Thursday, February 27, 2014

बहस तलब, जाति उन्मूलन को बुनियादी एजंडा बनाये बगैर हम न वर्ग जाति वर्चस्व टल्ली लगाकर तोड़ सकते हैं और न पूंजी निर्देशित राज्यतंत्र को बदलने की कोई पहल कर सकते हैं

बहस तलब, जाति  उन्मूलन को बुनियादी एजंडा बनाये बगैर हम न वर्ग जाति वर्चस्व टल्ली लगाकर तोड़ सकते हैं और न पूंजी निर्देशित राज्यतंत्र को बदलने की कोई पहल कर सकते हैं
पलाश विश्वास
जनज्वार डॉटकॉम

यूपीए-एनडीए और यहां तक कि 'थर्ड फ्रंट' की अल्पायु सरकार भी आर्थिक नीतियों के मामले में एक जैसी ही रहीं. आज जब चुनावी विकल्प के रूप में राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी का शोरशराबा हो रहा है, आर्थिक नीतियों के स्तर पर शायद ही कोई बुनियादी फर्क हो. कुल मिलाकर भूमंडलीकरण के इस दौर में अवाम के सामने आर्थिक नीतियों के स्तर पर वास्तविक विकल्प मौजूद नहीं है...http://www.janjwar.com/janjwar-special/27-janjwar-special/4812-awtari-rajneeti-ke-daur-men-bharat-for-janjwar-by-prabhat-patnayakयूपीए-एनडीए और यहां तक कि 'थर्ड फ्रंट' की अल्पायु सरकार भी आर्थिक नीतियों के मामले में एक जैसी ही रहीं. आज जब चुनावी विकल्प के रूप में राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी का शोरशराबा हो रहा है, आर्थिक नीतियों के स्तर पर शायद ही कोई बुनियादी फर्क हो. कुल मिलाकर भूमंडलीकरण के इस दौर में अवाम के सामने आर्थिक नीतियों के स्तर पर वास्तविक विकल्प मौजूद नहीं है...http://www.janjwar.com/janjwar-special/27-janjwar-special/4812-awtari-rajneeti-ke-daur-men-bharat-for-janjwar-by-prabhat-patnayak

बहस की शुरुआत करें ,इससे पहले एक सूचना।दृश्यांतर का ताजा अंक मेरे सामने है।इस भव्य पत्रिका के संपादक अजित राय हैं।इसअंक में नियमागिरि पर एक रिपोर्ताज है।हमारे प्रिय लेखक मधुकर सिंह की कहानी है।मीडिया की व्श्वसनीयता पर दिलीप मंडल का मंतव्य है।किसानों की आत्महत्या के कथानक पर भूतपूर्व मित्र संजीव के उपन्यास फांस का अंश है। संजीव हंस के संपादक बनने के बाद हमारे लिए भूत हैं।राजेंद्र यादव के धारावाहिक उपन्यास की चौथी किश्त भूत है।कुंवर नारायण की कविताें हैं।और स्मृति शेष ओम प्रकाश बाल्मीकि हैं।जरुर पढ़ें।


बहस से पहले सुधा राजे की पंक्तियां भी देख लें।


युवा कवियत्री सुधा राजे लिखती हैं

Sudha Raje

जिस दिन से सारा मीडिया """(असंभव बात) """"

नेता के बारे में एक भी शब्द कहना लिखना त्यागकर

केवल

और

केवल

जनता की समस्याओं और संघर्षों उपलब्धियों और नुकसानों के के बारे में चित्र शब्द ध्वनि से जुट जायेगा अभिव्यक्ति पर


व्यक्ति पूजा बंद हो जायेगी

और

वास्तविक चौथे पाये की स्थापना होगी


राजनेताओं की अकल अकङ सब ठिकाने आ जायेगी।


Sudha Raje
एक ही थैली के चट्टे बट्टे "
कक्षा तीन में 'कक्का मास्साब ने सेंवढ़ा में यह कहावत पढ़ायी थी ।

अब लोग इतने भी भोले नहीं रहे कि ये नौ दो ग्यारह वाले ''बजरबट्टू को खरीदेगे वह भी ऑयल ऑफ ओले के प्रॉडक्ट मुफ्त मिलने के बाद!!!!

हमारे परम आदरणीय गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी,जिन्होंने जीआईसी नैनीताल के जमाने से लगातार हमारा मार्गदर्शन किया है और अब भी कर रहे हैं,जिन्होंने हमें शोषणविहीन वर्गविहीन समाज के लक्ष्य की दिशा दी और अग्निदीक्षित किया है,उन्होंने हमारे जाति उन्मूलन संवाद में हस्तक्षेप किया है।वे जाति आधारित आरक्षण के विकल्प बतौर आर्थिक आरक्षण की बात कर रहे हैं,लेकिन हमारे आकलन के हिसाब से तो मौजूदा राज्यतंत्र और मुक्त बाजार की अर्थव्यवस्था में लोककल्याणकारी राज्य के अवसान के बाद क्रयशक्ति वर्चस्व के जमाने में किसी भी तरह का आरक्षण उतना ही अप्रासंगिक है,जैसे सामाजिक क्षेत्र की योजनाएं या कारपोरेट उत्तदायित्व। जाति  उन्मूलन को बुनियादी एजंडा बनाये बगैर हम न वर्ग जाति वर्चस्व टल्ली लगाकर तोड़ सकते हैं और न पूंजी निर्देशित राज्यतंत्र को बदलने की कोई पहल कर सकते हैं।

हमने इस बहस की प्रस्तावना आपकी सहमकति असहमति के लिए फेसबुक पर डाला ही था कि हल्द्वानी से हमारे गुरुजी का फोन आ गया।


सीधे उ्नहोंने सावल दागा,पलाश ,बताओ,जाति उन्मूलन होगा कैसे।

हमने कहा कि हम अंबेडकर की परिकल्पना की बात कर रहे हैं और चाहते हैं कि अस्मिताओं के दायरे तोड़कर देश जोड़ने की कोई पहल हो।

गुरुजी ने कहा कि जाति तो टूट ही रही है।अंतर्जातीय विवाह खूब हो रहे हैं।

हमने कहा कि बंगाल में सबसे ज्यादा अंतर्जातीय विवाह होते हैं।ब्राह्मण कन्या की किसी से भी पारिवारिक सामाजिक सम्मति से शादी सामान्य बात है। लेकिन बंगाल में जाति सबसे ज्यादा मजबूत है जहां जाति कोई पूछता ही नहीं है।


बात तब भेदभाव पर चली।हमने गुरुजी को बताया कि बंगाल में अस्पृश्यता बाकी देश की तरह नहीं रही। लेकिन भेदभाव बाकी देश की तुलना में स्थाईभाव है।


गुरुजी ने कहा भेदभाव खत्म होना चाहिए।

मैंने जोड़ा,नस्ली भेदभाव।


उन्होंने कहा कि विकास से भेदभाव टूटेगा।

हमने कहा कि असली समस्या मुक्त बाजार की अर्थव्यवस्था है।पूंजीवादी विकास के तहत औद्योगीकरण होता तो उत्पादन प्रणाली जाति को तोड़ देती।लेकिन जाति उत्पादक श्रेणियों में है और अनुत्पादक श्रेणियां वर्ण हैं।श्रमजीवी कषि समाज को ही जाति व्यवस्था के तहत गुलाम बनाया गया है।अब कृषि और उत्पादन प्रणाली,उत्पादन व श्रम संबंधों को तहस नहस करने से क्रयशक्ति आधारित वर्चस्ववादी समाज से जातिवर्चस्व वर्ग वर्चस्व खत्म होने से तो रहा।

गुरुजी सहमत हुए।

बाद में हमने आनंद तेलतुंबड़े से भी विस्तार से बात की।

उनका मतामत लिखित रुप में प्रतीक्षित है।


फिलहाल हमारी दलील के पक्ष में ताजा खबर यह है कि बंगाल में जाति और भेदभाव खत्म होने के राजनैतिक बौद्धिक प्रगतिशील दावों के बावजूद 1947 से पहले के दलित मुस्लिम मोर्चा को पुनरुज्जीवित किया गया है। इसे संयोजक रज्जाक मोल्ला माकपा और किसान सभा के सबसे ज्यादा जुझारु नेता हैं,जिन्होंने वामदलों में दलित मुस्लिम नेतृत्व की मांग करते पार्ची में हाशिये पर आने के बाद सामाजिक न्याय मोर्चा का ऐलान किया हुआ है,जिसका घोषित फौरी लक्ष्य बंगाल में दलित मुख्यमंत्री और मुस्लिम उपमुख्यमंत्री है।


अब बंगाल में जाति की अनुपस्थिति पर अपनी राय जरुर दुरुस्त कर लें।माकपा ने तो रज्जाकबाबू को पार्टी से निस्कासित कर ही दिया है।


