কলকাতা বইমেলায় মুখ্যমন্ত্রীর গাড়ি আনতে সামান্য দেরি হওয়ায় কর্তব্যরত পুলিসকর্মীকে ধরে চাবকানো উচিত বলে মন্তব্য করেছিলেন মুখ্যমন্ত্রী। একই ঘটনার পুনরাবৃত্তি এবার মাটি উত্সবে। এবার মুখ্যমন্ত্রীর রোষের শিকার সাংবাদিকরা।
মাটি উত্সব পরিদর্শনের সময় চিত্রগ্রাহকদের আটকানোর চেষ্টা করেন মুখ্যমন্ত্রীর নিরাপত্তারক্ষীরা। ওইসময় চিত্রগ্রাহকদের সঙ্গে নিরাপত্তারক্ষীদের ধাক্কাধাক্কি হয়। এক চিত্রগ্রাহক পড়ে যান। এতেই ধৈর্য হারান মুখ্যমন্ত্রী। তারপরই তিনি চিত্কার করে থাপ্পড় মারার হুমকি দেন। শুধু তাই নয়। রেগেমেগে মেলা ছেড়ে বেরিয়েও যান মুখ্যমন্ত্রী। কিছুক্ষণ পর অবশ্য ফিরে আসেন মেলা পরিদর্শনে।
সে দিন কী বলেন মুখ্যমন্ত্রী, দেখতে ক্লিক করুন এখানে
http://zeenews.india.com/bengali/kolkata/mamata-takes-on-journalist_11313.html
এই ঘটনার উত্তাপ কমতে না কমতেই ফের বিতর্কে জড়িয়ে পড়লেনমুখ্যমন্ত্রী। বইমেলার ঘটনারই পুনরাবৃত্তি হল এবার মুখ্যমন্ত্রীর সাধের মাটি উত্সবে। তবে এবার মুখ্যমন্ত্রীর রোশের মুখে পড়লেন সাংবাদিকরা। রেগে গিয়ে তিনি সাংবাদিকদের হুমকি দেন, 'এক থাপ্পড় দেব।' মাটি উত্সব পরিদর্শনের সময় বিভিন্ন সংবাদমাধ্যমের চিত্রগ্রাহকদের আটকানোর চেষ্টা করেন মুখ্যমন্ত্রীর নিরাপত্তারক্ষীরা। এই নিয়ে চিত্রগ্রাহকদের সঙ্গে নিরাপত্তারক্ষীদের ধাক্কাধাক্কি হয়। ফলে এক চিত্রগ্রাহক পড়ে যান। এতেই রেগে যান মুখ্যমন্ত্রী।এর ফুটেজ ধরা পড়েছে বৈদ্যুতিন সংবাদমাধ্যমের ক্যামেরাতেও।
দীর্ঘদিন পর ফের একমঞ্চে মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় ও মহাশ্বেতা দেবী। পানাগড়ে মাটি উত্সবের সূচনা করে মহাশ্বেতা দেবীকে সংবর্ধনা জানালেন মুখ্যমন্ত্রী। পাল্টা সরকারের সাফল্যের খতিয়ান তুলে ধরে মুখ্যমন্ত্রীর ভূয়সী প্রশংসা শোনা গেল প্রবীণ সাহিত্যিকের গলায়।
পরিবর্তন চাই স্লোগান তুলে তৃণমূলের সমর্থনে পথে নেমেছিলেন সাহিত্যিক মহাশ্বেতা দেবী। সরকার বদলের পর ২০১১-র ২১ জুলাইয়ের মঞ্চেও ছিলেন। কিন্তু, তারপর বিভিন্ন ইস্যুতে সরকারের বিরুদ্ধে মুখ খুলেছিলেন। এমনকী দিনকয়েক আগে বইমেলাতেও খানিক অসন্তোষের সুরই শোনা গেছিল। সেখানে তিনি বলেন, মানুষের যাতে ভালো হয় সেকাজই করুক সরকার।
আর শনিবারের পানাগড় দেখল পুরনো ছবি। মাটি উত্সবের মঞ্চে মুখ্যমন্ত্রীর পাশে মহাশ্বেতা দেবী। মহাশ্বেতা দেবী এ দিন বলেন, "হাত তুলে সরকারের জয়ধ্বনি করুন।"
নিন্দুকদের কিন্তু তবু যায় না। কেন হঠাত্ এমন অবস্থান বদল? কেনই বা স্বতঃস্ফুর্ত বক্তব্য রাখতে অভ্যস্ত মহাশ্বেতা দেবী খাতা দেখে বক্তব্য রাখলেন?
এ তো অচেনা মহাশ্বেতা দেবী। তবে কি যা বললেন তা নিজে লেখেননি প্রবীণ সাহিত্যিক? যা বললেন তা নিশ্চয়ই বিশ্বাস করেন।
http://zeenews.india.com/bengali/kolkata/mahasweta-devi-starts-praising-cm-again_11297.html
Mahashweta Devi
टिप्पणियॉ: पढे
दो दशक पहले धनबाद के जो दो लोग मेरे निकट संपर्क में आए थे, वे हैं - एके राय और पलाश विश्वास। माक्र्सवादी चिंतक एके राय सांसद भी रहे और अपने इलाके में वामपंथी आंदोलन को दिशा देने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, तो पलाश गद्य लेखक हैं और पत्रकारिता उनकी वृत्ति रही है। उसी पलाश ने एक युग से भी पहले (1में) अमेरिकी साम्राज्यवाद के उन खतरों की तरफ देश का ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश की थी, जिन खतरों से आज समूचा देश जूझ रहा है। पलाश का उपन्यास 'अमेरिका से सावधान' जनवरी 1से धनबाद के दैनिक आवाज में धारावाहिक रूप से छपा। इस उपन्यास में पलाश ने उसी समय भारत और अमेरिका के बीच संभावित परमाणु समझौते की आशंका जाहिर की थी। पूरी दुनिया पर बादशाहत कायम करने के लिए अमेरिका कितने क्रूर और घिनौने हथकंडे अपना सकता है, उन सबका ब्योरा भी कतिपय पात्रों के जरिए पलाश ने दिया था। लेखक को भविष्यदृष्टा कहते हैं और पलाश की दूर-दृष्टि ने 13 साल पहले ही भविष्य के खतर को भांप लिया था। इस उपन्यास की 100 से ज्यादा किश्तें आवाज में छपीं और पाठकों के साथ ही साहित्य समालोचकों का ध्यान भी उसकी तरफ गया। मैनेजर पांडेय, छेदीलाल गुप्त, नागाजरुन, त्रिलोचन जसे साहित्य शिल्पियों ने उपन्यास के वैशिष्ट्य पर रोशनी डाली थी। साम्राज्यवाद के खतरे पर पलाश ने कहानियां भी लिखी हैं। हालांकि कहानियां दूसर विषयों पर भी उन्होंने लिखी हैं। पलाश के कहानी संग्रहों-'ईश्वर की गलती' और 'अंडे सेते लोग' में विषय वैविध्य है, तो शिल्प की नवीनता भी है। पलाश का एक उपन्यास-उनका मिशन-बांग्ला में भी छपा है। पलाश बांग्लाभाषी हैं किंतु हिंदी में लिखते हैं। नैनीताल के बसंतीपुर गांव के एक पुनर्वासित शरणार्थी बंगाली परिवार में जन्मे पलाश ने जब होश संभाला, तो अपने को तराई में बसे पूर्वी बंगाल के उाड़े हुए लोगों के बीच पाया। तब से लेकर लेखक बनने तक उन्होंने गौर किया कि पूर्वी बंगाल से आए लोगों के हालात में 70 के दशक में लेबल लगने के अलावा कोई बुनियादी परिवर्तन नहीं आया। पलाश ने अपनी अनेक कहानियों में बताया है कि आज भी बंगाली शरणार्थियों की हालत हाशिए पर पड़े आदिवासियों जसी है या फिर अनुसूचित जाति, जनजाति या पिछड़ों से भी बदतर है। बंगाली शरणार्थियों को कहीं कोई रियायत नहीं मिलती। आजादी के तुरंत बाद भारत में बसे होने के बावजूद इन्हें विदेशी या घुसपैठियों का तगमा दिया जाता है। पलाश की चिंता यह है कि इस देश की भिन्न भाषा-भाषी अनेक पीढ़ियां विभाजन की त्रासदी को ढोने को मजबूर हैं। विभाजन के खतर और साजिशों की तह तक वे जाते हैं। पलाश को बचपन से ही देश को टुकड़ा-टुकड़ा करता साम्राज्यवादी हाथ दिखता रहा। नैनीताल की तराई में ही पलाश की पढ़ाई-लिखाई हुई। प्राइमरी में गुरुाी पीतांबर पंती तो जीआईसी नैनीताल में ताराचंद त्रिपाठी से मिले। अनेक कुमाऊंनी या गढ़वाली साथी मिले। उन्हीं के बीच उन्होंने अंग्रेजी में एमए किया और देखते-देखते वे बांग्लाभाषी पहाड़ी हो गए। पलाश चिपको आंदोलन से जुड़े और उस दौरान पहाड़ को बहुत करीब से देखा, तो पाया कि पहाड़ तो कभी खत्म न होनेवाले युद्ध को प्रतिपल झेल रहा है। अपनी जमीन से उाड़े बगैर हर पल पहाड़ के लोग शरणार्थी जसी हालत में पहुंच रहे हैं। पलाश की चिंता इस त्रासदी को लेकर है कि पहाड़वासी आज भी नहीं जानते कि वे युद्धपीड़ित और शरणार्थी हैं। 1से 1तक मेरठ और बरली में अखबारी नौकरी करते हुए पलाश बार-बार पहाड़ गए-चिपको की पृष्ठभूमि में लौटने को। उसी दौरान अमेरिका ने इराक पर हमला कर दिया। पलाश ने महसूस किया कि अमेरिकी खाड़ी तक ही सीमित नहीं रहेंगे। खाड़ी युद्ध पर पलाश ने प्रचुर अखबारी लेखन किया, तभी भारतीय संदर्भ में कोई बड़ा काम करने का संकल्प भी किया जो 'अमेरिका से सावधान' के रूप में सामने आया। अमेरिकी साम्राज्यवाद के विरुद्ध इस युद्ध की घोषणा को आमतौर पर पाठकों और साथी रचनाकारों ने स्वीकार तो किया, किंतु मेरी राय में इस उपन्यास को यदि साम्राज्यवाद विरोधी मुहिम के तौर पर पूर देश में फैलाया जाता, तो एक बड़े लक्ष्य की पूर्ति होती। इस उपन्यास में जितनी कथा है उतना ही दस्तावेज भी। साम्राज्यवादी खतर से देश को आगाह करने के दायित्व का एक युग पहले ही पलाश ने निर्वाह किया था। साम्राज्यवादी हमले निरंतर जारी हैं और भारत की नियति ही अब साम्राज्यवाद विरोध पर निर्भर है। ऐसी कृतियां आज परमाणु करार विवाद के समय साम्राज्यवाद विरोधी संवाद और बहस का बड़ा मंच बन सकती हैं। मुझे याद है कि उपन्यास के शीर्षक को लेकर कई सवाल खड़े किए गए थे। मेरी राय में इसका शीर्षक कलात्मक नहीं है तो इसकी आलोचना नहीं करनी चाहिए। प्रश्न है, साम्राज्यवाद विरोधी हमला क्या कलात्मक है? साम्राज्यवादी हमला क्या कलात्मक है?
