सिंगुर की लड़ाई से पीछे हटने को तैयार नहीं टाटा, जमीन वापस होना भी मुश्किल
अदालती फैसला राज्य सरकार के हक में जायेगा तो जमीन लेकर जोखिम उठाते हुए निवेश करने के लिए निवेशक तैयार हों या नहीं, भविष्य ही बतायेगा। सत्ता परिवर्तन से उद्योग, कारोबार और आर्थिक नीतियां बदलने का कोई जीर केंद्र में नही है, लेकिन बंगाल में खेल ही दूसरा है। चुनाव में पांसा पलटते ही नई सरकार क्या रुख अख्तियार करेगी, इस पर निवेशकों को अब ध्यान देना ही होगा।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
रतन टाटा रिटायर हो गये। सानदा से नैनो का उत्पादन निरंतर जारी है। लेकिन सिंगुर में नाक की लड़ाई से फिरभी पीछे हटने को तैयार नहीं है टाटा समूह। सुप्रीम कोर्ट ने सिंगुर जमीन विवाद पर टाटा से हालांकि जवाब तलब किया है कि जब वहां उसका कारखाना लग नहीं रहा, तो कारखाने के लिए गयी जमीन वह ठोड़ क्यों नहीं देता। सिंगुर भूमि आंदोलन की नेता व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे किसानों की जीत बता दिया। जबकि अगली सुनवाई अगस्त में होनी है। बहरहाल सिंगुर के किसानों को जमीन वापस मिलने की उम्मीद हो गयी। इसी के मध्य सिंगुर में पंचायत चुनाव संपन्न हो गया। नतीजे सिगुर पर सुनवाई से पहले ही आ जायेंगे और तय है कि तृणमूल के वर्चस्व को चुनौती नहीं दे पाया विपक्ष। पर इस चुनावी गणित का सिंगर के भविष्य सेकुछ लेना देना नहीं है। क्योंकि अदालती लड़ाई से टाटा समूह पीछे हट नहीं रहा है और लड़ाई अभी बाकी है।
पश्चिम बंगाल के सिंगुर में पंचायत चुनाव के लिए होने वाले मतदान के दिन टाटा समूह ने फिर एक बार पश्चिम बंगाल के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए कहा कि वह कभी राज्य से नहीं हटेगा। टाटा समूह के अध्यक्ष साइरस मिस्त्री ने यहां टाटा ग्लोबल बेवरेजेज की 15वीं सालाना आम बैठक के मौके पर कहा कि हम पश्चिम बंगाल से न कभी हटे हैं और न ही कभी हटेंगे। हुगली जिले के सिंगुर में नैनो कार के संयंत्र की स्थापना में असफल रहने के बारे में एक शेयर धारक के सवाल के जवाब में उन्होंने यह जवाब दिया। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में कृषि भूमि के अधिग्रहण के जबरदस्त विरोध के कारण कम्पनी को तीन अक्टूबर 2008 को अपने संयंत्र को गुजरात के सानंद में ले जाना पड़ा था। तृणमूल कांग्रेस ने तत्कालीन वामपंथी सरकार से 400 एकड़ भूमि किसानों को वापस करने की मांग की थी, जिसके बारे में पार्टी का आरोप था कि वह भूमि किसानों के न चाहने के बाद भी उनसे जबरदस्ती ली जा रही है।
फिरभी किसी चमत्कार से अगर टाटा समूह यह जमीन छोड़ भी देता है तो अनिच्छुक किसानों को भूमि अधिग्रहण कानून के तहत अधिकृत जमीन वापस करने का प्रावधान नहीं है। जमीन अपने कब्जे में लेकर राज्य सरकार उसका दूसरा इस्तमेमाल जरुर कर सकती है। इस बीच जमीन का चरित्र बदल गया है और सिंगुर के किसानों को ही शक है कि इस जमीन का खेती के लिए कोई इस्तेमाल हो पायेगा या नहीं। वैसे टाटा के सबक से सीख लेते हुए यह तो मु्कल ही लगता है कि सिंगुर में कोई उद्योगपति फिर निवेश करने को तैयार हो। अदालती फैसला राज्य सरकार के हक में जायेगा तो जमीन लेकर जोखिम उठाते हुए निवेश करने के लिए निवेशक तैयार हों या नहीं, भविष्य ही बतायेगा। सत्ता परिवर्तन से उद्योग, कारोबार और आर्थिक नीतियां बदलने का कोई जीर केंद्र में नही है, लेकिन बंगाल में खेल ही दूसरा है। चुनाव में पांसा पलटते ही नई सरकार क्या रुख अख्तियार करेगी, इस पर निवेशकों को अब ध्यान देना ही होगा।
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