आर्थिक विकास की बात आर्थिक आरक्षण की तर्ज पर तमाम दलित चिंतक नेता मसीहा करते हैं।सशक्तिकरण का मतलब मुक्तबाजार की क्रयशक्ति से उनका तात्पर्य है। भारत सरकार चलाने वाले कारपोरेट तत्वों का सारो लब्वोलुआब वही है।


डा. अमर्त्य सेन तो खुले आम कहते हैं कि उनकी आस्था मु्क्त बाजार में है लेकिन उनका लक्ष्य सामाजिक न्याय है।


हमारे हिसाब से ये दलीलें पूरी तरह कारपोरेट राज के हक में है।


यह किश्त थोड़ी भारी हो रही है।इसलिए संवाद के दूसरे टुकड़े अगली किश्त में।फिलहाल बहस यही पर समेटते हैं।


अगली किस्त तक आपकी राय का इंतजार।


मालूम हो कि आज ही इकोनामिक टाइम्स की लीड खबर के मुताबिक भाजपा अनुसूचित सेल के संजय पासवान के हवाले से नई केशरिया सरकार के जाति एजंडे का खुलासा हुआ है।उदितराज जैसे दलितों के नेता बुद्धिजीवियों को साधने के बाद और फेंस पर खड़े दलितों पिछड़ों आदिवासियों अल्पसंख्यकों को अपने पक्ष में लाने के अभियान के साथ नमोमय भारत की सर्वोच्च प्राथमिकता आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था तोड़ने की है।मंडल के मुकाबले कमंडल यात्रा रामराज के लिए नहीं,संवैधानिक आरक्षण तोड़ने के लिए है और नमोमयभारत बनते ही यह लक्ष्य पूरा हो जायेगा।



बहुत से लोग आजकल सभा,गोष्ठियों और सेमिनारों में मार्क्स-लेनिन के चित्र लगाते हैं और फिर उन्ही कि आधारतभूत प्रस्थापनाओं पर कीचड उछालना शुरू कर देते हैं | यह लोग नयी पीढ़ी को अपनी गलत बातों से अधिक भ्रमित कर रहे हैं | और यह सब वो अपनी नयी वैचारिक महान खोजों का हवाला देते हुए करते हैं !असल में यह वही पुराने संशोधनवादी भेड़िये हैं जो नयी खाल ओढ़ कर आये हैं |



बुनियादी सवाल फिर वही है कि बाजार अर्थव्यवस्था और कारपोरेट राज में संवैधानिक आरक्षण जहां सिरे से अप्रासंगिक हो चुका है,वहां जाति को खत्म किये बिना वर्ग वर्चस्व को तोड़े बिना आप हाशिये पर खड़े बहुसंख्य बहिस्कृत  भारतीयों के हक हकूक बहाल किये बिना आर्थिक आरक्षण की बात करेंगे तो अस्मिताओं के महातिलिस्म से मुक्ति की राह खुलेगी कैसे।


गुरुजी ने लिखा हैः




मेरे बहुत से मित्र जाति उन्मूलन की बात करते हैं. मेरे विचार से किसी कानून के द्वारा जाति बोध को समाप्त नहीं किया जा सकता. जाति सामन्ती व्यवस्था में पनपती है और औद्योगिक विकास और शहरीकरण के साथ स्वत: क्षीण होती जाती है. लेकिन शर्त यह है कि सत्ता से जुड़े लोग इसे प्रश्रय न दें. जाति आधारित आरक्षण, जाति और सम्प्रदाय की सापेक्ष्य संख्या के आधार पर राजनीतिक द्लों द्वारा प्रत्यशियों का चयन, कुछ ऐसे तत्व हैं जो जाति बोध की समाप्ति में बाधक हैं. जब तक जाति आधारित आरक्षण की व्यवस्था रहेगी, जातिबोध समाप्त नहीं हो सकता. इसका तरीका एक ही है कि आरक्षण को जाति के स्थान पर आर्थिक आधार से जोड़ दिया जाय. लेकिन क्या हमारे राजनीतिक दल ऐसा करेंगे? यदि देश के सारे गरीब एक हो गये तो?.

यह भी सत्य है कि परिवार वाद ही आगे चलकर जातिवाद में विकसित होता है. और यह भारत में आज भी हो रहा प्रधानमंत्री का बेटा प्रधान मंत्री, मंत्री का बेटा मंत्री, सांसद का बेटा सांसद, नौकरशाह के बेटा नौकरशाह और प्रोफेसर का बेटा प्रोफेसर, प्रतिभा और कौशल, भारत से बाहर.

कृपया अपनी राय देने से पहले इकोनामिक टाइम्स की आज की यह लीडखबर भी पढ़ लेंः

BJP Bombshell: Quota may Go for 3rd Gen SCs

Sanjay Paswan fronting proposal for narrowing pool

RAKESH MOHAN CHATURVEDI NEW DELHI


BJP is "actively considering" a proposal that will mean a radical shift in the country's affirmative action policy – keeping third generation children of quota beneficiary families outside the ambit of reservations for government jobs and income ceilings for beneficiaries.


"The party has totally agreed in principle to have a re-look at the reservation policy for the Scheduled Castes," BJP scheduled caste morcha chief and former minister in NDA government Sanjay Paswan told ET.


"I can assure you that we will implement it if we are voted to power. This is not my personal view but the view of the party. We will also bring out a White Paper on what Dalits got in the last 60 years, how some Dalit communities benefited while others continue to be deprived," Paswan said

Senior BJP leaders who spoke to ET on the condition they not be identified said such a proposal was "under active consideration".


"One needs to think in terms of the individual and not his or her caste. Society should help the individual to come out of the reservation net. This is possible only when there is a regrouping of the Scheduled Caste list. Adopting the economy criteria can do this though I would not use the term creamy layer here," Paswan said.


He underscored the need for putting an income rider to remove Dalit families, which have an income of above Rs one lakh per month, from getting reservation in government jobs. A specific proposal is to remove the children whose both parents are Class II government employees or one parent is a Class I officer from the list of SC beneficiaries. Paswan gave his own example: "I am an engineer by profession and have been an MP. Why should my sons get reservation? Today Dalits should not be scared of debating this issue." While most leaders did not want to discuss this change on record, BJP spokesperson Sudhanshu Trivedi accepted the argument while advising caution.


H L Dusadh Dusadh बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बयान.


अांबेडकर की चेतावनी

हमारे युवा पत्रकार साथी ने इस सिलसिले में जो लिखा है,कृपया उस पर गौर करेंः


मैं पिछले कई दिनों से अांबेडकर के बारे में पढ़ रहा हूं। हालांकि अभी भी उनके बारे में मेरा अध्ययन जारी है। अभी तक उन्हें जितना पढ़ा अौर समझा, उससे मुझे महसूस हुअा कि उन्हें अारक्षण तक ही सीमित रखना हमारी सबसे बड़ी भूल है। हालांकि भारत में अन्य स्वतंतत्रा सेनानियों के मुकाबले उनकी सबसे ज्यादा अनदेखी की गई। जहां तक मेरी समझ है, अांबेडकर ने भारतीय समाज में व्याप्त मूलभूत समस्याअों पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया अौर चिंता जाहिर की है। संविधान सभा में दिए गए उनके भाषण को हाल ही मैं पढ़ा जिसमें उन्होंने हम सभी को भली भांति चेताते हुए कहा था कि अाज हम अाजाद हो गए हैं, लेकिन मेरी चिंता यह है कि हम कितने दिन इसे बरकरार रख पाएंगे। अांबेडकर ने एक जगह लिखा है- अाजादी से पहले हमलोग सारी समस्याअों के लिए अंग्रेजों को जिम्मेदार ठहरा देते थे, लेकिन अाजाद होने के बाद अब हमारी जिम्मेदारी होगी, चाहे वह भला हो या बुरा।


इसके बाद उनकी दूसरी सबसे बड़ी चिंता यह थी कि हमने संविधान में यह लागू कर दिया है कि राजनीति में एक वोट यानी सभी लोगों को बराबरी का अधिकार। लेकिन सामाजिक व अाथिक रूप से यह नहीं हो पाया है। अब यह भारतीय राजनीतिक दलों व नेताअों की जिम्मेदारी है कि इसे साकार करें। अगर ऐसा नहीं किया गया तो हमारे लोकतंत्र को इन वंचित लोगों से खतरा हो जाएगा। फिर ये सारी कवायद बेकार साबित हो जाएगी।


अाज अपने देश में जो कुछ हो रहा है, अांबेडकर के सपनों के विपरीत हो रहा है। सारे सामाजिक दायित्वों से सरकारे मुंह मोड़ती जा रही हैं। शिक्षा अौर स्वास्थ्य क्षेत्रों पर कोई गंभीर चिंतन नहीं हो रहा है। गरीबी अौर असमानता भी समाज में तेजी से बढ़ रही है। अगर समय रहते उनकी चिताअों पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए घातक साबित होगा।  




Can anyone enlighten me: "Jaati Unmoolan" kaise hoga? Saare chirkut log to Jaati ke hi naam par vote aur benefits maang rahe hain!



