तो क्या अब तक वित्तमंत्री सो रहे थे?
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
भारतीय अर्थव्यवस्था का माई बाप कौन है, लगता है ,यह अभी तय नहीं हो पाया है। वित्त मंत्रालय और योजना आयोग अपना अपना राग अलापने में मशगुल हैं। लेकिन संकट कत्म होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। रिजर्व बैंक के करतब से गिरते रुपये को थाम लेने के दावे किये जा रहे थे, जो खोखले साबित हो गये. अब वित्त मंत्री का कहना है कि केंद्र कदम उठा रहा है। तो क्या अब तक वित्तमंत्री सो रहे थे?कल तक उनको आगामी राष्ट्रपति के लिए सबसे तेज घोड़ा माना जा रहा था, जिसपर बाजार ने भी दांव लगा रखा था। लेकिन तेजी से स्थिति बदलने लगी है। मायावती ने जहां संकेत दे दिये हैं कि वे भाजपा समर्थित प्रत्याशी को बी समर्थन दे सकती हैं। वहीं जयललिता और नवीन पटनायक ने आदिवासी उम्मीदवार बतौर संगमा की दावेदारी पेश करके क्षत्रपों की राजनीति को नया रंग दे दिया। जो हवा प्रणवदादा के पक्ष में बनती दीख रही थी, वह लगता है कि उड़ने लगी है। इसीलिये शायद उन्हें याद आ गया कि वे देश के वित्तमंत्री भी हैं।दूसरी ओर उनका पलीता निकालते हुए योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा है कि रुपये के मूल्य में गिरावट तथा उच्च मुद्रास्फीति के कारण भारत के लिये चालू वित्त वर्ष में 7.5 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि दर हासिल करना मुश्किल होगा।हालांकि उन्होंने भारत सरकार द्वारा नीतिगत निर्णय नहीं ले पाने को लेकर चिंताओं को खारिज कर दिया और कहा कि उन्हीं नीतियों की बदौलत पूर्व में देश 9 प्रतिशत से अधिक आर्थिक वृद्धि हासिल करने में सफल रहा।दोनों बयानों में अंतर्विरोध ऊपरी तौर पर दिखायी नहीं देता पर अमेरिका में बैठे योजना आयोग के अध्यक्ष के इस बयान से बतौर वित्तमंत्री प्रणव दादा की संकटमोचक भूमिका पर अवश्य सवाल उठते हैं।
कोलकाता में बतौर कांग्रेस नेता प्रणव मुखर्जी माकपा का कुछ बिगाड़ नहीं पाये ३४ साल के वामराज में, अब ममताराज में बी वे समान रुप से बेअसर नजर आ रहे हैं। ममता बनर्जी ने बतौर मुख्यमंत्री और कुछ किया हो या नहीं, कांग्रेस को शर्तिया साइन बोर्ड बना देने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। यहां तक कि जब उनके बेटे को उनके छुनाव क्षेत्र के कार्यक्रम में ममता दीदी अछूत ठहरा देती हैं, तब भी वे खून के आंसू पीकर रह जाते हैं। कारपोरेट इंडिया के दुलारे का कोई जनाधार नहीं रहा है। पहले वे माकपा के कृपा पर राजनीति कर रहे थे तो अब दीदी की मेहरबानी से!अब जब बंगाल में मां माटी मानुष की सरकार का ेक साल पूरा होने का जश्न शबाब पर है तो वित्तमंत्री रुपये की सेहत को लेकर परेशान हो गये। खीझ मिटाने की तरीका यह अच्छा है। कोलकाता में पत्रकारों के मुखातिब केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने रविवार को रुपये के तेजी से हो रहे अवमूल्यन को लेकर चिंता प्रकट की और कहा कि केंद्र सरकार इस मुद्दे के समाधान की कोशिश कर रही है। मुखर्जी ने संवाददाताओं से कहा, 'यह गम्भीर चिंता का विषय है।' उन्होंने कहा, 'हम इस पर नजर बनाए हुए हैं। केंद्र सरकार हाथ पर हाथ रखकर बैठी नहीं है। हम (इसका) समाधान करने की कोशिश कर रहे हैं।'
