Monday, July 15, 2013

बूढ़ा केदार की व्यथा-कथा

बूढ़ा केदार की व्यथा-कथा

uttarakhand-disaster-2013प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा कहते हैं कि इस आपदा में कितने लोग मरे इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। कोई भी अनुमानों के आधार पर मृतकों की संख्या न बताए। अब तक 3000 लोग लापता हैं। इससे दो बातें साफ हो गई, पहली यह कि सरकार इस आपदा के दौरान हुई मौतों के 580 के आँकड़े पर अटकी हुई है जबकि इससे 20 गुना से भी अधिक मौतें हुई हैं। दूसरा, सरकारी एजेंसियाँ और स्वयं कांग्रेसी भी मौतों के आँकड़े को लेकर अलग-अलग बयान दे रहे हैं। असल में मुख्यमंत्री ने यह बात विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल के उस बयान के बाद कही जिसमें उन्होंने कहा कि सरकार 580 मौतों के आँकड़े पर अटकी हुई है जबकि दस हजार से अधिक मौतें हुई हैं। वैसे अभी तक हुई 7744 लोगों की दर्ज गुमशुदगी कुंजवाल के बयान की पुष्टि ही कर रही है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक इस आपदा से राज्य के 2500 गाँवों को नुकसान पहुँचा है। 151 गाँव पूरी तरह प्रभावित हुए हैं। 890 पक्के और 1467 कच्चे मकान क्षतिग्रस्त हुए हैं, लगभग 500 गाँवों में बिजली की सप्लाई खत्म है। तीन सीमांत जिलों में 1840 सड़क मार्ग टूटे हुए हैं।

भागीरथी और अलकनंदा घाटियों के साथ भिलंगना घाटी में भी इस आपदा ने खूब कहर बरपाया है। ऐतिहासिक महत्व के बूढ़ाकेदारनाथ क्षेत्र के गाँवों में आपदा ने भयंकर तबाही मचाई है। लेकिन राहत और बचाव कार्य में लगी एजेंसियों का ध्यान अभी इस क्षेत्र की तरफ नहीं गया है। थाती गाँव की सुधा व्यास धर्म गंगा की बाढ़ में तबाह हो चुके अपने आशियाने के आसपास ही खड़ी रहती है। हर आने-जाने वाले को वह अपना गम बताना चाहती है लेकिन घाटी के सैकड़ों परिवार बाढ़ से मिले जख्मों को शह रहे हैं इसलिए सुधा की बात वहाँ कोई नहीं सुनता। बूढ़ाकेदार बाजार में धर्मगंगा और बालगंगा नदियों के संगम के 50 मीटर दूर बूढ़ाकेदार-झाला पिन्स्वाड़ रोड के किनारे ही 17 जून तक सुधा का आठ कमरों का मकान था, जो उसके भाई ने उसे दिया था। वक्त की मार ने एक बार फिर सुधा को सड़क पर ला दिया है। बाढ़ में घर के साथ ही सारा सामान भी बह गया। बाढ़ जब आँगन तक आ गई तब भी किसी ने नहीं सोचा कि उनके आशियाने उजड़ने वाले हैं। अब सुधा लगातार यही बुदबुदा रही है, ''हमें मुआवजा न मिले पर सरकार हमें दो कमरे लायक जमीन और मकान बनाने की मदद दे दे। हम तो किराया भी नहीं दे सकते।'' ऐसी ही हालत उन दर्जनों लोगों की भी है जिनके मकान या तो बाढ़ में पूरी तरह से बह गए हैं या अब रहने लायक नहीं रहे।