http://www.livehindustan.com/news/1/1/1-1-38276.html
মাটি উত্সবে মমতার প্রশংসায় মহাশ্বেতা
আনন্দবাজার – শনি, ৯ ফেব্রুয়ারী, ২০১৩প্রায় দেড় বছরের ব্যবধানে ফের একমঞ্চে মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় এবং মহাশ্বেতা দেবী। পানাগড়ে মাটি উত্সবের মঞ্চ থেকে শনিবার মুখ্যমন্ত্রী ও তাঁর সরকারের ঢালাও প্রশংসা শোনা গেল বর্ষীয়ান সাহিত্যিকের মুখে। তাঁকে বলতে শোনা গেল, রাজ্যে নতুন সরকার প্রকৃত অর্থেই গরিবের সরকার। মমতার জমানায় রাজ্যবাসীর আশা পূরণ হবে বলেও আশা প্রকাশ করেন মহাশ্বেতা দেবী তিনি বললেন, ৩৪ বছরে যা হয়নি, আশা করি, মমতা সেসব বিষয়ে যথার্থ পদক্ষেপ করবেন।
তৃণমূল ক্ষমতায় আসার পর ব্রিগেডে প্রথম ২১ জুলাইয়ের সমাবেশে মমতার পাশে দেখা গিয়েছিল মহাশ্বেতা দেবীকে। অসুস্থ শরীরেও মমতার আহ্বানে সাড়া দিয়ে সমাবেশে আসেন তিনি। গত বছরও বর্ষীয়ান সাহিত্যিকের জন্মদিনে বাড়িতে গিয়ে তাঁকে শুভেচ্ছা জানান মমতা। কিন্তু সুর কাটে এরপরই। বিভিন্ন ইস্যুতে সরকারের সমালোচনায় সরব হন মহাশ্বেতা দেবী। রাজ্য সরকারের সংবাদপত্র-ফতোয়ার সমালোচনা করে তিনি বলেন, মানুষের কাছে ভুল বার্তা গেল। বিদ্যাসাগর পুরস্কারের জন্য তাঁর প্রস্তাবিত নাম গ্রাহ্য না হওয়ায় পশ্চিমবঙ্গ বাংলা অ্যাকাডেমির পদ থেকে ইস্তফাও দিয়ে বলেন, জীবনে কখনও এরকম অপমানিত হইনি। এমনকী, মেট্রো চ্যানেলে এপিডিআরের সভাকে কেন্দ্র করে বিতর্কে তীব্র ক্ষোভ প্রকাশ করে রাজ্য সরকারের আচরণকে ফ্যাসিবাদের সঙ্গেও তুলনা করতেও পিছপা হননি তিনি। মমতা-মহাশ্বেতার দূরত্ব বৃদ্ধি নিয়ে রাজনৈতিক মহলে জল্পনাও শুরু হয়। অবশ্য এবছরও ১২ জানুয়ারি ফের মহাশ্বেতা দেবীর বাড়ি গিয়ে তাঁকে জন্মদিনের আগাম শুভেচ্ছা জানান মমতা। আর তারপর এবার এক মঞ্চে।
এক সময়ে পরিবর্তনের দাবিতে পোস্টারে যাঁদের দেখা গিয়েছিল, তাঁদের মধ্যে অনেকেই দেড় বছরের মধ্যে সরকারের সমালোচনায় পথে নেমেছেন। অন্যদিকে, বিদ্বজ্জনেদের পাশে পেতে রাজনৈতিক দলগুলি যেখানে ততপর হয়ে উঠেছে, বুদ্ধিজীবীদের আবেদনে সাড়া দিয়ে সিটু ভাষা দিবসে ধর্মঘট থেকে পিছিয়ে এসেছে, সেখানে পার্কস্ট্রিট কাণ্ডে মিছিলে দেখা গিয়েছে কংগ্রেস নেতাদের। এই পরিস্থিতিতে মহাশ্বেতার উপস্থিতি মুখ্যমন্ত্রীকে অনেকটাই স্বস্তি জোগাবে বলে মনে করছে রাজনৈতিক মহল।
ডেসটিনি ডেস্ক
বিদ্যাসাগর পুরস্কারের জন্য সুপারিশকৃত দুজন লেখকের মধ্যে একজনের নাম বাদ দেওয়ায় অপমানে পদত্যাগ করেন পশ্চিমবঙ্গ বাংলা একাডেমীর চেয়ারম্যান বিশিষ্ট লেখক-সাহিত্যিক মহাশ্বেতা দেবী।
গতকাল বুধবার পশ্চিমবঙ্গের মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের কাছে তার পদত্যাগপত্র ফ্যাক্সে পাঠিয়ে দেন।
পদত্যাগের পর পিটিআইকে দেওয়া এক সাক্ষাৎকারে মহাশ্বেতা দেবী বলেন, একজন লেখক হিসেবে জীবনে আমি কোনোদিন এতটা অপমানিত হইনি। এই সিদ্ধান্ত অযৌক্তিক।
একাডেমীর সাম্প্রতিক এক সভায় বিদ্যাসাগর পুরস্কারের জন্য তিনি দুজন লেখকের নাম সুপারিশ করেন। তাদের মধ্যে একজনের নাম রাজ্য সরকার বাদ দিয়ে দেয়।
এ ব্যাপারে মহাশ্বেতা দেবী বলেন, এটা ছিল সভার সর্বসম্মত সিদ্ধান্ত। ওই দুজনের নামের বিষয়ে উপস্থিত সবাই একমত পোষণ করেন। ওই চূড়ান্ত তালিকা থেকে একজনের নাম কেন বাদ দেওয়া হল তা আমি জানি না।
গত নির্বাচনে অনেক কবি, লেখক, সাহিত্যিকের সঙ্গে মহাশ্বেতা দেবী বামফ্রন্টের বিরুদ্ধে তৃণমূল কংগ্রেস নেতা মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের পক্ষ নিয়ে প্রচারণা চালিয়েছেন। মমতার বিভিন্ন সিদ্ধান্তের কারণে গত এক বছরে শিক্ষাবিদ সুনন্দ স্যান্নালসহ তাকে সমর্থনকারী বুদ্ধিজীবীদের অনেকে তার বিরুদ্ধে চলে গেছেন। মহাশ্বেতা দেবী মমতার বিভিন্ন কর্মকা- নিয়ে অসন্তোষ প্রকাশ করলেও সম্প্রতি বলেছেন, তৃণমূল কংগ্রেসকে আরো কিছু সময় দেওয়া যেতে পারে।
মহাশ্বেতা দেবীর মনোনীত দুজন লেখকের মধ্যে একজনকে কেন বাদ দেওয়া হলো_এই প্রশ্ন তুলে গতকাল বুধবার বিকেলে বাংলা আকাদেমির পদ ছাড়ার ঘোষণা দেন তিনি।
মহাশ্বেতা দেবীর ভাষায়, 'আমার লেখক জীবনে এত অপমানিত হইনি। এই ঘটনায় আমি ব্যথিত। তাই মুখ্যমন্ত্রী মমতা ব্যানার্জির দপ্তরে ফ্যাঙ্ করে আমার পদত্যাগপত্র পাঠাচ্ছি।'
কেন এ ধরনের সিদ্ধান্ত_এই প্রশ্নের উত্তরে কালের কণ্ঠকে মহাশ্বেতা দেবী বলেন, 'রবীন্দ্রনাথ, নজরুল ও বিদ্যাসাগর পুরস্কারের জন্য যে কমিটি তৈরি হয়েছে সেই কমিটিতে সর্বসম্মতভাবে দুজনের নাম পাস হয়েছে। কিন্তু ঘোষণা হলো মাত্র একজনের নাম।'
প্রতিবছর রাজ্যের দুজন লেখককে 'বিদ্যাসাগর' পুরস্কার দেওয়া হয়। তৃণমূল সরকার ক্ষমতায় আসার পর প্রথম এই পুরস্কার দেওয়া হচ্ছে। মহাশ্বেতা দেবী যে দুজন লেখকের নাম পাঠিয়েছিলেন তাঁরা হচ্ছেন শঙ্কর প্রসাদ চক্রবর্তী ও শিবাজি বন্দ্যোপাধ্যায়। এবারের বিদ্যাসাগর পুরস্কারের জন্য শিবাজি বন্দ্যোপাধ্যায়কে মনোনীত করা হয়েছে।
বাংলা আকাদেমির পদ থেকে মহাশ্বেতা দেবীর ইস্তফা দেওয়ার সিদ্ধান্তের খবর শুনে পশ্চিমবঙ্গের বুদ্ধিজীবী মহলে তুমুল বিতর্ক শুরু হয়েছে।
মহাশ্বেতা দেবীর এমন সিদ্ধান্তের তীব্র প্রতিবাদ করেছেন তৃণমূল সরকারের আরেক ঘনিষ্ঠ বুদ্ধিজীবী শুভা প্রসন্ন। বুধবার সন্ধ্যায় তিনি কালের কণ্ঠকে বলেন, 'মহাশ্বেতা দেবীর মতো একজন সৃষ্টিশীল মানুষের কাছ থেকে এ ধরনের আচরণ আশা করিনি। তিনি বয়সের কারণে এখন অনেক সিদ্ধান্ত নিজে নিতে পারেন না। ঘনিষ্ঠ ব্যক্তিদের পরামর্শ মতোই চলতে হচ্ছে তাঁকে। তবে তাঁর মতো একজন গুণী মানুষের যেকোনো পরামর্শ সরকার সব সময় গ্রহণ করবে।'
