Saturday, July 13, 2013

खुलकर सामने आए माकपा-भाकपा के मतभेद

खुलकर सामने आए माकपा-भाकपा के मतभेद


नई दिल्ली/ लखनऊ।सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दो साल तक की सजा पाये सांसदों और विधायकों की सदस्यता समाप्त करने के फैसले पर वामपंथी दलों में मतभेद खुलकर सामने आ गये हैं। जहाँ भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने इस फैसले को एक कटोर निर्णय बताया है जो नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश राज्य इकाई ने न केवल फैसले बेहद स्वागत योग्य बताया है बल्कि लगे हाथ और उन लोगों को बधाई भी दे डाली है जिन्होंने इस सम्बंध में न्यायालयों में याचिकाएं दाखिल कर इन फैसलों को बजूद में आने की पहल की।

माकपा पॉलिट ब्यूरो ने कहा है कि राजनैतिक कार्यकर्ताओं पर बड़ी संख्या में झूठे मुकदमे लादे जाते हैं। इसके अलावा अन्याय, कानूनी न्यायिक प्रणाली की अक्षमता और पूर्वाग्रह के चलते बुनियादी अधिकारों से वंचित लाखों विचाराधीन कैदी जेल में सड़ के लाखों रहे हैं। माकपा ने आशंका जताई है कि इस फैसले का बड़े पैमाने पर दुरूपयोग होगा और सत्तारूढ़ दल अपने विरोधियों को चुनावी प्रक्रिया से वंचित करने के लिए इसका इस्तेमाल करेंगी।

उधर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश राज्य इकाई के सचिव डॉ. गिरीश ने पार्टी के अधिकृत ब्लॉग और फेसबुक पर पोस्ट में कहा है कि "लखनऊ-कल ही सर्वोच्च न्यायालय ने दो साल तक की सजा पाये सांसदों और विधायकों की सदस्यता समाप्त करने का फैसला सुनाया और आज इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने राजनैतिक दलों द्वारा जातिगत रैलियां आयोजित करने पर रोक लगा दी। दोनों ही फैसले बेहद स्वागत योग्य हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का राज्य सचिव मंडल दोनों फैसलों को राजनीति के अपराधीकरण और जातिवादी राजनीति पर रोक लगाने की दिशा में एक सकारात्मक पहल मानता है और उन लोगों को बधाई देता है जिन्होंने इस संबंध में न्यायालयों में याचिकाएं दाखिल कर इन फैसलों को बजूद में आने की पहल की। यह फैसले इसलिये महत्वपूर्ण हैं कि पिछले कई दशकों से कई राजनैतिक दल अपराधियों और मफियायों को चुनावों में उतार रहे थे और ये अपराधी तत्व अपने धनबल और बाहुबल के बल पर चुनाव जीतने में कामयाब हो जाते थे। सद्चरित्र और समाज के प्रति समर्पित लोग संसद और विधान सभाओं में पहुँचने से वंचित रह जाते थे। इससे राजनीति में दिन-ब- दिन गिरावट आती गयी और वह जन-सरोकारों से दूर होती गयी। इसी तरह जाति आधारित राजनीति के चलते भी तमाम अपराधी, धनबली और बाहुबली चुनावों में बाजी जीत रहे थे और जनहित के लिये काम करने वाले व्यक्ति और पार्टियाँ पिछड़ जाते थे। इन फैसलों ने साबित कर दिया है कि राजनीति में अपराधियों और जातिवाद का घालमेल न केवल अनैतिक है असंवैधानिक भी है। अब जनता को भी अपराधियों और जातिवादी तत्वों को चुनावों में शिकस्त देनी चाहिये, वरना तो ये फैसले भी बेकार ही साबित होंगे।"

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Census 2010

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors