पलाश विश्वास
हिमालय क्षेत्र में लगी जंगल की आग बुझाने के मामले में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और केंद्र के हुक्मरानों के तौर तरीकों में कोई फर्क नहीं है। स्थानीय जनता की भावनाओं का ख्याल किये बिना ताकत से ही कश्मीर से लेकर मणिपुर तक की समस्याओं को सुलझा लेने की आधिपात्यवादी प्रवृत्ति हावी है सत्ता की राजनीति पर। कारपोरेट राज में अर्थव्यवस्था के प्रबंधन में अर्थशास्त्र की समझ होना राजनेताओं के लिए शायद उतना जरुरी भी नहीं है। लेकिन राजनीति में इतिहासबोध की तनिक परवाह न की जाये, तो इसके क्या परिणाम हो सकते हैं, यह आने वाला वक्त ही बतायेगा। कांग्रेसी और भाजपाई अंध धर्म राष्ट्रवाद से समान रुप में निष्णात हैं और अफजल गुरु की फांसी पर जश्न मना रहे हैं। लेकिन देश को याद करनाचाहिए रक्तरंजित अस्सी का दशक, जो शायद उतना प्राचीन इतिहास नहीं है। याद कीजिये कि कैसे पंजाब में कर्फ्यू लगाकर आपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम दिया गया था और उसके बाद क्या क्या हुआ। यह महज संयोगभर नहीं है कि तिहाड़ जेल में आपरेशन ब्लू स्टार की वजह से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरागांधी की हत्या के मामले में उनके ही अंगरक्षकों को फांसी दिये जाने के बाद पहली बार किसी को यानी अफजल गुरु को फांसी पर चढ़ा दिया गया।उत्तरी कश्मीर के सोपोर इलाके से ताल्लुक रखने वाले अफजल गुरु को 13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर हुए हमले के मामले में आज सुबह फांसी दे दी गई।गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी दिए जाने को देर से उठाया गया सही कदम बताया। अफजल को फांसी देने के बाद नरेंद्र मोदी ने माइक्रोब्लागिंग साइट ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रिया में लिखा, `देर आए दुरुस्त आए।`अफजल गुरू को फांसी दिये जाने के बाद कांग्रेस ने आज कहा कि इस दुस्साहसी हमला मामले में न्याय किया गया है। कांग्रेस प्रवक्ता संदीप दीक्षित ने कहा, 'कानून ने अपना काम किया। न्याय किया गया है।' कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का त्रिपुरा का प्रस्तावित दौरा रद्द कर दिया गया है।केंद्रीय गृहमंत्रालय ने आज संसद हमला मामले के दोषी अफजल गुरू को फांसी पर चढ़ाने के मद्देनजर सभी राज्यों के पुलिस बलों को कड़ी चौकसी बरतने एवं चौकन्ना रहने का परामर्श दिया है।सूत्रों ने यहां बताया कि इस परामर्श पत्र में पुलिस बलों से उंचे स्तर की सुरक्षा बनाए रखने तथा यह सुनिश्चित करने को को कहा है कि कानून व्यवस्था बना रहे।
जाहिर है कि सत्ता के खेल में कश्मीर को दांव पर लगा दिया गया। जिस तरह ममता बनर्जी लेप्चा विकास परिषद के विरोध में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के बंद और विरोध प्रदर्शन से बेपरवाह है, उसी तरह कश्मीर में अफजल गुरु की फांसीकी प्रतिक्रया को नियंत्रित कर लेने में अपनी रणनीति की कामयाबी का जश्न मना रहा है यूपीए।जिसतरह कश्मीर और मणिपुर में सशस्त्र बल बिशेषाधिकार कानून लागू है तो क्या उसीतरह कश्मीर में कर्फ्यू और बाकी देश में सुरक्षा एलर्ट अनंतकाल तक लागू करके कानून औरव्यवस्ता पर नियंत्रण करना चाहती है सरकार हम आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिका के युद्ध में इजराइस के साथ साझेदार है, तो क्या हम अपने देश को या देशके किसी हिस्से को फलस्तीन बनने की इजाजत दे सकते हैं? ममता बनर्जी पहाड़ और जंगल महल में वाममोर्चा को पटखनी देने के लिहाज से अंधाधुंध एक के बाद एक कदम उठा रही हैं, तो नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्रित्व से रोकने के लिए कसाब के बाद अफजल गुरु को फांसी पर चढ़ा दिया गया।फांसी के मामले में गोपनीयता के अलावा दोनों मामलों में कोई समानता नहीं है। कसाब की फांसी के मौके पर कहीं कर्फ्यू नहीं लगाना पड़ा और न ही सुरक्षा एलर्ट जारी करना पड़ा देशभर में। कसाब को फांसी दिये जाने के औचित्य पर बहस हो सकती है, लेकिन उससे भारत गणराज्य को कोई फर्क नहीं पड़ा। क्योंकि वह महज हमलावर के बतौर याद किया जायेगा और शायद ही किसी भारतीय को उससे कोई सहानुभूति होगी। लेकिन अफजल गुरु भारतीय नागरिक है। न्यायिक प्रक्रिया में उसकी सुनवाई को लेकर विवाद जारी है। नागरिक मानवाधिकार संगठनों का नजरिया भारत सरकार से एकदम अलहदा है। फिर याद कीजिये, २९ साल पहले मकबूल भट्ट को दी गयी फांसी का मामला और उसका नतीजा। तबसे कश्मीर में हालात सुधारने के दावे के बावजूद सशस्त्र सैन्य बल अधिनियम के जरिये ही कश्मीर में राजकाज और लोकतंत्र का कारोबार चल रहा है। कश्मीर के अलगाववादियों को लोकसभा में जीत के जुए में दूसरा शहीद तोहफे में दे दिया गया।
कसाब को तुरत फुरत फांसी देकर संघ परिवार के उग्रतम हिंदुत्व के मुकाबले विकास गाथा , समावेशी विकास, वृद्धिदर के फर्जी आंकड़ों और लोक लुभावन कारपोरेट योजनाओं के बावजूद अगले लोकसभा चुनाव में हार टालने के लिए कांग्रेस ने भी १९८४ की तरह उग्रतम हिंदुत्व का विकल्प चुन लिया। तब तो संघ परिवार ने कांग्रेस को बिनाशर्तसमर्थन दे दिया था। अब दोनों पक्षों में प्रतिद्वंद्विता है कि कौन असली हिंदुत्व का हितरक्षक है। धर्मराष्ट्रवाद का ऐसा उत्सव तो बाबरी विध्वंस और गुजरात नरसंहार में अल्पसंख्यकों के सफाये के वक्त भी नहीं देखा गया। देश की एकता और अखंडता को दांव पर लगाना अब देश भक्ति का सबूत है, भारतीय लोकतंत्र का इससे बड़ा दुर्योग को सिखों के नरसंहार के वक्त भी नहीं देखा गया। तब भी देश की बहुसंख्यक जनता सिखों के कत्लेआम से लहूलुहान थी। लेकिन अब हम क्या कश्मीर के जख्म के हिस्सेदार हैं, क्या कश्मीरियों की भवनाओं में शरीक है, यह सवाल करना ही दोशद्रोह माना जायेगा।
कानूनी पचड़े में पड़े बिना कहा जा सकता है कि भारतीय संसद पर हमले से किसी अति महत्वपूर्ण व्यक्ति को आंच तक नहीं आयी और न ही इस मामसे में अफजल गुरु के शामिल होने के अकाट्य प्रमाण उपलब्ध हुए हैं। दूसरी ओर, गुजरात नरसंहार में तो अल्पसंख्यकों का सरकार और प्रशासन की देखरेख में योजनाबद्ध सफाया हुआ। उसीतरह बाबरी विध्वंस ने भारत ही नहीं, सीमाओं के आरपार करोड़ों लोगों को दंगों की आग में झुलसने को मजबूर कर दिया। भोपाल गैस त्रासदी में बेगुनाह नागरिकों का कब्रिस्तान आज भी चीख चीखकर न्याय मांग रहा है। आपरेशन ब्लू स्टार के बाद देश भर में भड़के सिख विरोधी दंगों के मामलों में अभी पीड़ितों को न्याय नहीं मिला। इंफल में हुए फर्जी मुठभेड़ के खिलाफ बारह साल से आमरण अनशन कर रही है सशस्त्र बल विशेष सैन्य कानून के विरुद्ध। सलवा जुड़ुम और रंग बिरंगे दूसरे सैनिक अभियानों के शिकार हो रहे हैं देशभर के आदिवासी। मरीचझांपी में दलित शरणार्थियों को दंडरकारम्य से बुलाकर महज सत्ता समीकरण बदल जाने पर १९७९ में चुन चुन कर मार दिया गया। इन सभी मामलों के अभियुक्त न सिर्फ खुल्ला घूम रहै हैं बल्कि सत्ता प्रतिष्टान में शीर्षस्थ लोग है, धर्म राष्ट्रवाद के अवतार हैं। अगर कानून के राज में, न्यायिक प्रक्रिया में और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में इन सभी संगीन मामलों के अभियुक्तों को अपना पक्ष रखने का मौका मिला या मिल रहा है, तो अफजल गुरु को तुरत फुरत पूरे देश को बेहोश करके कश्मीर में चीड़ फाड़ की शक्ल में कैसे और क्यों फांसी की सजा दे दी गयी.यह पहेली बुझना देश के जिम्मेवार नागरिकों का अहम कर्तव्य है।अफजल गुरु को शनिवार सुबह फांसी पर लटका दिया गया। सामान्य शब्दों में कहें तो कानून ने अपना काम किया। उसकी मौत पर शुरू हुई सियासत और कश्मीर में प्रतिक्रिया कहीं भी उम्मीद के विपरीत नहीं है। सब उसे अचानक फांसी पर लटकाए जाने से हैरान हैं, क्योंकि कल तक यही माना जा रहा था कि कश्मीर में सुधर रहे हालात को और गति देने के लिए, अलगाववादियों को बातचीत की मेज पर लाने के लिए गुरु की सजा बेशक माफ न हो, लेकिन केंद्र उसे जिंदा जरूर रखेगा।लेकिन सत्ता वर्ग की दिलचस्पी कश्मीर मसले को सुळझाने की बजाय कश्मीर को आपरेशन थिएटर में बदलकर अंध धर्मराष्ट्रवाद के पांख पर सवार होकर कारपोरेट राज की सत्ता की धखल में ज्यादा है। हम क्या कहें,भारतीय जनता पार्टी नेता एम. वेंकैया नायडू ने शनिवार को कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार समय से पहले, यानी इस वर्ष के अंत में आम चुनाव कराने की योजना बना रही है और अगर चुनाव कराया गया तो उसकी हार तय है। नायडू ने कहा कि हमें रिपोर्ट मिली है कि सरकार इस वर्ष अक्टूबर या नवंबर में आम चुनाव कराने की योजना बना रही है।अफजल गुरु की फांसी की मांग लेकर संघ परिवार ने निरंतर दबाव बनाये रखा था , लेकिन जब उसे फांसी पर टांग ही दिया गया, तो संघ परिवार की ओर से इस बयान का क्या मतलब है, इस पर जरुर गौर करना चाहिए। इसका मतलब तो यह भी निकलता है कि भारत सरकार की इस कार्रवाई से अगर कश्मीर और देश के दूसरे भागों में हालात बिगड़ते है, फिंजा खराब होती है तो संघ परिवार उसकी जिम्मेवारी से्भी से पल्ला झाड़ रहा है।
13 दिसंबर 2001 को संसद पर किए गए आतंकवादी हमले के दोषी अफजल गुरू को आज सुबह दिल्ली के तिहाड़ जेल मे फांसी पर चढ़ाए जाने के बाद पूरी कश्मीर घाटी में एहतियातन कर्फ्यू लागू कर दिया गया । इसके अलावा आज होने वाली सभी परीक्षाएं स्थगित कर दी गई।श्रीनगर और घाटी के अन्य शहरों में कफर्यू की घोषणा लाउडस्पीकर से की गई। लोगों को सुबह की नमाज के बाद घर में ही रहने का आदेश दिया गया। सभी संवेदनशील इलाकों में अर्धसैनिक बलों की भारी तैनाती की गई और सड़कों को कंटीली बाड़ों से घेर दिया गया। सुरक्षा के मद्देनजर जम्मू-कश्मीर राष्ट्रीय राजमार्ग को भी आज दिन भर के लिए बंद कर दिया गया। इसके साथ ही अलगाववादी नेताओं के घर के बाहर सुरक्षाबल के जवानों की भारी तैनाती की गई है।दूसरी ओर संघ परिवार की और से प्रधानमंत्रित्व के हरसंभव कारपोरेट दावेदार गुजरात के मुख्यमंत्री और बीजेपी के फायरब्रांड नेता नरेंद्र मोदी ने सुरक्षा कारणों के चलते अपना महाकुंभ दौरा रद्द कर दिया।वह 12 फरवरी को इलाहाबाद जाने वाले थे, लेकिन अब नहीं जाएंगे। सूत्रों के मुताबिक शनिवार को संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के बाद नरेंद्र मोदी की सुरक्षा काफी चिंता का विषय बन गई है। ऐसे में ऐहतियातन मोदी ने महाकुंभ यात्रा रद्द कर दी।इसी बीच लेकिन
नफरत भरे अपने बयान के लिए आलोचना के शिकार विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) नेता प्रवीण तोगड़िया ने आज कहा है कि वह हिन्दुत्व की खातिर जेल जाने के लिए तैयार हैं। कुंभ मेले से उन्होंने फोन पर बताया, 'मैं जेल जाने के लिए तैयार हूं...मैं हिन्दुत्व के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं।' उन्होंने कहा, 'देश के हित में बोलना कोई अपराध नहीं है।' इस बीच महाराष्ट्र विश्व हिन्दू परिषद् के नेता वेंकटेश आबदेव ने धमकी दी है कि अगर तोगड़िया को गिरफ्तार किया जाता है तो देश भर में गंभीर प्रतिक्रिया होगी।
कसाब और अफजल गुरु को फांसी परचढ़ाने की करतब से केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे सत्ता के गलियारे में हिरो जरुर बन गये हैं लेकिन इसका क्या कीजिये कि उनकी एक बार फिर अपने बयान को लेकर किरकिरी हो रही है। इस बार मामला अफजल गुरु की फांसी से जुड़ा हुआ है। शिंदे ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा, 'अफजल गुरु को आज आठ बजे फांसी दी गई। 2011 में ही गृह मंत्रालय ने इसकी सिफारिश की थी। राष्ट्रपति को 21 जनवरी को फाइल भेजी गई। राष्ट्रपति ने तीन फरवरी को दया याचिका खारिज की थी। इस फाइल पर चार फरवरी को मैंने दस्तखत किए और आगे की कार्रवाई के लिए भेज दिया गया।'शनिवार की सुबह अपना बयान देते समय शिंदे ने कई तथ्यात्मक गलतियां कीं। इसमें शिंदे ने तारीख और वक्त गलत बताया। गृह मंत्री ने कहा, 'कोर्ट ने आठ फरवरी की तारीख तय की थी। आठ बजे का वक्त भी तय हो गया था। तो आज आठ बजे अफजल को फांसी दे दी गई है।' लेकिन इसके बाद अंग्रेजी में बोलते समय शिंदे ने तो और भी गड़बड़ी की। उन्होंने अफजल की फांसी के वक्त के बारे में आठ बजे सुबह (8 ए.एम.) के बजाय आठ बजे रात (8 पी.एम.) कह दिया।
सुरेश डुग्गर कश्मीर से हैं, वरिष्ठ पत्रकार हैं।कस्मीर को अच्छी तरह जानने वाले िइस पत्रकार के लिखे पर गौर करना बेहद जरुरी है। उन्होंने लिखा है:
`13 दिसम्बर 2001 को भारतीय संसद पर हुए आतंकियों के आत्मघाती हमले के षड्यंत्रकर्ताओं में से एक वादी के सोपोर के रहने वाले पेशे से डाक्टर मुहम्मद अफजल गुरू को फांसी दिए जाने से कश्मीर उबाल पर है। कश्मीर का उबाल पर होना स्वभाविक ही है। 29 साल पहले भी एक कश्मीरी को आतंकी गतिविधियों के लिए फांसी पर लटका दिया गया था। 11 फरवरी 1984 को फांसी पर लटकाए गए मकबूल बट की फांसी ने कश्मीर को नए मोड़ पर ला खड़ा किया था। आतंकवाद की ज्वाला विस्फोट बन कर सामने आ खड़ी हुई। इस फांसी के परिणामस्वरूप जो ज्वाला कश्मीर में सुलगी थी आज पूरा देश उसकी चपेट में है तो अफजल गुरू की फांसी के बाद क्या होगा, अब यह आने वाले दिनों में दिखेगा।
इसके प्रति कोई दो राय नहीं है कि 29 साल पूर्व मकबूल बट को दी गई फांसी के पांच सालों के बाद ही कश्मीर जल उठा था और अब पुनः क्या कश्मीर धधक उठेगा। यही सवाल है हर कश्मीरी की जुबान पर। यह सवाल इसलिए पैदा हुआ है क्योंकि संसद पर हमले के जो दो आरोपी कश्मीर से संबंध रखते थे उनमें से एक मुहम्मद अफजल को आज फांसी दे दी गई है।
यह सच है कि कश्मीर में छेड़े गए तथाकथित आजादी के आंदोलन को लेकर जिन लोगों को मौत की सजा सुनाई गई है उसमें मुहम्मद अफजल दूसरा ऐसा व्यक्ति है जिसे 29 सालों के अरसे के बाद पुनः 'शहीद' बनाए जाने की कवायद कश्मीर में शुरू हो गई है। इससे पहले 11 फरवरी 1984 को जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के संस्थापक मकबूल बट को तिहाड़ जेल में फांसी की सजा सुनाई गई थी। कुछेक की नजरों में स्थिति विस्फोटक होने के कगार पर है। ऐसा सोचने वालों की सोच सही भी है। वर्ष 1984 में बारामुल्ला जिले में एक गुप्तचर अधिकारी तथा बैंक अधिकारी की हत्या के आरोप में मकबूल बट को फांसी की सजा दी गई थी तो तब की स्थिति यह थी कि उसकी फांसी वाले दिन पर कश्मीर में हड़ताल का आह्वान भी नाकाम रहा था। लेकिन आज परिस्थितियां बदल चुकी हैं। लोगों की नजर में मकबूल बट की फांसी के पांच सालों के बाद 1989 में कश्मीर जिस दौर से गुजरना आरंभ हुआ था वह अब मुहम्मद अफजल की फांसी के बाद धधक उठेगा। उनकी आशंकाएं भी सही हैं। अलगाववादी संगठन जहां फांसी को भुनाने की तैयारियों में हैं तो दूसरी ओर आतंकवादी गुट इसका 'बदला' लेने की खातिर तैयारियों में हैं।
कश्मीर में पिछले 25 सालों में एक लाख के करीब लोग मारे गए हैं। अधिकतर को कश्मीरी जनता 'शहीद' का खिताब देती है। लेकिन कश्मीरी जनता की नजरों में पहले सही और सच्चे 'शहीद' मकबूल बट थे तो अब दूसरे 'शहीद' मुहम्मद अफजल हैं। उसकी फांसी क्या रंग लाएगी इस सोच मात्र से लोग सहमने लगे हैं क्योंकि मकबूल बट की फांसी 25 सालों से फैले आतंकवाद को परिणाम में दे चुकी है। 18 दिसम्बर 2002 में फांसी की सजा सुनाने से पूर्व तक, न ही कोई अफजल गुरू के परिवार से इस कद्र शोक तथा संवेदना प्रकट करने के लिए जा रहा था और न ही कोई उनके प्रति कोई खास चर्चा कर रहा था। लेकिन उसके बाद रातोंरात मुहम्मद अफजल 'हीरो' बन गया है। कश्मीर की 'तथाकथित आजादी' के तथाकथित आंदोलन में उसे 'हीरो और शहीद' का सम्मान दिया जाने लगा है।
चिंता यह नहीं है कि फांसी दिए जाने वाले को क्या नाम दिया जा रहा है बल्कि चिंता की बात यह मानी जा रही है कि कश्मीर की परिस्थितियां अब क्या रूख अख्तियार करेंगी। कश्मीर के आंदोलन की पहली फांसी के बाद जो आतंकवाद भड़का था वह क्या दूसरी फांसी के साथ ही समाप्त हो जाएगा या फिर यह धधक उठेगा। अगर यह धधक उठेगा तो इसकी लपेट में कौन-कौन आएगा।
इतना जरूर है कि अफजल की फांसी क्या रंग लाएगी, इस पर मंथन ही आरंभ नहीं हुआ था कि धमकियों और चेतावनियों का दौर भी आरंभ हो गया है। अगर राजनीतिक पर्यवेक्षक कहते हैं कि अफजल गुरू की फांसी कश्मीर को नए मोड़ पर लाकर खड़ा कर देगी वहीं आतंकी गुटों की धमकी देशभर को सुलगा देने की है।'
इसी बीच भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एम एल ने कहा है कि अफजल को फांसी देने का निर्णय इंसाफ को फांसी देने की तरह है। पार्टी ने कहा कि अफजल को फांसी देने का निर्णय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की चाहत रखने वाली सांप्रदायिक शक्तियों को खुश करने के लिए ऐसा किया गया है और कहा है कि ऐसी ताकतों के मंसूबों को नाकामयाब करने की ज़रुरत है। अफजल गुरु को लेकर जारी पार्टी के एक बयान में कहा गया है कि 1984 के सिख दंगों के लिए, 1992 के सूरत और उसके बाद 2002 के गुजरात दंगों सहित मुसलमानों के खिलाफ हुए तमाम दंगों के लिए, या फिर दलितों, आदिवासियों और अन्य पीड़ित तबकों के खिलाफ जनसंहार के लिए अभी तक किसी को फांसी नहीं दी गई।सीपीआईएमएल ने कहा कि अफज़ल गुरु 1993 में बीएसएफ के समक्ष सरेंडर करने के बाद से कश्मीर के स्पेशल टास्क फोर्सेज़ के लिए काम कर रहा था। उसे संसद पर हुए हमले के मामले में फंसाया गया है। निचली अदालत में बिना किसी सुबूत के उसे दोषी ठहराया गया जबकि उस समय उसकी तरफ से कोई वकील तक नहीं था। इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय समाज के विवेक को संतुष्ट करने के नाम पर उसकी मौत की सजा को बरकरार रखा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट दोनों ने निम्न स्तरीय जांच और संदिग्ध सुबूत पेश करने के लिए पुलिस को फटकार लगाई थी।अफजल गुरु को फांसी दिये जाने के मुद्दे पर पार्टी ने कहा कि हर तरफ से विरोध का सामना कर रही कांग्रेस और यूपीए सरकार बीजेपी और सांप्रदायिक फासीवादी ताकतों की खुशामद करने के लिए बेचैन है। लेकिन देश का लोकतांत्रिक अवाम कांग्रेस और बीजेपी की इस सांठगांठ को ध्वस्त करेगा।
कहा जा रहा है कि पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा ने अफ़ज़ल गुरु की फांसी का बदला लेने की चेतावनी दी है। लश्कर प्रवक्ता डॉक्टर अब्दुल्ला गज़नवी ने बीबीसी को फोन कर बताया, 'बहुत जल्द भारत को नतीजा भुगतना होगा।' इसके बाद गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को सुरक्षा बढ़ाने के निर्देश दिए हैं। अफजल की फांसी पर कश्मीर घाटी में विरोध-प्रदर्शन हुआ है तो गुजरात के अहमदाबाद में लोगों ने जश्न मनाया। जम्मू-कश्मीर में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है। श्रीनगर सहित सूबे के तमाम शहरों में कर्फ्यू लगाया गया है। जम्मू-कश्मीर पुलिस को शुक्रवार को ही अलर्ट कर दिया गया था। जम्मू-कश्मीर में मोबाइल इंटरनेट सेवा पर रोक लगा दी गई है। केबल टीवी सेवा भी रोक दी गई है। फेसबुक, एसएमएस पर नजर रखी जा रही है। इसके बावजूद अफजल के गांव सोपोर में प्रदर्शन के दौरान दो लोग जख्मी हो गए। इसी बीच राज्य मे कानून व्यवस्था को बनाये रखने के लिये उठाये गये कदम के तहत हुर्रियत कांफ्रेस से अलग हुये धडे के वरिष्ठ नेता तथा इसके प्रवक्ता एयाज अकबर को आज हिरासत मे ले लिया गया है। पुलिस ने भी अकबर के आवास पर उन्हे हिरासत मे लिया। उनके परिजनो का कहना है कि पुलिस ने हिरासत मे लेने को लेकर कोई वजह नहीं बताई है। इधर, बारामूला में प्रर्दशनकारियों ने सुरक्षाबलों पर पथराव किया जिसके बाद उन्हें तितर-बितर करने के लिए हवा में गोलीबारी की गई। घाटी के बाकी इलाकों मे स्थिति काबू में है।एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि हमने पूरे इलाके में हाई अलर्ट घोषित कर दिया है और सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इस इलाके में अघोषित कर्फ्यू की स्थिति है। एहतियात के मद्देनजर केबल टीवी का प्रसारण भी बंद कर दिया गया है।जम्मू का किश्तवाड़, भादेरवाह, डोडा, बानिहाल, पुंछ और राजौरी संवेदनशील इलाकों के अंतर्गत आते हैं। प्रशासन ने संवेदनशील और अतिसंवेदनशील इलाकों में पुलिस और अर्धसैनिक बलों की टुकड़ियां तैनात कर दी हैं जबकि सेना से भी तैयार रहने के लिए कहा गया है। अधिकारी ने कहा कि जम्मू के किसी भी इलाके से अब तक किसी भी तरह की अप्रिय घटना की कोई खबर नहीं है।
अफजल के परिवार को नहीं दी गई थी फांसी की जानकारी: गिलानी
संसद हमले के मामले में बरी हो चुके दिल्ली विश्वविद्यालय के व्याख्याता एस.ए.आर गिलानी ने शनिवार को कहा कि अफजल गुरु के परिवार को उसकी फांसी के बारे में जानकारी नहीं दी गई थी। गिलानी ने कहा,प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया। यहां तक कि परिवार को भी सूचित नहीं किया गया।
गिलानी ने बताया, मैंने उसे (अफजल की पत्नी को) सुबह करीब 6:30-6:45 बजे जगाया और उसे फांसी की अफवाह के बारे में जानकारी दी। यह उसके लिए सन्न करने वाली बात थी। वह बिलकुल अनजान थी और मुझसे कहा कि परिवार के किसी सदस्य को इसके बारे में सूचित नहीं किया गया।
सरकार की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, उन्होंने सबकुछ हवा-हवा कर दिया। पूरा मामला राजनीति प्रेरित है। यह सब वोट बैंक की राजनीति के लिए किया गया है। सरकार गलियारों में खेल रही है।
इस बात पर जोर देते हुए कि परिवार को आखिरी मुलाकात का अधिकार है, उन्होंने कहा, परिवार को इस बात की जानकारी दी जानी चाहिए थी कि दया याचिका खारिज हो चुकी है। यहां तक कि खारिज किया जाना भी न्यायिक समीक्षा का विषय है।
गिलानी ने कहा, यह लोकतंत्र नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि फांसी पर विरोध जताने के लिए वे कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ अगले कदम की योजना बना रहे हैं।
परिवार को मिले आखिरी रस्म की अनुमति: अफजल की पत्नी
दिल्ली की तिहाड़ जेल में शनिवार को फांसी पर लटकाए गए संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु के परिवार ने प्रशासन से अफजल की आखिरी रस्म धार्मिक परंपरा के अनुसार पूरी करने की अनुमति मांगी। अधिकारियों के मुताबिक अफजल के शव को जेल परिसर में ही दफना दिया गया।
जेल की महानिदेशक विमला मेहरा को लिखे पत्र में अफजल की पत्नी तबस्सुम ने कहा कि उसके पति की आखिरी रस्म सम्मानजनक तरीके से होनी चाहिए। पत्र का मसौदा अफजल के वकील एन डी पंचोली ने तैयार किया। तबस्सुम ने पत्र के जरिए कहा है, अगर आप हमें यह जानकारी दे सकें कि परिवार के सदस्य कब `नमाज-ए-जनाजा` अदा कर सकते हैं तो हम आपके शुक्रगुजार होंगे।
पत्र में लिखा है, हम नहीं चाहते कि पहले से गरमाए माहौल में इसे एक राजनीतिक मुद्दा बनाया जाए, लेकिन भारत के नागरिक होने के नाते परिवार के सदस्यों को जो हक है, वो उन्हें अदा करने दिया जाए। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2001 में संसद पर हमले में मुख्य भूमिका निभाने के दोषी अफजल गुरु को शनिवार सुबह आठ बजे फांसी दे दी गई। अफजल की दया याचिका राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने तीन फरवरी को खारिज कर दिया था।
9 फरवरी 2013, शनिवार की सुबह जब लगभग पूरा देश चैन की नींद सो रहा था, तभी तिहाड़ के तीन नंबर जेल में काफी गहमागहमी थी।
यह गहमागहमी थी 2001 में संसद पर हुए हमले के मामले में दोषी करार दिए गए अफजल गुरु को फांसी देने के लिए। अफजल गुरु को मुंबई आतंकी हमलों के मुख्य आरोपी व दोषी आमिर अजमल कसाब की तरह शनिवार की सुबह गुपचुप तरीके से फांसी दे दी गई।
सुप्रीम कोर्ट ने अफजल को पहले ही फांसी की सजा सुनाई थी, लेकिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने करीब हफ्ते भर पहले ही अफजल की दया याचिका खारिज कर दी थी। अफजल को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद सोशल नेटवर्किंग साइटों पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रहीं हैं।
संसद हमले के मुख्य दोषी अफजल गुरु को तिहाड़ जेल में उसकी बैरक से कुछ मीटर की दूरी पर फांसी दी गई। यहां वह 2001 से बंद था। यह जानकारी जेल महानिदेशक विमला मेहरा ने दी। विमला मेहरा ने कहा कि अफजल को उसे शनिवार सुबह आठ बजे फांसी दे दी गई। उसे अतिसुरक्षित बैरक नंबर तीन में रखा गया था और उसे बैरक के बाहर लगभग 20 मीटर की दूरी पर फांसी दी गई। 2001 में संसद पर हुए हमले में अफजल की भूमिका साबित हो जाने पर उसे फांसी दी गई। फांसी देने के करीब एक घंटे बाद सुबह 9 बजे अफजल को जेल परिसर में ही दफना दिया गया।उधर, केंद्रीय गृह सचिव आर के सिंह ने कहा है कि संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी दिए जाने से पहले उसके परिवार को सूचित किया गया था। जब उनसे पूछा गया किया कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को भी अफजल की फांसी के मामले में अंधेरे में रखा गया, इस पर उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को विश्वास में लिया गया था।उन्होंने कहा कि अफजल के परिवार को पहले ही सूचित कर दिया गया था। मैंने जेल अधिकारियों से इस बात की पुष्टि की थी और उन्होंने मुझे बताया कि इस बाबत स्पीड पोस्ट के जरिए दो पत्र भेजे गए हैं। कश्मीर के डीजीपी से भी पुष्टि करने के लिए कहा गया था। यह कहा जाना सही नहीं है कि उसके परिवार को सूचित नहीं किया गया।
कोई अफजल की इस फांसी को राजनीतिक फायदे से जोड़कर देख रहा है, तो कोई इसे देर से आया सही फैसला भी बता रहा है।आइए डालते हैं एक नजर सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर आए कुछ ट्वीट्स पर...
राजदीप सरदेसाईः कसाब को शीतकालीन सत्र से पहले फांसी दी गई और अफज़ल गुरु को बजट सत्र से पहले। कोई संयोग तो नहीं।
समर हलरंकरः अफज़ल गुरु को गुप्त रुप से क्यों फांसी दी गई. क्या सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के अनुसार हमारे सामूहिक विवेक को संतुष्ट करने के लिए। क्या ये हमारे विवेक के बारे में कुछ नहीं कहता।
मीना कंडासामी ने अरुंधति राय का लिखा लेख ट्विट किया है और कहा है कि अफज़ल के मामले में कई गड़बड़ियां हैं और उन्हें खुद को निर्दोष साबित करने का एक मौका मिलना चाहिए।
किरन बेदीः कानून ने अपना चक्र पूरा किया है। फांसी हुई।
मधु किश्वरः अफज़ल गुरु का आतंकी हमले से सीधा संबंध नहीं था इसलिए उनकी मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदला जाना चाहिए था. परिवार के प्रति संवेदना।
सुहेल सेठः अफज़ल गुरु को फांसी. सरकार ने हिम्मत दिखाई जितना क्रेडिट मिलता है उसे...उससे अधिक। और भगवान का शुक्र है कि प्रणब मुखर्जी ने कड़ा फैसला लिया।
फंडुलकर कहते हैं कि अफसोस अफज़ल गुरु वेलेंटाइन डे नहीं मना पाएंगे।
अफजल गुरु से जुड़ा घटनाक्रम
संसद हमले के दोषी मोहम्मद अफजल गुरु को आज तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई। जैश-ए-मोहम्मद के इस आतंकवादी को फांसी पर लटकाए जाने तक का पूरा घटनाक्रम इस प्रकार है :
13 दिसंबर 2001 : पांच आतंकवादियों ने संसद परिसर में घुस कर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। नौ लोग मारे गए और 15 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
15 दिसंबर 2001 : दिल्ली पुलिस ने आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के एक सदस्य अफजल गुरु को जम्मू कश्मीर से पकड़ा गया। दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज के एसएआर गिलानी से पूछताछ की गई और बाद में गिरफ्तार किया गया। इसके बाद दो अन्य- अफसान गुरु और उसके पति शौकत हुसैन गुरु को पकड़ा गया।
29 दिसंबर 2001 : अफजल गुरु को 10 दिन की पुलिस हिरासत में भेजा गया।
4 जून 2002 : चार लोगों - अफजल गुरु, गिलानी, शौकत हुसैन गुरु, अफसान गुरु के खिलाफ आरोप तय।
18 दिसंबर 2002 : एसएआर गिलानी, शौकत हुसैन गुरु और अफजल गुरु को मृत्युदंड जबकि अफसान गुरु को बरी किया गया।
30 अगस्त 2003 : हमले का मुख्य आरोपी जैश-ए-मोहम्मद नेता गाजी बाबा श्रीनगर में बीएसएफ के साथ मुठभेड़ में मारा गया। 10 घंटे तक चली मुठभेड़ में उसके साथ ही तीन और आतंकवादी मारे गए।
29 अक्टूबर 2003 : मामले में एसआर गिलानी बरी।
4 अगस्त 2005 : उच्चतम न्यायालय ने अफजल गुरु को मौत की सजा पर मुहर लगायी वहीं शौकत हुसैन गुरु की मौत की सजा को बदलकर 10 साल सश्रम कारावास कर दिया।
26 सितंबर 2006 : दिल्ली अदालत ने अफजल को फांसी पर लटकाने का आदेश दिया। 3 अक्तूबर 2006 : अफजल गुरु की पत्नी तब्बसुम गुरु ने तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के समक्ष दया याचिका दायर की।
12 जनवरी 2007 : उच्चतम न्यायालय ने मौत की सजा की समीक्षा को लेकर अफजल गुरु की याचिका 'विचार योग्य नहीं' कहते हुए खारिज की।
19 मई 2010 : दिल्ली सरकार ने अफजल गुरु की दया याचिका खारिज की, उच्चतम न्यायालय द्वारा उसे दिए गए मृत्युदंड का समर्थन किया।
30 दिसंबर 2010 : दिल्ली के तिहाड़ जेल से शौकत हुसैन गुरु रिहा।
10 दिसंबर 2012 : गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि 22 दिसंबर को संसद का शीतकालीन सत्र समाप्त होने के बाद अफजल गुरु की फाइल पर गौर करेंगे।
3 फरवरी 2013 : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अफजल गुरु की दया याचिका ठुकराई।
9 फरवरी 2013 : तिहाड़ जेल में अफजल गुरु को दी गई फांसी।
ऑपरेशन ब्लूस्टार
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ऑपरेशन ब्लूस्टार | |||||||
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आपरेशन ब्लू स्टार भारतीय सेना द्वारा 3 से 6 जून 1984 को सिख धर्म के सबसे पावन धार्मिक स्थल अमृतसर स्थित हरिमंदिर साहिब परिसर पर की गयी कार्रवाई का नाम है।
अनुक्रम[छुपाएँ] |
[संपादित करें]किन परिस्थितियों में हुआ ऑपरेशन ब्लूस्टार
पंजाब समस्या की शुरुआत 1970 के दशक से अकाली राजनीति में खींचतान और अकालियों की पंजाब संबंधित माँगों को लेकर शुरु हुई थी. पहले वर्ष 1973 में और फिर 1978 में अकाली दल ने आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पारित किया. मूल प्रस्ताव में सुझाया गया था कि भारत की केंद्र सरकार का केवल रक्षा, विदेश नीति, संचार और मुद्रा पर अधिकार हो जबकि अन्य विषयों पर राज्यों को पूर्ण अधिकार हों. अकाली ये भी चाहते थे कि भारत के उत्तरी क्षेत्र में उन्हें स्वायत्तता मिले.अकालियों की पंजाब संबंधित माँगें ज़ोर पकड़ने लगीं. अकालियों की माँगों में प्रमुख थीं - चंडीगढ़ केवल पंजाब की ही राजधानी हो, पंजाबी भाषी क्षेत्र पंजाब में शामिल किए जाएँ, नदियों के पानी के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय की राय ली जाए, 'नहरों के हेडवर्क्स' और पन-बिजली बनाने के मूलभूत ढाँचे का प्रबंधन पंजाब के पास हो. इसी के साथ कुछ अन्य मुद्दे थे - फ़ौज में भर्ती काबिलियत के आधार पर हो और इसमें सिखों की भर्ती पर लगी कथित सीमा हटाई जाए और अखिल भारतीय गुरुद्वारा क़ानून बनाया जाए.