প্রখ্যাত সাহিত্যিক সুনীল গঙ্গোপাধ্যায় বলেছেন, 'সৃষ্টিশীল মানুষেরই উচিত যেকোনো ক্ষমতার বৃত্তের বাইরে থাকা। একটা নির্দিষ্ট দূরত্ব রেখে চলা।'
শিশু একাডেমীর চেয়ারম্যান ও নাট্যকার অর্পিতা ঘোষ বলেছেন, 'মহাশ্বেতা দেবীর পাঠানো দুটি নামের মধ্যেই তো একজনকে বাছাই করা হয়েছে। তৃতীয় কোনো নাম তো সরকার ঢোকায়নি। তবে কেন এ ধরনের অভিযোগ তুলে মহাশ্বেতা দেবীর মতো একজন মানুষ ইস্তফার মতো চরম সিদ্ধান্ত নিতে যাবেন?' তবে এ যুক্তির বিরুদ্ধে রাজ্যের শীর্ষস্থানীয় আরেক বুদ্ধিজীবী শিক্ষাবিদ সুনন্দ স্যান্নাল। তাঁর আশঙ্কা, মহাশ্বেতা দেবীর এমন সিদ্ধান্ত রাজ্যে অশুভ কিছুর সংকেত দিচ্ছে।http://www.kalerkantho.com/?view=details&type=gold&data=Islamic&pub_no=892&cat_id=1&menu_id=43&news_type_id=1&index=27&archiev=yes&arch_date=24-05-2012
টাকা মাটি মাটি টাকা, দেখল পানাগড়
পানাগড় : সাড়ে ৩ ঘন্টার বিগ বাজেট ম্যাটিনি শো৷ ছবির নাম,'মাটি উত্সব'৷ কাহিনী, চিত্রনাট্য ও পরিচালনায় মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়৷ টাইটেল ট্র্যাকে 'আলু ব্যচো, ছোলা ব্যাচো খ্যাত' প্রতুল মুখোপাধ্যায়৷ সঙ্গীত পরিচালনায় নচিকেতা চক্রবর্তী ও ইন্দ্রনীল৷ প্রযোজনায় পশ্চিমবঙ্গ সরকার৷ বাংলার বক্স অফিসে শোরগোল ফেলে শনিবার পানাগড়ের 'মাটি উত্সবে' ফের সাহিত্যিক মহাশ্বেতা দেবীর সঙ্গে প্রকাশ্যে 'সন্ধি' করলেন মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়৷ গত কয়েক মাস মুখ্যমন্ত্রী ও তাঁর সরকারের উপর্যুপরি সমালোচনা করার পর এদিন লেখিকাও ফিরে গেলেন আগের অবস্থানে৷ মাটির প্রদীপ জ্বেলে তিনি বলেন, 'এই সরকার গরিবের, এই সরকার দীন-দুঃখীর সরকার হয়ে এসেছে৷ চৌত্রিশ বছরে যা হয়নি তা করবে মমতার সরকার৷' সংখ্যালঘু উন্নয়ন থেকে কিষাণ ক্রেডিট কার্ড, ইমাম ভাতা থেকে জল ধরো, জল ভরো ইত্যাদি মমতার বুলিই আওড়ালেন লেখিকা৷
আফজল গুরুর ফাঁসি, গোলশূল্য ডাবি, আর পুলিশ চাবকানোর বিতর্ক থেকে শতহস্ত দূরে উত্সবের আবহে মুখ্যমন্ত্রী কথা বললেন কম৷ ছবি আঁকলেন বেশি৷ মঞ্চের উপর বিশাল ক্যানভাসে৷ তাঁকে সঙ্গত করলেন শুভাপ্রসন্ন ও যোগেন চৌধুরি৷ সে সময় বিচিত্রানুষ্ঠানের কায়দায় মঞ্চেই জমে উঠেছিল অনুরোধের আসর৷ জনতার আবদারে একের পর এক গান গাইলেন নচিকেতা ও ইন্দ্রনীল৷ মাটিই এই উত্সবের প্রেরণা বলে ঘোষণা থাকলেও উদ্বোধনী মঞ্চে ছিল জিন্স, জ্যাকেট, সানগ্লাস আর ব্রান্ডেড পাঞ্জাবি পরিহিত শহুরে শিল্পীদের দাপাদাপি৷ বাউল, কবিয়াল, একতারা, ডুগডুগির ছোঁয়া ছিল বটে, কিন্ত্ত মুখ্যমন্ত্রীর নিজস্ব ব্যান্ডই ছিল উত্সবের ইউএসপি৷
সদ্য বৃহস্পতিবার মহাকরণে মুখ্যমন্ত্রী ঘোষণা করেছিলেন, এবছর নিজের আঁকা ছবি বিক্রি করে পঞ্চাশ লক্ষ টাকা দান করছেন তিনি৷ পরের দিন শুক্রবার একটি টিভি চ্যানেলে বসে গৌতম দেব ফের প্রশ্ন তোলেন, কোটি কোটি টাকা দিয়ে কারা কিনছেন মমতার আঁকা ছবি৷ সংশয়ী আর কৌতুহলীদের প্রশ্নের তুলি যখন নিত্যদিন মমতার ক্যানভাসে আঁচড় কাটছে, ঠিক তখনই জনৈক নাম না জানা চিত্রপ্রেমী পানাগড়ের ছবিও কিনে নিলেন ১০ লক্ষ টাকায়৷ শনিবার মাটি উত্সবের মঞ্চ থেকেই এই তথ্য ঘোষণা করেন মুখ্যমন্ত্রীর ঘনিষ্ঠ নাট্যকর্মী অর্পিতা ঘোষ৷ তবে এক্ষেত্রেও ক্রেতার নাম কিন্ত্ত গোপনই রাখা হয়েছে৷ অর্পিতাই ঘোষণা করেন মুখ্যমন্ত্রীর নির্দেশে বর্ধমানের জেলাশাসকের তহবিলে ওই ১০ লাখ টাকা জমা দেওয়া হচ্ছে৷ ওই টাকা বরাদ্দ থাকবে বাউল-ফকির কল্যাণের জন্য৷
উত্সবের আগে অলিখিত ফতোয়া জারি করা হয়েছিল জনপ্রতিনিধিদের পড়তে হবে মেটে রঙা পোশাক৷ অথচ উদ্বোধনী অনুষ্ঠানে দেখা গেল স্বয়ং মুখ্যমন্ত্রী ছাড়া সেই ফতোয়া মানেননি এক ডজন মন্ত্রীর একজনও৷ মমতার পরণে ছিল মেটে রঙের শাল৷ এদিন তাঁর হাওয়াই চটির রং-ও ছিল মেটে৷ সামান্য ভক্তি দেখিয়ে মন্ত্রী রচপাল সিং অবশ্য মেটে রং-এর পাগড়ি আর প্যান্ট পরেছিলেন৷ প্রায় চোদ্দ-পনেরো জন মন্ত্রী থাকলেও, তত্পরতা ছিল মুখ্যমন্ত্রীরই৷ অনুষ্ঠানের প্রথম দিকে শিক্ষামন্ত্রী ব্রাত্য বসু বলেন,'এ দেশে প্রথম মাটির কাছাকাছি থাকার উত্সব এটা৷' মুখ্যমন্ত্রী নিজেও তাঁর মস্তিস্কপ্রসূত এই উত্সবকে 'পৃথিবীতে সর্বপ্রথম' বলে বর্ণনা করেন৷
উত্সব মানেই উপহার৷ তাই মুখ্যমন্ত্রীও মাটির কাছাকাছি থাকা বাউল ফকিরদের দান-ধ্যান করেছেন সাধ্য মতো৷ সারা জীবনের অবদানের জন্য দুই বাউল শিল্পী অর্জুন খ্যাপা ও বিশ্বনাথ অধিকারীর হাতে ৫০ হাজার টাকার চেক তুলে দেওয়া হয়৷ অনুষ্ঠানে হাজির শ'খানেক বাউলকে এককালীন ২,৫০০ টাকা করে দেওয়া হবে বলে প্রতিশ্রীতি দিয়েছেন মমতা৷ লোকশিল্পীদের জন্য ডেটা ব্যাংক তৈরি করে তাঁদের সরকারি কাজে ব্যবহার করার পরিকল্পনা ঘোষণা করেছেন৷ তিনি বলেন,'আমি মুখ্যসচিব সঞ্জয় মিত্রের সঙ্গে কথা বলেছি৷ বাউল ভাইদের গ্রামে গ্রামে পোলিও-র প্রচারে গান গাইতে হবে৷'
উত্সবের ছন্দপতন হওয়ার মতো ছিল একটি মাত্র ঘটনা৷ আশপাশের গ্রামাঞ্চল থেকে কিছু তৃণমূল সমর্থক সিপিএমের 'অত্যাচারের' কথা প্ল্যাকার্ডে লিখে মুখ্যমন্ত্রীকে দেখানোর জন্য মঞ্চের সামনে এসে বসেছিলেন তিনি আসার আগে৷ পুলিশমন্ত্রীর পছন্দ না হলে তাঁদের গর্দান যেতে পারে আশঙ্কায় পুলিশকর্তারা আগেই প্ল্যাকার্ডগুলি কেড়ে নেন৷
মাটির রং কী, ফাঁপরে তৃণমূলের নেতারা
শ্রীরামকৃষ্ণের সেই অমোঘ উপলব্ধি এ বার নতুন রূপে বাস্তবায়িত হচ্ছে পানাগড়ে, রাজ্য সরকারের মাটি উত্সবে৷
আর সরকারি কর্তাদের এখন সেই নিয়েই নাভিশ্বাস৷ পান থেকে যেন চুন না খসে৷ অথবা বলা ভাল, বাঁশ থেকে যেন মাটি না খসে!
বরাদ্দ ছিল আড়াই কোটি৷ কিন্ত্ত তাতে যে মুখ্যমন্ত্রীর সাধের এই হট্টমেলার খরচ কুলোবে না, বেশ বুঝছেন মহাকরণের কর্তারা৷ যদিও সেই নিয়ে চিন্তা পরে, আগে 'ম্যাডাম'-এর মনের মতো করে মেলা সাজাতে হবে৷ তাঁর জনপ্রিয়তার তিন স্তম্ভের একটি যে মাটি৷ তাই সরকারি স্টল থেকে কৃত্রিম গ্রামের উঠোন- সর্বত্রই মাটি মাখাতে ব্যস্ত সবাই৷ শহর কলকাতার 'থিম পুজো'র কায়দাতেই রুক্ষ পানাগড়ে গড়ে উঠছে 'আদর্শ গ্রাম'৷ লালবাবা আশ্রম চত্বরে সদ্য কাটা পুকুরে মাছ চাষ, মা-বোনেদের হাতে তৈরি 'লাইভ' পিঠেপুলি', গোরুর টাটকা দুধে গরম পায়েস থেকে শুরু করে ধানের চাষ- সবই মাটিময়৷ খাবার যে দেওয়া হবে মাটির পাত্রেই৷ তার মধ্যেই কেউ তাঁত বুনছেন, কেউ খই ভাজছেন৷ আর সেই আদর্শ গ্রামেই 'মাটি মেখে' দাঁড়িয়ে গিয়েছে রাজ্যের বিভিন্ন দপ্তর ও কর্পোরেশনের অন্তত ৬৮টি স্টল৷ কারণ মাটির গুরুত্ব বোঝাতে গিয়ে বাঁশের বেড়াতেও মাটি মাখাচ্ছেন কর্মীরা৷ অল্প কথায়, সরকারি খরচে সরকারের আরও একটি মহোত্সব৷ চমকও আছে অবশ্য৷ মেলার থিম সং-এর সঙ্গে থাকছে খোদ মুখ্যমন্ত্রীর লেখা থিম কবিতাও! সেটা মুখ্যমন্ত্রীই পড়বেন৷ মন্ত্রীদের 'ড্রেস কোড'-ও বলেও দিয়েছেন মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়, সব্বাইকে মাটি রংয়ের পাঞ্জাবি পরে আসতে হবে৷
আর সেখানেই বড় গেরোয় পড়েছেন শাসকদলের মন্ত্রীরা৷ তাঁদের সবার একটাই প্রশ্ন৷ মাটির রং কী? বীরভূমের মাটির সঙ্গে বর্ধমানের মিল নেই, মেদিনীপুরের সঙ্গে মুর্শিদাবাদের মিল নেই, হুগলির সঙ্গে দক্ষিণ ২৪ পরগনার মিল নেই৷ তবে কি যে মন্ত্রী যে অঞ্চলের প্রতিনিধিত্ব করছেন, তাঁকে সেই অঞ্চলের মাটির রং খুঁজতে হবে? এমন হলে কলকাতার মন্ত্রীরা কী করবেন? কারণ মহানগরে রাস্তার দিকে তাকালে শুধু কালচে পিচের আস্তরণই চোখে পড়ে৷ তা ছাড়া মাটির চরিত্র অনুযায়ীও তো রং আলাদা হয়৷ রং নিয়ে 'বিভ্রান্তি' যিনি 'দূর করতে' পারেন, সেই 'ম্যাডাম'কে জিজ্ঞেস করার 'ঝুঁকি' নিচ্ছেন না কেউই৷ বরং দোকানে দোকানে 'মাটির' পাঞ্জাবি খুঁজে বেড়াচ্ছেন শাসকদলের মন্ত্রীরা৷ প্রবীণ মন্ত্রী সুব্রত মুখোপাধ্যায় তো প্রায় আঁতকেই উঠেছিলেন এহেন প্রস্তাব শুনে৷ পরে তাঁর স্বগতোক্তি, 'অনেকদিন তো রাজনীতি হল৷ পাঞ্জাবিও আছে অনেকই৷ নিশ্চয়ই খুঁজে পেতে পাওয়া যাবে একটা কাছাকাছি রঙের পাঞ্জাবি৷' টেনশন ধরে রাখতে না পেরে রাজ্যের এক মন্ত্রী প্রায় সব রংয়ের পাঞ্জাবি কিনে ফেলেছেন৷ যুক্তিও তৈরি তাঁর৷ 'কোনদিন কোনটা লেগে যায়!'
সরকারি কর্তারাও ধন্দে, সব ব্যবস্থাপনা মুখ্যমন্ত্রীর পছন্দ হবে তো? তাই শুক্রবার থেকেই মেলা প্রাঙ্গনে পৌঁছে গিয়েছেন রাজ্যের জলসম্পদ অনুসন্ধান মন্ত্রী সৌমেন মহাপাত্র৷ মুখ্যমন্ত্রীর কড়া নির্দেশ, ১৬ তারিখ মেলা শেষ পর্যন্ত তাঁকে থাকতে হবে সেখানেই৷ পান থেকে যাতে চুন না খসে, তার জন্য চার দিকে তীক্ষ্ণ নজর প্রশাসন ও পুলিশেরও৷ মমতা বন্দোপাধ্যায়ের শেষ বর্ধমান সফরে তাঁর ইচ্ছেকে উপেক্ষা করে মেয়েদের বিতরণের জন্য সাইকেল মঞ্চের নীচে রাখায় বদলি হতে হয়েছিল আসানসোলের তত্কালীন অতিরিক্ত জেলাশাসক জয়ন্ত আইকতকে৷ তাই সমস্ত আয়োজন ও নিরাপত্তাকে নিশ্ছিদ্র রাখতে বর্ধমানের জেলাশাসক ওঙ্কার সিং মীনা ও পুলিশ সুপার সৈয়দ হোসেন মহম্মদ মির্জা বার বার জেলা সদর থেকে ছুটে যাচ্ছেন পানাগড়ে৷ আসা-যাওয়া চলছে রাজ্যের দুই মন্ত্রী মলয় ঘটক ও স্বপন দেবনাথেরও৷
নেত্রীকে খুশি করতে গিয়ে পুকুরে চারাপোনাও ছাড়তে পারেননি আয়োজকরা৷ কারণ, এত কম সময়ে মেলার আয়োজন হয়তো হয়, চারাপোনা বড় হয় না৷ তাই মাঝারি সাইজের প্রচুর মাছ থাকবে, যেগুলি দর্শকদের সামনে বসেই ধরবেন স্থানীয় বাসিন্দারা৷
কিন্ত্ত এই 'ভার্চুয়াল রিয়্যালিটি' ছাড়া আর কী থাকবে মাটি উত্সবে? বর্ধমানের জেলাশাসকের কথায়,, 'সরকারি দন্তরগুলি কী কী কাজ করেছে, কী করার পরিকল্পনা আছে ভবিষ্যতে, তা তুলে ধরা হবে স্টলগুলিতে৷ কারও কোনও জিজ্ঞাসা থাকলে, তার জবাব দিতে অথবা প্রয়োজনীয় পরামর্শ জানানোর জন্য প্রস্তুত থাকবেন সরকারি আধিকারিকরা৷' তবে মাটি উত্সব আলাদা কোথায়? তৃণমূলের স্থানীয় ব্লক সভাপতি অশোক মুখোপাধ্যায় বলছেন, 'উত্সবের বিষয়বস্ত্ত এত অভিনব যে স্থানীয় মানুষের মধ্যে তাতে উত্সাহের সঞ্চার করেছে৷ তার গুরুত্ব অনেক৷' রাজ্যের ক্ষুদ্র ও কুটির শিল্পমন্ত্রী স্বপন দেবনাথের কথায়, 'পরিবর্তন বিষয়ক যাত্রাপালার আয়োজন এই উত্সবের অন্যতম আকর্ষণ৷' জানা গেল, ঢালাও লোকসঙ্গীত, নাচের অনুষ্ঠানও থাকছে৷ শাসকদলেরই এক নেতার কথায়, 'আসলে আয়োজকদের কাছে এটা একটা প্রেস্টিজ ইভেন্ট৷ কৃষি থেকে কৃষি বিপণন, মত্স্য থেকে খাদ্য প্রক্রিয়াকরণ, ক্ষুদ্র শিল্প থেকে বন দপ্তর, সবাই সবার মতো করে এখন জাল বুনছেন শুধু একজোড়া চোখকে আকৃষ্ট করতে৷'
নেতা-মন্ত্রী থেকে প্রশাসনিক কর্তা -সবার ঠিকানা তাই পানাগড়৷ বইমেলার বাইরে অপেক্ষারত রক্ষীর মতো মুখ্যমন্ত্রীর ধমক খেতে কারই বা ভাল লাগে৷
মমতার সরকারকে 'ফ্যাসিস্ট' বললেন মহাশ্বেতা দেবী
মমতার পর মহাশ্বেতার বাড়িতে প্রদীপ
আনন্দবাজার – সোম, ১৪ জানুয়ারী, ২০১৩ফের রাজ্যের পরিস্থিতি নিয়ে উদ্বেগ প্রকাশ করলেন বিশিষ্ট সাহিত্যিক ও সমাজকর্মী মহাশ্বেতা দেবী। অসুস্থ লেখিকার সঙ্গে আজ দেখা করতে যান প্রদেশ কংগ্রেস সভাপতি প্রদীপ ভট্টাচার্য। রাজ্যে রাজনৈতিক অস্থিরতা, আইনশৃঙ্খলা পরিস্থিতির অবনতি নিয়ে তিনি চিন্তিত বলে প্রদীপ ভট্টাচার্যকে জানান মহাশ্বেতা দেবী।
রাজ্যে রাজনৈতিক পরিবর্তন আনার জন্য একসময়ে সরব হয়েছিলেন মহাশ্বেতাদেবী। মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের সঙ্গে রাস্তাতেও নেমেছিলেন তিনি। রাজ্যের বর্তমান পরিস্থিতির বিরুদ্ধে সরব হওয়ার জন্য আজ তাঁকে অনুরোধ করেছেন প্রদেশ কংগ্রেস সভাপতি। বর্ষীয়ান এই লেখিকার জন্মদিনে আজ তাঁকে শুভেচ্ছাও জানিয়েছেন প্রদীপ ভট্টাচার্য।http://zeenews.india.com/bengali/videos/mahasweta-on-mao_249.html
মুখ্যমন্ত্রীর সভার আগেই ফের জমি আন্দোলনে উত্তপ্ত নন্দীগ্রাম। আন্দোলনের জেরে বন্ধ হয়ে গেল বাজকুল-নন্দীগ্রাম সতের কিলোমিটার রেল লাইনের কাজ।
রেললাইনের জন্য জমি দিয়ে চাকরি না পেয়ে এবার আন্দোলনে ঘোলপুকুর মৌজার কৃষকরা। তাঁদের অভিযোগ, দুহাজার দশ সালে যখন প্রকল্পের ঘোষণা করেন তত্কালীন রেলমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়, তখন জমিমালিকদের পরিবার পিছু একজনকে চাকরির প্রতিশ্রুতি দেন। এরপর অধিগ্রহণের কাজ শুরু হয়। কিন্তু চাকরি নয়, শুধুমাত্র জমির দামের ৮০ শতাংশ টাকা পেয়েছেন তাঁরা।
জমির বাকি দাম এবং চাকরি না পেলে তাঁরা কাজ এগোতে দেবেন না বলে জানিয়েছেন। ভূমিরক্ষা কমিটি গড়ে আন্দোলন শুরু করেছেন তাঁরা। এদিকে ১২ ফেব্রুয়ারি নন্দীগ্রামের তেখালিতে মুখ্যমন্ত্রীর সভা করার কথা।
তাহলে আমাদের কি করণীয়?
নন্দীগ্রাম নিঁখোজ কাণ্ডে পাঁচ জনকে জামিন দিল সুপ্রিম কোর্ট। শুধুমাত্র রাজনৈতিক কারণেই এই মামলায় লক্ষ্মণ শেঠ সহ বেশ কয়েকজনকে গ্রেফতার করা হয়েছিল বলে বিতর্ক হয়েছিল। শুক্রবার সেই বিতর্ককেই ফের এরবার উসকে দিল সুপ্রিম কোর্টের বিচারপতি জিএস সিংভি ও বিচারপতি দীপক মিশ্রর ডিভিশন বেঞ্চের নির্দেশ।
গুরুপদ দাস, নারুগোপাল করণ, শক্তিপদ দলপতি, মতিউর রহমান ও কানাইলাল ভুঁইঞাকে ব্যক্তিগত ২৫ হাজার টাকার বন্ডে জামিনের নির্দেশ দিল সুপ্রিম কোর্ট। এ দিন সিআইডির তদন্ত নিয়ে প্রশ্ন তুলেছে সুপ্রিম কোর্ট। মামলার অন্যতম অভিযুক্ত শক্তিপদ দলপতির গোপণ জবানবন্দী আদালতে পেশ করে সিআইডি। স্বীকারোক্তির বদলে অভিযুক্তের গোপন জবানবন্দী কেন নেওয়া হল সে প্রশ্ন তুলেছে শীর্ষ আদালত। এমনকী, এই পাঁচ জনের বিরুদ্ধে সরাসরি কোনও প্রমাণ আদালতে দাখিল করতে পারেনি সিআইডি। ফলে পাঁচজনের জামিনের নির্দেশ দেয় বিচারপতি জিএস সিংভি ও দীপক মিশ্রের ডিভিশন বেঞ্চ।
ক্ষমতায় এসে বর্তমান সরকার নন্দীগ্রাম নিঁখোজ মামলা শুরু করে। তদন্তের ভার দেওয়া হয় সিআইডিকে। তদন্তে নেমে ছেষট্টি জনের বিরুদ্ধে চার্জশিট দেয় সিআইডি। গ্রেফতার করা হয় লক্ষ্মণ শেঠসহ বেশ কয়েকজন সিপিআইএম নেতা কর্মীকে। শুক্রবার তাই অভিযোগ তুলেছেন সিপিআইএম নেতা লক্ষ্মণ শেঠ।
এই মামলাতে লক্ষ্মণ শেঠসহ অনান্য সিপিআইএম নেতা কর্মীরা গ্রেফতার হওয়ার পর রাজনৈতিক কারণেই সরকার মামলা করেছে বলে বিতর্ক হয়েছিল। শুক্রবার সুপ্রিম কোর্টের রায় সেই বিতর্ককে আরও জোরদার করল।
রাজ্য সরকারের প্রশ্রয়েই বাড়বাড়ন্ত সমাজবিরোধীদের। নিরাপত্তা নেই মহিলাদেরও। শহিদ মিনারে সিপিআইএমের সমাবেশে সরকারের বিরুদ্ধে এমনই অভিযোগ করলেন প্রাক্তন মুখ্যমন্ত্রী বুদ্ধদেব ভট্টাচার্য।
ভিড়ে ঠাঁসা সমাবেশে বক্তব্য রাখতে গিয়ে বুদ্ধবাবু অভিযোগ তোলেন, বাম আমলে রাজ্যকে শিল্পে এগিয়ে নেওয়ার চেষ্টা হলেও এখন সেই সম্ভাবনা মুখ থুবড়ে পড়েছে। নতুন সরকারের আমলে রাজ্যে আদৌ শিল্পস্থাপন সম্ভব নয় বলে শহিদ মিনারে সিপিআইএমের সমাবেশে আশঙ্কা প্রকাশ করেন তিনি।
বিশ এবং ২১ ফেব্রুয়ারির ধর্মঘট নিয়ে রাজ্য সরকারের উদ্দেশ্যে কার্যত চ্যালেঞ্জ ছুঁড়ে দিয়েছেন সিপিআইএম রাজ্য সম্পাদক বিমান বসু। এ দিন শহিদ মিনারের সমাবেশে তিনি বলেন, "রাজ্য সরকার বিরোধিতা করলেও শ্রমিক কর্মচারিদের ধর্মঘটের অধিকার কেড়ে নেওয়া সম্ভব নয়।"
মাটি উত্সব পরিদর্শনের সময় চিত্রগ্রাহকদের আটকানোর চেষ্টা করেন মুখ্যমন্ত্রীর নিরাপত্তারক্ষীরা। ওইসময় চিত্রগ্রাহকদের সঙ্গে নিরাপত্তারক্ষীদের ধাক্কাধাক্কি হয়। এতেই ধৈর্য হারান মুখ্যমন্ত্রী। তারপরই তিনি চিত্কার করে সাংবাদিকদের থাপ্পড় মারার হুমকি দেন। শুধু তাই নয়। এ প্রসঙ্গে সিপিআইএম নেতা মহম্মদ সেলিম অভিযোগ তোলেন, পঞ্চায়েত ভোটের আগে ভয়ের পরিবেশ সৃষ্টি করতে চাইছেন মুখ্যমন্ত্রী। সেই কারণেই এভাবে থাপ্পড় মারার হুমকি দিচ্ছেন।
মুখ্যমন্ত্রীর সততা বিতর্কে বুদ্ধদেব ভট্টাচার্যকে পাল্টা আক্রমণ করলেন তৃণমূল সাংসদ কল্যাণ বন্দ্যোপাধ্যায়। আজ রিষড়ার এক সভায় তিনি বলেন, মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের সততা নিয়ে প্রাক্তন মুখ্যমন্ত্রী যেন প্রশ্ন না তোলেন।
তৃণমূল সাসংদের দাবি, পরিশ্রম করে বড় হয়েছেন মুখ্যমন্ত্রী। বড় হয়েছেন তাঁর পরিবারের সদস্যরা। যাঁরা বলছেন মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় অসত, তাঁরা অন্যায় বলছেন।
বিশ্বখ্যাত সাহিত্যিক সলমন রুশদিকে সমাজবিরোধীর তকমা দিলেন পুর ও নগরোন্নয়ন মন্ত্রী ফিরহাদ হাকিম। জানিয়ে দিলেন, রাজ্য সরকার রুশদিকে কলকাতায় আসতে না দিয়ে ঠিক কাজই করেছে। সলমন রুশদির কলকাতা সফর বাতিল প্রসঙ্গে শাসকদলের নেতা-মন্ত্রীদের পরস্পরবিরোধী বক্তব্যে শনিবার নতুন মাত্রা যোগ করলেন তিনি। কেন্দ্রীয় সরকার ভিসা দিলেও রাজ্য সরকার সলমন রুশদিকে কলকাতায় আসতে দেয়নি কেন ? বীরভূমের নলহাটির জনসভায় ব্যাখ্যা দিলেন ফিরহাদ হাকিম।
তৃণমূল নেতা সৌগত রায়ের বক্তব্য অবশ্য ছিল অন্যরকম। সংবাদমাধ্যমকে তিনি বলেছিলেন, সলমন রুশদি শহরে আসবেন, লোক জানবে এবং বিক্ষোভ দেখাবে। তাতে আইনশৃঙ্খলার সমস্যা তৈরি হবে। তাই রাজ্য সরকারের তরফে ওঁকে সফর বতিলের পরামর্শ দেওয়া হয়েছিল। রাজ্য সরকার মোটেই ওঁকে নিষিদ্ধ ঘোষণা করেনি।
এরপরই রুশদির ট্যুইট বোমা। তিনি লিখলেন, ``হাস্যকর কথা, সৌগত রায়। কলকাতায় না আসার জন্য আমাকে বন্ধুত্বপূর্ণ পরামর্শ দেওয়া হয়নি। আমাকে বলা হয়েছিল, পুলিস আমাকে পরের বিমানেই ফেরত পাঠিয়ে দেবে।``
সরাসরি মুখ্যমন্ত্রীকে কাঠগড়ায় তুলে রুশদি লেখেন, ``সহজ ঘটনাটা হল যে আমার আসা আটকাতে মুখ্যমন্ত্রী মমতা ব্যানার্জি পুলিসকে নির্দেশ দেন।``
রুশদির কলকাতা সফর বাতিল যে মুখ্যমন্ত্রীর নির্দেশেই হয়েছে সে দিনই কার্যত তা মেনে নেন তৃণমূল সাংসদ সুলতান আহমেদ।
শনিবার, ফিরহাদ হাকিমের গলাতেও ছিল একই সুর। যদিও, রাজ্যের দুই মন্ত্রী সুব্রত মুখোপাধ্যায় ও রচপাল সিংয়ের বক্তব্য ছিল অন্যরকম।
রুশদি প্রসঙ্গে বইমেলায় একই দিনে কার্যত পরস্পরবিরোধী মন্তব্য শোনা গেছে দুই মন্ত্রীর গলায়।
বুকারজয়ী উপন্যাস মিডনাইটস চিলড্রেন অবলম্বনে তৈরি ছবির প্রচারে কলকাতায় আসার কথা থাকলেও শেষপর্যন্ত কেন সফর বাতিলে বাধ্য হয়েছিলেন সলমন রুশদি? শাসকদলের বিভিন্ন নেতাদের বিভিন্ন মন্তব্য বেড়েই চলেছে বিভ্রান্তি।
কেন লিখি। মহাশ্বেতা দেবী।
আমি তো বিশ্বাস করি নিরন্তর বীজ ছিটানোতে। সব বীজ তো বালিতে পড়ে না। যখন মাটিতে পড়ে, অঙ্কুর ওঠে।
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...রাষ্ট্রযন্ত্র জানে, সব বেকারকে চাকরি দেয়া যাবে না...সংস্কৃতি ক্ষেত্রেও তাই...গ্রাম থেকে আমরা শ্রমিক, কাজের লোক, চাল-সবজি-মাছ থেকে শুরু করে সব নিই। গ্রামকে দিই না বিদ্যুৎ, পানীয় জল, রাস্তা, শিক্ষার উপায়, কর্ম সংস্থানের উপায়, মেয়েদের স্বাবলম্বী হবার উপায়। গ্রাম যেন 'স্তনদায়িনী' যশোদা। সে সকলকে বাঁচায়, তাকে বাঁচায় না কেউ। গ্রামসমাজে যে স্বার্থসন্ধী ক্ষমতাশীল নয়া শ্রেণী গড়ে উঠেছে, রাষ্ট্রযন্ত্রের কল্যাণব্যবস্থা সেই ভোগ করছে...
...এ রকম অনেক কথাই বলা যায়। যে কথা গ্রাম বিষয়ে উপরে বলেছি সে কথা গ্রামীণ সংস্কৃতি বিষয়েও সত্য। এবং এখানে একটি রূঢ় সত্যও বলা যায়। গ্রামীণ শিল্প গ্রহণে শহর প্রস্তুত। তার রপ্তানি ও বিক্রয়মূল্য আছে। কিন্তু যে সব শিল্প অজানিত, অবহেলিত সে বিষয়ে শহর আগ্রহী নয়। মানসিকতা ও দৃষ্টিভঙ্গির মূলেই গলদ...
...এই গ্রামীণ সংস্কৃতিকে প্রকৃত সম্মানে গ্রহণ করা হয় নি, বাঁচিয়ে রাখা হয় নি। আসলে গণসংগীতকে কোনো দাম দেয়া হয় নি। সিনথেটিকের যুগে সিনেমায় সিনথেটিক আদিবাসী, ব্যাপক শ্রোতার জন্য সিনথেটিক গণসংগীত ও পল্লীগীতি, এগুলো পেয়েছে অবাধ ছাড়...
অন্নাভাবে শিল্পী মরছেন, সংস্কৃতি মরে যাচ্ছে।
আর গ্রামবাংলার অপসংস্কৃতির বন্যা ঢুকিয়ে দেয়া হয়েছে দেশজ সংস্কৃতিকে অবজ্ঞা করে। ভিডিও পার্লার, ক্যাসেটে হিন্দী গান, কুৎসিত হিন্দী ছবি, সিনথেটিক গণসংগীত, কি নেই!
...মানুষ ভাবছে সে স্বাধীন মতে কাজ করছে। তা তো নয়, রাষ্ট্রযন্ত্র পিছন থেকে নিয়ন্ত্রণ করছে। বলে দিচ্ছে, জীবন একটা বন্দোবস্তী বা অ্যারেঞ্জমেন্ট মাত্র। যে যার শ্রেণীস্বার্থের কথা ভাবো। ভোগবাদী মূল্যবোধ ঢুকে যাক মাটির গভীরে। যা সুস্থ, যা দেশজ, যা দেশ, যা মানুষ, তাকে শুকিয়ে মারো। অথচ এমন সংকটকালেও দেশ ও মানুষকে বাঁচাতে পারে নিঃস্বার্থ ভালবাসা, নিরন্তর আত্মত্যাগ।
আছে, তেমন মানুষ আছে। ভোলানাথ, লেঠেল রাম, গজানন, কালীপদ, রামলাল, এঁদের আমি দেখেছি, জানি। ওই জনপদও জানি পায়ে হেঁটে।
সোমরাও আছে।
তাদেরও দেখি।
আশা তাই বেঁচে থাকে। সাধারণ মানুষের নিরন্তর সান্নিধ্য, তাদের শ্রদ্ধা করে কাছে গিয়ে দাঁড়ানো, দুঃখীর দুঃখমোচনের চেষ্টা (ফল তো হাতে নেই)। এছাড়া আজকের প্রজন্মের বেঁচে থাকার অন্য কোনো পথ নেই।
আমি তো বিশ্বাস করি নিরন্তর বীজ ছিটানোতে। সব বীজ তো বালিতে পড়ে না। যখন মাটিতে পড়ে, অঙ্কুর ওঠে।
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মহাশ্বেতা দেবী
'বন্দোবস্তী' গ্রন্থের ভূমিকার কিছু অংশ
...ঐতিহাসিক উপন্যাস সম্বন্ধে কোন স্পষ্ট ধারণা আজও আমাদের যথার্থ আয়ত্তে আসেনি। ইতিহাস নিয়ে পুরুমাত্রার রোমান্স কিংবা হরেক ঘটনার পরিত্রাহি চিৎকারের মধ্যেই আমাদের ঐতিহাসিক দায়িত্ব শেষ হয়ে থাকে। আমি নিজেও যে এমনটা করিনি তা নয়, কিন্তু এখন মনে করি ঐতিহাসিক উপন্যাস রচনার অতিরিক্ত দায়িত্ব রয়েছে তার জন্য একটি বিশেষ প্রবণতা, গল্প অপেক্ষা দেশ, কাল, পাত্র, প্রথা সম্পর্কে বিশেষ জ্ঞান আবশ্যক, আবশ্যক আধুনিক মননশীলতা, কেননা ইতিহাস শুধুই অতীতের দর্পণ নয়, 'history is written precisely when the historian's vision of the past is illuminated by insights into the problems of the present' এবং ইতিহাস ভবিষ্যতের দিগদর্শনও বটে। ইতিহাসের রূপান্তর চলে ভেতরে, দৃষ্টিগোচর ঘটনার অলক্ষ্যে...
...দিনে দিনে জ্ঞান ও অভিজ্ঞতার পালা বদল হয়। ইচ্ছে হচ্ছে ইতোমধ্যে যে দোষ-ত্রুটিগুলি হঠাৎ চোখে বড় হয়ে ধরা পড়ছে, সেগুলি সেরে দিই। কিন্তু সঙ্গে সঙ্গে এও আমার মনে হচ্ছে ইচ্ছের শেষ তো নেই, সম্পূর্ণ তৃপ্তি লেখকের কখনো আসে না, আসা উচিত নয়।
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মহাশ্বেতা দেবী, ১৯৬৩
'অমৃত সঞ্চয়' গ্রন্থের ভূমিকার কিছু অংশ
- আকাশ অম্বর-এর ব্লগ
- http://www.choturmatrik.com/blogs/%E0%A6%86%E0%A6%95%E0%A6%BE%E0%A6%B6-%E0%A6%85%E0%A6%AE%E0%A7%8D%E0%A6%AC%E0%A6%B0/%E0%A6%95%E0%A7%87%E0%A6%A8-%E0%A6%B2%E0%A6%BF%E0%A6%96%E0%A6%BF%E0%A5%A4-%E0%A6%AE%E0%A6%B9%E0%A6%BE%E0%A6%B6%E0%A7%8D%E0%A6%AC%E0%A7%87%E0%A6%A4%E0%A6%BE-%E0%A6%A6%E0%A7%87%E0%A6%AC%E0%A7%80%E0%A5%A4
মহাশ্বেতা দেবী
মহাশ্বেতা দেবী একজন ভারতীয় বাঙালি লেখিকা । তিনি ১৯২৬ খ্রীষ্টাব্দে বর্তমান বাংলাদেশের ঢাকায় জন্মগ্রহন করেন । তিনি মূলত সাঁওতাল ইত্যাদি উপজাতিদের উপর কাজ এবং লেখার জন্য বিখ্যাত । ইনি জ্ঞানপীঠ পুরষ্কার পেয়েছেন । তার লেখা শতাধিক বইয়ের মধ্যে 'হাজার চুরাশির মা' অন্যতম। সাহিত্যে অবদানের জন্য ২০০৭ সালে তিনি সার্ক সাহিত্য পুরস্কার অর্জন করেন।
জীবন
মহাশ্বেতা দেবী একটি মধ্যবিত্ত বাঙালি পরিবারে জন্মগ্রহন করেছিলেন । তাঁর পিতা মনীশ ঘটক ছিলেন কল্লোল যুগের প্রখ্যাত সাহিত্যিক এবং তাঁর কাকা ছিলেন বিখ্যাত চিত্রপরিচালক ঋত্বিক ঘটক ।
মহাশ্বেতা দেবী শিক্ষালাভের জন্য শান্তিনিকেতনে ভর্তি হন । তিনি কলকাতা বিশ্ববিদ্যালয় থেকে স্নাতক হন । পরে তিনি বিশ্বভারতী বিশ্ববিদ্যালয় থেকে ইংরাজীতে এম এ ডিগ্রী লাভ করেন ।
কর্মজীবন
১৯৬৪ খ্রীষ্টাব্দে তিনি বিজয়গড় কলেজে পড়াতে আরম্ভ করেন । এই সময়েই তিনি একজন সাংবাদিক এবং লেখিকা হিসাবে কাজ করেন । পরবর্তীকালে তিনি বিখ্যাত হন মূলত পশ্চিমবাংলার উপজাতি এবং মেয়েদের উপর তাঁর কাজের জন্য । তিনি বিভিন্ন লেখার মাধ্যমে বিভিন্ন উপজাতি এবং মেয়েদের উপর শোষন এবং বঞ্চনার কথা তুলে ধরেন । সাম্প্রতিক কিছু সময়ে মহাশ্বেতা দেবী পশ্চিমবঙ্গ সরকারের শিল্পনীতির বিরুদ্ধে সরব হয়েছেন । সরকারের বিপুল পরিমানে কৃষিজমির অধিগ্রহন এবং স্বল্পমূল্যে তা শিল্পপতিদের কাছে বিতরনের তিনি কড়া সমালোচক । এছাড়া তিনি শান্তিনিকেতনে প্রোমোটারি ব্যবসার বিরুদ্ধেও প্রতিবাদ করেছেন ।
গ্রন্থ তালিকাঃ
অরণ্যের অধিকার
নৈঋতে মেঘ
অগ্নিগর্ভ
গণেশ মহিমা
হাজার চুরাশীর মা
চোট্টি মুণ্ডা এবং তার তীর
শালগিরার ডাকে
নীলছবি
বন্দোবস্তী
আই.পি.সি ৩৭৫
সাম্প্রতিক
প্রতি চুয়ান্ন মিনিটে
মুখ
কৃষ্ণা দ্বাদশী
৬ই ডিসেম্বরের পর
বেনে বৌ
মিলুর জন্য
ঘোরানো সিঁড়ি
স্তনদায়িনী
লায়লী আশমানের আয়না
আঁধার মানিক
যাবজ্জীবন
শিকার পর্ব
অগ্নিগর্ভ
ব্রেস্ট গিভার
ডাস্ট অন দ্য রোড
আওয়ার নন-ভেজ কাউ
বাসাই টুডু
তিতু মীর
রুদালী
উনত্রিশ নম্বর ধারার আসামী
প্রস্থানপর্ব
ব্যাধখন্ড
পুরষ্কারঃ
পদ্মবিভূষণ (ভারত সরকারের দ্বিতীয় সর্বোচ্চ নাগরিক পুরষ্কার ২০০৬)
রামন ম্যাগসেসে পুরষ্কার (১৯৯৭)
জ্ঞানপীঠ পুরষ্কার (সাহিত্য একাডেমির সর্বোচ্চ সাহিত্য সম্মান)
সার্ক সাহিত্য পুরষ্কার (২০০৭)
http://bengali.evergreenbangla.com/429
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mahasweta devi-এর চিত্র
- চিত্রগুলি রিপোর্ট করুন Jaipur Literature Festival 2013: Mahasweta Devi to grace curtain raiser
zeenews.india.com/.../jaipur-literature-festival-2013-mahasweta-devi-...২৩ জানুয়ারী, ২০১৩ – The curtain will go up on the DSC Jaipur Literatutre Festival 2013 Jan 24-Jan 28 under the shadow of simmering unease with Muslim hardline ...
Mahasweta Devi
www.english.emory.edu/.../Devi.html - মার্কিন যুক্তরাষ্ট্রMahasweta Devi was born in 1926 in the city of Dacca in East Bengal (modern day Bangladesh). As an adolescent, she and her family moved to West Bengal in ...
Mahasweta Devi: Latest News, Videos, Photos | Times of India
See Mahasweta Devi Latest News, Photos, Biography, Videos and Wallpapers.Mahasweta Devi profile on Times of India.
Mahasweta Devi - Mahasweta Devi Biography, Life History of ...
Mahasweta Devi is an Indian writer who writes about the life history and struggle of tribal communities. Read her biography here.
Right to dream should be fundamental right: Mahasweta Devi - India ...
২৫ জানুয়ারী, ২০১৩ – 'Just a small plot of land, covered with grass. Grow a single tree on it, let your child's bicycle rest on it, let some poor kid play there...'
Right to dream should be made a fundamental right, says ...
www.hindustantimes.com/...Mahasweta-Devi/SP-Article10-999137.as...২৪ জানুয়ারী, ২০১৩ – Renowned Bengali author Mahasweta Devi delivers keynote address ... Mahasweta Devi, rights activist and iconic Bengali writer, struck a ...
