलते सरकार पहले ही आरआईएल व इसके साझेदारों पर 1.78 अरब डॉलर का जुर्माना लगा चुकी है. बैंक गारंटी इसके अतिरिक्त है.

एक तरफ, पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली की मानें तो गैस की बढ़ी कीमत 8.4 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू की जगह 6 डॉलर भी रह सकती है. तो दूसरी तरफ, सरकारी कंपनी ओएनजीसी ने गैस की कीमत में बढ़ोतरी के फैसले पर खुशी जताई है. ओएनजीसी के सीएमडी, सुधीर वासुदेवन के अनुसार, इससे गैस की खोज और उसके उत्पादन बढ़ाने में लाभ मिलेगा.

पूर्व पेट्रोलियम सचिव एस सी त्रिपाठी के अनुसार, गैस की कीमतों में बढ़ोतरी सही है. त्रिपाठी के अनुसार, इससे रिलायंस इंडस्ट्रीज और ओएनजीसी जैसी गैस की खोज और उत्पादन में लगी कंपनियों को लाभ होगा.

त्रिपाठी के मुताबिक गैस की नई कीमत का निर्धारण अमेरिका, यूरोप और जापान में गैस की कीमतों को ध्यान में रखकर किया गया है. सूत्रों के अनुसार, भविष्य में अगर जापान अपने न्यूक्लियर प्लांटों को फिर से शुरू करेगा तो गैस की कीमतों में कमी आ सकती है. यहां पर सरकार सरासर झूठ बोल रही है. हमारे देश में उत्पादन नदी-घाटी की बेसिन से होता है और अन्य जगहों पर समुद्र के अंदर से, जो काफी महंगा पड़ता है.

जैसा कि सबको पता है कि नई नीति, नेल्प के अनुसार, वर्ष 1999 में केजी बेसिन जहां भारत का सबसे बड़ा गैस भंडार है, में गैस खोजने और उसे विकसित करने का अधिकार रिलायंस इंडस्ट्रीज को दिया गया था. 2005 तक वहां गैस के अठारह से ज्यादा क्षेत्र मिले और रिलायंस के लिए तो यह वैसा ही हुआ कि दसों ऊंगलियां घी और सर कड़ाही में.

शुरुआत में कहा गया था कि सरकार अपनी प्राकृतिक संसाधनों पर किसी एक कंपनी का एकाधिकार नहीं होने देगी और इसके लिए सरकार अलग-अलग गैस क्षेत्रों में विभिन्न कंपनियों को क्षेत्र की खोज और विकास का अधिकार देगी. वक्त के साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और इस तरह से केजी बेसिन इलाके में रिलायंस ने एक तरह से अपना एकाधिकार कर लिया.

किस तरह से रिलायंस ने एक-एक करके अपनी चालों को अंजाम दिया उसका जिक्र करना यहां पर जरूरी हो जाता है. सबसे पहले तो उसने केजी बेसिन पर एकाधिकार जमाया और फिर बिजली का उत्पादन करने वाली सरकारी कंपनी एनटीपीसी यानी (नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन) के साथ गैस की आपूर्ति का एक समझौता किया. वर्ष 2004 में हुए समझौता के मुताबिक रिलायंस अगले 17 सालों तक एनटीपीसी को 2.34 डॉलर प्रति यूनिट की दर से प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करने पर सहमत हुआ. उस समय विश्व में कहीं भी प्राकृतिक गैस की कीमत इतनी ज्यादा नहीं थी, लेकिन लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए सरकार और रिलायंस की तरफ से कहा गया कि यह समझौता चूंकि अगले 17 सालों के लिए है तो इससे एनटीपीसी को ही लाभ होगा, लेकिन हुआ इसके ठीक विपरीत.

केंद्र में सरकार बदलते ही हालात रिलायंस के ही पक्ष में हो गए. यानी दोनों हाथों से लूटते रहो. रिलायंस ने इस स्थिति का लाभ उठाते हुए 2005 में गैस उत्पादन की कीमतों में बढ़ोतरी का हवाला देते हुए एनटीपीसी को प्राकृतिक गैस की सप्लाई करने से मना कर दिया और मौजूदा राष्ट्रपति और तत्कालीन सांसद, प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाली समिति ने तुरंत गैस का मूल्य 4.2 डॉलर प्रति यूनिट बढ़ा दी. जबकि 2008 तक ओएनजीसी सरकार को 1.83 डॉलर प्रति यूनिट सप्लाई कर रही थी एनटीपीसी गैस की कीमतों में बढ़ोतरी के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटाखटा रही थी तो सरकार रिलायंस के द्वारा देश की प्राकृतिक संपदा लूटने के लिए पहले दोगुणा औऱ फिर चार गुणा ज्यादा दाम देने पर राजी हो गई थी. ऐसे में सरकारी कंपनी एनटीपीसी की हालत को कोई सामान्य बुद्धि का आदमी भी समझ सकता है कि किस तरह रही होगी.

त्रिपाठी के अनुसार, केजी-डी6 गैस विवाद में रिलायंस इंडस्ट्रीज और सरकार दोनों की गलती है. रिलायंस इंडस्ट्रीज ने केजी बेसिन में पूरे खर्च को मंजूरी 60 एमएमसीएमडी गैस की मौजूदगी के अनुमान पर ली थी जो बढ़कर 80 एमएमसीएमडी हो सकती थी. पूरा खर्च होने के बावजूद गैस की पर्याप्त मात्रा नहीं मिलने के कारण ही पूरा विवाद खड़ा हुआ.

देश के नौकरशाह किस तरह की भाषा बोलते हैं, यह किसी से छुपा नहीं है, वे अपने आका के लिए नियमों से किस तरह छेड़छाड़ करते हैं और किस तरह उसे बदलने में अपनी भूमिका निभाते हैं उसे समझना कोई दुश्वार नहीं है. सभी को मालूम है कि किस तरह से इस देश में नौकरशाह सरकारी नौकरी में रहते हुए निजी कंपनियों के लाभ के लिए उत्सुक रहते हैं. इससे वे कई लाभ पाते हैं, जो प्रत्यक्ष औऱ अप्रत्यक्ष दोनों होता है. राजनेताओं और नौकरशाहों के निकट संबंधी इन निजी कंपनियों में किस तरह से वरिष्ठ पदों पर काम करते हैं, यह किसी से छुपी हुई बात नहीं है या फिर नौकरशाह भी समय से पहले रिटायरमेंट लेकर उन कंपनियों में अच्छी पगार पर चले जाते हैं। क्या यह किसी से छुपी हुई बात है?



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Surendra Grover

साल 2014 ने आते ही मुझे एक शानदार जानकारी भरा तोहफा दिया है.. मुझे ऐसे 665 भारतीय पूंजीपतियों के नाम, पते और उनसे सम्बंधित लोगों की खुफिया जानकारी मिली है जो कि देश को चूना लगाकर हजारों करोड़ रुपया बंगल्रुरु स्थित एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी के सहयोग से भारत के बाहर ले जाने में सफल हो गए हैं.. मैं जल्द ही यह जानकारी मीडिया दरबार के ज़रिये पूरी दुनियां के सामने रखूँगा..

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Uttam Sengupta

A piece published in Gulf News today. My contract with Outlook now allows me to write for non-competing business ! Have a lot to learn before I can get international readers interested. Hope this stint, thanks to Mazhar, will help.


http://gulfnews.com/opinions/columnists/kejriwal-aap-and-about-1.1272539

Kejriwal 'AAP' and about

gulfnews.com

Now that his party is in the saddle in Delhi there are serious misgivings the chief minister must address

Like ·  · Share · Yesterday at 9:15am near New Delhi ·


दस गुना महंगी पड़ रही है केजरीवाल की सुरक्षा

इकनॉमिक टाइम्स | Dec 31, 2013, 02.45PM IST

अमन शर्मा, नई दिल्ली

ऐसा कहा जाता है कि सरोजिनी नायडू ने कहा था कि महात्मा गांधी को 'गरीबी' में रखने का खर्च बहुत ज्यादा था। इसी तरह का मामला दिल्ली के नए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सुरक्षा न लेने से सामने आ रहा है। अरविंद केजरीवाल को आम आदमी बनाए रखने के लिए उन्हें पिछले मुख्यमंत्रियों से दस गुना ज्यादा पुलिसवालों की सुरक्षा देनी पड़ रही है। दिल्‍ली पुलिस अब तक मुख्‍यमंत्री की सुरक्षा के लिए जहां 10 पुलिसकर्मियों को तैनात करती रही है, वहीं नए मुख्‍यमंत्री के द्वारा नियमित प्रोटोकॉल का पालन नहीं करने से उनकी सुरक्षा में 100 से ज्‍यादा पुलिसकर्मियों को तैनात करना पड़ रहा है।


ब्लॉगः बंगला और बंदूक जरूरी हैं श्रीमान केजरीवाल


हाल ही में रिटायर्ड हुए एक आईपीएस अधिकारी महसूस करते हैं कि सुरक्षा लेने से इनकार करके केजरीवाल अव्यावहारिक रवैया अपना रहे हैं। इस वजह से उनकी सुरक्षा में ज्यादा जवान लगाने पड़ रहे हैं और इसके साथ ही यह खतरा भी बना रहता है कि उनके साथ बदसलूकी हो सकती है या हमला हो सकता है।

ब्लॉग पढ़ें: केजरीवाल की एक बात जो मुझे पसंद नहीं आई


दिल्ली के दो पूर्व पुलिस कमिश्नरों बीके गुप्ता और नीरज कुमार से हमारे सहयोगी अखबार 'इकनॉमिक टाइम्स' ने बात की तो इन दोनों ने सुरक्षा न लेने के केजरीवाल के फैसले की सराहना की, साथ ही सलाह दी कि उन्हें 8-10 पुलिसकर्मियों की सुरक्षा ले लेनी चाहिए। साल 2010 से 12 तक दिल्ली के कमिश्नर रहे बीके गुप्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री का कदम सराहनीय है, लेकिन उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि वह अब एक राज्य की सत्ता का प्रतिनिधित्व करते हैं और आम आदमी नहीं हैं। गुप्ता कहते हैं कि मुख्यमंत्री पसंद करे या न करें, उन्हें पुलिस सिक्यॉरिटी की जरूरत है।


पढ़ें ब्लॉगः प्रतीक अच्छे हैं, बस प्रारंभ के लिए


उन्होंने शपथग्रहण कार्यक्रम की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि उस दिन मेट्रो से यात्रा के कारण रामलीला मैदान तक उनकी सुरक्षा में 100 पुलिसकर्मी तैनात करने पड़े थे, जबकि अगर केजरीवाल सिक्यॉरिटी कवर ले लेते हैं तो उनकी सुरक्षा के लिए 8-12 पुलिसकर्मी ही काफी होते। रामलीला मैदान में शपथ ग्रहण के लिए तीन दिन के लिए अलग-अलग थानों से 1700 पुलिसवालों को वहां डायवर्ट करना पड़ा था। उप राज्यपाल भवन में शपथ लेने पर 100 पुलिसवाले ही काफी होते।


ब्लॉग: केजरीवाल को हम कायरों का सलाम!


उन्होंने कहा कि केजरीवाल के साथ कुछ पीएसओ होने जरूरी हैं, ताकि उनके साथ शरद पवार जैसी घटना न हो, जिसमें एक युवक ने 2011 में उनको थप्पड़ जड़ दिया था। उन्होंने कहा कि सीएम को अगर कुछ भी होता है, तो पूरी जिम्मेदारी पुलिस पर आ जाती है। गुप्ता ने कहा कि केजरीवाल को मेरी सलाह है कि वह सिक्यॉरिटी कवर जरूर लें, भले ही इसे शीला दीक्षित की तुलना में आधा रखें।


पढ़ें ब्लॉगः आंदोलन को बदनाम तो न करें केजरीवाल


गुप्ता के बाद कमिश्नर रहे नीरज कुमार कहते हैं, 'केजरीवाल अलग तरह के नेता हैं, लेकिन उन्हें मेरी सलाह है कि सुरक्षा को लेकर अधिकारियों को फैसला करने दें। मुझे लगता है कि वह सुरक्षा न लेकर अपने मंत्रियों को संदेश देना चाहते हैं कि जब मैं नहीं ले रहा हूं तो आप भी इसकी मांग नहीं कर सकते हैं। संदेश देने तक तो यह ठीक है, लेकिन अगर उनके साथ कुछ भी हो गया तो पुलिस वालों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा।'


अडानी ग्रुप पर 2,000 करोड़ की हेराफेरी का केस

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ईटी | Jan 2, 2014, 10.54AM IST

अजमेर सिंह, नई दिल्ली

तिलहन से लेकर पोर्ट्स तक के बिजनेस में सक्रिय अडानी ग्रुप देश की रेवेन्यू इंटेलिजेंस एजेंसी और एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट की निगाहों में आ गया है। डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (DRI) की मुंबई यूनिट ने पावर प्रोजेक्ट्स के इंपोर्ट किए गए इक्विपमेंट्स के 'ओवर वैल्यूएशन' के आरोप में गुजरात के इस ग्रुप के खिलाफ एक केस दर्ज किया है। अडानी ग्रुप को गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी का बेहद करीबी बताया जाता है।ट


डीआरआई की दिसंबर में तैयार की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त अरब अमीरात की एक इंटरमीडियरी से अडानी ग्रुप की कई इकाइयों के लिए इक्विपमेंट और मशीनरी इंपोर्ट करने के मामले में ओवर वैल्यूएशन के आरोप की जांच की जा रही है।


इकनॉमिक टाइम्स ने इस संबंध में एजेंसियों के कई सूत्रों से बात की और उस रिपोर्ट को भी देखा, जिसमें कहा गया है कि अपने ग्रुप की कई कंपनियों के नाम इक्विपमेंट्स के इंपोर्ट में अडानी ग्रुप ने ओवर वैल्यूएशन किया और विदेश में 2,322.75 करोड़ रुपये की हेराफेरी की।


रिपोर्ट में कहा गया है कि इंपोर्ट्स में ओवर वैल्यूएशन के लिए मेसर्स पीएमसी प्रोजेक्ट्स (इंडिया), मेसर्स अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड, मेसर्स अडानी रिन्यूएबल एनर्जी, मेसर्स अडानी हजीरा पोर्ट प्राइवेट लिमिटेड, मेसर्स अडानी इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल प्राइवेट लिमिटेड और मेसर्स अडानी विजाग कोल टर्मिनल प्राइवेट लिमिटेड की जांच की जा रही है।


डीआरआई ने इस संबंध में शांति लाल अडानी, राजेश अडानी और गौतम अडानी को तलब किया है। इसके अलावा दुबई के दो लोगों मितेश दानी और जतिन शाह को भी समन किया गया है।


डीआरआई के एक टॉप ऑफिसर ने कहा कि अडानी ग्रुप और उसकी कंपनियों ने इंपोर्ट किए गए सामान की सही वैल्यू नहीं बताई है। अडानी बंधुओं सहित ग्रुप के सभी टॉप ऑफिशियल्स से पूछताछ होगी।


अडानी ग्रुप ने इस संबंध में ईटी की ओर से भेजे गए सवालों के जवाब नहीं दिए। हालांकि ग्रुप के करीबी एक शख्स ने दावा किया कि मोदी से अडानी बंधुओं की नजदीकी को देखते हुए यूपीए सरकार इस ग्रुप को निशाना बना रही है। इस व्यक्ति ने कहा कि डीआरआई के मामले में अब तक कोई औपचारिक नोटिस हमें नहीं मिला है।


नवंबर 2013 में सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज एंड कस्टम्स ने डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड को याद दिलायाथा कि अडानी ग्रुप को साल 2004 में इश्यू किए गए इंपोर्ट ड्यूटी बेनेफिट्स कैंसल कर दिए जाएं। इनके तहत ग्रुपको रियायती दर पर इंपोर्ट करने की सहूलियत हासिल थी। हालांकि जिस स्कीम के तहत यह रियायत दी गई थी, वह स्कीम ही अब बंद हो गई है।



Posco Seen to Have Cleared a Key Green Hurdle


MEERA MOHANTY & URMI GOSWAMI NEW DELHI


The New Year's begun well for Posco India,keeping alive its dream of setting up a mega steel project in Odisha.According to sources close to the company,a crucial revalidation of its environmental clearance has been granted.The company in 2013 resized its plans to adjust to opposition over land acquisition in the coastal district of Jagatsinghpur,10km south of port town Paradeep,to a smaller plant of 8 mt.During the year,the Supreme Court had also given a favourable judgement clearing the way for the centre to proceed with allocating the iron ore mine recommended to the project.We have been informed that the revalidation of the environmental clearance has been signed.The case with the National Green Tribunal (NGT),which will resume hearing the matter after it's winter break,end January,should conclude soon now, said a person close to the company.Work on land acquisition,however,was halted in May when the NGT,a fast-tract court for environmental issues,ordered a status quo until an approval from the Ministry of Environment and Forests (MoEF).Environment lawyer,Ritwick Datta who is fighting the case against Posco,said his client has questioned the felling of trees in the project site,when the state of Odisha is yet to pass such an order under the forest conservation act.The NGT is to decide whether they can carry on with cutting trees in the absence of such an order, he added.The environment minister,Veerapa Moily was unavailable for comment.An official in his ministry said all (pending) cases are being reviewed and declined to comment on any specific case.At.50,000 crore when it proposed a 12 mt integrated steel plant in 2005,Posco's project was the biggest FDI in the country.Despite the state CM Naveen Patnaik's support and the commitments made by the prime minister's office,fierce opposition on the ground from villagers led by the Posco Pratirodh Sangram Samiti (PPSS) has kept the project from taking off.With this revalidation,with a nod from the NGT that Posco's hopefully of getting,the cutting of trees at the site can resume.The company has already begun building,not without difficulty,a boundary wall over the area.After eight years of waiting for the 4,000 acres identified,the Korean steel maker is starting on 2,700 acres.

इकानामिक टाइम्स

AFTER SUBSIDISING ELECTRICITY IN DELHI...

Kejriwal Now Sees Power Flow from India Inc to AAP


Former Infosys board member V Balakrishnan joins fledgling,but fast-growing,party


CHANDRA R SRIKANTH ET NOW



VBalakrishnan has joined the Aam Aadmi Party just one day after he ended a 22-year career at Infosys,where he rose to become a director of the infotech company.I paid just.10 to become a member, he told ET NOW on Wednesday.AAP is the most successful startup by an IIT-ian ever.I would like to be a part of the revolution happening in the country. The decision by Balakrishnan,48,to join AAP is the latest example of the allure the upstart political party with its anti-corruption platform has among professionals who are vexed with the state of governance in India.Just a few days ago,Adarsh Shastri,the grandson of former PM Lal Bahadur Shastri,quit his job at Apple to join AAP.Indias newest party has its origins in the India Against Corruption movement led by activists Anna Hazare and Arvind Kejriwal.The movements main demand was a strong Lokpal Bill creating an anti-corruption ombudsman.AAP was officially launched as a party a year ago and it swept to power in Delhi in its debut election last month.The partys emphatic entry into the political mainstream has captured the attention of entrepreneurs and business leaders.According to Sachin Bansal,co-founder of Indias largest online retailer Flipkart,AAP has been more disruptive in a shorter period of time than any technology company in the world,and I respect them for that. Deepak Parekh,chairman of HDFC,said AAP is the beginning of a new era in Indian politics.I know Bala;he is a very competent and upright person.Balakrishnans mentor and Infosys Chairman NR Narayana Murthy too has been all praise for AAP.In a recent interview with ET NOW,he said AAPs stunning poll debut in Delhi proves that voters are willing to embrace a political party that promises clean governance.




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Too Early to Discuss Role in AAP: Bala

इकानामिक टाइम्स



Investors Recover from Yellow Fever,Fire Up St


Global share prices touch 4-year high as investors dumped bullion and moved to equities;signs of economic improvement seen as a major trigger for change in course


BLOOMBERG NEW YORK



Investors 12-year love affair with gold ended in 2013 as they abandoned the precious metal for stock markets in the worlds developed economies,lifting global share prices by the most in four years.While the Standard & Poors 500 Index surged to a record in the broadest-ever advance and bonds worldwide lost money for the first time since 1999,it was the 28% plunge in gold,the worst in more than three decades that stunned investors the most,according to Quincy Krosby,a market strategist at Prudential Financial.Investors were heartbroken by gold, Krosby,whose firm oversees more than $1 trillion,said in a telephone interview from Newark,New Jersey.The selloff was one of the deepest purges in an asset class that Ive seen.They went into gold because they saw the momentum continuing.Until it stopped.And it stopped violently. Demand for bullion as a preserver of wealth collapsed as the global economy showed signs of improving and central bank stimulus,led by the Federal Reserve,failed to ignite the runaway inflation that billionaire hedge fund manager John Paulson and other gold buyers anticipated.Instead,investors poured into equities,spurring a 20% advance in the MSCI All-Country World Index.Gold had gained more than 600% from the start of 2001 to its peak of $1,923.7 an ounce in September 2011.The rally accelerated after the Fed dropped interest rates close to zero in 2008 and began its unprecedented bond buying,which flooded the US economy with more than $3 trillion and raised the specter a weakening dollar would accelerate inflation.


Gold Exodus


The decline in gold in 2013,which pushed its price to $1,202.30,was the first annual drop since 2000 and the deepest since 1981.Gold futures in New York closed at a three-year low on December 19,a day after the Fed said it would curtail stimulus as the US economy strengthened and joblessness decreased.Investors pulled $38.6 billion from gold funds in 2013,the most in data going back through 2000,according to EPFR Global,a research company.Paulson,the largest holder in the SPDR Gold Trust,the biggest exchange-traded product backed by bullion,said on November 20 that he personally wouldnt invest more money into his own gold fund because its not clear when inflation will quicken.US consumer prices were unchanged in November after a 0.1% drop the prior month.Billionaire George Soros sold his entire stake in the SPDR Gold Trust in the second quarter,according to a filing with the US Securities and Exchange Commission.


Global Stimulus


Global growth,buoyed as central banks around the world suppressed borrowing costs,rebounded in the third quarter to its fastest pace since the first three months of 2012.In April,the Bank of Japan started buying 7.5 trillion yen ($78.6 billion ) of bonds a month to fuel lending and spending in the worlds third-biggest economy.The euro area exited its longest-ever recession after the European Central Bank president Mario Draghi pledged to do whatever it takes to keep the region from fracturing and dropped its benchmark rate to a record 0.25% in November.In the US,the Fed said last month it would reduce its monthly bond purchases to $75 billion from $85 billion.The worlds largest economy expanded in the third quarter at a 4.1% annualised rate,the fastest growth since 2011.Evidence that the US is finally recovering from the worst financial crisis since the Great Depression prompted investors to embrace equities.The S&P 500 rose 30% for the best year since 1997 and surpassed 1,800 for the first time as data on housing and jobs improved.


Broadest Advance


Home prices in 20 US cities rose by the most in more than seven years in October from a year earlier,the S&P/ Case-Shiller index showed,while the unemployment rate fell to a five-year low of 7% last month.A total of 460 stocks in the S&P 500 advanced in 2013,the most since at least 1990,data compiled by Bloomberg show.Netflix,Micron Technology and Best Buy more than tripled to lead the gains as all 10 industry groups rose in 2013.Consumer-discretionary,health-care,industrial and financial companies all jumped more than 30%.The advance attracted investors to stock funds.They deposited $140 billion into US equity exchangetraded funds last year,more than double the total from 2012,according to data compiled by Bloomberg.Inflows to bond ETFs plummeted 78% to $10 billion,the data show.


Winners,Losers


As the Fed announced its intent to reduce asset purchases,you really came up with one game in town, said Robert Pavlik,New Yorkbased chief market strategist at Banyan Partners LLC,which manages about $4.5 billion.There was really nothing else for investors to do with their money than put their money into equities.The MSCI All-Country World Index of 44 markets rallied for the biggest gain since 2009.Stock indexes in all 24 developed countries rose and 11 recorded advances of more than 20%,including Greeces ASE Index and Germanys DAX Index.Japanese stocks climbed the most among industrialised nations as confidence increased that Bank of Japan governor Haruhiko Kurodas stimulus plan would end 15 years of deflation and that a weakening yen would boost profits for exporters.The Topix index soared 51% for the biggest annual surge since 1999.Developing countries accounted for the 10 worst-performing stock markets as the pace of Chinas economic expansion slowed and speculation deepened that higher borrowing costs from Brazil to India would restrain growth.


Frontier Markets


The MSCI Emerging Markets Index declined 5%,the second annual loss in three years.Perus Lima General Index,Turkeys Borsa Istanbul National 100 Index and Brazils Ibovespa all plunged more than 25% in dollar terms,the worst among 94 equity benchmark indexes tracked by Bloomberg globally.Smaller and less mature economies fared better as investors went beyond the so-called BRIC countries Brazil,Russia,India and China in search of faster growth.The MSCI Frontier Markets Index,which measures stocks from banks in Nigeria to telecommunications providers in Egypt,climbed 21% in 2013,outpacing the broader emerging market index by the most since 2005.Bond investors suffered the first declines in more than a decade,leaving holders that reaped a 24% return over the prior four years with a 0.26% annual loss as of December 30.Gains of 1.7% through the first four months of 2013 evaporated as investors unloaded debt securities in anticipation the Fed would curtail its own bond purchases.


Bond Rout


Average yields on $45 trillion of debt,which includes US Treasuries,Japanese government bonds and worldwide corporate debentures,climbed from a record-low 1.51% in May to 2.1% as of December 30,according to Bank of America Merrill Lynchs Global Broad Market Index.The jump was the first annual increase in global borrowing costs in seven years.US government bonds of all maturities slumped 3.2%,the first decline since Treasuries posted an unprecedented 3.7% loss in 2009.Yields on the benchmark 10-year note,used to help set interest rates on everything from car loans to mortgages,rose 1.27% points,the most in four years,to end 2013 at 3.03%.Based on the median estimate of 64 forecasters surveyed by Bloomberg,10-year yields will increase to 3.38% by the end of 2014.Securities that are more sensitive to interest rates such as 30-year Treasuries fared among the worst,with U.S.government debt due in more than 10 years losing about 12%,index data from Bank of America show.