टिहरी जिले के भिलंगना विकासखंड की बालगंगा घाटी को टिहरी रियासत के समय टिहरी राजा की दूसरी राजधानी के नाम से जाना जाता था। आज भी यह घाटी खेती की दृष्टि से अव्वल है। लेकिन साल दर साल आ रही आपदा ने लोगों को झकझोर दिया है। बूढ़ाकेदार बाजार में ही 15 से अधिक मकान बाढ़ की चपेट में आकर जमीदोंज हो गए हैं जिनमें से 7 मकानों का तो नामोनिशान तक मिट गया है। बूढ़ाकेदार के ग्राम प्रधान सुन्दरनाथ बताते हैं, ''इस आपदा ने गाँव को बर्बाद कर दिया है। मकानों के साथ ही खेती को भी बहुत नुकसान हुआ है। 100 परिवारों की करीब 200 नाली से अधिक खड़ी फसल और खेतों का निशान तक नहीं बचा, गाँव में पिसाई के लिए लगे सारे घराट बह गए हैं।'' थाती गाँव के मनमोहन सिंह रावत कहते हैं, ''आपदा के दिन डीएम, एसडीएम, तहसीदार और 108 आपातकालीन सेवा सभी को फोन किया था लेकिन 8 दिन तक कोई नहीं आया। थाती-बुढ़ाकेदार ग्राम पंचायत के रैफल, डडोली, डुनला और घनाली तोकों में बहुत नुकसान हुआ है। लोगों के खेत, छानी, मकान सब बह गए हैं। गाँव के दो दर्जन से अधिक परिवार गाँव के दूसरे परिवारों के घरों में शरण लिए हुए हैं।''

बूढ़ाकेदार में जहाँ धर्मगंगा की बाढ़ ने तबाही मचाई है, इससे पहले वह उन घरों से 50 मीटर दूर पार गाँव के किनारे से बहती थी। घरों और नदी के बीच गाँव के हरे-भरे खेत थे जो अब रौखड़ में बदल चुके हैं। लोक जीवन विकास भारती के संक्षरक व सामाजिक कार्यकर्ता बिहारी भाई कहते हैं कि इस नदी का ऐसा रौद्र रूप इससे पहले कभी नहीं देखा लेकिन यह सब मनुष्य द्वारा नदी-घाटियों में निरन्तर बढ़ाई गई गतिविधियों का नतीजा है। इसका खामियाजा बूढ़ाकेदार के बाढ पीडि़त सबसे ज्यादा भुगत रहे हैं। नत्थीलाल ने अपने सारे खेत बेचकर सड़क के किनारे चार कमरों का मकान बनाया था। लेकिन जैसे ही घर में छत पड़ी और फिनिशिंग का काम होना था, प्रकृति ने अपना कहर बरपा दिया। अब नत्थीलाल के पास न खेत बचे और न उसका आशियाना ही बन पाया। वह पहले भी दूसरे के मकान पर ही रहता था और अब शायद ही कभी अपना मकान बना पाएगा। नत्थीलाल मजदूरी करके अपनी गुजर-बसर चलाते हैं। जगदेही की कहानी भी इनसे अलग नहीं है। जगदेही के पति पिछले 8 साल से लापता हैं। दो बेटे किसी तरह अपनी गुजर-बसर लायक कमाते हैं पर जगदेही हो कुछ नहीं देते। बाजार में चार छोटी-छोटी दुकान की दरों से 2000 रुपया जो किराया आता था उससे ही जगदेही का चूल्हा जलता था लेकिन अब उसे अपनी रोटी की चिंता है। बालकनाथ ने जिन्दगी भर के श्रम से बूढ़ाकेदार में 4 सेट का मकान तैयार किया था। परिवार इसमें रहने भी लगा था कि अब मकान की जगह खाली खंडहर ही बचा है। बालकनाथ कहते हैं कि मकान तो भविष्य में बनाना ही होगा लेकिन इस जगह पर नहीं बना सकते। थाती गाँव के हिम्मत सिंह रौतेला कहते हैं कि गाँव की कमर टूट गई है। इसके नुकसान का अंदाजा भी नहीं लगा सकते।

http://www.nainitalsamachar.in/sad-story-of-buda-kedar/

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