Mahasweta Devi - IMDb
Mahasweta Devi, Writer: Rudaali. ... Alternate Names: Mahashweta Debi | Mahasweta Debi | Mahashweta Devi. Message Boards. Discuss Mahasweta Devi on ...
Mahasweta Devi apologises to Vijayan - Indian Express
www.indianexpress.com/news/mahasweta-devi-apologises.../958084৫ জুন, ২০১২ – Mahasweta Devi apologises to Vijayan - Author and Gyanpith award winner Mahasweta Devi today apologised to Kerala CPM state secretary ...
Selected Works of Mahasweta Devi - Default New Page
24 Records – The Selected Works of Mahasweta Devi Mahasweta Devi (b. 1926) is one of our foremost literary personalities, a prolific and best-selling author in ...
Mahasweta Devi
Mahasweta Devi মহাশ্বেতা দেবী | |
---|---|
Born | 14 January 1926 Dhaka, British India |
Occupation | Activist, Author |
Nationality | Indian |
Period | 1956–present |
Genres | novel, short story, drama, essay |
Subjects | Denotified tribes of India |
Literary movement | Gananatya |
Notable work(s) | Hajar Churashir Maa (No. 1084's Mother) Aranyer Adhikar (The Occupation of the Forest) Titu Mir |
Signature |
Mahasweta Devi (Bengali: মহাশ্বেতা দেবী Môhashsheta Debi) (born 14 January 1926)[1][2]is an Indian social activist and writer.
Contents[hide] |
[edit]Biography
Mahasweta Devi was born in 1926 in Dhaka, to literary parents in a Hindu Brahmin family. Her father Manish Ghatak was a well-known poet and novelist of the Kallol era, who used the pseudonym Jubanashwa.[3] Noted filmmaker Ritwik Ghatak was the youngest brother of Manish Ghatak. Mahasweta's mother Dharitri Devi was also a writer and a social worker whose brothers were very distinguished in various fields, such as the noted sculptor Sankha Chaudhury and the founder-editor of the Economic and Political Weekly of India, Sachin Chaudhury. Her first schooling was in Dhaka, but after the partition of India she moved to West Bengal in India. She joined the Rabindranath Tagore-founded Vishvabharati University in Santiniketan and completed a B.A. (Hons) in English, and then finished an M.A. in English at Calcutta University as well. She later married renowned playwright Bijon Bhattacharya who was one of the founding fathers of the IPTA movement. In 1948, she gave birth to Nabarun Bhattacharya, currently one of Bengal's and India's leading novelist whose works are noted for their intellectual vigour and philosophical flavour. She got divorced from Bijon Bhattacharya in 1959.
[edit]Career
In 1964, she began teaching at Bijoygarh College (an affiliated college of the University of Calcutta system). During those days,Bijoygarh College was an institution for working class women students. Also during that period, she also worked as a journalist and as a creative writer. Recently, she is more famous for her work related to the study of the Lodhas and Shabars,the tribal communities ofWest Bengal, women and dalits. She is also an activist who is dedicated to the struggles of tribal people in Bihar, Madhya Pradesh andChhattisgarh. In her elaborate Bengali fiction, she often depicts the brutal oppression of tribal peoples and the untouchables by potent, authoritarian upper-caste landlords, lenders, and venal government officials. She has written of the source of her inspiration:
I have always believed that the real history is made by ordinary people. I constantly come across the reappearance, in various forms, of folklore, ballads, myths and legends, carried by ordinary people across generations....The reason and inspiration for my writing are those people who are exploited and used, and yet do not accept defeat. For me, the endless source of ingredients for writing is in these amazingly, noble, suffering human beings. Why should I look for my raw material elsewhere, once I have started knowing them? Sometimes it seems to me that my writing is really their doing.
At the Frankfurt Book Fair 2006, when India was the first country to be the Fair's second time guest nation, she made an impassioned inaugural speech wherein she moved the audience to tears with her lines taken from the famous film song by Raj Kapoor (the English equivalent is in brackets):
This is truly the age where the Joota (shoe) is Japani (Japanese), Patloon (pants) is Englistani (British), the Topi (hat) is Roosi (Russian), But the Dil... Dil (heart) is always Hindustani (Indian)... My country, Torn, Tattered, Proud, Beautiful, Hot, Humid, Cold, Sandy, Shining India. My country.
[edit]Recent activity
Mahasweta Devi has recently been spearheading the movement against the industrial policy of the government of West Bengal, the state of her domicile. Specifically, she has stridently criticized confiscation of large tracts of fertile agricultural land from farmers by the government and ceding the land to industrial houses at throwaway prices. She has connected the policy to the commercialization ofSantiniketan of Rabindranath Tagore, where she spent her formative years. Her lead resulted in a number of intellectuals, artists, writers and theatre workers join in protesting the controversial policy and particularly its implementation in Singur and Nandigram. She is the founding member of Budhan Theatre - the theatre group of Chhara Denotified Tribals of Gujarat. http://www.budhantheatre.org
[edit]Works
- The Queen of Jhansi (biography, translated in English by Sagaree and Mandira Sengupta from the 1956 first edition in banglaJhansir Rani)
- Hajar Churashir Maa[4]
- Aranyer Adhikar (The Occupation of the Forest, 1977)
- Agnigarbha (Womb of Fire, 1978)
- Bitter Soil tr, Ipsita Chandra. Seagull, 1998. Four stories.
- Chotti Munda evam Tar Tir (Choti Munda and His Arrow, 1980) Translated by Gayatri Chakravorty Spivak.
- Imaginary Maps (translated by Gayatri Spivak London & New York. Routledge,1995)
- Dhowli (Short Story)
- Dust on the Road (Translated into English by Maitreya Ghatak. Seagull, Calcutta.)
- Our Non-Veg Cow (Seagull Books, Calcutta, 1998. Translated from Bengali by Paramita Banerjee.)
- Bashai Tudu (Translated into English by Gayatri Chakraborty Spivak and Shamik Bandyopadhyay. Thima, Calcutta, 1993)
- Titu Mir
- Rudali
- Breast Stories (Translated into English by Gayatri Chakraborty Spivak. Seagull, Calcutta, 1997)
- Of Women, Outcasts, Peasants, and Rebels (Translated into English By Kalpana Bardhan, University of California, 1990.) Six stories.
- Ek-kori's Dream (Translated into English by Lila Majumdar. N.B.T., 1976)
- The Book of the Hunter (Seagull India, 2002)
- Outcast (Seagull, India, 2002)
- Draupadi
- In Other Worlds: Essays in Cultural Politics (Translated into English by Gayatri Chakraborty Spivak. Methuyen and Company, 1987. New York, London)
- Till Death Do Us Part
- Old Women
- Kulaputra (Translated into Kannada by Sreemathi H.S. CVG Publications, Bangalore)
- The Why-Why Girl (Tulika, Chennai.)
- Dakatey Kahini
[edit]Films based on Mahasweta Devi's works
- Sunghursh (1968), based on her story, which presented a fictionalized account of vendetta within a Thuggee cult in the city ofVaranasi.
- Rudaali (1993)
- Hazaar Chaurasi Ki Maa (1998)
- Maati Maay (2006),[5] based on short story, Daayen[6]
- Gangor (2010) Directed by Italo Spinelli, based on her short story, Choli Ke Peeche, from the Book, Breast Stories
[edit]Major awards
- 1979: Sahitya Akademi Award (Bengali): – Aranyer Adhikar (novel)
- 1986: Padma Shri[2]
- 1996: Jnanpith Award - the highest literary award from the Bharatiya Jnanpith
- 1997: Ramon Magsaysay Award - Journalism, Literature, and the Creative Communication Arts[2][7]
- 1999: Honoris causa - Indira Gandhi National Open University (IGNOU)
- 2006: Padma Vibhushan - the second highest civilian award from the Government of India
- 2010:Yashwantrao Chavan National Award
- 2011: Bangabibhushan - the highest civilian award from the Government of West Bengal
- 2012: Hall of Fame Lifetime Achievement Sahityabramha - the first Lifetime Achievement award in Bengali Literature from 4thScreen-IFJW.
[edit]References
- ^ Detailed Biography Ramon Magsaysay Award.
- ^ a b c John Charles Hawley (2001). Encyclopedia Of Postcolonial Studies. Greenwood Publishing Group. pp. 142–. ISBN 978-0-313-31192-5. Retrieved 6 October 2012.
- ^ Sunil Sethi (15 February 2012). The Big Bookshelf: Sunil Sethi in Conversation With 30 Famous Writers. Penguin Books India. pp. 74–. ISBN 978-0-14-341629-6. Retrieved 5 October 2012.
- ^ Hajar Churashir Maa (No. 1084's Mother, 1975)
- ^ Mahasweta Devi at the Internet Movie Database
- ^ Marathi cinema has been producing a range of serious films.. Frontline, The Hindu Group, Volume 23 - Issue 20: Oct. 07-20, 2006.
- ^ Citation Ramon Magsaysay Award.
[edit]External links
Wikimedia Commons has media related to: Mahasweta Devi |
- from the website of Emory University
- Mahasweta Devi: Witness, Advocate, Writer - A film on Mahasweta Devi by Shashwati Talukdar
- Mahasweta Devi at imdb
- Interview with Outlook magazine
- The Rediff Interview/Mahasweta Devi
- Sawnet-Bookshelf:Mahasweta Devi
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