Junk Demand


Speculative-grade corporate bonds,which offered investors greater returns to compensate for the increased risk of default,rose 7.6% based on the Bloomberg Global High Yield Corporate Bond Index.(BHYC) Speculative-grade debt is rated below Baa3 by Moodys Investors Service and BBB by S&P.The demand supported a record $1.5 trillion of company bond sales in the US along with a ballooning market for junk-rated loans,which can offer protection from rising rates.You were really trying to hide out in market sectors that have historically shown some resilience in higher interest-rate environments, said Lon Erickson,a Santa Fe,New Mexico-based money manager at Thornburg Investment Management Inc,which oversees about $90 billion and favors corporate debt.People were flocking to things viewed as good places to avoid pure interest-rate risk.


Peripheral Rally


Greeces bonds had the biggest returns in 2013 among the 26 sovereign markets tracked by Bloomberg and the European Federation of Financial Analysts Societies,posting a 43% gain after doubling in 2012.Italy had the second-biggest increase,climbing 16%.South Africas sovereign bonds suffered the biggest loss with a 19% decline,the data show.Emerging-market dollar-denominated debt securities dropped 5.3% last year,the most since 2008,according to JPMorgan Chases EMBI Global Diversified Composite Index.Local-currency notes fell 9% in dollar terms,the most since 2002,the GBI-EM Diversified Composite Index showed.The Bloomberg Dollar Index,which tracks the currency against 10 major peers,appreciated 3.5%,the most since 2008.The euro rose 4.1% in its best year versus the dollar since 2007,while the yen plunged by the most against the US currency in 34 years.Israels shekel gained 7.5%,the biggest advance among 31 major currencies tracked by Bloomberg.


Widening Deficits


The Argentine peso led declines among emerging-market currencies with a 25% drop as the central bank allowed the tender to depreciate faster in the face of estimated inflation exceeding 26%.Indonesias rupiah,South Africas rand and Turkeys lira declined at least 15 percent.Indonesias current account deficit in probably widened to 3.5% in 2013,which would be the worst in Asia and the deepest since at least 1991,according to economists estimates.Bloomberg




इकानामिक टाइम्स




More FDI Goodies Likely in Coming Weeks


Plans to relax foreign investment norms in railways,e-commerce,construction activities and development of industrial corridors underway


OUR BUREAU NEW DELHI



Commerce and Industry Minister Anand Sharma on Wednesday indicated further liberalisation of the foreign direct investment (FDI) policy in the coming weeks.The government will continue its endeavour for liberalising the FDI policy further in the coming weeks to ensure that India retains its leadership position for attracting foreign investments, Sharma said in a statement.The commerce ministry is working towards allowing FDI in railways and e-commerce.Last year,the government had relaxed FDI norms in sectors including telecom,defence,PSU oil refineries,commodity bourses,power exchanges and stock exchanges.Over a year after India eased FDI norms for multi-brand retail,the first investment proposal came through two weeks ago when British retailer Tesco sought entry into the countrys $500 billion retail sector in partnership with Tatas Trent.The Foreign Investment Promotion Board cleared Tescos $110-million investment plan on December 30.Sharma had indicated last week that there would be more multi-brand retail proposals before the end of the current financial year.The decisions of the government have resonated with the global community and we have seen results in the last few months, the minister said,adding that India was rated as the most-favoured investment destination globally in 2013.The ministry is now working to relax FDI norms in railways and construction activities.FDI in the April-October period stood at $12.6 billion,down 15% from a year ago.Sharma said the coming months would see a greater push for development of industrial corridors and work would begin for establishing new cities along the Delhi-Mumbai Industrial Corridor (DMIC).The $90-billion DMIC project is aimed at creating mega industrial infrastructure along the Delhi-Mumbai Rail Freight Corridor,which is under implementation.Japan is providing financial and technical aid for the project,which will cover seven states totalling 1,483 km.I expect that with greater foreign investment and technology collaborations,Indian manufacturing will also move up the value chain and acquire greater competitiveness globally, Sharma said.The minister said the country had done reasonably well in exports in the first eight months of the fiscal despite weak demand in traditional markets.I am sure that in the remaining period of this financial year,exports will show a strong and dynamic growth, Sharma said.In April-November 2013,exports grew by 6.27% to $204 billion while imports aggregated $304 billion.





इकोनोमिक टाइम्स


नए साल के जश्न में सज गया समुद्र तट का बाज़ार !

अंबरीश कुमार

महाबलीपुरम। नए साल के जश्न में समुद्र तट का बाजार भी सज गया है। चेन्नई से करीब साठ किलोमीटर दूर महाबलीपुरम का रास्ता समुन्द्र के किनारे किनारे जाता है। बीती रात यह पूरा रास्ता जगमगा रहा था और सैलानियों की भीड़ समुद्र तट पर जमा थी। रास्ते भर समुद्र तट को बेचने वाले विज्ञापन सिर्फ दिख ही नहीं रहे थे बल्कि   जगह जगह बिकने के बाद आलीशान फार्म हाउस में बदल चुके भी नजर आ रहे थे। जिसे देखते हुए समुद्र तट पर मंडरा रहे नए खतरे का अंदाजा लगाया जा सकता है। हाल में आये तूफ़ान से लोगों को तो बचा लिया गया पर लाखों के घर उजड़ गये। आंध्र प्रदेश से लेकर ओड़िसा और बंगाल तक तटीय इलाकों में तबाही हुयी। इस तबाही की मुख्य वजह समुंद्र तटों के किनारे के जंगल यानी मैनग्रोव का सफाया किया जाना है। यह समुद्र का वह पर्दा है जो तटीय इलाकों में लोगों की प्राकृतिक आपदा खासकर तूफ़ान आदि से रक्षा करता है। अब इस रास्ते पर यह साफ़ हो गया है।

समुद्र तट पर ताज़े पानी और खारे पानी के संगम की तलछ्ट की दलदली मिट्टी पर जो वनस्पति पैदा होती है वह तटीय इलाकों के लिये एक रक्षा कवच का भी निर्माण करती है। वनस्पति विशेषज्ञों के मुतबिक इन पेड़ पौधों की जड़ें पानी में कुछ फीट डूबी रहती हैं  जबकि कुछ जड़ें तो हवा में। यह फैलती जाती है और घने समुद्री जंगल में बदल जाती है। जिसकी वजह से इसके पीछे रहने वाले  समुद्र के से बच जाते थे। विश्व का सबसे बड़ा मैनग्रोव यानी समुद्री जंगल सुंदरवन में है। इसकी जैव विविधिता देखने वाली है और आज भी जंगली जानवरों का यह बड़ा आशियाना बना हुआ है। इस क्षेत्र में बहुतायत से मिलने वाले सुंदरी प्रजाति के पेड़ों के नाम पर इसका नाम सुंदरबन पड़ा था और यह बंगला देश तक फैला हुआ है। जबकि केरल महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश से लेकर तमिलनाडु समेत सभी तटीय प्रदेशों में मैनग्रोव बड़े क्षेत्रफल पर फैले हुये थे। पर अंधाधुंध विकास, उद्योग, बिजली परियोजनाओं और पर्यटन उद्योग के फैलाव के चलते इनका बड़े पैमाने पर सफाया कर दिया गया है। समुद्र तटों खासकर मशहूर सैलानी स्थलों में इन जंगलों को काट कर सैरगाह बना दिये गये हैं। जिसे केरल के कोवलम समुद्र तट से लेकर तमिलनाडु के महाबलीपुरम तक देखा जा सकता है।

महाबलीपुरम तक काट दिया जंगल

पिछले बीस सालों में चेन्नई से महाबलीपुरम तक समुद्र तट के किनारे कैशुरिना के घने जंगल होते थे, जिन्हें काटा जा चुका है। इस अंचल में बंगाल की खाड़ी के समुद्र तट पर मैनग्रोव के परम्परागत पेड़ पौधों की बजाय नारियल के साथ कैशुरिना के घने और लम्बे दरख्त हुआ करते थे। तमिलनाडु के गाँधीवादी कार्यकर्त्ता और जयप्रकाश नारायण के निकट सहयोगी शोभाकांत दासके मुताबिक सत्तर और अस्सी के दशक में तबके मद्रास से पांडिचेरी तक समुद्र के किनारे बहुत ही घने जंगल थे। तब लोग समुद्र के किनारे पाँच सौ मीटर तक निर्माण करने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे। पर अब सब बदल गया है। तटीय कानून को ताख पर रख कर निर्माण किया जा रहा है। महाबलीपुरम से चेन्नई तक के रास्ते में तट के किनारे लगभग समूची जगह निर्माण हो चुका है जो गोल्डन बीच रिसॉर्ट से ही शुरू हो जाता है। इसमें केंद्र सरकार से लेकर प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग के रिसॉर्ट तो शामिल ही है, ज्यादा संख्या निजी रिसॉर्ट की है। महाबलीपुरम जो पहले मछुवारों का गाँव था अब एक बड़े सैरगाह के रूप में बदल चुका है। पर इस बदलाव के चलते नारियल और कैशुरिना के जंगल बुरी तरह काट दिये गये। अब तूफ़ान आने पर आसपास के गाँवों के लोग बुरी तरह प्रभावित होते हैं। खास बात यह है कि दक्षिण में समुद्र के किनारे कई जगह इस तरह समुद्री जंगल काट कर रिसॉर्ट और आवासीय परिसर बनाये जा रहे हैं। सी व्यू एपार्टमेंट के नाम से समुद्र तट पर बसे हर शहर में आवासीय परिसर देखा जा सकता है। मुंबई, गोवा, चेन्नई, तिरुअनंतपुरम जैसे बड़े शहरों को छोड़ दीजिये। अब यह छोटे छोटे शहरों और कस्बों में फ़ैल रहा है और इसके लिये समुद्र किनारे के जंगल और बाग़ बगीचे काटे जा रहे हैं। कोवलम से लेकर महाबलीपुरम तक में समुद्र तट से पाँच सौ मीटर दूर निर्माण करने के नियम को ठेंगा दिखाया जा चुका है और अब दस मीटर तक निर्माण किया जा रहा है। ऐसे में बड़ा तूफ़ान आने पर खामियाजा भुगतना पड़ेगा तट के किनारे बसे गाँव में रहने वाले मछुवारों को।

वैसे भी समुद्र तट पर जंगल के काटे जाने और बढ़ती निर्माण गतिविधियों का असर समुद्र के पानी पर पड़ चुका है। बेतरतीब निर्माण और होटल उद्योग के बढ़ते कारोबार की वजह से इनका कचरा सीधे समुद्र में बहा दिया जा रहा है। जिसके चलते समुद्री जीव खासकर मछलियों पर ज्यादा संकट आ गया है। महाबलीपुरम के आस पास के मछुवारों को अब मछली के लिये समुद्र में ज्यादा दूर तक जाना पड़ रहा है और बहुत सी प्रजातियाँ ख़त्म भी होती जा रही है। समुद्र तट पर बढ़ते अतिक्रमण को लेकर जल्द कोई ठोस पहल नहीं की गयी तो हालात बहुत ख़राब हो सकते हैं। हाल ही में दक्षिण के एक कद्दावर केन्द्रीय मंत्री ने जब महाबलीपुरम के पास तट के किनारे जमीन पर कब्ज़ा करने का प्रयास किया तो आसपास के लोगों ने इसका विरोध कर उनके निर्माण की दीवार तोड़ दी। इससे अतिक्रमण के खिलाफ लोगों के बढ़ते गुस्से का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। जनादेश

About The Author

अंबरीश कुमार, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। छात्र राजनीति के दौर से ही जनसरोकारों के पक्षधर रहे हैं। मीडिया संस्थानों में पत्रकारों के अधिकारों के लिए लड़ते रहे हैं।




Aam Aadmi Party

Today at 12:40pm · Edited

Aam Aadmi Party will today have to prove in the state legislature that it has the numbers to continue to govern Delhi.


Manish Sisodia will move the motion seeking the trust of the House at 2 pm and Arvind will make a speech. Voting is expected at about 5 pm.— with Ramesh Rathore and 2 others.

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about an hour ago

Every now and then people raise questions as to how #AAP will be able to flourish to the southern states.


They fail to realize that we are already there. We believe that local leadership is the key to success and like Mayank Gandhi leading #AAP in Maharashtra, we have Prithvi Reddy leading #AAP in Karnataka.


A brief profile about him.

Bangalore's Kejriwal: AAP ka Prithvi Reddy | Deccan Chronicle

www.deccanchronicle.com

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2 hours ago

Delhi government has announced a series of measures to provide roof to the homeless in the biting cold sweeping the city and decided to replace all night shelters being run from plastic tents with porta cabins within three days. The state government has also announced 45 new night shelters within 48 hours.