केंद्र हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा है, इस पर यकीन कैसे करें? रिजर्व बैंक ने जो कदम उठाये क्या उनका भी वही हश्र हुआ जैसा कि गार का?मुखर्जी ने कहा, 'ब्राजील सहित उभरते बाजारों में भी मुद्रा का संकट है।' गौरतलब है कि विदेशी मुद्रा विनियम बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपया पिछले कुछ दिनों से टूटताजा रहा है।उन्होंने रुपए पर दबाव के लिए कुछ यूरोपीय देशों की सरकारों की संकटपूर्ण वित्तीय स्थिति को जिम्मेदार ठहराया है, जिसके कारण निवेशक अमेरिकी डॉलर में निवेश को ज्यादा सुरक्षित मानने लगे हैं। गौरतलब है कि शुक्रवार को, शुरुआती कारोबार में रुपया 55 के स्तर को पार करने के करीब आ गया। इससे फिलहाल आने वाले दिनों में डॉलर के मजबूत बने रहने के पूरे आसार हैं। एक साल में रुपये की कीमत में 20 प्रतिशत की गिरावट आई है। इसे थामने के लिए रिजर्व बैंक भी हरकत में आया हुआ है। उसने कुछ जरूरी कदम भी उठाए हैं। हाल में आरबीआइ के डिप्टी गवर्नर सुबीर गोकर्ण ने कहा था कि रुपये में गिरावट रोकने के लिए केंद्रीय बैंक सभी विकल्पों पर विचार कर रहा है। इसके लिए जरूरी हस्तक्षेप व प्रशासनिक कदम उठाए जा रहे हैं। डीलरों ने कहा कि आयातकों खास कर तेल रिफाइनरियों की ओर से डॉलर की मांग निकलने से रुपया में गिरावट आई। हालांकि, रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप से रुपया में गिरावट थम गई।औद्योगिक उत्पादन में तेज गिरावट ने वित्तीय बाजारों को पस्त कर दिया। चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में यह गिरावट बनी रहने की आशंका ने बाजारों से निवेशकों को लगभग गायब कर दिया।महंगाई और ऊंची ब्याज दरों के चलते औद्योगिक उत्पादन में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का प्रदर्शन खराब कर दिया है। आइआइपी के खराब आंकड़ों ने पूरी तिमाही के लिए खराब प्रदर्शन की आशंका मजबूत कर दी। लिहाजा बाजार में मौजूद विदेशी संस्थागत निवेशकों [एफआइआइ] ने रुख बदला और अपना निवेश निकालना शुरू कर दिया। इसकी वजह से शेयर बाजार में बाजार में तेज गिरावट आई। सवाल यह है कि क्या वित्त मंत्री को ये हालात नजर नहीं आये?एफआइआइ की तेज बिकवाली का असर रुपये की कीमत पर भी पड़ा,यह तो सर्वजन विदित है और इसे समझने के लिए देश का वित्तमंत्री होना जरूरी नहीं है। निवेशकों की आस्था लौटाने में गार के दांत तोड़ देने के बावजूद वे बुरी तरह फेल हो गये, तो अब राष्ट्रपति बनकर कारपोरेट इंडिया का भला करने के अलावा क्या करेंगे? एक फायदा उनको जरूर होगा कि राष्ट्रपति बन जाने पर चुनाव में जनता का सामना करने वाली फजीहत से हमेशा मुक्त हो जायेंगे।
इस बीच हकीकत तो यह है कि न अर्थ व्यवस्था और न ही सब्सिडी , उनकी हालत तो क्षत्रपों की राजनीति ने खराब कर दी है।राष्ट्रपति चुनाव के लिए पीए संगमा की उम्मीदवारी के लिए प्रचार तेज करते हुए तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह, वाम दलों के नेताओं समेत कई गैर कांग्रेसी नेताओं से बात की। वही राकांपा नेता शरद पवार ने संगमा की उम्मीदवारी को लेकर कहा कि उनकी पार्टी संप्रग के 'सामूहिक निर्णय' को मानेगी. पवार ने कहा, 'हम संप्रग के घटक दल हैं और हम उसी के सामूहिक निर्णय को मानेंगे।
अहलूवालिया ने कहा कि वित्त मंत्रालय ने कहा कि वह इस साल 7.5 प्रश आर्थिक वृद्धि की उम्मीद कर रहा है। यह मुश्किल है, लेकिन असंभव नहीं है। पिछली तिमाही में आर्थिक वृद्धि मजबूत नहीं रही, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह कैसी रहेगी, यह देखना बाकी है।
अहलूवालिया ने कहा कि हमें कम होती आर्थिक वृद्धि से बाहर निकलने तथा तीव्र वृद्धि की राह पर लौटने की जरूरत है। रुपए के मूल्य में गिरावट, उच्च मुद्रास्फीति तथा चालू खाते का घाटा जैसे आर्थिक कारण भारत को 8 से 9 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि के रास्ते पर लौटने से रोक रहा है।
रुपए की विनिमय दर में इस साल मार्च से अब तक 11 प्रतिशत की कमी आई है। साथ ही मुद्रास्फीति अप्रैल महीने में 7.23 प्रतिशत रही, जो इससे पूर्व महीने में 6.89 प्रतिशत थी।
यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार अर्थव्यवस्था को उच्च वृद्धि के रास्ते पर लाने के लिए कड़े निर्णय करेगी, अहलूवालिया ने कहा कि मुझे ऐसी उम्मीद है। भारत में अपार संभावनाएं हैं। एक तरफ दुनिया में जहां उथल-पुथल हो रही है, वहीं भारत एक प्रमुख निवेश गंतव्य हो सकता है और हमें इस अवसर को गंवाना नहीं चाहिए।
भारत सरकार द्वारा नीतिगत निर्णय नहीं ले पाने को लेकर चिंताओं को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हीं नीतियों की बदौलत पूर्व में देश 9 प्रतिशत से अधिक आर्थिक वृद्धि हासिल करने में सफल रहा।
नीतिगत निर्णय नहीं ले पाने के कारण निवेश और आर्थिक वृद्धि पर पड़ने वाले असर के बारे में पूछे जाने पर अहलूवालिया ने कहा कि मौजूदा नियमों के आधार पर आर्थिक वृद्धि दर 5 साल तक 9 प्रतिशत रही। मैं यह नहीं कह रहा कि हमें नहीं बदलना चाहिए। हमें बदलना चाहिए।
उन्होंने कहा कि गठबंधन सरकार में प्राय: मुद्दों को सुलझाने में विलम्ब होता है, लेकिन कई ऐसे मामले हैं, जहां सरकार कदम उठा सकती है और उसके लिए कानूनी कदम की जरूरत नहीं है। हमें उस पर ध्यान देना चाहिए। सरकार इसको लेकर एजेंडे पर काम कर रही है।
उधर एअर इंडिया संकट पर वित्तमंत्री की खामोशी अजीब है जबकि सरकारी विमानन कम्पनी के हड़ताली पायलटों एवं प्रबंधन के बीच गतिरोध 13वें दिन रविवार को भी जारी रहा। इस संकट के चलते एयर इंडिया का नुकसान बढ़कर 230 करोड़ रुपये पहुंच गया है। एयर इंडिया की संचालन इकाई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'यह नुकसान टिकटों को निरस्त किए जाने, अप्रयुक्त श्रम और बोइंग-777 बेड़े के कई विमानों के उड़ान न भरने के चलते हुआ है। हमारा प्रतिदिन 13 से 15 करोड़ रुपये के बीच नुकसान हो रहा है।
इस सिलसिले में बिजनेस स्टैंडर्ड की यह रपट मौजूं है।पिछले हफ्ते रुपये में भारी गिरावट देखी गई और यह अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गया था। हालांकि इस हफ्ते एक्सचेंज अर्नर्स फॉरेन करेंसी खाते (ईईएफसी) से डॉलर का प्रवाह बढऩे और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ओर से भारतीय मुद्रा को थामने के लिए कुछ कदम उठाने की उम्मीद है, जिससे रुपये को बल मिल सकता है।शुक्रवार को रुपया डॉलर के मुकाबले 54.91 के स्तर पर पहुंच गया था लेकिन आरबीआई के हस्तक्षेप के बाद यह 54.49 पर बंद हुआ। पिछले हफ्ते रुपये में करीब 1.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। 10 मई को आरबीआई ने परिपत्र जारी कर ईईएफसी खाताधारकों से कहा कि वह अपने खाते में जमा 50 फीसदी डॉलर को रुपये में बदल लें। एक डीलर ने कहा, 'इस तरह के खातों से करीब 2.5 अरब डॉलर का प्रवाह हो सकता है, जिससे रुपये को कुछ समय तक राहत मिलने की उम्मीद है।' इसके साथ ही डॉलर का प्रवाह बढ़ाने के लिए आरबीआई तेल कंपनियों को सीधे डॉलर की आपूर्ति करने के कदम उठा सकता है, जिससे भी बाजार में रुपये की गिरावट पर रोक लग सकती है। हालांकि आरबीआई ने रुपये में गिरावट के लिए मुद्रा बाजार में किसी खास स्तर को लेकर डॉलर की बिकवाली करने का लक्ष्य नहीं रखा है। रुपये को थामने के लिए सितंबर 2011 से अब तक आरबीआई ने करीब 20 अरब डॉलर की बिकवाली की है।
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