बरखुदार, अभी थोड़ी देर और रह जाते तो क्या बिगड़ जाता?
रुखसत हो गया पिछली सदी का "खलनायक"
♦ कुमार सौवीर
देहरादून के जिस ठेकेदार ने मशहूर पुल बनाया था, उसके बेटे ने हिंदी फिल्मों में सामाजिक और भावनात्मक रिश्तों के ऐसे-ऐसे सैकड़ों पुल बना दिये, जो अब तक आठवां अजूबा माने जाते हैं। प्राण ने अभिनय की जो डगर खोली-खोजी, आज के नामचीन अभिनेताओं ने उन्हीं खासियतों को अपना कर सफलता हासिल कर ली। लेकिन इकतारा के तौर पर प्राण आज भी बेमिसाल हैं। समाज में क्रूर मानसिकता वाली भूमिका निभाने वाले प्राण ने हमेशा ऐसा अभिनय किया कि दर्शकों की आंखें भर आये। बावजूद इसके कि दुनिया ने प्राण के नाम को कभी नहीं अपनाया। देर से ही सही, लेकिन पद्मश्री के बाद दादा फाल्के सम्मान उन्हें दिया गया, लेकिन उनकी असली उपलब्धि तो हर दर्शक के दिल में बसी है। हिंदी सिनेमा जगत को करीब चार सौ फिल्में देने वाले 92 साल के प्राण ने आज, 12 जुलाई की रात नौ बजे मुंबई के लीलावती अस्पताल में आखिरी सांसें ली।
सन 1920 की 12 फरवरी को दिल्ली के बल्लीमरान मोहल्ले में जन्मे प्राण कृष्ण सिकंद के पिता लाला केवल कृष्ण सिकंद एक सरकारी कांट्रैक्टर थे। समृद्ध परिवार। विशेषज्ञता थी सड़क और पुल बनाने की। देहरादून का कलसी पुल उन्होंने ही बनाया था। लाला केवल कृष्ण सिकंद के बेटे प्राण की शिक्षा कपूरथला, उन्नाव, मेरठ, देहरादून और रामपुर में हुई। पेशेवर जिंदगी की शुरुआत लाहौर में फोटोग्राफर के तौर पर हुई। लेकिन सन 40 में वली मोहम्मद ने पान की एक दुकान में प्राण को देखा और यमला-जट फिल्म से वे मशहूर हो गये। दीगर बात थी कि यह शोहरत लाहौर और आसपास तक ही सीमित रही। इसी बीच उनकी शादी शुक्ला से हो गयी और दो बेटे अरविंद और सुनील तथा एक बेटी पिंकी भी हुई। बाद के वर्षों में मुल्क की ही तरह उनकी जिंदगी में उलट-फेर हुआ और आखिरकार वे मुंबई आ गये। आज उनके कुनबे में पांच पोते-पोतियां और दो परपोते शामिल हैं।
सन 48 में उन्होंने मुंबई से अपनी नयी जिंदगी बांबे टॉकीज में शाहिद लतीफ के निर्देशन में देवानंद और कामिनी कौशल के साथ जिद्दी फिल्म से की। मदद की थी मंटो ने। इसके बाद दो बदन, मधुमती, इंस्पेक्टर एक्स, गुमनाम, शीश महल, झूला, लव इन टोक्यो, हाफ टिकट, मेरे महबूब और जिस देश में गंगा बहती है जैसी चार दर्जन से ज्यादा फिल्मों से जम गये। खेलों के प्रति प्राण का आकर्षण खूब रहा, जो फिल्मों में भी दिखा। फुटबॉल की ही तरह उन्होंने फिल्मों में हर तरह के दांवपेंच लगाये। मकसद था सिर्फ गोल करना। चाहे खांटी खलनायकी का काम हो या नाचना या फिर सकारात्मक चरित्र-भूमिका निभाना। कई फिल्में तो ऐसी बनीं, जिसमें प्राण की भूमिका नायक से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गयी। कहा तो यहां तक गया कि अगर प्राण न होते तो फिल्म फ्लॉप हो जाती। फिल्म ही क्यों, कई अभिनेताओं को उन्होंने इस तरह तराशा कि अगर प्राण न होते तो न जाने कब के मुंबई की हवा में उड़ जाते।
इसके बावजूद इनकी पहली पहचान तो क्रूर खलनायक से ही बनी थी। देख लीजिए राम और श्याम। दो जुड़वा भाइयों की इस कहानी में प्राण का चाबुक जब पूरी ताकत से दिलीप कुमार की पीठ पर बरसता था, तो उसकी चोट दर्शकों के दिल और दिमाग पर पड़ती थी। प्राण की भूमिका के चलते ही प्राण पूरे हिंदी फिल्म दर्शक-वर्ग की घृणा हासिल कर गये। प्राण मतलब घृणास्पद शख्स, जिसकी शैली ही सहमा देती थी लोगों को। इसके बाद तो हिंदुस्तान के किसी बच्चे का नाम प्राण नहीं रखा गया। अपने पति को भी प्राणनाथ कहने से महिलाएं परहेज करती थीं। लेकिन इसके बावजूद प्राण ने कभी भी अपनी जिम्मेदारी से अन्याय नहीं किया। हर भूमिका को जिंदा किया। सन 60 में सिगरेट के छल्ले बनाने वाले प्राण की पुकार खूब सराही गयी।
उनकी एक नयी छवि बनायी सन 67 में बनी फिल्म उपकार ने। मनोज कुमार ने एक विकलांग और बेहाल शख्स की भूमिका के लिए प्राण को चुना और प्राण मंगल चाचा बन गये। उनके डॉयलॉग और इस गीत में प्राण की दार्शनिक शैली ने दर्शकों को बुरी तरह रुला डाला। दरअसल, इंदीवर ने "कसमें, वादे, प्यार, वफा, सब बातें हैं बातों का क्या…" मुखड़ा वाला गीत मन्ना डे से गवाया था। इंदीवर चाहते थे यह गीत मनोज कुमार पर फिल्माएं। लेकिन मनोज ने पारस को पहचान लिया और प्राण को यह जिम्मेदारी सौंप दी। इंदीवर इस पर भिड़े थे। मगर फिल्म आयी और इंदीवर दंडवत। उनका एक डॉयलॉग सुनिए : राशन पे भाषण है, पर भाषण पे राशन नहीं। उस समय देश भुखमरी की हालत में था और इस वाक्य से प्राण ने दर्शकों को झकझोर दिया। उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया। इसके बाद फिर लाजवाब फिल्में दीं प्राण ने। सन 70 में आंसू बन गये फूल और सन 73 में बेईमान फिल्म के लिए प्राण को फिर यही पुरस्कार मिला। इसके बाद से तो उनके खाते में सैकड़ों सम्मान और पुरस्कार जुड़ने लगे। जंगल में हैं मोर बड़े, शहर में हैं चोर बड़े… माइकल दारू पीके दंगा करता है गीत पर उनकी अदा खूब सराही गयी। किशोर कुमार की आवाज में प्राण खूब फबे। बेईमान में बोतल से सीधे शराब गटकने वाले माइकल की शैली और डायलॉग ने तो धूम ही मचा दिया कि गली-मोहल्ले में युवकों में माइकल उपनाम प्रचलित हो गया। ठीक वैसे, जैसे "ओ सांईं", या फिर "क्यों बरखुरदार"।
सन 72 में प्राण की सर्वाधिक नौ फिल्में आयीं। परिचय, यह गुलिस्तां हमारा, विक्टोरिया नंबर 203, जंगल में मंगल, रूप तेरा मस्ताना, एक बेचारा, सज़ा, बेईमान और आन बान थीं। लेकिन सबसे हिट रही विक्टोरिया नंबर 203। इस फिल्म में प्राण ने फिर एक बार अपनी नयी शैली स्थापित कर दी। और उसके बाद तो प्राण हर बार फिल्म-जगत में नयी प्राण-वायु बन कर सामने आते रहे। अमिताभ बच्चन उस समय कड़े संघर्ष कर रहे थे। सौदागर जैसी फिल्में सिनेमाघरों की चौखट पर दर्शक नहीं आकर्षित कर पा रही थीं। कि अचानक प्राण के साथ बनी जंजीर ने अमिताभ को शीर्ष तक पहुंचा दिया। अमिताभ बच्चन इसके बाद सुपर स्टार बन गये, लेकिन प्राण अपनी नयी-नयी शैली खोजने में जुटे रहे, जबकि अमिताभ बच्चन ने प्राण की जिजीविषा में अपनी सफलता खोजनी शुरू कर दी। सीढ़ी बनायी प्राण ने और उस पर परचम फहराया अमिताभ ने। मसलन, जंजीर का वह गीत: यारी है ईमान मेरा, यार मेरी जिंदगी। इस फिल्म में शेर खान पठान की भूमिका में प्राण ने हल्की ही सही, लेकिन जो नयी नृत्य-शैली अपनायी, अमिताभ ने उसी को अपना कर बाकी फिल्मों में अपनी धाक बनायी। डॉन में तो प्राण को अमिताभ बच्चन से ज्यादा मेहनाता मिला। इसके पहले तक नृत्य का दायित्व महिला किरदारों से ही कराया जाता था। और फिर नृत्य-भंगिमा ही क्यों, सहायक और चरित्र भूमिका में जो भाव प्राण ने खुद में फूंके, अमिताभ ने भी अपने साथ लागू कर दिया।
इंसान के तौर पर भी प्राण लाजवाब थे। परदे पर दिखते बेरहम और खौफनाक भूमिका से उलट प्राण निजी जिंदगी में बेहद शरीफ, उदार, भावुक और संवेदनशील और सोने जैसा दिल रखते थे। गुड्डी फिल्म में उनकी असलियत करीब से देखी जा सकती है।
हिंदी सिनेमा की जमीन पुख्ता करने के बाद प्राण पिछले करीब 15 बरसो से आराम कर रहे थे। सांस की दिक्कत थी। इसके बावजूद उन्होंने दस साल पहले एक और फिल्म कर ली। राष्ट्रपति ने उन्हें पद्म भूषण सम्मान दिया। यश मेहरा के पुत्र अमित मेहरा जंजीर की सिक्वेल बना रहे हैं, जिसमें प्राण की भूमिका संजय दत्त करेंगे।
(कुमार सौवीर। यूपी के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार! उनसे उनके मेल आईडी kumarsauvir@yahoo.com और kumarsauvir@gmail.com पर संपर्क करें और 09415302520 पर फोन करें। उनका यह आलेख हमने मेरी बिटिया डॉट कॉम से उठाया है।)
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