"The Delhi government runs several night shelters made of tents. So I have ordered that all such night shelters be converted into porta cabins in the next 3-4 days," said Kejriwal.

Delhi: Govt to replace night shelters with porta cabins for homeless

ibnlive.in.com

Delhi government has announced a series of measures to provide roof to the homeless in biting cold sweeping the city and decided to replace all the night shelters being run from plastic tents with porta cabins within three days.

Aam Aadmi Party

13 hours ago

सब डिविजनल मजिस्ट्रेट रैन बसेरों की हालत पर रिपोर्ट सौंपेंगे


कड़कती सर्दी में खुले आसमान के नीचे रात गुजारने को मजबूर लोगों की सुध लेने के लिए दिल्ली भर के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट रात भर सड़कों पर घूमेंगे। आम आदमी पार्टी की सरकार ने आदेश दिया है कि रात को शहर भऱ में दौरा कर सारे एसडीएम रैन बसेरों की हालत और वहां रहने को मजबूर लोगों की समस्याएं को जाने और चार जनवरी की सुबह तक रिपोर्ट सौपे कि शहर में कितने और नए रैन बसेरे बनाने की जरूरत है।


इसके अलावा दिल्ली में अगले तीन-चार दिनों में टेंट निर्मित सभी रैनबसेरों को पोर्टा केबिन रैन बसेरों में तब्दील कर दिया जाएगा। आज एक प्रेस कांफ्रेस में अरविंद केजरीवाल ने टेंट के सभी रैनबसेरों को पोर्टा केबिन रैन बसेरों में तब्दील किए जाने और 45 नए रैनबसेरों को बनाए जाने का ऐलान किया।


अरविंद ने बताया कि पूरे काम में मंत्री और विधायक भी रात को दौरा करेंगे ।

अरविंद केजरीवाल ने कहा कि कड़ाके की इस ठंड में टेंट से बने रैनबसेरों में लोग बड़ी मुश्किल हालात में गुजर बसर कर रहे हैं। इसके अलावा बड़ी तादाद में ऐसे भी लोग हैं जो खुले आसमान के नीचे सोने को विवश हैं। उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली में कई ऐसे जगह है जहां झुंड के झुंड लोग खुले में सो रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन जगहों की पहचान की जा रही है। इस बाबत सभी एसडीम को निर्देश दिए गए हैं कि वे रात को पूरे शहर का दौरा कर इन जगहों की पहचान करें और 4 जनवरी तक रिपोर्ट सौंपें।


उन्होंने कहा कि एनजीओ आश्रय अधिकार अभियान ने 45 ठिकाने ऐसे बताए हैं जहां लोग खुले में सो रहे हैं। उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी अपने विधायकों और कार्यकर्ताओं का भी सहयोग लेगी। और, इन सभी जगहों पर पोटा केबल के नए 45 रैनबसेरे बनाए जाएंगे।

Aam Aadmi Party

16 hours ago

दिल्ली में बिजली कंपनियों का ऑडिट होगा, उप-राज्यपाल नसीब जंग ने दिए ऑडिट के आदेश


दिल्ली में बिजली कंपनियों के ऑडिट के आदेश जारी कर दिए गए हैं. बुधवार शाम को उप राज्यपाल नसीब जंग ने ये आदेश जारी किए हैं. इससे पहले सरकार के सवाल पर कंपनियों ने जवाब भेजा था. जवाब में कहा गया था कि कंपनियों के ऑडिट का मामला दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहा है. ऐसे में कोर्ट के फैसला का इंतजार करना चाहिए, जल्दबाजी ठीक नहीं है. इस फैसले से साफ है कि सरकार ने कंपनियों की दलील को नकार दिया है.


मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि जो जवाब कंपनियों की तरफ से आया है, उनमें कहीं कोई ये कारण नजर नहीं आता है कि ऑडिट क्यों न कराया जाए. इस बारे में सीएजी से भी बात की गई थी. ऑडिट जांच में कितना समय लगेगा, इस सवाल पर केजरीवाल ने बताया, 'सीएजी ने कहा है कि ये तो बिजली कंपनियों के सहयोग पर निर्भर करेगा.'


Read more: http://aajtak.intoday.in/story/delhi-lg-has-ordered-cag-audit-of-discom-companies-1-751039.html

Aam Aadmi Party

Yesterday at 6:40pm

'Ho gayi hai peer parwat si' sung by Arvind Kejriwal and team.


This song conveys the nations feelings at this time and assuaging this pain is what #AAP will be working towards in the next few months.


Are you willing to help #AAP in its endeavor? www.aamaadmiparty.org/join-us — with Richie Kaushik and Anil Rawat.

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Aam Aadmi Party

21 hours ago

This year, let's make a pledge, a pledge for clean, corruption free India!

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इस साल आइये हम सब मिलकर शपथ लें एक साफ़, भ्रष्टाचार मुक्त भारत की.

आइये शपथ लें की 'ना रिश्वत लेंगे, ना रिश्वत देंगे!' — with Muktadir Hussain and 49 others.

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Aam Aadmi Party

Yesterday

A year of struggles and sacrifices comes to an end. Countless people from across the world contributed to what is now known as the #AAP phenomenon. By year end we had started to deliver on things which seemed like dream to many.


The year ...See More — with Niranjan Andhale and 48 others.

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Aam Aadmi Party

December 31, 2013 at 9:20pm · Edited

The Delhi Cabinet has cleared a 50 per cent cut in electricity tariffs for the capital.


Arvind Kejriwal announced this after chairing a cabinet meeting at the Delhi Secretariat this evening. He had earlier announced that the three major power distribution companies in the capital will be audited starting tomorrow.


Mr Kejriwal said the power tariff cut, effective from tomorrow, January 1, will apply to those homes that consume up to 400 units of electricity a month. Those w...See More — with Chandra Reddy and 40 others.

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Aam Aadmi Party

December 31, 2013 at 5:30pm · Edited

Arvind Kejriwal on Tuesday announced that CAG is willing to audit power distribution companies in Delhi.


Despite his ill health, Kejriwal met CAG Shashi Kant Sharma over the audit of power companies which has been one of the major points in our manifesto.


"All three companies should be given a chance to put their point of view. The three companies have been give time till tomorrow morning to respond on the companies being put under audit. There is no stay on audit," Arvind ...See More — with Anubhav Hissar and 38 others.

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Aam Aadmi Party

December 31, 2013

Modi is substitute, AAP is an alternative - Yogendra Yadav

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मोदी विकल्प नहीं, विकल्प आप है - योगेन्द्र यादव — with Vikash Kumar and 28 others.

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Aam Aadmi Party

December 30, 2013

पिछले साल 29 दिसंबर को ही वसंत विहार गैंगरेप की शिकार निर्भया उर्फ ज्‍योति की मौत की खबर आयी थी. निर्भया की पहली पुण्‍यतिथि पर दिल्‍ली की नई नवेली महिला एवं बाल विकास मंत्री राखी बिरला ने आज तक से उसी बस स्‍टैंड पर बैठकर बात की, जहां से ज्‍योति अपने एक दोस्‍त के साथ उस बस में चढ़ी थी जिसमें उसके साथ गैंगरेप हुआ था.

वसंत विहार के उसी बस स्‍टैंड पर बैठकर दिल्ली सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्री राखी बिरला ने कहा मैं यहां खुद को असुरक्षित महसूस कर रही हूं. कुछ देर बाद डीटीसी क...See More — with Utkarsh Sharma and 7 others.

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Aam Aadmi Party

December 30, 2013 at 6:20pm · Edited

#AAP has kept its promise to Delhi. On Monday, his third day as Delhi chief minister, Arvind Kejriwal announced the supply of 20 kilolitres a month (almost 700 litres a day) of free water for Delhi households from January 1, 2014.

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आम आदमी पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र को शपथ पत्र कहा था. तब लोग ये सवाल पूछ रहे थे की क्या वाकई हम अपने किये हुए वादों को निभा पाएंगे. आज हमें सरकार में आये हुए तीन दिन हुए हैं और जैसा की हमने वादा किया था, 1 जनवरी से दिल्ली के हर परिवार को हर महीने 20 हज़ार लीटर पानी (करीब 700 लीटर रोज़) मुफ्त मिलेगा.


Read more:


English: http://ibnlive.in.com/news/aap-government-gives-20-kilo-litre-free-water-per-connection-in-delhi/442409-3-244.html


Hindi: http://aajtak.intoday.in/story/delhi-households-to-get-20-kilo-litres-of-free-water-from-january-1st-djb--1-750862.html — with Rajneesh Gupta and 30 others.

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Biggest Threat To World Peace: The United States

By Sarah Lazare


http://www.countercurrents.org/lazare010114.htm


Over 12 years into the so-called "Global War on Terror," the United States appears to be striking terror into the hearts of the rest of the world. In their annual End of Year survey, Win/Gallup International found that the United States is considered the number one "greatest threat to peace in the world today" by people across the globe



'Worst' Of Climate Predictions AreThe Most Likely

By Jon Queally


http://www.countercurrents.org/queally010114.htm


Groundbreaking research on cloud behavior and global warming says 'catastrophic' increase of 4°C or more by 2100 should be expected



From Egypt To Afghanistan : Who Is My Enemy?

By Hakim & Sherif


http://www.countercurrents.org/hakim010114.htm


Who is my enemy? Satan? Terrorists? 'The other person' of 'another' faith or ethnicity?



Why Activism Needs The Sacred

By Carolyn Baker


http://www.countercurrents.org/baker010114.htm


Cherishing the sacred in our activism and in our visions of revolutionized communities and cultures increases the likelihood that we will resist from our hearts and not simply from our heads. As a result, the new paradigms out of which our visions are realized will engender authentic transformations with more enduring resilience as opposed to reinventions of formerly oppressive systems



Snowden Reveals Massive  NSA Hacking Unit

By Robert Stevens


http://www.countercurrents.org/sevens311213.htm


The US National Security Agency (NSA) runs an Office of Tailored Access Operations (TAO), described by Germany's Der Spiegel as the "NSA's top operative unit—something like a squad of plumbers that can be called in when normal access to a target is blocked." A report published Sunday based on documents released by whistleblower Edward Snowden states that the TAO operates as a vast hacking unit on behalf of the US government



Privacy Rights: Is Anything Left?

By Franklin Lamb


http://www.countercurrents.org/lamb311213.htm


The answer to this question is being pondered across America in light to the two seeming mutually contradictory US Federal Court decisions handed down this month from Courts in Washington DC and New York



Major Social Transformation Is A Lot Closer Than You May Realize -- How Do We Finish The Job?

By Kevin Zeese & Margaret Flowers


http://www.countercurrents.org/zeese311213.htm


The current social movement that exploded onto the national scene with the 2011 Occupy Movement is following the path of successful movements so far. The social movement in 2014 is poised to begin an exciting era of broadening and deepening the growing consensus for social and economic justice



War Criminals By Default

By Alan Hart


http://www.countercurrents.org/hart311213.htm


My last thought for 2013 is that for their failure to co-operate and coordinate to make the United Nations work to stop the slaughter and destruction in Syria, the leaders of the five permanent and controlling members of the Security Council – the U.S, Britain, France, Russia and China – are war criminals by default



New Untouchables In The City

By Ajmal Khan


http://www.countercurrents.org/akhan311213.htm


Inter community relations and intra community relations in India has gone through an unprecedented change from the past two decades. This has to do with continuous communal violences, conflicts, political propaganda and tensions in India , as well as the other international political developments



Tragedy Continues For Riot Affected Persons In Muzaffarnagar

Fact Finding Report


http://www.countercurrents.org/ffr311213.htm


The fact that India is Constitutionally mandated as 'Secular' State makes it obligatory on the agencies of the State to uphold secular values. However, the communal incidents in Muzaffarnagar, its aftermath and the continuing tragedy of the riot affected persons have been the undoing of the Indian State in this regard. Regrettably, this has been the outcome of deliberate and calculated decisions at different levels as is evident from the findngs



Swedish Intelligence Service Spying On Russia For US National Security Agency

By Jordan Shilton


http://www.countercurrents.org/shilton301213.htm


Documents released by Edward Snowden reveal that Sweden's National Defence Radio Establishment (FRA) has been collecting large quantities of communications data from Russia, which it has passed to the American National Security Agency (NSA). The revelations confirm that such collaboration goes back for decades



Afghan Street Children Beg For Change

By Kathy Kelly


http://www.countercurrents.org/kelly301213.htm


The light shines in the darkness, and the darkness has not overcome it. The collective yearning and longing of children who deserve a better world may yet affect hearts and minds all over the world, prompting people to ask why do we make wars? Why should people who already have so much amass weapons that protect their ability to gain more? I hope we will join Afghanistan 's children in begging for change



London Church Blocks Its Facade With Replica Of Israeli Wall Around Bethlehem

By Ali Abunimah


http://www.countercurrents.org/abunimah301213.htm


St. James' Church in central London unveiled an eight-meter-high replica of the Israeli-built concrete wall that entirely surrounds the Palestinian city of Bethlehem in the occupied West Bank, the traditional birthplace of Jesus. It is an effort to bring to London some of the reality of what it is like to live in Bethlehem in 2013



We Are Not Free, Until Vanunu Is Free!

By Petition Campaign


http://www.countercurrents.org/vanunu301213.htm


We the undersigned petition the World Media to seek and report the truth about Israel's Nuclear Deceptions and Vanunu's nearly 10 year struggle for his right to fade into the world instead of continuing to make headlines



Palestinians Should Quit "Peace Negotiations"

By Dr. Ludwig Watzal


http://www.countercurrents.org/watzal301213.htm


Like Yasser Arafat in Camp David in the summer of 2000, Abbas can't sign a document of surrender, which the Americans and Israelis would like to ram down his throat. If the Palestinian leadership has a spark of honor, they should immediately leave this charade of the "peace negotiations", dissolve the so-called Palestinian Authority, and lay the struggle for freedom and self-determination in the hands of a younger generation. The leader of this future struggle could be the political prisoner Marwan Barghouti, a possible Palestinian Nelson Mandela

Public Statement


Few things AAM AADMI PARTY Govt in Delhi must do:


1.      It should abandon hazardous waste incinerator based power plant in

Okhla and adopt zero waste philosophy for decentralized management of

municipal waste.


Delhi residents heaved a sigh of relief with the electoral defeat of

Sheila Dikshit who vociferously supported the waste incinerator based

power plant in Okhla, Narela-Bawana and Ghazipur. Even Jairam Ramesh

as the Environment Minister had written to Sheila Dikshit, Delhi Chief

Minister confirming violations of environmental regulations but she

did not pay heed to the bitter opposition to Okhla's waste incinerator

plant. This plant is based on an admittedly unproven Chinese

technology located in Sukhdev Vihar amidst residential colonies and in

the vicinity of a bird sanctuary, vegetable market, hospitals and

educational institutions, which faces bitter resistance from the

residents, environmental groups and waste recycling workers.

Environmental groups have been opposing it since March 2005 when

Rakesh Mehta was the Commissioner of Municipal Corporation of Delhi.


The residents have been demanding closure of the power plant by

Delhi's Timarpur-Okhla Waste Management Co Pvt Ltd (TOWMCL) of M/s

Jindal Urban Infrastructure Limited (JUIL), a company of M/s Jindal

Saw Group Limited. The Jindal's plant is meant only for 2050 tons of

municipal waste. After 28 dates of hearing at Delhi High Court and

about a dozen hearing at the National Green Tribunal (NGT), the matter

is listed for hearing yet again on January 15, 2014.


Meanwhile, an incineration based waste to energy plant in the suburban

Jiading district, China exploded at 3.00pm on December 5, 2013 killing

at least one person and injuring at least 5 persons. The explosion

happened at an incineration based waste to energy plant with a

capacity of 1,500 tons per day.


Like Delhi's waste, Chinese waste also has low calorific value and

unfit for burning to generate energy but incinerator technology

companies have bulldozed their technologies for energy generation and

waste management. Like Jiangqiao Incineration Plant, Okhla plant also

boasts of having won awards that disregard the human cost of such

hazardous plants. Waste incinerator technology is a fake solution and

exposes the hollowness of carbon trade as it takes governments for a

ride by making them adopt proposals for building landfills in the sky.

Chinese incinerator technology and its ilk face relentless opposition

across the globe. Sheila Dikshit's initiatives have distorted waste

management and snatched the livelihood of waste recycling workers. AAM

AADMI PARTY's arrival has come as a ray of hope for the aggrieved

residents to save them from an impending public health disaster.


2.      Make present and future generation of Delhi residents safe from the

terrorism of private schools, hospitals and transport


AAM AADMI PARTY's Government should adopt Common School System which

has been advocated for long since. In recent times it was recommended

by a Committee appointed by Nitish Kumar government but he did not

take any step to act on its recommendation that called "for a

legislation underpinning the Common School System." The Delhi

Government should use it and pass legislation for it. If it happens it

would be a trendsetter beyond empty posturing.

The new government should provide robust public health system like

Germany and Cuba instead of promoting five star hospitals which compel

women to mortgage their jewels for medical expenses. This makes the

poor fall into a vicious debt trap.


AAM AADMI PARTY's choice of Metro as a mode of transport to commute

instead of availing private vehicle is a welcome step. Earlier,

Veerapa Moily had announced that he would use public transport once a

week starting Oct 9, 2013 but it soon turned out that it was empty

posturing. His acceptance of the role of being an Environment Minister

who has a regulatory role exposes his hypocrisy because as Minister of

Petroleum & Natural Gas is promoter of projects which are cause of

environmental destruction. How can he be allowed to be a promoter as

well as a regulator? Such gross conflict of interest exposes Moily as

one of the most insincere politicians in the country.

AAM AADMI PARTY's should provide infrastructure and space for walking

and cycling should get even more priority than public transport.

Wednesday or Friday should be declared a Free Public Transport Day as

first step towards making public transport totally free.  The public

transport can be funded in full by means other than collecting fares

from passengers. It may be funded by national, regional or local

government through taxation. Several mid-size European cities and many

smaller towns around the world have converted their bus networks to

zero-fare. The city of Hasselt in Belgium is a notable example: fares

were abolished in 1997 and ridership was as much as "13 times higher"

by 2006. Zero-fare transport can make the system more accessible and

fair for low-income residents. Road traffic can benefit from decreased

congestion and faster average road speeds, fewer traffic accidents,

easier parking, savings from reduced wear and tear on roads. It will

lead to environmental and public health benefits including decreased

air pollution and noise pollution from road traffic. If use of

personal vehicles/cars is discouraged, zero-fare public transport

could mitigate the problems of global warming and oil depletion.


Delhi's new Government should take lessons from countries and cities

which are care free. Copenhagen, one of the most densely populated

cities in Europe, in Denmark has successfully transformed car parks

into car-free public squares and car-dominated streets into car free

streets.


3.      Make Delhi India's first asbestos free state


There are 3 factories engaged in handling asbestos namely, Makino Auto

Industries (P) Ltd in Shahdara, Brakes International in Udyog Vihar

and Minocha Metals (P) Ltd in Patparganj Industrial Area. They should

be asked to switch non-asbestos materials in the light of the fact

that more than 50 countries have banned white asbestos mineral fibers

that causes incurable lung cancer according to World Health

Organisation. This will go a long way in combating fatal diseases

caused corporate crimes and in making Delhi the first state in the

country to adopt zero-tolerance policy towards the killer fibers.

National Human Rights Commission (NHRC) passed an order in Case No:

693/30/97-98 recommending that the asbestos sheets roofing be replaced

with roofing made up of some other material that would not be harmful.

PK Tripathi, Chief Secretary, Government of Delhi informed Dr Barry

Castleman, a former WHO consultant that asbestos was banned in Delhi

at Maulana Azad Medical College, New Delhi in December 2012. It has

been claimed that NCT of Delhi has banned use of asbestos roofs for

new schools. If this indeed true the order has not been implemented,

the official letters should be made accessible on Delhi's Govt's

website and steps taken to ensure that only non-asbestos building and

water supply pipes etc are procured. A register of asbestos laden

buildings and victims of asbestos related diseases should be created.

A compensation fund for the victims of primary and secondary exposure

must be established. Villages in Muzaffarpur and Vaishali in Bihar and

Bargarh in Odisha have stopped the establishment of asbestos based

plants. If AAM AADMI PARTY takes note of it and acts decisively it

will send nationwide and worldwide clear signal that its government is

sensitive to environmental and workers' issues.


4.      Abandon 12 digit biometric Unique Identification (UID)/aadhaar

number in Delhi

The new Government in Delhi must scrap UID/aadhaar related regressive

legacy of Indian National Congress led regime which made right to have

citizens' rights dependent on being biometrically profiled and not on

constitutional guarantees and Universal Declaration of Human Rights.

This has takes citizens to pre-Magna carta days (1215 AD) or even

earlier to the days prior to the declaration of Cyrus, the Persian

King (539 BC) that willed freedom for slaves. Should it not be

resisted?


The democratic mandate in Delhi is against UID/aadhaar which was made

compulsory and caused hardship to residents of Delhi. Unmindful of the

fact that people's right to energy and to cooking fuel funded by

government is being snatched away by linking it with aadhaar. The

right to life and livelihood is under tremendous threat because

significantly large number of Indians has been moved away from fire

wood and coal based cooking. Delhi, for instance claims to be a 100 %

LPG state. That means right to life and livelihood can be snatched

away with its link with aadhaar. Thus, the threat of exclusion in

absence of aadhaar based on decrees and sanctions unleashes violence

on the people.  This is unconstitutional.


All parties other than Congress must rigorously examine the

ramifications of biometric information based identification of

residents of India in the light of global experiences. UK, China,

Australia, USA and France have scrapped similar initiatives. US

Supreme Court, Philippines' Supreme Court and European Court of Human

Rights has ruled against the indiscriminate biometric profiling of

citizens without warrant.


AAM AADMI PARTY ought to take note of the fact that endorsing Supreme

Court's order, even Parliamentary Standing Committee (PSC) on Finance

in its most recent report dated 18 October, 2013 has asked Government

of India to issue instructions to State Governments and to all other

authorities that 12 digit biometric Unique Identification

(UID)/aadhaar number should not be made mandatory for any purpose. The

Seventy Seventh Report of the 31 member Parliamentary Standing

Committee (PSC) on Finance reads, "Considering that in the absence of

legislation, Unique Identification Authority of India (UIDAI) is

functioning without any legal basis, the Committee insisted the

Government to address the various shortcomings/issues pointed out in

their earlier report on 'National Identification Authority of India

Bill 2010' and bring forth a fresh legislation."


If AAM AADMI PARTY introduces this resolution, it will further

establish its claim to represent the common man.


In any case, in view of the order dated November 26, 2013, the new

Delhi Government will have to file its affidavit in the Supreme Court

in Writ Petition (Civil) NO(s). 494 OF 2012 because notices have been

"issued to all the States and Union Territories through standing

counsel. In its interim order dated September 23, 2013, the court has

directed, "In the meanwhile, no person should suffer for not getting

the Adhaar card inspite of the fact that some authority had issued a

circular making it mandatory and when any person applies to get the

Adhaar Card voluntarily…" When Ministry of Petroleum sought the

modification of this order this order was reiterated on November 26

wherein the court said, "Interim order to continue, in the meantime."

The next date of hearing is on January 28, 2014.


In the meanwhile, a resolution was passed by West Bengal Assembly on

December 2, 2013 against biometric aadhaar related programs. AAM AADMI

PARTY Govt should introduce a resolution in the Delhi Assembly seeking

scrapping of biometric aadhaar asking all the parties to support the

resolution. It is evident that from the resolution against the aadhaar

that all the parties other than Indian National Congress are opposed

to the implementation of Aadhaar based programs.


Notably, wherever Direct Benefits Transfers scheme based on aadhaar

was launched in the states that went for elections recently, Indian

National Congress lost. Rahul Gandhi had turned aadhaar as his key

promise in UP and Amethi but he and his party lost miserably in Uttar

Pradesh election too. Promises based on biometric aadhaar is like

India Shining campaign of BJP-led Government are rooted in a make

believe world to which Indian voters are allergic. Even Sanjay Gandhi

faced the adverse consequences of forcing planning on human body.

Aadhaar linked programs make Indian citizens subjects of Big Data

companies. It is akin to Sanjay Gandhi's forced family planning

programs. Despite the ongoing electoral debacle being faced by Indian

National Congress, it has failed to see the writing on the wall.


The abandonment of biometric aadhhar number by AAM AADMI PARTY will

demonstrate that its government will end the culture of spying on its

citizens and children in myriad disguises. It will make citizens stand

up against illegitimate advances of the state.


For Details: Gopal Krishna, ToxicsWatch Alliance (TWA),

Mb:09818089660, 08227816731,

E-mail:gopalkrishna1715@gmail.com, Web: www.toxicswatch.org


Rajiv Nayan Bahuguna

राज पुरुषों में सत्ता के दंभ और दिखावे की प्रवृत्ति ने अरविन्द केजरीवाल का मार्ग प्रशस्त किया . अगर वह कुछ भी न कर पाए , और सिर्फ अपने मफलर , मेट्रो , खांसी और झोला वाली जन सामान्य सा दिखने वाली धज बनाए रखें , तब भी वह सत्ता और संपत्ति के कुष्ठ से गल रहे भारतीय लोक तंत्र को काफी कुछ दे जायेंगे .

आज आपको एक कथा सुनाता हूँ , जो मुझे कभी अग्रज पत्रकार हरिश्चंद्र चंदोला ने सुनाई थी . - सन बावन चव्वन में कभी प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु बिहार और उत्तर पूर्व के बाढ़ ग्रस्त इलाकों का हवाई सर्वे कर लौट रहे थे . चंदोला भी पत्रकार के नाते उनके साथ थे . सुबह करीब आठ बजे प्रधान मंत्री का विशेष विमान दिल्ली हवाई अड्डे पर मंडराने लगा . लैंडिंग न होते देख नेहरु ने चंदोला से पूछा - क्या हम दिल्ली नहीं पंहुचे ? दिल्ली ही तो है , चंदोला ने रिप्लाई दिया . फिर उतार क्यों नहीं रहे जहाज़ को ? नेहरु के इस प्रश्न का उत्तर क्रू ने दिया - सर दर असल आपको लेने वाला वाहन अभी तक हवाई अड्डे नहीं पंहुचा है , इस लिए लैंडिंग नहीं की जा रही . नेहरु ने फटकार लगाई , और जहाज़ उतरवा दिया . उतरते ही नेहरु ने पत्तन के अफसरों को डांट बतायी -- क्या बद तमीजी है यह ? किस तरफ पड़ता है तीन मूर्ति ? मैं पैदल ही जाऊँगा . वह छड़ी लेकर एक अफसर को मारने लपके तो उसने घबरा कर इशारा कर दिया -- उस तरफ . नेहरु पैदल ही उस दिशा में भागे .यह एक जल्द बाज़ नायक का उद्वेलन था , क्योंकि उनका घर तीन मूर्ति वहां से पैदल तीन घंटे के रास्ते पर था . कुछ देर बाद उनका विशेष वाहन आ गया , और सुरक्षा कर्मी ने नेहरु को गाडी में घसीट लिया . उसे एक मुक्का मार कर नेहरु बोले - चलो सीधे वायु सेना अध्यक्ष के घर पर . ( विमान वायु सेना का जो था) . सुबह सुबह अपने बरामदे में ब्रश कर रहे वायु सेना अध्यक्ष अचानक प्रधान मंत्री को देख अच् कचा गए . " मैं तुम्हे धन्यवाद देने नहीं , बल्कि यह कहने आया हूँ की आज तुम्हारी बेवकूफी के कारण मेरा आधा घंटा खराब हुआ . कार नहीं आई थी तो क्या मुझे टेक्सी से घर नहीं छुडवा सकते थे ?" नेहरु बोले , और तत्काल वापस चल दिए

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Rajiv Nayan Bahuguna

आज इराक़ी राष्ट्रपति महामहिम सद्दाम हुसैन मरहूम के एक सहयोगी के संस्मरण पढ़ रहा था . मुझे भी उनके कुछ संस्मरण याद हो आये जो मुझे कभी स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा ने सुनाये थे .सद्दाम हुसैन ही थे , जिन्होंने एक आधुनिक इराक़ के निर्माण में भारतीय अभियांत्रिकी और मानव संसाधनों को भरपूर अहमियत दी , बावजूद इसके की उन पर अन्य मुस्लिम राष्ट्रों का भारी दबाव था की वह अपने सह धर्मियों से मदद लें , ताकि उन्हें आर्थिक लाभ हो सके . अफ़सोस की हम उनसे मित्र धर्म नहीं निभा पाए . कश्मीर मसले पर वह पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर लताड़ते थे , - जितना मुल्क तुम्हारे जिम्मे है वह संभाल नहीं पाते , लेकिन और ज़मीन मांगते हो ? बाबरी मस्जिद टूटने पर सद्दाम हुसैन ने हाय तौबा मचा रहे मुस्लिम राष्ट्रों को फटकारा था- यह हिन्दोस्तान का ज़ाती मामला है , और एक पुरानी इमारत के टूटने पर छाती न कूटो . हेमवती नंदन बहुगुणा जब पेट्रोलियम मंत्री थे , तो तेल संकट से निजात पाने इराक गए . अपने साथ चतुर बहुगुणा प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई का एक पत्र गए थे . इराक़ के समकक्ष मंत्री से उनकी वार्ता हो गयी , और अपेक्षा से कम पेट्रोल मिला तो बहुगुणा ने कहा की मुझे राष्ट्र पति से मिलना है . अपने प्रधान मंत्री का ख़त मैं सिर्फ उन्हीं के हाथ में दूंगा . हुसैन से उनकी पांच मिनट की मुलाक़ात तय हुयी . इस्लामिक रवायतों के स्कालर बहुगुणा ने उन्हें ऐसा घेरा की मुलाक़ात एक घंटे चली और राष्ट्र पति ने भारत का तेल कोटा तीन गुना कर दिया .

दूसरा संस्मरण इन्दर कुमार गुराल से सम्बंधित है . विदेश मंत्री के तौर पर गुजराल ने सद्दाम हुसैन से गुहार लगाई -- हमारे एक पुराने फ्रीडम फाइटर मुहम्मद युनुस का बेटा आपके यहाँ क़ैद काट रहा है . उसे माफी मिल जाए . राष्ट्र पति ने फ़ाइल तलब करने के बाद दो टूक जवाब दिया - वह ड्रैग ट्रेफिकिंग में क़ैद है , जिसके लिए हमारे देश में मृत्यु दंड का प्रावधान है . मामला अदालत का है , मेरे हाथ में कुछ नहीं . गुजराल निरुत्तर हो गए . दस मिनट औपचारिक वार्ता के बाद जब इराकी राष्ट्र पति उन्हें विदा करने उठे तो कहा की अपने राष्ट्र पति को मेरा सलाम कहिये , और हाँ , जिस लड़के का आपने जिक्र किया , वह कल आपके जाने से पहले छुट जाएगा . सलाम वीर सद्दाम . इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के बाद

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Dalits Media Watch

News Updates 01.01.14

Arvind Kejriwal-led AAP govt to issue 15,000 autorickshaw permits under SC/ST category - The Financial Express

http://www.financialexpress.com/news/arvind-kejriwalled-aap-govt-to-issue-15000-auto-permits-under-scst-category/1214093?rheditorpick

Despite ban, manual scavenging still on in Karnal village - The Tribune

http://www.tribuneindia.com/2014/20140101/haryana.htm#10

Probe ordered after rape accused kills self - Indian Express

http://www.indianexpress.com/news/probe-ordered-after-rape-accused-kills-self/1213654/0

Teenaged couple commits suicide as families oppose their relationship - IBN7

http://ibnlive.in.com/news/teenaged-couple-commits-suicide-as-families-oppose-their-relationship/442710-3-242.html

The Financial express

Arvind Kejriwal-led AAP govt to issue 15,000 autorickshaw permits under SC/ST category

http://www.financialexpress.com/news/arvind-kejriwalled-aap-govt-to-issue-15000-auto-permits-under-scst-category/1214093?rheditorpick

Express news service | New Delhi | Updated: Jan 01 2014, 12:44 IST

Arvind Kejriwal's Aam Aadmi Party government on Tuesday announced that it would be issuing 15,000 autorickshaw permits. (AP/PTI)

SummaryThis move by Arvind Kejriwal's Delhi govt will help break a nexus cemented by a cartel.

The Arvind Kejriwal-led Aam Aadmi Party's government on Tuesday announced that it would be issuing 15,000 autorickshaw permits to those belonging to the SC/ST and OBC categories. Of the 45,000 new permits allowed to be issued by the Supreme Court, only a few permits have been allotted under this category till date.

"The government is committed to the cause of autorickshaw drivers and the SC/ST community. The idea is to provide self employment to them. At present, most of the autorickshaws are under the control of a cartel and the drivers employed by them have to pay the owners exorbitant rents. This move of providing permits to the SC/ST and OBC category will help break this nexus,'' Transport Minister Saurabh Bhardwaj said.

According to the transport department, only 1,300 permits have been issued to drivers under this category even though there is a provision to issue nearly 14,000 permits under the category.

Bhardwaj had earlier said 5,500 autorickshaws will be given inter-state permits. These 5,500 autorickshaws are part of 7,000 autorickshaws in the NCR cluster scheme, which is under litigation. While 5,500 individual permits will be issued soon, around 1,500 auto permits will be kept aside till the case is settled, Bhardwaj said.

When questioned on how he would clamp down on the autorickshaw cartel, Bhardwaj said the number of autorickshaws plying on the road would have to be increased.

"We need to add more autorickshaws in a phased manner keeping in mind parameters such as traffic congestion and pollution,'' he said.

There are 55,000 autorickshaws plying in Delhi at present and another 45,000 were allowed to be given permits by the Supreme Court.

Incidentally, the Delhi government had gone to court six months ago with the proposal of allowing more autorickshaws but it was put on hold by the Supreme Court, which said the state must fill up the OBC/SC/ST quota before seeking more autorickshaws.

The Tribune

Despite ban, manual scavenging still on in Karnal village

http://www.tribuneindia.com/2014/20140101/haryana.htm#10

Bhanu P Lohumi, Tribune News Service

Karnal, December 31

Seven-year-old Anjali, a frail girl walking with a bucket of sewage and waste water for discharging it in an open field, is a pitiful sight.

This has become the fate of several others at Bhagpati village and adjoining areas, where the residents have been forced to become a scavenger, flushing out dirty water four times a day.

An epidemic threat looms over this village in the periphery of Karnal as every villager has been forced to be a scavenger in the absence of a drainage system.

The villagers have dug kutcha drains outside their houses to collect the dirty water and constructed small bundhs to check seepage.

Their morning starts with flushing the water from the drains and throwing it in an open field near the government primary school of the village.

The area around the field stinks as all villagers use it for throwing the dirty water and diseases have become a synonym with the village, says Anita, who lives close to the field.

"Our lives have become a living hell and living in such inhuman conditions has become our fate as no one is bothered about us," she laments. This inhuman practice continues even after a ban on human scavenging.

It is happening under the nose of the administration in spite of the fact that the village, with 700-odd voters, had been included in the Karnal Municipal Corporation.

Not only men and women, but even children, who should be studying in school and carrying schoolbags, are seen carrying buckets filled with dirty water.

Villagers have to walk in knee-deep water even for entering houses and the primary school is submerged in water.

People want to keep the village clean, but are forced to defecate in the open as there is no sewerage, rue the villagers. In case they do not do so, they will be be required to clean human excreta with their hands, they add.

The village, located in a low-lying area, is inundated during the rains as the drainage is above the village level and stagnant water causes water-borne diseases.

Health officials admit that they have stopped the immunisation programme due to unhygienic conditions prevailing in the village as workers have refused to enter the village.

Municipal councillor of the area Balvinder Singh says the villagers are leading a miserable life in the absence of a drainage system.

An estimate of Rs 1.4 crore has been sent to the Deputy Commissioner for laying the drainage system to channelise the dirty water, but nothing has been done till date, he adds.

"I have got streetlights installed with my money and the colony has been regularised a month back. The Public Health Department says sewerage cannot be laid as no land is available," he says.

Karnal Deputy Commissioner Vikas Yadav says: "It is a cause of concern and I will send a team to take stock of the situation."

Indian Express

Probe ordered after rape accused kills self

http://www.indianexpress.com/news/probe-ordered-after-rape-accused-kills-self/1213654/0

Tue Dec 31 2013, 03:41

MANISH SAHU

After a 27-year-old youth accused of raping a minor Dalit girl committed suicide a day after he was sent to jail in the case, the Bahraich district administration has ordered a magesterial inquiry into the claims that he was framed.

Dinesh Lodh was booked on charges of rape and the SC/ST Atrocities Act and Prevention of Children from Sexual Offences Act (POCSO).

The police are yet to receive the medical examination of the victim.

The case was registered at Bahraich's Kharghat police station on December 22 and Dinesh was arrested on December 24. He hanged himself in jail next day.

Dinesh's father Dhillar Lodh, a daily wage labourer, who sought an inquiry, told The Indian Express that his son had an altercation with the girl's mother on December 22 over a small issue. Dinesh then slapped the girl and her mother hit him with a blunt object, he claimed.

Dinesh belonged to Markhanda village while the girl belongs to a nearby village.

Dhillar Lodh alleged the girl and her mother later reached the police station and got a rape case lodged against his son.

Dhillar further said: "The police took my son from our house on December 22 and detained him for two days before producing him in court on December 24. After his arrest, I found out from the locals that the girl's mother had an altercation with Dinesh and there was no incident of rape. The police tortured my son in custody for two days. Unable to bear the humiliation, he committed suicide in jail."

Dinesh, who was also a daily wage labourer, is survived by his wife, Suman, whom he had married after a love affair of three years, and a one-year-old child.

Kharghat police station SHO R N Singh said the victim's mother alleged in the complaint that her 11-year-old daughter was working in the field when Dinesh raped her.

The SHO denied charges of Dinesh's illegal detention and his torture in police custody.

"The process of victim's medical examination is going on," he added.

Bahraich additional district magistrate (ADM) Prem Prakash Singh said an inquiry has been ordered on all the allegations made by family.

He added that city magistrate Hari Ram Singh, who is inquiring into the matter, has been asked to submit the report within 15-days.

Meanwhile, SHO Singh said Dinesh was jailed for about five months in a case of elopement of a girl who was recovered later. He was released from jail 15 days before he was arrested in the rape case.

IBN7

Teenaged couple commits suicide as families oppose their relationship

http://ibnlive.in.com/news/teenaged-couple-commits-suicide-as-families-oppose-their-relationship/442710-3-242.html

Press Trust of India

Jan 01, 2014 at 01:24pm IST

A teenaged couple allegedly committed suicide by hanging themselves from a tree in Dihiya village under Khuthan police station area here, police said on Wednesday.