नई सरकार के जमाने में आरक्षण की बात रही दूर सरकारी कर्मचारियों की क्या शामत आने वाली है,हमारे आदरणीय जगदीश्वर चतुर्वेदी  जी के इस मंतव्य से उसका भी अंदाजा लगा लेंः

मोदी और ममता तो पीएम बनने के पहले ही एक्सपोज़ हो गए हैं !

दोनों के नेतृत्व में चल रही राज्य सरकारों ने कहा है कि वे सातवें पगार आयोग के गठन के ख़िलाफ़ हैं और कर्मचारियों की नियमानुसार पगार बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं ।

यानी कर्मचारी महँगाई से मरें इन दोनों नेताओं को कोई लेना देना नहीं है।

पे कमीशन कर्मचारियों का लोकतांत्रिक हक़ है और मोदी -ममता का इसका विरोध करना कर्मचारियों के लोकतांत्रिक हकों पर हमला है ।

इस पर अमर नाथ सिंह ने सवाल किया है,सर कृपया वह स्रोत भी बताएं जहाँ मोदी और ममता की सरकारों ने ये पुण्य विचार व्यक्त किये हैं।

जगदीश्वर चतुर्वेदी का जवाब,नेट पर अख़बार देखो, टाइम्स में छपी है ख़बर

फिर जगदीश्वर चतुर्वेदी का अगला मंतव्य हैः

नरेन्द्र मोदी ने जब पीएम कैम्पेन आरंभ किया था मैंने फ़ेसबुक पर लिखा था कि गुजरात दंगों के लिए भाजपा माफ़ी माँगेगी !

कल राजनाथ सिंह के बयान के आने के साथ यह प्रक्रिया आरंभ हो गयी है !निकट भविष्य में मोदी के द्वारा सीधे दो टूक बयान आ सकता है

गुजरात के दंगों पर माफ़ी माँगते हुए !!इंतज़ार करें वे मुसलमानों के नेताओं के बीच में हो सकता है यह बयान दें !

कारण साफ़ है पीएम की कुर्सी जो चाहेगी मोदी वह सब करेंगे!!

संघ परिवार को हर हालत में केन्द्र सरकार चाहिए इसके मोदी कुछ भी करेगा !!

झूठ बोलो भ्रमित करो। कुर्सी पाओ दमन करो ।

यह पुरानी फ़ासिस्ट प्रचार शैली है और मोदी इस कला में पारंगत हैं ।

फिर सुरेंद्र ग्रोवर जी का यह मिसाइल भी

विनोद कापड़ी िंडिया ने जिस तरह ‪#‎न्यूज़_एक्सप्रेस‬ पर‪#‎ऑपरेशन_प्राइम_मिनिस्टर‬ के ज़रिये ‪#‎सी_वोटर‬ को नग्न किया है, इसके लिए न्यूज़ एक्सप्रेस की टीम बधाई की पात्र है.. मगर एक बात समझ नहीं आ रही कि‪#‎मीडिया‬ इस पर पर चुप्पी क्यों साध गया.. अरे भाई, आप लोग उपेक्षा कर दोगे तो आप को जनता उपेक्षित कर देगी.. इससे यह भी ज़ाहिर हो रहा है कि चुप्पी साधे बैठा मीडिया बरसों से ‪#‎सर्वे‬ के नाम पर पूरे देश को मुर्ख बनाता चला आया.. कोई टीवी चैनल एग्जिट पोल के नाम पर किसी अवांछित को भावी प्रधानमंत्री बतौर पहली पसंद बताता रहा तो हर अखबार एक ही सर्वे को अपने अपने हिसाब से खुद को नम्बर वन साबित करता रहा.. जय हो..

Abhishek Srivastava

Yashwant Singh Pushkar Pushp Sanjay Tiwari Navin Kumar


(जनहित में)

Promoter of News Express channel that carried sting on opinion pollsters under government probe...

economictimes.indiatimes.com

News Express, the Hindi news channel that carried out what it said was a sting operation on opinion pollsters, is promoted by a group with a chequered record.

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S.r. Darapuri

दलित राजनीति अवसरवादिता, स्वार्थपरता अोर लम्पटता का शिकार

S.r. Darapuri

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  • You and Vikash Mogha like this.

  • Vikash Mogha अपने अपने आका की ताल सब ठोकते है लेकिन इस लेख में बेईमान लेखक मान्यवर काशीराम जी का जिक्र करना भूल गया सर

  • about an hour ago · Like

  • Vikash Mogha मूल लेख को मैंने पढ़ा है, पर किसी ने इसमें मेरे फेसबुक पोस्ट भी चुराकर थोक लिया है, सबको अवसर मिलना चाहिए। यहाँ लोकतंत्र है कोई राईट रिजर्व्ड नहीं है।

  • about an hour ago · Like

  • S.r. Darapuri हा बह भी जरुर करना चाहिए।

  • about an hour ago · Like · 1


Satya Narayan

फ़ासीवादी पार्टी में 'ड्यूस' के नाम पर शपथ ली जाती थी, जबकि हिटलर की नात्सी पार्टी में 'फ़्यूहरर' के नाम पर। संघ का 'एक चालक अनुवर्तित्व' जिसके अन्तर्गत हर सदस्य सरसंघचालक के प्रति पूर्ण कर्मठता और आदरभाव से हर आज्ञा का पालन करने की शपथ लेता है, उसी तानाशाही का प्रतिबिम्बन है जो संघियों ने अपने जर्मन और इतावली पिताओं से सीखी है। संघ 'कमाण्ड स्ट्रक्चर' यानी कि एक केन्द्रीय कार्यकारी मण्डल, जिसे स्वयं सरसंघचालक चुनता है, के ज़रिये काम करता है, जिसमें जनवाद की कोई गुंजाइश नहीं है। यही विचारधारा है जिसके अधीन गोलवलकर (जो संघ के सबसे पूजनीय सरसंघचालक थे) ने 1961 में राष्ट्रीय एकता परिषद् के प्रथम अधिवेशन को भेजे अपने सन्देश में भारत में संघीय ढाँचे (फेडरल स्ट्रक्चर) को समाप्त कर एकात्म शासन प्रणाली को लागू करने का आह्वान किया था। संघ मज़दूरों पर पूर्ण तानाशाही की विचारधारा में यक़ीन रखता है और हर प्रकार के मज़दूर असन्तोष के प्रति उसका नज़रिया दमन का होता है। यह अनायास नहीं है कि इटली और जर्मनी की ही तरह नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में मज़दूरों पर नंगे किस्म की तानाशाही लागू कर रखी है। अभी हड़ताल करने पर कानूनी प्रतिबन्ध तो नहीं है, लेकिन अनौपचारिक तौर पर प्रतिबन्ध जैसी ही स्थिति है; श्रम विभाग को लगभग समाप्त कर दिया गया है, और मोदी खुद बोलता है कि गुजरात में उसे श्रम विभाग की आवश्यकता नहीं है! ज़ाहिर है-मज़दूरों के लिए लाठियों-बन्दूकों से लैस पुलिस और सशस्त्र बल तो हैं ही! जर्मनी और इटली में भी इन्होंने पूँजीपति वर्ग की तानाशाही को सबसे बर्बर और नग्न रूप में लागू किया था और यहाँ भी उनकी तैयारी ऐसी ही है।

http://ahwanmag.com/archives/3394

सत्यनाराण जी से सहमत हैं हम

Satya Narayan बिल्‍कुल जीतेगा। ऐसे समय में जो नौजवान इस पूरी बात को समझते हैं, उन्‍हे अपनी जिम्‍मेदारी निभाते हुए व्‍यापक जनता के बीच इनका भण्‍डाफोड़ करना चाहिए। लोगों को संगठित करते हुए इस पूरी व्‍यवस्‍था को बदलने की लड़ाई लड़नी चाहिये। निश्चित रूप से अगर हम ऐसा करेंगे तभी कुछ बदला जा सकता है वरना हर पांच साल में किसी ना किसी रंग की पार्टी पर ठप्‍पा लगाते रहेंगे और ऐसे ही छले जाते रहेंगे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की असली जन्मकुण्डली

ahwanmag.com

संघ का सांगठनिक ढांचा भी मुसोलिनी और हिटलर की पार्टी से हूबहू मेल खाता है। इटली का फ़ासीवादी नेता मुसोलिनी जनतंत्र का कट्टर विरोधी था और तानाशाही में आस्था रखता था। मुसोलिनी के मुताबिक "एक व्यक्ति ...

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  • Kashyap Kishor Mishra "इस पूरी व्‍यवस्‍था को बदलने की लड़ाई लड़नी चाहिये" यह लड़ाई कैसे लड़ी जायेगी ?

Satya Narayan चुनावों से सिर्फ सरकारें बदलती हैं। घिस चुके और बदनाम हो चुके मुखौटे की जगह नया मुखौटा सामने आता है। देशी-विदेशी थैलीशाहों के हाथ जिस दल या गठबँधन की पीठ पर हों, वह सदन में बहुमत पाकर सरकार बनाता है और इसी बहुमत के बूते वह संसद से शासक वर्गों के हित में तरह-तरह के कानूनों और फ़ैसलों पर मंजूरी लेता है। इस प्रक्रिया में विपक्ष विरोध और बहिर्गमन आदि का नाटक करता है। संसद की भूमिका मात्र इतनी ही होती है। वह सिर्फ बहसबाज़ी का अड्डा है। शासक वर्ग के हित में जो कार्यपालिका राजकाज चलाती है, सरकार तो वास्तव में उसका एक गौण हिस्सा है। असली काम तो नौकरशाही का वह विराट ढाँचा करता है, जो दिल्ली से लेकर ब्लाक स्तर तक फ़ैला हुआ है। सरकारें आती जाती रहती हैं, नौकरशाही अपनी जगह बरकरार रहती है। इसके अलावा जनता के असन्तोष को दबाने और डण्डे का भय बनाये रखने के लिए पुलिस तंत्र है, अर्द्ध सैनिक बल हैं और विद्रोहों से निपटने के लिए फ़ौज है। यह राज्य सत्ता का प्रधान अंग है, जिसके बूते व्यापक मेहनतकश समुदाय पर पूँजीवादी तानाशाही को कायम रखा जाता है।

आम जनता के सजग, जागरूक हिस्से आज अपने अनुभव से ही इन चीजों को समझने लगे हैं, लेकिन उन्हें राज्यसत्ता के पूरे चरित्र को और पूँजीवादी जनवाद के सभी फ़रेबों-तिकड़मों को पूरी तरह समझना होगा तभी इसके सही क्रान्तिकारी विकल्प का निर्माण सम्भव हो सकेगा।


http://www.scribd.com/doc/209304344/Vikalp-Ka-Khaka


Palash Biswas

http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6/2014/02/25/how-traitor-modi

राष्ट्रवादी (!) संघ परिवार के प्रधानमंत्रित्व का चेहरा इतना राष्ट्रद्रोही !

hastakshep.com

इतना अनैतिक कैसे है नैतिकता की दुहाई देने वाला संघ परिवार संघ परिवार की राजनीति का मुख्य हथियार असंवैधानिक अमानवीय हिंसा सर्वस्व घृणा ही है पलाश विश्वास आदरणीय ईश मिश्र का जवाब आया है। उनका आभार। उन्होंने लिखा है- उदितराज अपने...

Like ·  · Share · about an hour ago

  • Amit Kumar Yadav wt a stupidty,jab tak kisi desh ka pm stronge nahi hota,tab tak desh secure nahi hota,fir se manmohan jaisa pm kisi keemat par nahi chahiye,if u want peace then u always ready for war,

  • about an hour ago · Like

  • Amit Kumar Yadav and china ko apne sari nabhour contry se problem hai,i think ye post kisi communist ne likhi hai

  • about an hour ago · Like

  • Rahul Yadav BHAIO MEIN BJP KI TARAF SE AAP SE NIVEDAN KARTA HU KI AAP MUJEH RAM MANDIR KE NAAM PR CHANDA DO....JO AAP LOG 1990 SE DETE AA RHE HO...AAGE BHI DO ....MEIN AAP KO VISWAAS DILATA HU KI HUM RAM MANDIR KA NIRMAN KRENGE LEKIN JAGAH AUR TIME KABHI NHI BTAYENGE.......... HEHEHEHEHE....JAI HO FEKU TEAM KI.....

  • Debapriya Sengupta shared Gunjan Singh's photo.

  • Selling a megalomaniac, small time goon of BJP as a dream 'king of country Gujarat' to loot the state coffer .. only possible for Ambani-Adani type crony capitalists..

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  • मीडिया का कमाल ... मोदी की कालिख को सॉफ करके दिखाने म...See More

  • मीडिया का कमाल ... मोदी की कालिख को सॉफ करके दिखाने में लगा है बिका हुआ मीडिया !!!

  • मोदी के 17 घोटाले...ये 17 घोटाले ऐसे हैं जिन पर मोदी लोकायुक्त की जाँच नहीं चाहते...राष्ट्रवाद का राग अलापने वाले मोदी ने भारतीय वायुसेना को सस्ती ज़मीन ना देकर एक रिअल स्टेट डीवेलपर को सस्ती ज़मीन दे दी...पढ़िए मोदी के 17 घोटाले और मोदी के राष्ट्रवाद का सच...

  • ✪Land for Nano plant at low rate

  • The state government allotted 1100 acres of land to Tata Motors Ltd (TML) to set up the Nano plant near Sanand. The land was allotted allegedly at Rs900 per square metre while its market rate was around Rs10,000 per square metre. Simply put, the government gave Tata Motors total monetary benefit of Rs33,000 crore.

  • ✪Land sold cheap to Adani Group

  • Land was allotted to Adani Group for the Mundra Port & Mundra Special Economic Zone (SEZ) at Re1 per square metre. This is grossly lower than the market rate.

  • ✪Cheap land for ind, not for airforce

  • The Gujarat government allotted 3,76,561 square metre of land to real estate developer K Raheja at Rs470 per square metre, while the South-West Air Command (SWAC) was asked to pay Rs1100 per square metre for 4,04,700 square metre land.

  • ✪Agricultuure University land allotted for hotel

  • State government allotted 65,000 square metres of land belonging to Navsari Agriculture University in Surat to Chatrala Indian Hotel Group for a hotel project despite objection from the institute. This deal was allegedly brokered by the chief minister through his office causing a loss of Rs426 crore.

  • ✪Border land for chemical firms

  • A huge plot of land near the Pakistan border was allotted to salt chemical companies said to be close to BJP leader Venkaiah Naidu.

  • ✪Essar Group's encroachment

  • State government has allotted 2.08 lakh square metres of land to Essar Steel. Part of the disputed land is CRZ and forest land that cannot be allotted as per Supreme Court guidelines.

  • ✪Land given to Bharat Hotel

  • Prime land was allotted to Bharat Hotels without auction on Sarkhej-Gandhinagar Highway in Ahmedabad. The company has been allotted 25,724 square metre land.

  • ✪Corruption in allotment of lakes

  • State government, in 2008, awarded contracts for fishing activities in 38 lakes without inviting any tenders; bidders were ready to pay Rs25 lakh per lake.

  • ✪Land given to L&T

  • Larson & Toubro (L&T) was allotted 80 hectare land at Hazira at the rate of Re1 per square metre.

  • ✪Land allotted to other industries

  • Instead of auctioning prime land in the major cities of the state, the Gujarat government had allotted the land to some industries and industrialists who had signed MoUs in the five editions of VGGIS.

  • ✪Cattle feed fraud

  • The Gujarat government had purchased cattle feed from a blacklisted company at Rs240 per 5 kg whereas the market rate is just Rs120 to Rs140 per 5 kg.

  • ✪Scam in Anganwadi centres

  • Two bidders apparently formed a cartel and bid for supplying supplementary Nutrition Extruded Fortified Blended Food (EFBF) to Anganwadi centres of the state. One company bid for three zones, while the other for only two. Guidelines were violated, causing the state exchequer a loss of Rs92 crore.

  • ✪GSPC

  • Despite an investment of Rs4933.50 crore, GSPC has been able to earn only Rs290 crore from the 13 out of 51 blocks of oil and gas discovered by the company. Contractual relations of Geo-Global and GSPC deserve investigation since Geo-Global is to be hired for a higher fee, above profit-sharing.

  • ✪Luxury aircraft used by CM

  • Instead of using commercial flights or state-owned aircraft and helicopter, chief minister Narendra Modi had used private luxury aircraft for around 200 trips in five years. The cost had been borne by the beneficiary industries.

  • ✪Rs500 crore SSY scam

  • The Rs6237.33 crore Sujalam Sufalam Yojana (SSY) announced in 2003 was to be completed by 2005 but it is still not completed. Public accounts committee of Gujarat assembly unanimously prepared a report indicating a scam of over Rs500 crore which was not tabled.

  • ✪Indigold Refinery land scam

  • Around 36.25 acre farmland in Kutch district was purchased and sold in violation of all norms by Indigold Refinery Ltd.

  • ✪Swan Energy

  • 49% of the shares of Pipavav Power Station of GSPC were sold to Swan Energy without inviting any tenders.

  • हम भारतीय जनता पार्टी में क्यों शामिल हुए?

  • यदि दलित-आदिवासी भाजपा का साथ दें, तो केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने से कोई रोक नहीं सकता. अगले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बनते हैं तो दलितों-आदिवासियों को भागीदारी ही नहीं मिलेगी, बल्कि एक खुशहाल और शक्तिशाली राष्ट्र के निर्माण की शुरूआत होगी...

  • उदित राज

  • राजनाथ सिंह एवं नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में निरंतर प्रगति कर रही भाजपा में दलित-आदिवासियों की भागीदारी एवं खुशहाल व शक्तिशाली राष्ट्र के निर्माण के लिए आज मैं कुछ प्रमुख साथियों के साथ शामिल हुआ.udit-raj-join-bjpआजादी के बाद देश में शासन-प्रशासन की बागडोर अधिकतर समय कांग्रेस के ही हाथ में थी. आजादी के 66 वर्ष बीत गए दलित-आदिवासी की प्रगति में खास परिवर्तन नहीं हुआ. आरक्षण यदि सरकारी नौकरियों एवं जनप्रतिनिधित्व में नहीं होता, तो हम आज भी वहीं खड़े होते जब देश आजाद हुआ था. आज भी इनकी भागीदारी व्यापार, पूंजी, उच्च शिक्षा, मीडिया, उच्च न्याय पालिका, कला एवं संस्कृति, निर्माण, टेलीकाॅम, विभिन्न प्रकार की सेवाएं, सप्लाई, ठेका, आयात-निर्यात, आई.टी. आदि में शून्य के बराबर है. क्या बिना दलित भागीदारी के खुशहाल और अखण्ड भारत का निर्माण किया जा सकता है?

  • वर्तमान यूपीए सरकार के लगभग 10 साल के शासन में एक भी ऐसी उपलब्धि नहीं है, जो कहा जा सके कि दलितों व आदिवासियों की गिरती हुई हालत को सुधारने में सहयोगी हो. संसद में आरक्षण कानून बनाने के लिए 2004 से विधेयक लंबित है, जो अभी तक पास नहीं किया जा सका. पदोन्नति मेें आरक्षण देने के लिए राज्य सभा से तो बिल पास हो गया है, लेकिन लोकसभा से न हो सका.

  • इस सत्र में यह भी आश्वासन दिया गया था कि स्पेशल कंपोनेंट और ट्राइबल सब-प्लान को लागू करने के लिए संसद में कानून बनेगा, लेकिन वह भी न हो सका. 2004 में न्यूनतम साझा कार्यक्रम में निजी क्षेत्र में आरक्षण देने के लिए यूपीए सरकार ने वायदा किया था, लेकिन समितियों की बैठकों तक ही सीमित रह गया.

  • बहुजन समाज पार्टी का जब उत्थान हुआ, तो उसी समय नई आर्थिक नीति देश में लागू हुई और जिसके कारण भूमण्डलीकरण, उदारीकरण व निजीकरण बढ़ा. निजीकरण के कारण नौकरियां लगातार घटीं. तब बसपा या दलित नेतृत्व के उभार का क्या लाभ? लाभ तो तब होता, जब या तो निजीकरण रूक पाता या उसमें भागीदारी सुनिश्चित होती. ऐसे में बहुजन समाज पार्टी के अस्तित्व का हमें क्या फायदा?

  • अनुसूचित जातिध्जन जाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ के तत्वावधान में वर्ष 1997 से संघर्ष जारी किया कि पांच आरक्षण विरोधी आदेश वापिस किए जाएं. ज्ञात रहे कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, भारत सरकार, द्वारा ये आदेश उस समय जारी हुए थे, जब केन्द्र में सामाजिक न्याय की सरकार थी. उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार आयी. हमारा संघर्ष आरक्षण विरोधी आदेशों को वापिस कराने का जारी रहा और वाजपेयी जी की सरकार ने 81वां, 82वां एवं 85वां संवैधानिक संशोधन किया और तब जाकर छीने गए आरक्षण के लाभ को बहाल कराया जा सका.

  • राजनाथ सिंह एवं नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी न केवल पहले की मांगें पूरी करेगी, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में भागीदारी का युग शुरू होगा. हम दलित-आदिवासी एवं अति पिछड़े समाज से विशेष रूप से आग्रह करते हैं कि दुष्प्रचार में न आएं कि भाजपा उनकी विरोधी है, बल्कि अब समय आ गया है कि सही निर्णय लें और पूरी ताकत से समर्थन देकर केन्द्र में आगामी सरकार बनवाएं.

  • भारतीय जनता पार्टी अखण्ड और शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण चाहती है और वह तभी संभव है जब हमारा सहयोग उसे मिले. सहयोग मिलता है तो सरकार बनती है, तभी हमें विभिन्न क्षेत्र जो उपरोक्त में उल्लेखित हैं, भागीदारी मिलेगी. अफसोस होता है कि हमारा विशाल देश आतंकवादी गतिविधियों का स्थल बन गया है. पाकिस्तान से हिन्दू भगाए जा रहे हैं, जो यहां आकर शरण ले रहे हैं और बांग्ला देश से सीमा पार करके मुसलमान भारत में घुसपैठ कर रहे हैं. चीनी घुसपैठ भी देश के लिए बड़ी समस्या है.

  • यदि दलित-आदिवासी भाजपा का साथ दें, तो केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने से कोई रोक नहीं सकता. अगले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बनते हैं, तो दलितों-आदिवासियों को भागीदारी ही नहीं मिलेगी बल्कि एक खुशहाल और शक्तिशाली राष्ट्र के निर्माण की शुरूआत होगी.

  • (उदित राज हाल ही में भाजपा में शामिल हुए हैं.)



  • दलित आर्थिक अधिकार यात्रा : अनुसूचित जाति उपयोजना को लागू करों !

    उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के चार ब्लाकों में दलित अधिकार आंदोलन तथा नेशनल कैम्पेन ऑन दलित ह्यूमन राइट के बैनर तले अनुसूचित जाति उपयोजना (SCSP) के क्रियान्वयन हेतु 15 से 25 फरवरी, 2014 तक दलित आर्थिक अधिकार यात्रा निकाली गई। दलित आर्थिक अधिकार यात्रा ने 10 दिनों में 150 गाँवों से गुजरते हुए पांच हजार लोगों से संवाद कायम किये गये. यात्रा के अंतिम दिन 25 फरवरी को जौनपुर के कलेक्ट्रेट परिसर में सभा का आयोजन किया गया. ग्रामीणों ने जिला भवन के सामने अनुसूचित जाति उपयोजना (SCSP) के क्रियान्वयन में लापरवाही, समाजकर्मियों को प्रताडित करने और आदिवासी भूमि पर जबरन कब्जा करने के खिलाफ नारे लगाए और जौनपुर के अतिरिक्त जिलाधिकारी ने भवन के मुख्या द्वार पर आकार प्रदर्शनारत ग्रामीणों से ज्ञापन लिया, जिसे उनकी उपस्थिति में पढकर सबके सामने सुनाया गया. पेश है राजेश सिंह की रिपोर्ट;


    Tahir Khan
    2002 के गुजरात दंगो के लिये हम मुसलमानो से माफी मांगने को तैयार है -राजनाथ सिंह
    .
    गौर से सुनिये साहब गुजरात मे मुसलमानो की दर्द भरी खामोशी वो न्याय मांगती है
    गौर से देखिये गुजरात मे लोकतंत्र की छटपटाहट वो आजादी माँगता है
    2002 से अब तक मोदी ने लगातार राज धर्म का इनकाऊंटर किया है वह इंसाफ चाहता है
    12 बर्ष लगे है आपको गुजरात मे अपनी गलती स्वीकारने मे अगर यह दिल से है तो बात न्याय की किजीये आपको मुसलमानो के खिलाफ फेक इतिहास बन्द करना होगा हिन्दू मुस्लिम के बीच नफरत फैलाने बाले तोगड़िया जैसे लोगो से समबन्द बिच्छेद करके उन्हे जेल भेजिये
    नही तो आप समझते हो कि जिस मुस्लिम टोपी से मोदी नफरत करते है उस टोपी को पहनने बाले चन्द मुस्लिम को खरीदकर आप पूरी मुस्लिम कौम को गुमराह कर अपने सपनो को पूरा कर सकते हो तो यह असम्भब है2002 के गुजरात दंगो के लिये हम मुसलमानो से माफी मांगने को तैयार है -राजनाथ सिंह . गौर से सुनिये साहब गुजरात मे मुसलमानो की दर्द भरी खामोशी वो न्याय मांगती है गौर से देखिये गुजरात मे लोकतंत्र की छटपटाहट वो आजादी माँगता है 2002 से अब तक मोदी ने लगातार राज धर्म का इनकाऊंटर किया है वह इंसाफ चाहता है 12 बर्ष लगे है आपको गुजरात मे अपनी गलती स्वीकारने मे अगर यह दिल से है तो बात न्याय की किजीये आपको मुसलमानो के खिलाफ फेक इतिहास बन्द करना होगा हिन्दू मुस्लिम के बीच नफरत फैलाने बाले तोगड़िया जैसे लोगो से समबन्द बिच्छेद करके उन्हे जेल भेजिये नही तो आप समझते हो कि जिस मुस्लिम टोपी से मोदी नफरत करते है उस टोपी को पहनने बाले चन्द मुस्लिम को खरीदकर आप पूरी मुस्लिम कौम को गुमराह कर अपने सपनो को पूरा कर  सकते हो तो यह असम्भब है


    जनज्वार डॉटकॉम

    दलितों के इक्कीस फीसद वोट हैं, तो आदिवासियों के सात फीसद. सवर्ण महज आठ फीसद हैं. बाकी आबादी शूद्रों की है. अगर जोगेंद्र नाथ मंडल या गुरुचांद ठाकुर जैसा करिश्माई नेतृत्व मिल गया और फजलुल हक जैसे धाकड़ मुसलमान नेता पैदा हो गये तो न केवल बंगाल, बल्कि पूरे देश में सत्ता समीकरण उलट जाने का अंदेशा है...http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/4811-chunav-2014-modi-vs-mamta-for-janjwar-by-vishvashदलितों के इक्कीस फीसद वोट हैं, तो आदिवासियों के सात फीसद. सवर्ण महज आठ फीसद हैं. बाकी आबादी शूद्रों की है. अगर जोगेंद्र नाथ मंडल या गुरुचांद ठाकुर जैसा करिश्माई नेतृत्व मिल गया और फजलुल हक जैसे धाकड़ मुसलमान नेता पैदा हो गये तो न केवल बंगाल, बल्कि पूरे देश में सत्ता समीकरण उलट जाने का अंदेशा है...http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/4811-chunav-2014-modi-vs-mamta-for-janjwar-by-vishvash

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    जनज्वार डॉटकॉम

    पीडीएस लाचार, बीमार, वृद्ध और कुपोषितों का पोषण करने के बजाय भारत सरकार के खाद्य मंत्रालय से लेकर गाँव के पीडीएस डीलर तक को भ्रष्टाचार करने का सुअवसर प्रदान कर रहा है। यह योजना जनता को पेट भरने के लिए उद्यम करने के बजाय काहिल बने रहने के लिए प्रेरित कर रही है. नहीं तो, गाँव में गरीबी होने के बावजूद किसी काम के लिए मजदूरों की कमी नहीं होती...http://www.janjwar.com/society/1-society/4813-garibon-ko-nikmma-bamane-kee-sajish-to-nahi-pds-for-janjwar-by-dhannjay-kumar


    Abhishek Srivastava

    मस्‍त...!!! कांग्रेसी सब बहुत खुराफ़ाती हैं भाई। निकालो कोई केस उदित राज के खिलाफ़ भी... ।

    CBI may question Ram Vilas Paswan in Bokaro Steel Plant recruitment scam

    ndtv.com

    The Central Bureau of Investigation (CBI) may question Ram Vilas Paswan in connection with a recruitment scam at the Bokaro Steel Plant when he was Steel Minister five years ago.


    पीडीएस लाचार, बीमार, वृद्ध और कुपोषितों का पोषण करने के बजाय भारत सरकार के खाद्य मंत्रालय से लेकर गाँव के पीडीएस डीलर तक को भ्रष्टाचार करने का सुअवसर प्रदान कर रहा है। यह योजना जनता को पेट भरने के लिए उद्यम करने के बजाय काहिल बने रहने के लिए प्रेरित कर रही है. नहीं तो, गाँव में गरीबी होने के बावजूद किसी काम के लिए मजदूरों की कमी नहीं होती...http://www.janjwar.com/society/1-society/4813-garibon-ko-nikmma-bamane-kee-sajish-to-nahi-pds-for-janjwar-by-dhannjay-kumar
    जनज्वार डॉटकॉम

    बे-लगाम माफिया के हौसले इतने बुलंद हैं कि नदियों से लेकर वन क्षेत्र, श्मशान, चारागाह, सड़कों-स्कूलों के समीप व हाईटेंशन लाइनों के नीचे भी लम्बे अर्से से अवैध खनन को अंजाम देकर धरती का सीना छलनी करने के साथ ही वे उच्चतम न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करने से भी बाज नहीं आ रहे हैं...http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/4814-sashan-prashasan-kee-chhanv-tale-paanv-pasarate-khann-mafiiya-for-janjwar-by-jagdish-soniबे-लगाम माफिया के हौसले इतने बुलंद हैं कि नदियों से लेकर वन क्षेत्र, श्मशान, चारागाह, सड़कों-स्कूलों के समीप व हाईटेंशन लाइनों के नीचे भी लम्बे अर्से से अवैध खनन को अंजाम देकर धरती का सीना छलनी करने के साथ ही वे उच्चतम न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करने से भी बाज नहीं आ रहे हैं...http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/4814-sashan-prashasan-kee-chhanv-tale-paanv-pasarate-khann-mafiiya-for-janjwar-by-jagdish-soni


    Vidya Bhushan Rawat

    The things are getting clearer for the 2014 general elections. Sangh propaganda and committed cadres are working over time. They are spread everywhere. Money is not an issue actually how to spend that seems to be the real issues. The organisation which we all call fascist is actually most democratic and discuss issues threadbare. The political movements of 'social justice' is in complete denial and has not gone beyond their caste identities. The biggest weakness of the 'movements' after 1980s was too much focus on leaders and people were used to 'strengthen' leaders. We wanted a decentralised leadership but they wanted 'Hanumans' who can shout 'murdabad' and 'jindabaad'. Frankly speaking, the flag of Ambedkarism was kept flying by the numerous unknown activists, committed people without getting any political mileage. They worked tirelessly. Just want to say one thing here. Please allow these politicians to do things what they want to do. Don't hand over the social cultural movements to them. Don't become their Hanumans. It is time to question. It is time to believe in yourself. It is time that people start developing their own strategies and not follow the so called leaders. One request, all those fighting their battle socially and culturally must do so and not succumb to the politics of identity which is the best weapon today for Sangh Parivar. It is they who have become the champions of social engineering. The crude reality is that Ambedkarism is death-knell to brahmanical order in all senses. It is also time when those who claim to believe in the Ambedkarite movements must not confine themselves to sarkari patronage but increase their outreach with like minded groups, ideologies, people and communities. No need to feel helpless. A 20 crore people can not remain helpless because their politicians are using 'pragmatic' approach and outsmarting each other in surrendering to the Sangh Parivar. Cheer up people, the battle against brahmanism will get clearer and you will have open case now. Nobody is a born Ambedkarite. It is an ideology you have to attain it with your efforts, with your commitments. Remember Ambedkar's immortal statement,' Hindu Rastra will be a calamity for the nation.

    Ram Puniyani

    Liberal Hinduism versus Sectarian Hindutva


    Ram Puniyani


    Banning or attacking the books in current times has been aplenty. There have been many reasons given for this intolerant attitude by different social-political groups. The cases of Satanic Verses by Salman Rushdie, Taslima Nasreen's Lajja, book on Sonia Gandhi Red Saree, A.K. Ramanujan's Three Hundred Ramayans are some of the major examples. There is a tight rope walk between freedom of expression and hurting 'others' sensibilities, which keeps fluctuating for same political groups. Those from Hindu right will talk of freedom of expression for Salman Rushdie or Taslima Nasreen, while the Muslim fundamentalists will talk of 'Hurting religious sensibilities at the same time. In case of 'The Hindus an Alternative History' by Wendy Donigar or 'Three Hundred Ramayanas' the same Hindu right will assert the religious sensibility argument to get the uncomfortable things banished away. The overall victim of this intolerant attitude is freedom of expression and it also shows the ascendance of 'Taliban' elements in the social political sphere.


    The 'out of court settlement' reached by Penguin to pulp its stock of 'The Hindus-an alternative History' is a very condemnable move from one of the most powerful publishers, who could have taken the matters further to the highest legal battles and preserved the right of a scholar to disseminate her views, and the right of readers to have access to it. It is in the fitness of things that well known Penguin authors Jyotirmaya Sharma and Siddharth Varadrajan have written to Penguin to pulp their books and cancel their agreements. The case against The Hindus… was filed by one Dinanath Batra of Shiksha Bachao Andolan Samiti (SBAS). In his petition to the court, the book is described as "shallow, distorted...a haphazard presentation riddled with heresies and factual inaccuracies", and …that Doniger herself is driven by a "Christian Missionary Zeal and hidden agenda to denigrate Hindus and show their religion in poor light". Interestingly Doniger is no Christian, she is Jewish. In her preface she writes "Part of my agenda in writing an alternative history is to show how much the groups that conventional wisdom says were oppressed and silenced and played no part in the development of the tradition—women, Pariahs (oppressed castes, sometimes called Untouchables)—did actually contribute to Hinduism…to tell a story of Hinduism that's been suppressed and was increasingly hard to find in the media and textbooks…It's not about philosophy, it's not about meditation, it's about stories, about animals and untouchables and women. It's the way that Hinduism has dealt with pluralism."

    The two central aspects of the book are, one a presentation of the matters related to sex, which has become a taboo for the self proclaimed custodians of Hinduism. One knows the great creations like Khajuraho and Konark and the depiction of matters related to sex, that's how it was looked at as and that's how it prevails in society, before the Victorian prudishness took over. One recalls the classic of Kalidas; 'Kumar Sambhav', canto 8, which gives the erotic episode of Shankar and Parvati. And same way Adi Shankaracharya's, Saundarya Lahiri, which gives graphic descriptions of the goddess, sholaka 78-79 being two examples.

    As far as attack on Doniger's book is concerned it is part of the long sequence of the agenda of SBAS and the other RSS affiliates like VHP, Bajrang Dal etc, who became more assertive after the decade of 1980s. This is also the period when the touchiness about religious sensibilities and suppression of the freedom of expression became a phenomenon of regular occurrence. It is interesting to note that the paintings of M.F. Husain drawn in the decades of 1960s and 1970s came under attack much later, during the 1980s with the rise of the aggressive presence of politics, which began around the Ram Temple issue.


    Batra, who filed the suit, is the head of the Vidya Bharati's Akhil Bharatiya Shiksha Sansthan, the educational arm of the Rashtriya Swayamsevak Sangh, the patriarch of the Hindu right. The earlier major book under its attack was A.K. Ramanujan's classic essay 'Three Hundred Ramayanas', which was part of the syllabus in Delhi University. This essay shows the wide prevalence of diverse telling of story of Lord Ram. These diverse versions are not in conformity with the version of Ram story which gels with the Ram Temple campaign. Even before the attack on this book, the RSS supporters had attacked an exhibition of many tellings of Ram story by Sahmat. In a similar vein RSS's political wing BJP's political and ideological partner Shiv Sena in Maharashtra had opposed the publication of the book 'Riddles of Ram and Krishna' as in this book Ambedkar, apart from other things, says that he will not regard Ram Krishna as Gods and nor will worship them.


    Doniger has been a Professor at School of Oriental and African Studies in University of London. She has two doctorates in Sanskrit and Indian studies and has written several works of scholarship on Hinduism. She says that Sanskrit and vernacular sources are rich in knowledge of compassion for deprived sections of society, women and pariahs as well. An example of this is in order, she is critical of Manu smiriti as it denigrates the women, at the same time she appreciates the sensitivity with which Vatsayanan's Kam Sutra deals with women.


    The tirade of SBAS and other RSS progeny against differing versions of Hinduism, and iconography is a part of its political agenda. It harps on the Brahamanical version of Hinduism bypassing and undermining the other Hindu traditions, Nath, Tantra, Bhakti, Shaiva, Siddha etc. The construction of RSS brand of Hinduism is a part of its Hindutva project, which took place during colonial period. Hindutva is the political ideology of this supra political organization, RSS. Hindutva picks up its version of Hinduism from the elaboration of European Orientalist interpretation of Hindu traditions. Orientalist scholars were in tune with the monotheistic worldview and that was reflected in their reading of Hinduism. In their rendering Hinduism got straight jacketed into monotheistic, monistic one and this puritan monolithic notion of Hinduism came to be presented as the Hinduism. The Colonial powers' monotheistic worldview could not fathom the diverse richness of Hinduism's philosophical, spiritual, religious and aesthetic expressions. Their understanding of religion revolves around a single Prophet. Hinduism as a religion as such is a conglomeration of multiple traditions which were prevalent here. Brahmanism was just one of them. During the colonial period by selectively projecting Brahmanical texts and values as Hinduism, the Orientalist scholars and British rulers gave legitimacy to caste and gender based Brahiminical tendency as 'The Hinduism'. Brahmanism started becoming projected as the Hinduism. It is due to this that Ambedkar went on to say that 'Hinduism is Brahmanic theology'. He was criticizing the social inequality prevalent in the name of Hinduism. Opposed to Brahmanical stream was the Shramnanic traditions of Hinduism, which by that time were out of the horizon of scholarship of Westerners and the British policy makers. In due course the declining sections of Hindu Landlords and upper caste resorted to the politics of Hindutva, which in the name of glorious Hindu traditions wanted to uphold the status quo of caste and gender, wanted to retain its hegemony in social and economic sphere. The freedom movement and its leader Gandhi's Hinduism was away from this Brahmanical-Hindutva stream. It was more in continuation with liberal Hindu belonging to Shramanic tradition. It is the Hinduism with which the large sections of Hindus could identify.


    Hindu Mahasabha and RSS brand of Hindutva was a marginal phenomenon as it was elite Brahamnical and harped on the values which were at deeper level undermining the status and dignity of women and dalits. That's how RSS and the elite supporting them kept aloof from the social changes of caste and gender during this period, and stuck to their agenda of Hindu nation based on their own sectarian interpretation of Hinduism. The RSS, in pursuance of its agenda floated SBAS, which was the one which was instrumental in communalization of the history text books during the NDA regime, led by BJP-Atal Bihari Vajpayee. The same organization is the one which is at the back of the multitude of educational endeavors and promotes the divisive-sectarian history through many Sarswati Shishu Mandirs, Ekal Vidyalayas amongst others. So, for them Doniger's book is a red rag as it talks of rich diverse traditions of the people and is not prude enough to suppress the narrations related to sex. Doniger talks of liberal Hinduism while RSS wants sectarian Hindutva imposed on the society. The struggle between liberal Hinduism and sectarian Hindutva is in full flow around the debate on this book.

    Pramod Ranjan

    Kanwal Bharti जी ने कल अपने वॉल पर मेरे बारे में एक बेहूदा टिप्‍पणी की थी। मैंने उनके वॉल पर ही उसका उत्‍तर दिया तो वे चुप्‍पी साध गये। अगर मेरे उत्‍तर के बाद उन्‍हें लगता कि उन्‍होंने जो लिखा वह गलत था, तो वे इसे स्‍वीकार करते और माफी मांगते। लेकिन उनकी कुंठा, उन्‍हें ऐसा नहीं करने देगी। बहरहाल, कोई और होता तो मुझे स्‍पष्‍टीकरण देने की आवश्‍यकता न पडती लेकिन कंवल भारती एक लेखक रहे हैं, इसलिए मेरे लिए उनकी बातों का उत्‍तर देना आवश्‍यक हो गया है, ताकि कम से कम सनद रहे।


    प्रिय कंवल भारती जी, आपकी टिप्‍पणी को कई बार पढा। आपकी तरह आवेश में मैं भी कुछ कह सकता था। लेकिन, इस तरह की मूर्खता मैं अपने लिए श्रेयकर नहीं समझता। सिर्फ आपकी बातों का उत्‍तर दे रहा हूं।


    1. आपका कांग्रेस में जाना मेरी आंखों में नहीं चुभ रहा है। अपने मोतियाबिंद का इलाज करवाएं।


    2. भाजपा समर्थक जैसा बेहूदा आरोप लगा कर आप क्‍या साबित करना चाहते हैं? यानी, आपको लगता है कि जो कांग्रेस में नही है, वह भाजपायी है। आपकी बुद्धि को क्‍या हो गया है?


    3. आपने फारवर्ड का कथित तौर पर वहिष्‍कार इसलिए किया था क्‍योंकि आपका एक लेख मैंने छापने से इंकार कर दिया था तथा दूसरे के बारे कहा था कि छपने में देर हो सकती है। राजनेताओं को जब टिकट नहीं मिलता या कुर्सी छीन जी जाती है कि वे कहते हैं कि 'जाति' का अपमान हो गया। इसी तरह, आपने आरोप लगाये कि फारवर्ड प्रेस दलितों की नहीं, ओबीसी की पत्रिका है और भाजपा के हाथों बिक गयी है। इसी कारण, दलित होने के कारण आपको प्रकाशित नहीं कर रही है। उस समय यही सब आपने खुद को एक प्रतिबद्ध एक आम्‍बेडकरवादी मार्क्‍सस्टि जतलाते हुए फेसबुक पर लिखा था। उसके एक महीने बाद आप कांग्रेस मे शामिल हो गये।


    4. फारवर्ड प्रेस क्‍या - आप 'हंस' समेत लगभग 10 साहित्‍यक-वैचारिक पत्रिकाओं का पहले भी वहिष्‍कार कर चुके हैं। जिस भी पत्रिका के बारे में आपको लगता है कि वह आपको पर्याप्‍त भाव नहीं दे रही, उस पर आप कोई न कोई आरोप मढ कर वहिष्‍कार कर देते रहे हैं।


    5 . महोदय, आप नाखून कटवाकर शहीद कहलाने का शौक पालने वालों में से हैं।


    6. मेरे द्वारा कंवल भारती और उदित राज की तुलना करने में कोई निंदा का भाव नहीं था। वैसे आप बताएंगे कि उदित राज और कंवल भारती की राजनीति में कौन सा मौलिक अंतर है? प्रेमकुमार मणि के नाम को इस बहस में घसीट कर आपने इसे और नीचे लाने की कोशिश की है। उसका उत्‍तर मैं आपके वॉल पर दे चुका हूं।


    7 . खानदानी कांग्रेसी महोदय, हमारे मन में आपके लिए सम्‍मान आम्‍बेडकरवादी लेखक होने के कारण रहा है, न कि कांग्रेस या किसी भी पार्टी में जाने के कारण। कम से कम अभी राजनीति में आपकी औकात एक चिरकुट छुटभैये नेता से ज्‍यादा नहीं है। कौन आपको एमपी/एमएलए बना रहा है, जिसकी दुहाई आप दे रहे हैं?


    8. वैसे भी, मैं आपके आलोचकीय विवेक का कभी कायल नहीं रहा। आप चिरकुट टाइप के चापलूस लोगों में से रहे हैं, जिसने उदभ्रांत जैसे कवि के कथित महाकाव्‍य 'त्रेता युग' पर सिर्फ इसलिए एक मोटी किताब लिखी क्‍योंकि वे दूरदर्शन के बडे पद पर थे। उद्भ्रांत जी प्‍यारे व्‍यक्ति हो सकते हैं लेकिन आपको उन्‍हें इस सदी का महान कवि साबित करते हुए शर्म नहीं आयी?


    9. मैंने अपने व्‍यक्तिगत अनुभव से यह भी देखा है कि आप निहायत ही कुंठाजन्‍य आवेग में व्‍यक्तिगत स्‍तर पर चीजों को देखते और समझते हैं।


    10 . आप उद्भ्रांत जैसों को ही सर्टिफिकेट बांटते रहें। मुझे आपके प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है।


    -प्रमोद रंजन

    Unlike ·  · Share · 19 hours ago near New Delhi · Edited ·

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    • Madan Lal Azad ranjan saab vah post maine bhee padhi thi. aapne to sach lkha tha lekin kahate n chor ki dadhi mr tinaka. usame aisa kuchh bhee nahi tha jo kanwal ji ya udit ji ke khilaf ho apitu bahin ji ke samarthako ka lagane wali baat thi vah. khair jo bhi hai. ham apana star banaye rakhe aapas me ek doosare ko neecha dikhana thik nahi .

    • 6 hours ago · Like · 1

    • Dharmendra Kumar Please do not waste ur time on kanal bharti any more.

    • 5 hours ago · Like · 1

    • Madan Lal Azad क्यो करता हूँ मै मोदी या किसी अन्य नेता का विरोध.....

    • मित्रों मेरा किसी से कोई द्वेष भाव या पूर्वाग्रह नही है. सैद्धांतिक तौर पर मै मोदी या अन्य ऐसे ही किसी भी नेता को जो 50 साल से अधिक उम्र का हो या अविवाहित हो किसी भी राजकीय पद पर baithaaye जाने के स...See More

    • 4 hours ago · Like · 3

    • Firoz Mansuri Bhai Pramod Ranjan ji mai v pahle anjane me aise bahujan lekhak ka bara samman karta tha magar jab ashraf Muslim Azam khan se mukadma FIR parkaran huwa to janab ne bokhlahat me ham bahusankhayak bahujan muslim ko v nahi bakhsa jab maine bare adab se k...See More

    • 4 hours ago · Like · 2

    Vidya Bhushan Rawat

    Lalu is superb. Only Lalu can give Modi, Arnab, Prabhu Chawala run for their knowledge and money.. Long live Lalu yadav.

    Unlike ·  · Share · 5 hours ago ·

    Lalajee Nirmal

    अम्बेडकर महासभा ने एक सामाजिक संगठन के रूप में दलितों पिछडो के लिए उत्तर प्रदेश में कई बड़े निर्णय कराये |मंडल आयोग की संस्तुति ,दलितों,पिछडो के लिए आरक्षण अधिनियम ,उच्च शिक्षा में पिछड़े वर्गो को आरक्षण की सहमति,बामियान में बुद्ध की प्रतिमा के विद्ध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश में बामियान से भी ऊँची प्रतिमा के निर्माण की घोषणा ,डा.अम्बेडकर महासभा के लिए उत्तर प्रदेश की विधान सभा के ठीक सामने एक बड़े कार्यालय के आबंटन की घोषणा और फिर उसे १ रूपये वार्षिक लीज पर देने की घोषणा तथा अम्बेडकर ग्राम योजना की घोषणा ,अम्बेडकर महासभा परिसर में तत्कालीन मुख्य मंत्री मुलायम सिंह यादव ,राजनाथ सिंह,राष्ट्रपति शासन में मोतीलाल बोरा और केन्द्रीय मंत्री अर्जुन सिंह द्वारा की गई थी |इस परिसर में डा. सविता अम्बेडकर ने बाबासाहेब डा,अम्बेडकर की पवित्र अस्थियो को स्थापित किया तो दूसरी ओर राष्ट्रपति मान.के. आर.नारायणन ने बोधि वृक्ष की शाखा को रोपित किया |

    इस संगठन ने बड़े उतार चढ़ाव देखे किन्तु किसी के साथ राजनैतिक प्रतिबद्धता नही होने दी |उत्तर प्रदेश के एक मुख्य मंत्री ने बुला कर कहा कि अम्बेडकर महासभा की अब जरूरत क्या है इसे बंद कर दीजिये |उनसे यही कहा गया था कि राजनैतिक दलों की अपनी सीमाए है |हम सामाजिक संगठन है और किसी भी सत्ता में वंचितों के लिए लड़ सकते है अपनी आवाज बुलंद कर सकते है |आप आज सत्ता में है, हो सकता है कल न हों |हम तो सदैव प्रासंगिक है क्योकि हम सामाजिक संगठन है |

    मुझे लगता है सामाजिक संगठन कमजोर होते है तो सामाजिक आन्दोलन कमजोर होता है और तब विचारो का विचलन तेज होता है इसलिए सामाजिक संगठन भी मजबूत किये जाने चाहिए |

    Like ·  · Share · 5 hours ago ·

    • Sudhir Ambedkar, Mayur Vadher Vidrohi, Shreeram Maurya and 39 otherslike this.

    • 2 shares

    • Sanjay Boddh Dasfi सामाजिक संगठन कमजोर होते है तो सामाजिक आन्दोलन कमजोर होता है और तब विचारो का विचलन तेज होता है इसलिए सामाजिक संगठन भी मजबूत किये जाने चाहिए |

    • Agree

    • 5 hours ago · Edited · Like · 4

    • Mayur Vadher Vidrohi आंबेडकरी आंदोलन अंतर्गत वंचित समूदायोके उत्कर्षकी जिम्मेदारी निभाने मे हमारा राजनैतिक वर्ग विफल रहा है ऐसेमे दलित चिंतको की नजर मजबूत सामाजिक गैर राजनैतिक संगठन पर आ कर रुकती है..!

    • 3 hours ago · Edited · Like

    Pushya Mitra

    पासवान जी आपके पास तो गिन-चुन कर चार ठो कैंडिडेट है. खुद आप, बेटा चिराग, भाई पशुपति और फिनांसर सूरज भान. आठ ठो सीट लेकर भइबा करोगे क्या...

    Like ·  · Share · 12 hours ago ·

    H L Dusadh Dusadh and 3 other friends were tagged in Hari Bharti's photo.Hari Bharti's photo.

    Like ·  · Share · February 22 at 8:37pm ·

    Satya Narayan

    बुद्धिजीवी लोग जब तक तन-मन से क्रान्तिकारी जन-संघर्षों में नहीं कूद पड़ते, अथवा आम जनता के हितों की सेवा करने और उसके साथ एकरूप हो जाने का पक्का इरादा नहीं कर लेते, तब तक उनमें अक्सर मनोगतवाद और व्यक्तिवाद की प्रवृत्तियाँ बनी रहती हैं, उनके विचार अव्यावहारिक होते हैं और उनकी कार्रवाइयों में दृढ़ निश्चय की कमी बनी रहती है। इसलिए हालाँकि चीन में क्रान्तिकारी बुद्धिजीवियों का जन-समुदाय एक हिरावल दस्ते की भूमिका अथवा एक सेतु की भूमिका अदा कर सकता है, फिर भी यह नहीं हो सकता कि उनमें से सभी लोग अन्त तक क्रान्तिकारी बने रहेंगे। कुछ लोग बड़ी नाज़ुक घड़ी में क्रान्तिकारी पाँतों को छोड़ जायेंगे और निष्क्रिय बन जायेंगे, यहाँ तक कि उनमें से कुछ लोग क्रान्ति के दुश्मन भी बन जायेंगे। बुद्धिजीवी लोग केवल दीर्घकालीन जन-संघर्षों के दौरान ही अपनी कमियों को दूर कर सकते हैं।

    http://www.mazdoorbigul.net/archives/4783

    कम्युनिस्ट जीवनशैली के बारे में माओ त्से-तुङ के कुछ उद्धरण - मज़दूर बिगुल

    mazdoorbigul.net

    कोई नौजवान क्रान्तिकारी है अथवा नहीं, यह जानने की कसौटी क्या है? उसे कैसे पहचाना जाये? इसकी कसौटी केवल एक है, यानी यह देखना चाहिए कि वह व्यापक मज़दूर-किसान जनता के साथ एकरूप हो जाना चाहता है अथवा नहीं, तथा इस बात पर अमल करता है...

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