[संपादित करें]अकाली-निरंकारी झड़प
अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच अमृतसर में 13 अप्रैल 1978 को हिंसक झड़प हुई. इसमें 13 अकाली कार्यकर्ता मारे गए और रोष दिवस में सिख धर्म प्रचार की संस्था के प्रमुख जरनैल सिंह भिंडरांवाले ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. अनेक पर्यवेक्षक इस घटना को पंजाब में चरमपंथ की शुरुआत के तौर पर देखते हैं.ये आरोप लगाया जाता है कि सिख समुदाय में अकाली दल के जनाधार को घटाने के लिए काँग्रेस ने सिख प्रचारक जरनैल सिंह भिंडरांवाले को परोक्ष रूप से प्रोत्साहन दिया. मकसद ये था कि अकालियों के सामने सिखों की माँगें उठाने वाले ऐसे किसी संगठन या व्यक्ति को खड़ा किया जाए जो अकालियों को मिलने वाले समर्थन में सेंध लगा सके. लेकिन इस दावे को लेकर ख़ासा विवाद है.
सेना ने स्वर्ण मंदिर परिसर के आसपास घेराबंदी कर मोर्चा बना लिए थे
अकाली दल भारत की राजनीतिक मुख्यधारा में रहकर पंजाब और सिखों की माँगों की बात कर रहा था लेकिन उसका रवैया ढुलमुल माना जाता था. उधर इन्हीं मुद्दों पर जरनैल सिंह भिंडरांवाले ने कड़ा रुख़ अपनाते हुए केंद्र सरकार को दोषी ठहराना शुरु किया. वे विवादास्पद राजनीतिक मुद्दों और धर्म और उसकी मर्यादा पर नियमित तौर पर भाषण देने लगे. जहाँ बहुत से लोग उनके भाषणों को भड़काऊ मानते थे वहीं अन्य लोगों का कहना था कि वे सिखों की जायज़ मागों और धार्मिक मसलों की बात कर रहे हैं.[संपादित करें]पंजाब में हिंसा का दौर
धीरे-धीरे पंजाब में हिंसक घटनाएँ बढ़ने लगीं. सितंबर 1981 में हिंद समाचार - पंजाब केसरी अख़बार समूह के संपादक लाला जगत नारायण की हत्या हुई. जालंधर, तरन तारन, अमृतसर, फ़रीदकोट और गुरदासपुर में हिंसक घटनाएँ हुईं और कई लोगों की जान गई.भिंडरांवाले के ख़िलाफ़ लगातार हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप लगने लगे लेकिन पुलिस का कहना था कि उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के पर्याप्त सबूत नहीं हैं.
सितंबर 1981 में ही भिंडरांवाले ने महता चौक गुरुद्वारे के सामने गिरफ़्तारी दी लेकिन वहाँ एकत्र भीड़ और पुलिस के बीच गोलीबारी हुई और ग्यारह व्यक्तियों की मौत हो गई. पंजाब में हिसा का दौर शुरु हो गया. कुछ ही दिन बाद सिख स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन के सदस्यों ने एयर इंडिया के विमान का अपहरण भी किया.
लोगों को भिंडरांवाले के साथ जुड़ता देख अकाली दल के नेताओं ने भी भिंडरावाले के समर्थन में बयान देने शुरु कर दिए. वर्ष 1982 में भिंडरांवाले चौक महता गुरुद्वारा छोड़ पहले स्वर्ण मंदिर परिसर में गुरु नानक निवास और इसके कुछ महीने बाद सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था अकाल तख्त से अपने विचार व्यक्त करने लगे.
अकाली दल ने सतलुज-यमुना लिंक नहर बनाने के ख़िलाफ़ जुलाई 1982 में अपना 'नहर रोको मोर्चा' छेड़ रखा था जिसके तहत अकाली कार्यकर्ता लगातार गिरफ़्तारियाँ दे रहे थे. लेकिन स्वर्ण मंदिर परिसर से भिंडरांवाले ने अपने साथी ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फ़ैडरेशन के प्रमुख अमरीक सिंह की रिहाई को लेकर नया मोर्चा या अभियान शुरु किया. अकालियों ने अपने मोर्चे का भिंडरांवाले के मोर्चे में विलय कर दिया और धर्म युद्ध मोर्चे के तहत गिरफ़्तारियाँ देने लगे.
एक हिंसक घटना में पटियाला के पुलिस उपमहानिरीक्षक के दफ़्तर में भी बम विस्फोट हुआ. पंजाब के उस समय के मुख्यमंत्री दरबारा सिंह पर भी हमला हुआ.
[संपादित करें]डीआईजी अटवाल की हत्या
फिर अप्रैल 1983 में एक अभूतपूर्व घटना घटी. पंजाब पुलिस के उपमहानिरीक्षक एएस अटवाल की दिन दहाड़े हरिमंदिर साहब परिसर में गोलियाँ मारकर हत्या कर दी गई. पुलिस का मनोबल लगातार गिरता चला गया. कुछ ही महीने बाद जब पंजाब रोडवेज़ की एक बस में घुसे बंदूकधारियों ने जालंधर के पास पहली बार कई हिंदुओं को मार डाला तो इंदिरा गाँधी सरकार ने पंजाब में दरबारा सिंह की काँग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया.राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया. पंजाब में स्थिति बिगड़ती चली गई और 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार से तीन महीने पहले हिंसक घटनाओं में मरने वालों की संख्या 298 थी.
अकाली राजनीति के जानकारो के अनुसार ऑपरेशन ब्लूस्टार से पहले इंदिरा गाँधी सरकार की अकाली नेताओं के साथ तीन बार बातचीत हुई. आख़िरी चरण की बातचीत फ़रवरी 1984 में तब टूट गई जब हरियाणा में सिखों के ख़िलाफ़ हिंसा हुई. एक जून को भी स्वर्ण मंदिर परिसर और उसके बाहर तैनात केंद्र रिज़र्व पुलिस फ़ोर्स के बीच गोलीबारी लेकिन तब तक वहाँ ये आम बात बन गई थी.
[संपादित करें]कार्रवाई और सिखों में रोष
स्वर्ण मंदिर परिसर में हथियारों से लैस संत जरनैल सिंह, कोर्ट मार्शल किए गए मेजर जनरल सुभेग सिंह और सिख सटूडेंट्स फ़ेडरेशन के लड़ाकों ने चारों तरफ़ ख़ासी मोर्चाबंदी कर रखी थी.दो जून को परिसर में हज़ारों श्रद्धालुओं ने आना शुरु कर दिया था क्योंकि तीन जून को गुरु अरजन देव का शहीदी दिवस था.
उधर जब प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने देश को संबोधित किया तो ये स्पष्ट था कि सरकार स्थिति को ख़ासी गंभीरता से देख रही है और भारत सरकार कोई भी कार्रवाई कर सकती है.
पंजाब से आने-जाने वाली रेलगाड़ियों और बस सेवाओं पर रोक लग गई, फ़ोन कनेक्शन काट दिए गए और विदेशी मीडिया को राज्य से बाहर कर दिया गया. लेकिन सेना और सिख लड़ाकों के बीच असली भिड़ंत पाँज जून की रात को ही शुरु हुई.
तीन जून तक भारतीय सेना अमृतसर में प्रवेश कर और स्वर्ण मंदिर परिसर को घेर चुकी थी और शाम में कर्फ़्यू लगा दिया गया था. चार जून को सेना ने गोलीबारी शुरु कर दी ताकि चरमपंथियों के हथियारों और असले का अंदाज़ा लगाया जा सके.
सैन्य कमांडर केएस बराड़ ने माना कि चरमपंथियों की ओर से इतना तीखा जवाब मिला कि पाँच जून को बख़तरबंद गाड़ियों और टैंकों को इस्तेमाल करने का निर्णय किया गया. उनका ये भी कहना था कि सरकार चिंतित थी कि यदि स्वर्ण मंदिर की घेराबंदी ज़्यादा लंबी चलती है तो तरह-तरह की अफ़वाहों को हवा मिलेगी और भावनाएँ भड़केंगी.
भीषण ख़ून-ख़राबा हुआ और सदियों के अकाल तख़्त पूरी तरह तबाह हो गया, स्वर्ण मंदिर पर भी गोलियाँ चलीं कई सदियों में पहली बार वहाँ से पाठ छह, सात और आठ जून को नहीं हो पाया. ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सिख पुस्तकालय जल गया.
भारत सरकार के श्वेतपत्र के अनुसार 83 सैनिक मारे गए और 249 घायल हुए. इसी श्वेतपत्र के अनुसार 493 चरमपंथी या आम नागरिक मारे गए, 86 घायल हुए और 1592 को गिरफ़्तार किया गया. लेकिन इन सब आँकड़ों को लेकर अब तक विवाद चल रहा है. सिख संगठनों का कहना है कि हज़ारों श्रद्धालु स्वर्ण मंदिर परिसर में मौजूद थे और मरने वाले निर्दोष लोगों की संख्या भी हज़ारों में है. इसका भारत सरकार खंडन करती आई है.
इस कार्रवाई से सिख समुदाय की भावनाओं को बहुत ठेस पहुँची. कई प्रमुख सिख बुद्धिजीवियों ने सवाल उठाए कि स्थिति को इतना ख़राब क्यों होने दिया गया कि ऐसी कार्रवाई करने की ज़रूरत पड़ी? कई प्रमुख सिखों ने या तो अपने पदों से इस्तीफ़ा दे दिया या फिर सरकार द्वारा दिए गए सम्मान लौटा दिए.
सिखों और काँग्रेस पार्टी के बीच दरार पैदा हो गई जो उस समय और गहरा गई जब दो सिख सुरक्षाकर्मियों ने कुछ ही महीने बाद 31 अक्तूबर को तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधीकी हत्या कर दी. इसके बाद भड़के सिख विरोधी दंगों से काँग्रेस और सिखों की बीच की खाई और बड़ी हो गई.
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
- SikhMuseum.com Operation Blue Star Exhibit
- Neverforget84.com "Operation Bluestar" page
- "1984 Sikhs' Kristallnacht" - 5-part Youtube video.
- Ensaaf.org "1984 Sikhs' Kristallnacht" PDF - 28 pages
- Sikh.com - Operation Blue Star page
- BBC "Operation Blue Star" page
- Rediff.com "Operation Bluestar 20 years on"
- BBC Reports and timeline
- BBC Flashback
- "Sikh Times" article on press coverage of Operation Blue Star
- Sikhfauj.com "Operation Bluestar and Indira" - link appears dead - 2009 May
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