Tuesday, February 5, 2013

कैश ट्रांसफर के रास्ते की रुकावटें By सतीश सिंह

कैश ट्रांसफर के रास्ते की रुकावटें

By  
http://visfot.com/index.php/current-affairs/7983-cash-transfer-satish-singh-article-12-12.html


सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को खत्म करके नकद सब्सिडी योजना को लागू करना चाहती है। इस योजना के तहत सरकार गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) रहने वाले परिवारों के सदस्य के खातों में सीधे पैसा जमा करवाने की व्यवस्था करेगी। फिलहाल इस योजना को देश के 18 राज्यों के 51 जिलों में 1 जनवरी, 2013 से लागू करने का प्रस्ताव है। तदुपरांत दिसम्बर, 2013 तक पूरे देश में इसे लागू कर दिया जाएगा।

इस योजना का लाभ कमजोर तबके तक पहुँचाने के लिए सभी संबंधित विभाग को इलेक्ट्रॉनिक डायरेक्ट कैश ट्रांसफर सिस्टम से जोड़ा जाएगा। 'आधार' को इस योजना का आधार बनाये जाने की योजना है अर्थात 'आधार' कार्ड के आधार पर प्रस्तावित योजना का लाभ बीपीएल परिवार के सदस्यों को दिया जाएगा। प्रारंभिक दौर में तकरीबन 21 करोड़ बीपीएल परिवार के सदस्य, इस योजना से लाभान्वित होंगे। आकलन के मुताबिक देश में 40 से 50 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहे हैं।

पीडीएस के तहत अनाज, खाद, केरोसीन, रसोई गैस इत्यादि सरकार उनके बाजार मूल्य से कम दाम पर बीपीएल परिवार को उपलब्ध करवाती है। इस नई योजना के कार्यान्वित हो जाने के बाद सारा सामान उन्हें बाजार मूल्य पर मिलेगा और इसके बदले उनके बैंक खातों में हर साल तकरीबन 30 से 40 हजार रुपया सब्सिडी के रुप में डाल दिया जाएगा। रसोई गैस के मामले में गरीबी रेखा के ऊपर रहने वालों  को भी नकद सब्सिडी दिया जाएगा। सप्रंग के इस महत्वाकांक्षी योजना पर प्रत्येक साल 4 लाख करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।

सवाल है कि क्या बैंक इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए तैयार है? अधिकांश बीपीएल परिवार के सदस्यों का बैंकों में खाता नहीं है। अशिक्षा व गरीबी के कारण वे बैंकों में अपना खाता खुलवाने की स्थिति में नहीं हैं। बैंक के पास प्रर्याप्त संसाधन भी नहीं है कि वह उनका खाता खोल सके। फिलवक्त बैंकों के पास मानव संसाधन की कमी है। लाभार्थियों का ब्यौरा तैयार करना बैंकों के लिए मुष्किल काम है। शाखाओं के व्यापक पैमाने पर विस्तार की जरुरत है। इसके बरक्स उल्लेखनीय है कि सालों से चल रहे मनरेगा योजना के सभी लाभार्थियों का अभी तक बैंकों में खाता नहीं खुल सका है।

ऋण राहत एवं माफी योजना, 2008 को लागू करने में जिस तरह से बैंक स्तर पर अनियमिताएं बरती गई, सरकार इससे अच्छी तरह से वाकिफ है। ज्ञातव्य है कि इस योजना का लाभ बहुत सारे योग्य ऋणियों को नहीं मिल सका था, वहीं कुछ अपात्र ऋणी योजना का लाभ लेने में सफल रहे थे। आज भी इस योजना के लाभ से वंचित ऋणी या तो सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत या शिकायत कोषांग के मंच पर अपनी फरियाद कर रहे हैं।

समग्र रुप में देखा जाए तो ऐसी गड़बड़ी के लिए मूलतः सरकार जिम्मेदार थी। ज्ञातव्य है कि रिजर्व बैंक अंतिम समय तक इस योजना की शर्तों को तय करने में लगा रहा। कई एक बार संषोधित परिपत्र निकाले गये। ऊहाफोह एवं घालमेल की अवस्था में बैंककर्मियों से अपेक्षा की गई कि वे आनन-फानन में इस योजना को सफलता पूर्वक अमलीजामा पहना देंगे, जबकि लाभार्थियों की सूची तैयार करने के लिए अतिरिक्त प्रषिक्षित मानव संसाधन की जरुरत थी। बैंक के रुटीन कार्यों को करते हुए बैंककर्मियों के लिए लाभार्थियों की सूची तैयार करना संभव नहीं था। फिर भी सरकार ने इस महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान नहीं दिया और न ही स्वतंत्र ऐजेंसी से बैंकों के द्वारा किये गये कार्यों का अंकेक्षण करवाया गया। इस खामी का फायदा भ्रष्ट बैंककर्मियों ने जमकर उठाया और लाभार्थियों की सूची में हेर-फेर कर खूब माल कमाया।

