नरेंद्र मोदी :डरे हुए हिन्दुओं का हीरो
एच एल दुसाध
मित्रों!1999 में पादरी ग्राहम स्टेंस की हत्या के बाद सुप्रसिद्ध पत्रकार राजकिशोर ने एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था-'डरे हुए हिन्दू का अट्टहास'.उसकी शुरुआती पंक्तियाँ थीं -'हिदुस्तान की हवा में एक अट्टहास गूँज रहा है.यह अट्टहास डरे हुए हिन्दू का है.डरा हुआ आदमी छिपकर हमला करता है .जो मजबूत या बहादुर होता है ,उसे गुरिल्ला कार्रवाई की जरुरत नहीं होती .वह सामने आकर लड़ता है.डरे हुए आदमी को वस्तुतः युद्ध से दहशत होती है लेकिन युद्ध उसे आकर्षित भी करता है.डरे हुए हिन्दू की आक्रामकता भी ऐसी ही है .वह हमला करना चाहता है ,हमले का सुख लेना चाहता है ,पर हमले को स्वीकार नहीं करना चाहता.'
मित्रों,मैं समझता हूँ राजकिशोरजी ने उपरोक्त थोड़े से शब्दों में ही हिन्दू साईक की निर्भूल व्याख्या कर दी थी .अभी-अभी फेसबुक पर एक मित्र की टिपण्णी देखा.उन्होंने भी हिन्दू साईक को राजकिशोर की तरह ही विश्लेषित करते हुए जो कुछ लिखा लिखा है उसका लब्बो लुबाव यह है कि ब्राहमण (प्योर हिन्दू ) और ब्राह्मणवादी(दो नम्बरी हिन्दू) खुलकर हमला नहीं करते,वे हमला करवाते हैं.तो सच्ची बात यह है कि हिन्दू डरी हुई जमात है जो हमला करना चाहती है,हमले का सुख लेना चाहती है ,पर हमले को स्वीकार नहीं करना चाहती.हिन्दुओं की इस चारित्रिक दुर्बलता का अपवाद आडवाणी,उमा भारती ,साध्वी ऋतंभरा,मुरली मनोहर जोशी इत्यादि जैसे बड़े हिंदुत्ववादी तक न हो सक उसका प्रमाण बाबरी मस्जिद ध्वंस के मामले में उनकी लिब्राहन आयोग के समक्ष दी गई गवाही है.लिब्राहन आयोग के समक्ष बाबरी विध्वंसकों का कायराना बयान डरे हुए हिन्दुओं को काफी निराश किया . मोदी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उस शख्स ने अवसर देखकर डरे हुए हिन्दू के साईक को अपने पक्ष में इस्तेमाल करने की परिकल्पना की और अपने लक्ष्य में सफल हो गया .
गुजरात दंगे से लेकर कल तक दिए गए साक्षात्कार के पीछे मोदी का अभीष्ट डरपोक हिन्दुओं का अपना मुरीद बनाना रहा है.मोदी ने खुद की छवि को 'चरम मुस्लिमविरोधी' और 'निडर हिन्दू'के रूप में स्थापित करने की जोखिम भरी परिकल्पना की.इस परिकल्पना के तहत ही उसने पिछले गुजरात विधानसभा चुनाव में एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया.इसी परिकल्पना के तहत कल उसने मुसलमानों की तुलना 'पिल्लों' से कर डाली .गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद चरम मुस्लिम विरोधी छवि निर्माण के लिए उसने ढेरों उपक्रम चलाये.मंच पर मीडिया के कैमरों की चकाचौंध के बीच मुस्लिम टोपी पहनने से इनकार ,उसी परिकल्पना एक का हिस्सा रहा.यही नहीं जिस तरह 70 की दशक में दुबले-पतले दमा के मरीज अमिताभ बच्चन ने हालीवुड के क्लिंट ईस्टवुड,चार्ल्स ब्रोंसन इत्यादि जैसे अभिनेताओं की 'ही मैनशिप' से अभिभूत हिन्दुस्तानी दर्शको की साईक का सद्व्यहार करने के लिए चेहरे पर कठोरता का स्थाई भाव लाने का उपक्रम चलाया,कुछ उसी तरह मोदी ने अपने चेहरे पर शुष्क व नृशंसता का भाव लाने का प्रयास किया जो डरे हुए हिन्दुओं के लिए सम्मोहनकारी साबित हुआ.मोदी ने अपनी खास छवि निर्माण की जो परिकल्पना की उसके परिणामस्वरूप उन्हें अ-भयाक्रांत हिन्दुओं और गैर-हिन्दुओं की आलोचना का पात्र बनना पड़ा.
मैं विद्यार्थी जीवन में कामर्श का छात्र रहा.कामर्श का मूलमंत्र है-'नो रिस्क,नो गेन'.मुझे पता नहीं मोदी अपने विद्यार्थी में जीवन में कामर्श के छात्र रहे या नहीं,पर दावे से कह सकता हूँ उन्होंने 'रिस्क' के मूलमन्त्र को जिस हद तक आत्मसात किया वह भारतीय राजनीति की खासी विरल घटना है.आज वह निर्विवाद 'हिन्दू ह्रदय सम्राट' के साथ प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने की स्थिति में हैं तो इसलिए कि उन्होंने चरम मुस्लिमविरोधी व भयमुक्त हिन्दू बनने का जोखिम उठाया .
दिनांक:13 जुलाई,2013
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