Krishan Lal Bind (17), living in a Dalit basti, was having an affair with Rashmi (16) but their families were against their relationship, Additional Superintendent of Police Sripati Misra said.

They went missing on Tuesday from their homes and later their bodies were found hanging from the tree.

The bodies have been sent for postmortem examination, the ASP added.

.Arun Khote

On behalf of

Dalits Media Watch Team

(An initiative of "Peoples Media Advocacy & Resource Centre-PMARC")


Pl visit on FACEBOOK : https://www.facebook.com/DalitsMediaWatch

Dear Comrades,

                            I am glad to invite all of you for tribute to the Comrade & Militant Mrs.Rani alies Palaniammal

who gave her life for slavery dalit people's life.She is the First women who immolated herself even she

had very good economical and family background. I would like to share something about my Mom.

We can find her at everywhere where atrocities on dalit people takesplace.

There is a plenty of Conferences, Public meetings, Demonstrations etc things have done by Mrs.Rani  in her own steps

for trigger the dalit peoples  against the dominant parties launching these atrocities on slavery dalit peoples.

She developed her family from very lower class to higher by her hard work. Her hard work played important role

in both family & social life.

She have improved economical status of more womens by acquiring financial support from some Banks & Financial Organisations like eqivitas, introducing women's self supporting schemes from some banks etc......

Before she came to dalit matters she used do the social activities through proper channel like

Paramahamsa Seva Sangam, Madhar sangam etc.

Actually the problem was whatever development activities coming in dalit related matters or in their area Then the dominant people used to hide the activities or try to make it totally useful for their communities by misusing all the things and also "They don't want to service to dalit peoples".

She have sucessfully completed one Childrens Nutrition Center project at her local village for

Dalit childrens those who are having nutrition problem. Now this Center is working as the source of providing

all goverment offers to dalit peoples. because when we wanted this center to be builded here.

All authority officials are used to refuse this center going to be buided here. The Main reason for refusal is because the area is " Dalit Area ". " Thatswhy Militant Rani took this problem and struggled for more than two years" and finally she made it Possible.

The second one is Latrine used by the dalit peoples was not maintained properly because that was located

at " Dalit Area".Rani also took this issue she cleaned that latrine in her own hand without any support and kept under her responsibility.Now this latrine under our responsible only with safe and effective for all dalit peoples residing there sucessfully.

She was the one of the lady who involved in the Tsunami Relief Team at Nagapattinam(Dist) by providing accommodation and support when she was in the paramahamsa Seva Sangam.

Often used to go for the orphanages for Social services in Trichy District.

She will go at any time for the injustice things happening in the surrounding area womens and countered

more problems.Likewise We can mention more things that she have done.

Then she came to Aadi Thamizhar Peravai as started her service from District secretary of womens as


She became State secretary of Aadi Tamizhar Peravai in more than 8 years.

At last she gave her life to people for whom she struggled her total life(https://www.youtube.com/watch?v=Z_G3A03bNSA)


Kindly forward this message to all of them who having sprit,confidence and trying to do something


for Dalit Freedom like my Mom oh I amhttps://www.youtube.com/watch?v=Z_G3A03bNSAsorry" OUR MOTHER ".

                     SALUTATIONS TO MILITANT RANI

Date : 03.01.2014   Place : T.E.L.C, Near Head Post office, Trichirappalli.


On the Behalf of Mrs.Rani

  Guhannathan Arumugam

  Asst.Engineer ­

  E& I Dept

  Thermal Power Plant

  UltraTech Cement Ltd

  (Aditya Birla Group)

  Contact : 9159211280

  guhanice609@gmail.com

  guhannathan.a@adityabirla.com

2014 Will Bring More Social Collapse


By Dr. Paul Craig Roberts

Global Research, December 30, 2013

Url of this article:

http://www.globalresearch.ca/2014-will-bring-more-social-collapse/5362991


2014 is upon us.  For a person who graduated from Georgia Tech in 1961, a year in which the class ring showed the same date right side up or upside down, the 21st century was a science fiction concept associated with Stanley Kubrick's 1968 film, "2001: A Space Odyssey."  To us George Orwell's 1984 seemed so far in the future we would never get there.  Now it is 30 years in the past.


Did we get there in Orwell's sense?  In terms of surveillance technology, we are far beyond Orwell's imagination. In terms of the unaccountability of government, we exceptional and indispensable people now live a 1984 existence. In his alternative to the Queen's Christmas speech, Edward Snowden made the point that a person born in the 21st century will never experience privacy.  For new generations the word privacy will refer to something mythical, like a unicorn.


Many Americans might never notice or care. I remember when telephone calls were considered to be private. In the 1940s and 1950s the telephone company could not always provide private lines.  There were "party lines" in which two or more customers shared the same telephone line. It was considered extremely rude and inappropriate to listen in on someone's calls and to monopolize the line with long duration conversations.


The privacy of telephone conversations was also epitomized by telephone booths, which stood on street corners, in a variety of public places, and in "filling stations" where an attendant would pump gasoline into your car's fuel tank, check the water in the radiator, the oil in the engine, the air in the tires, and clean the windshield. A dollar's worth would purchase 3 gallons, and $5 would fill the tank.


Even in the 1980s and for part of the 1990s there were lines of telephones on airport waiting room walls, each separated from the other by sound absorbing panels. Whether the panels absorbed the sounds of the conversation or not, they conveyed the idea that calls were private.


The notion that telephone calls are private left Americans' consciousness prior to the NSA listening in. If memory serves, it was sometime in the 1990s when I entered the men's room of an airport and observed a row of men speaking on their cell phones in the midst of the tinkling sound of urine hitting water and noises of flushing toilets.  The thought hit hard that privacy had lost its value.


I remember when I arrived at Merton College, Oxford, for the first term of 1964.  I was advised never to telephone anyone whom I had not met, as it would be an affront to invade the privacy of a person to whom I was unknown. The telephone was reserved for friends and acquaintances, a civility that contrasts with American telemarketing.


The efficiency of the Royal Mail service protected the privacy of the telephone. What one did in those days in England was to write a letter requesting a meeting or an appointment.  It was possible to send a letter via the Royal Mail to London in the morning and to receive a reply in the afternoon. Previously it had been possible to send a letter in the morning and to receive a morning reply, and to send another in the afternoon and receive an afternoon reply.


When one flies today, unless one stops up one's ears with something, one hears one's seat mate's conversations prior to takeoff and immediately upon landing.  Literally, everyone is talking nonstop.  One wonders how the economy functioned at such a high level of incomes and success prior to cell phones. I can remember being able to travel both domestically and internationally on important business without having to telephone anyone.  What has happened to America that no one can any longer go anywhere without constant talking?


If you sit at an airport gate awaiting a flight, you might think you are listening to a porn film. The overhead visuals are usually Fox "News" going on about the need for a new war, but the cell phone audio might be young women describing their latest sexual affair.


Americans, or many of them, are such exhibitionists that they do not mind being spied upon or recorded. It gives them importance. According to Wikipedia, Paris Hilton, a multimillionaire heiress, posted her sexual escapades online, and Facebook had to block users from posting nude photos of themselves.   Sometime between my time and now people ceased to read 1984. They have no conception that a loss of privacy is a loss of self. They don't understand that a loss of privacy means that they can be intimidated, blackmailed, framed, and viewed in the buff. Little wonder they submitted to porno-scanners.


The loss of privacy is a serious matter. The privacy of the family used to be paramount. Today it is routinely invaded by neighbors, police, Child Protective Services (sic), school administrators, and just about anyone else.


Consider this:  A mother of six and nine year old kids sat in a lawn chair next to her house watching her kids ride scooters in the driveway and cul-de-sac on which they live.


Normally, this would be an idyllic picture. But not in America. A neighbor, who apparently did not see the watching mother, called the police to report that two young children were outside playing without adult supervision. Note that the next door neighbor, a woman, did not bother to go next door to speak with the mother of the children and express her concern that they children were not being monitored while they played.


The neighbor called the police.  http://news.yahoo.com/blogs/sideshow/mom-sues-polices-she-arrested-letting-her-kids-134628018.html


"We're here for you," the cops told the mother, who was carried off in handcuffs and spent the next 18 hours in a cell in prison clothes.


The news report doesn't say what happened to the children, whether the father appeared and insisted on custody of his offspring or whether the cops turned the kids over to Child Protective Services.


This shows you what Americans are really like.  Neither the neighbor nor the police had a lick of sense. The only idea that they had was to punish someone. This is why America has the highest incarceration rate and the highest total number of prison inmates in the entire world. Washington can go on and on about "authoritarian" regimes in Russia and China, but both countries have far lower prison populations than "freedom and democracy" America.


I was unaware that laws now exist requiring the supervision of children at play. Children vary in their need for supervision. In my day supervision was up to the mother's judgment. Older children were often tasked with supervising the younger. It was one way that children were taught responsibility and developed their own judgment.


When I was five years old, I walked to the neighborhood school by myself.  Today my mother would be arrested for child endangerment.


In America punishment falls more heavily on the innocent, the young, and the poor than it does on the banksters who are living on the Federal Reserve's subsidy known as Quantitative Easing and who have escaped criminal liability for the fraudulent financial instruments that they sold to the world.  Single mothers, depressed by the lack of commitment of the fathers of their children, are locked away for using drugs to block out their depression. Their children are seized by a Gestapo institution, Child Protective Services, and end up in foster care where many are abused.


According to numerous press reports, 6, 7, 8, 9, and 10 year-old children who play cowboys and indians or cops and robbers during recess and raise a pointed finger while saying "bang-bang" are arrested and carried off to jail in handcuffs as threats to their classmates. In my day every male child and the females who were "Tom boys" would have been taken to jail. Playground fights were normal, but no police were ever called. Handcuffing a child would not have been tolerated.


From the earliest age, boys were taught never to hit a girl. In those days there were no reports of police beating up teenage girls and women or body slamming the elderly. To comprehend the degeneration of the American police into psychopaths and sociopaths, go online and observe the video of Lee Oswald in police custody in 1963. http://www.youtube.com/watch?v=4FDDuRSgzFk


Oswald was believed to have assassinated President John F. Kennedy and murdered a Dallas police officer only a few hours previously to the film. Yet he had not been beaten, his nose wasn't broken, and his lips were not a bloody mess.  Now go online and pick from the vast number of police brutality videos from our present time and observe the swollen and bleeding faces of teenage girls accused of sassing overbearing police officers.


In America today people with power are no longer accountable. This means citizens have become subjects, an indication of social collapse.


Copyright © 2013 Global Research


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PRESS Statement


Dr Manmohan Singh has become a threat to environment and public health


Indian National Congress led Govt ignores environmental and

occupational diseases and deaths


December 2013: At last the Environment and forests Ministry has earned

the privilege of being headed by a cabinet minister. But the irony is

that Moily's acceptance of the role of being an Environment & Forests

Minister who has a regulatory role exposes his hypocrisy because as

Minister of Petroleum & Natural Gas, he is a promoter of projects

which are cause of environmental destruction. There is manifest

conflict of interest here because projects from Oil and Petroleum

ministry come to environment ministry's expert appraisal committee for

environment clearances. His appointment reveals that that Dr Manmohan

Singh, the Prime Minister has become a threat to environment and

public health.


Moily's appointment as environment minister is more controversial than

his appointment as Oil & Petroleum Minister by replacing S. Jaipal

Reddy to pander to the interests of companies like Reliance Industries

Ltd. The fact remains Reddy's integrity was unblemished and Jayanthi

Natarajan's performance was not as good as Reddy or Jairam Ramesh, her

predecessor.


How could Dr Manmohan Singh allow Moily to be a promoter as well as a

regulator? Such gross conflict of interest exposes Dr Singh and Moily

as few of the most insincere politicians in the country.


Till now the environment ministers were kept structurally weak so that

whenever there is conflict between blind economic growth and ecology,

the former is given precedence at the cost of the latter. The

environment ministry has been designed to be structurally weaker than

all the other ministries, which adversely impact the environment and

poison our food chain. The fact of appointment of Moily, the promoter

of environmentally destructive projects as the environment minister

underlines that Prime Minister does not accord the priority,

environmental issues deserve. The Prime Minister is quite insensitive

to the collapsing ecosystem.


It has been noted that as Oil & Petroleum Ministry, Moily has been

writing to MoEF against expanding boundaries of Pushpagiri Wildlife

Sanctuary in Dakshin Kannada, supported controversial Netravathi

Diversion project (Yettinahole Diversion Project) for his constituency

of Chikkaballapur. As environment minister he is under structural

compulsion to be disregard environmental concerns for electoral gains.


What is sad is that the Prime Minister has failed to realize that the

threat to the integrity of the natural systems is a threat to human

health, and such threats have become routine because of myopic

industrial agriculture, blind urban development, regressive transport

systems and criminal neglect of non-human species.


While legislative safeguards for environmental protection do seem to

exist on paper, the role of the political class which is funded by

corporations (under Companies Act, 2013 companies can pay up to 7.5 %

of their annual profits to political parties) illustrates that

homicidal ecological lawlessness that has led to rampant industrial

pollution, soil erosion, agricultural pollution, and genetic erosion

of plant resources are quite crucial and merit more acknowledgment.


This is an anti-environment proposition because the donors are bound

to seek lax environmental laws in return of their contribution to

political parties. Unless there is state funding for political parties

to fight elections, it is unlikely that the structural weakness in the

environmental governance can be rectified. The payments to the Indian

National Congress from these donors seem to have led to the

appointment of Moily to safeguard their profits at any environmental

cost.


Now little can be done to prevent ongoing of our contamination of

blood, congenital disorders, preventable but incurable cancer or

extinction of known and unknown living species on our planet. he Prime

Minister and the Chairperson of Indian National Congress led United

Progressive Alliance has failed to recognize the compelling logic to

re-examine the premises of Industrial Growth and design a new one. In

the developed world the model of development is under interrogation

because of environmental problems.


Indian National Congress led Government failed to respond the crisis

emerging from industrial pollution, vehicular pollution, land use

change, mutilation of rivers, aquifers and diversion of agricultural

land. Citizens have been forced to internalize the cost of

environmental damage and pollution even as the human environmental

cost of environmental destruction has been externalized for corporate

profits. It was expected that the Government would take cognizance of

the health indicators of the deteriorating environment in terms of a

double burden of disease but under the leadership of Dr Singh it has

been rendered spineless by the corporate contribution to its

constituent parties.


As an Environment Minister, Moily would ensure that the status quo of

land-water binary that has been created to deal with land resources

and water resources separately as part of colonial legacy must be done

away with and a genuine river basin approach is adopted which would

also require rewriting of the industrial policy.


Being from Karnataka, the new minister is likely to pander to

parochial interests by supporting the demand for catastrophic projects

like interlinking of rivers. He is expected to aggravate the unhealthy

legacy of bulldozing rivers, flood plains, forests, biodiversity,

natural drainage etc as if citizens, forests and wildlife are

irrelevant.


Dr Singh's policies have led to clearance for ecologically disastrous

industrial projects. There was need to publish a database of

environmental criminals and fugitives with their photographs and

profiles with the name of the companies which fall under the 64

heavily polluting industries under the Red category (highly polluting

industries), 34 moderately polluting industries ('Orange' category)

and 54 'marginally' polluting units ('Green' category) and to publish

a list of India's Most Wanted Environmental Criminals with wanted

posters. But the Prime Minister is likely to connive and collude with

the environmental criminals and fugitives. The new Government after

2014 elections will inherit a very sad legacy.


The Prime Minister has failed to stop transboundary movement of

polluting technologies, hazardous wastes, creating an inventory of

hazardous chemicals and wastes besides conducting an environmental

health audit along with the ministry of health to ascertain the body

burden through investigation of industrial chemicals, pollutants and

pesticides in umbilical cord blood.


In one study in the US, of the 287 chemicals detected in umbilical

cord blood, 180 were known to cause cancer in humans or animals, 217

are toxic to the brain and nervous system, and 208 cause birth defects

or abnormal development in animal tests. Absence of such studies in

India does not mean that a similar situation does not exist in India.

Until and unless we diagnose the current unacknowledged crisis, how

will he regulatory bodies predict, prevent and provide remedy.


Indian position on the UN's Rotterdam Convention meeting on hazardous

chemicals with regard to cancer causing mineral fibers like chrysotile

asbestos has become regressive under Dr Manmohan Singh Government.

India opposed the listing of chrysotile asbestos under Annex III of

the Rotterdam Convention at the sixth meeting of Conference of Parties

on May 8 in Geneva. Substances listed under Annex III of the

Convention -- a global treaty to promote shared responsibilities in

relation to import of hazardous chemicals -- require exporting

countries to advise importing countries about the toxicity of the

substances so that importers can give their prior informed consent for

trade. During the fifth Conference of Parties in June 2011, the Indian

delegation had agreed to the listing of chrysotile asbestos in the PIC

list, but later took a U-turn. Indian delegation's position was

inconsistent with domestic laws, which lists asbestos as a hazardous

substance. In keeping with Indian laws when the UN's Chemical Review

Committee of Rotterdam Convention recommended listing of white

chrysotile asbestos as hazardous substance, it is incomprehensible as

to why Indian delegation opposed its inclusion in the UN list. The

only explanation appears to be the fact that the Indian delegation did

not have a position independent of the asbestos industry's position,

which has covered up and denied the scientific evidence that all

asbestos can cause disease and death.


Although chrysotile asbestos banned in more than 50 countries, Indian

National Congress led Government's patronage to this killer industry

has led to an increase in consumption of asbestos in India. In India,

import of asbestos rose from 253,382 tonnes in 2006 to 473,240 in

2012, a steep increase of 186 per cent in six years.


This reveals that Dr Singh's government is anti-environment and

anti-public health.


His Government has ignored global experiences of INTERPOL

Environmental Crime Committee and its Working Groups on Wildlife Crime

and Pollution Crime.

India too needed similar approach but Dr Singh's government is dealing

only with civil cases through National Green Tribunal which is hardly

sufficient. In 1995, in one of its landmark judgments the Supreme

Court in the matter of Indian Council for Enviro-Legal Action v. Union

of India observed, "Environmental Courts having civil and criminal

jurisdiction must be established to deal with the environmental issues

in a speedy manner. Further, it must be manned by legally-trained

persons/judicial officers." The Tribunal violates the court order by

excluding criminal jurisdiction.


Dr Singh has failed to regulate pollution and environment crime. The

141-page report of the steering committee on the environment and

forests sector for the eleventh five-year plan prepared by Planning

Commission states: 'The number of polluting activities — and the

quantum of pollution generated — has increased in the last several

years. Furthermore, newer and newer environmental challenges are

thrown up — from solid waste disposal, to disposal and recycling of

hazardous waste, to toxins like mercury, dioxins and activities like

ship-breaking to management of vehicular pollution.' Dr Singh's

government failed to meet 'the regulatory challenge' as a consequence

environmental regulation has not kept pace with environmental crimes.


After serving for two years, Jayanthi Natarajan resigned from the post

of junior minister of state for environment and forests on December

21, 2103. The Veerappa Moily, the petroleum and natural gas minister

was given the additional charge of environment ministry.


For Details: Gopal Krishna, ToxicsWatch Alliance (TWA), Mb:

09818089660, 08227816731,

E-mail:gopalkrishna1715@gmail.com, Web: www.toxicswatch.org


NATIONAL ALLIANCE OF PEOPLE'S MOVEMENTS

National Office : 6/6 Jangpura B, New Delhi – 110 014 . Phone : 011 2437 4535 | 9818905316

E-mail: napmindia@gmail.com | Web : www.napm-india.org

                

v Press Release                                                  1.01.2013

Land Acquisition Act, 1894 of British Legacy Comes to an End       

v This is the time to hail the struggle, salute the martyrs and take the people's movements forward.

Today along with the ending of the year 2013 the Act of British legacy on Land Acquisition, 1894 also came to an end. It was this Act that brought in undemocratic and unjust eviction and displacement  of crores of our brethren as also martyrdom of many, dalits, adivasis, farmers, fish workers and others. The Act has led to uprootment of many communities and destroyed their socio-cultural environs including agriculture and livelihoods. It has led to destruction of ecosystems and natural resources, extracting and harnessing those but not benefitting the real needy populations. It has changed the paradigm of economies and development technologies, diverting the land, water, forest, aquatic and mineral wealth, toward cities and corporates more often than the poor and needy populations.


This Act is now replaced with a new Act, a part victory of decades long struggle of adivasis, dalits, farmers, fish workers as well as urban poor. The non-violent yet many militant struggles from Narmada to Nandigram, Koel Karo to Kalinganagar, POSCO to Vedanta, Mumbai slums to Ranchi, Hyderabad ,Chennai and Bangalore have finally compelled the Central Government to change the legacy partly and bring in a new Act. This is the time to hail the struggle, salute the martyrs and take the people's movements forward.

The new Act brings in some space for Gram Sabhas' consent, consent of the 80% land holders for private projects, Social Impact Analysis, upto 2.5 acres land per family to the adivasis in rehabilitation, and upholds minimization of land acquisition and diversion of multiple crop agricultural land etc. However, the Act has a number of short comings and yet creates some space for people's participation, consultation to consent, in different projects at different levels. While welcoming the change, therefore, we must take oath to broaden and strengthen our struggles for right to natural resources and sustainable just development planning with those.


Hundreds of farmers and fish workers, adivasis and others celebrated the end of British legacy by burning a torch and taking a resolve at the martyrs statue (Shaheed Stamb) at Barwani in the Narmada Valley, Madhya Pradesh. A small farmer and ardent struggler, Devram Kanera expressed deep faith in nonviolent struggle that has brought the result. He challenged the governments to show their might but appealed to them to follow the new Act and discard the inhuman ways and means to development. Advocate Prashant Patidar , Vijay Valvi, Jalal Bhai and other adivasis affected by the Sardar Sariovar Dam, Narmada Canals and the companies such as Ultratech Cement ushered in the Valley of Narmada expressed their vigour and commitment to save agri-culture, millions of trees, the river and fish which are the rich resources in the valley of Narmada, threatened with destructive projects. No project can now be imposed upon us, unless we give consent as Gram Sabhas and affected population based on the social, economic and environmental appraisal.


Sardar Sarovar Project, people asserted would also come under the purview of this new act since the land acquired continues to be in possessions of the farmers till date.


''Punjipatiyo Ki Jagir Nahi ,Yeh Desh Humara Hai'', was the voice raised by Kamla Behen, Meera Behen and others. Medha Patkar narrated the history of NBA and NAPM across the country that has finally created some political space for the Gram Sabhas and the Ward Sabhas, who can now have some opportunity to counter displacement in the name of development. Jal, Jungle, Zameen Haq Andolan should come up in every rural area to townships and cities wherever people have to stand and assert their rights. She appealed to the younger generation and all supporters standing for democracy and justice to join in whichever way possible. A torch light (Mashal) was burnt amidst songs and slogans while a copy of the Land Acquisition Act, 1894 was burnt to ashes.


Kailash Awasya                 Bhagirat Dhangar         Bilal Bhai                    Chetan Salve          Meera

Contact: +91 9179148973                               +91 9958660556

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Rajiv Awas Yojna (RAY) to be implemented in 'M' ward : Success of long battle by slum dwellers in Mumbai start with Mandala, end with mass-democracy.


On January 2nd, Awas Adhikar Vishal Rally after years of struggle, and victory on Rajiv Awas Yojna, in M Ward, at 11 a.m. from Karbala Ground, Mankhurd. Come in large number


It's a victory of the perseverant fight being given by thousands of the families of the poor, unprotected workers, the slum dwellers in and slums all over Mumbai, from Mankhund to Malad, that the standing committee of Mumbai Municipal Corporation of Greater Mumbai has resolved that Rajiv Awas Yojana will be implemented in M ward, in the N-E suburbs of Mumbai. The dream of Govandi-Mankhund area slum free city, we assert can never be fulfilled if the brutal eviction of slums therein continues even before the RAY commence to be executed.


This scheme which was proposed as self-reliant housing with financial support from the Central and state governments has to be a substitute for Slum Rehabilitation Scheme where the builders are not only get a chunk of prime and priced land occupied many times, even created by slums but also favours and freedom that bring them huge profit and privileges as well as power to bully the poor and the powerless, the shelterless.


GBGB Andolan and NAPM have pursued it through and through mass action of thousand by filing thousands of application with the state government and with MCGM. Two fasts in May 2011 and April 2012 demanded the RAY to replace SRA projects, where fraud to forgery is dug out by common people, staking their lives. It was during 10 days' agitation (January 1st to 10th last year) with 8 to 10,000 on the streets of Mumbai for right to shelter, that enquiry by the Principal Secretary, Hosuing was initiated and submissions and hearings of all parties are completed. It  is still on but the report is suppressed till date and eviction continued in 6 projects, full of illegalities and irregularities, exposed by GBGB Andolan (NAPM).


Today when RAY, it is decided by the standing committee through Resolution dated 26.12.2013, will be implemented in M ward, GBGB demands that it should begin with the Mandala pilot project proposed since long. Some change in land reservation, allotting 10-15 acres of land ,more than 50 meters away from mangroves, is possible and feasible in their case. We also demand that RAY should be executed with truly participatory approach involving people's organisations and the people themselves, since the preliminary stage of survey.


The political parties must show humility and faith in democracy and not immoral selfishness. They have just begun an 'Ray' , by putting up their banners suddenly cropped up like mushrooms all over the area of Govandi-MAnkhund. Where were they, people ask, during demolitions and agitations to bring RAY. We warn them of disastrous consequences if they do not behave and respect people and their struggle.

Anwari Behen           Sumit Wajale       Santosh Thorat        Medha Patkar       

Uday Mohite            

Shriram                           Jamil Bhai                              Prerna Gaikwad


Contact:   09423965153  09892727063


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