जाहिर है नकद सब्सिडी योजना की सफलता के लिए ग्रामीण इलाकों में बैंक की शाखाओं का होना जरुरी है, जबकि अभी भी ग्रामीण इलाकों में प्रर्याप्त संख्या में बैंकों की शाखाएं नहीं हैं। जहाँ बैंक की शाखा है, वहाँ भी सभी ग्रामीण बैंक से जुड़ नहीं पाये हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत की कुल आबादी के अनुपात में 68 प्रतिशत के पास बैंक खाते नहीं है। बीपीएल वर्ग में सिर्फ 18 प्रतिशत के पास ही बैंक खाता है। जागरुकता के अभाव में स्थिति में सुधार आने के आसार कम हैं। भले ही वितीय समावेशन की संकल्पना को साकार करने के लिए बैंकों में कारोबारी प्रतिनिधियों की नियुक्ति की गई थी, लेकिन विगत वर्षों में उनकी भूमिका प्रभावशाली नहीं रही है। 2008 तक बैंकों में मात्र 1.39 करोड़ नो फ्रिल्स खाते खोले जा सके थे। 'नो फ्रिल्स खाता' का तात्पर्य षून्य राषि से खाता खोलना है।

इस तरह के खाते खोलने में केवाईसी हेतु लिए जाने वाले दस्तावेजों में रियायत दी जाती है। इस नवोन्मेषी प्रोडक्ट को ग्रामीणों को बैंक से जोड़ने का सबसे महत्वपूर्ण हथियार माना जा रहा है। बावजूद इसके विगत दो-तीन सालों से रिजर्व बैंक के द्वारा लगातार कोषिश करने के बाद भी वितीय संकल्पना को साकार करने के मामले में कोई खास प्रगति नहीं हुई है।

सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रमुखों को 15 दिसम्बर तक 51 जिलों में बीपीएल परिवार के कम से कम एक सदस्य की बैंक में खाते खुलवाने के लिए निर्देश दिया है। सूत्रों के अनुसार बैंकों को मतदाता सूची उपलब्ध करवा दी गई है, लेकिन प्राप्त सूचना के अनुसार निर्धारित अवधि में इस काम को अंजाम नहीं दिया जा सका है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष श्री मोंटेक सिंह आहलूवालिया जल्द ही इस मुद्दे पर 51 जिलों के जिलाधिकारियों के साथ बैठक करने वाले हैं, जिसमें यह विमर्श किया जाएगा कि क्या इस योजना को 1 जनवरी, 2013 से 51 जिलों में षुरु किया जा सकता है ? विमर्श के फलितार्थ के आधार पर ही आगे की कार्रवाई की जाएगी। उपलब्ध जानकारी के अनुसार, उक्त 51 जिलों में 'आधार कार्ड' कम बने हैं। इन जिलों के बहुत से हिस्सों में बैंकों की शाखाएं नहीं हैं। हालातनुसार योजना को लागू करने की तिथि को आगे बढ़ाये जाने की प्रबल संभावना है।

पड़ताल से स्पष्ट है कि बैंकों को बुनियादी आवष्यकताओं से लैस किये बिना यह योजना व्यावहारिक नहीं है। व्यावहारिकता पर सवाल उठना इसलिए भी लाजिमी है कि मौजूदा बैंकिंग प्रणाली में अनेकानेक खामियां हैं, जिन्हें दूर किये बिना बहुतेरे समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। बैंक शाखाओं, मानव संसाधन और अन्यान्य संसाधनों की कमी के अलावा बीते सालों में केवाईसी के अनुपालन में लापरवाही बरतने के कारण बैंकों में धोखाधड़ी की वारदातों में इजाफा हुआ है। हवाला के मामले भी बढ़े हैं। आतंकवादियों ने भी बैंकों की इस कमजोरी का फायदा उठाया है। लिहाजा केवाईसी के मुद्दे पर बैंक पूरी तरह से दरियादिली चाहते हुए भी नहीं दिखा सकता है, क्योंकि किसी के माथे पर यह नहीं लिखा होता है कि वह अपराधी है या आंतकवादी। ऐसे में देश में इस तरह की योजना को लागू करने से पहले मजबूत बैंकिंग व्यवस्था बनाने के लिए पहल करना चाहिए।

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Census 2010

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors