Monday, May 20, 2013

उद्योग नीति का मसविदा: भूमि समस्या के समाधान का कोई रास्ता नहीं निकला है और न राज्य में औद्योगीकरण का कोई नया रोडमैप दीख रहा है।

उद्योग नीति का मसविदा: भूमि समस्या के समाधान का कोई रास्ता नहीं निकला है और न राज्य में औद्योगीकरण का कोई नया रोडमैप दीख रहा है।


औद्योगिक परियोजनाओं के लिए कुछ शर्तें जो शुरु से रखी गयी हैं, उनमें बदलाव के संकेत नहीं हैं।बनर्जी विशेष आर्थिक क्षेत्रों की भी धुर विरोधी हैं और उनकी नीति के कारण इन्फोसिस और विप्रो  दूसरे कैंपस के लिए अभी तक इंतजार कर रही हैं। ये मुश्किलें पर्याप्त नहीं हैं, हल्दिया, खडग़पुर और दुर्गापुर जैसे स्थानों की कंपनियों के लिए टीएमसी के संगठनों से निपटना बड़ी सिरदर्द बन गया है।




एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


बंगाल सरकार की उद्योग नीति का मसविदा अब सार्वजनिक है।जाहिर है कि भूमि आंदोलन की वजह से हुए परिवर्तन के जरिये सत्ता में आयी तृणमूल कांग्रेस के भूमि पूर्वग्रह में कोई परिवर्तन होने का संकेत इस मसविदे में नहीं मिला है और न ही बहुचर्चित भूमि बैंक के किसी नक्से का खुलासा हुआ है।बहरहाल,पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य को एक आकर्षक निवेश स्थल के रूप में प्रस्तुत करते हुए निवेशकों को लुभाने के लिए लम्बे इंतजार के बाद औद्योगिक नीति का मसौदा पेश किया है।सरकार ने कहा है कि नीति के मसौदे में नए निवेशकों को कई तरह के प्रोत्साहन देने की व्यवस्था की गई है और मुख्य ध्यान सरकारी-निजी भागीदारी (पीपीपी) के माध्यम से राज्य में औद्योगिक पार्को तथा केद्रों का विकास करना है।औद्योगिक परियोजनाओं के लिए कुछ शर्तें जो शुरु से रखी गयी हैं, उनमें बदलाव के संकेत नहीं हैं।उद्योगों के लिए ममता की भूमि नीति उनके लिए सबसे बड़ी बाधा है। राज्य सरकार ने स्पष्ट रूप से जमीन अधिग्रहण के मुद्दे पर औद्योगिक परियोजनाओं को खासा नुकसान पहुंचाया है।उद्योग की चिंताएं भूमि नीति पर ही खत्म नहीं होतीं। बनर्जी विशेष आर्थिक क्षेत्रों की भी धुर विरोधी हैं और उनकी नीति के कारण इन्फोसिस और विप्रो  दूसरे कैंपस के लिए अभी तक इंतजार कर रही हैं। ये मुश्किलें पर्याप्त नहीं हैं, हल्दिया, खडग़पुर और दुर्गापुर जैसे स्थानों की कंपनियों के लिए टीएमसी के संगठनों से निपटना बड़ी सिरदर्द बन गया है।


इस मौके पर पंचायत चुनाव से ऐन पहले मुख्यमंती ममता बनर्जी ने कहा कि राज्य सरकार ने समूह डी के अस्थाई कर्मियों जो कि 10 साल से कम समय से काम कर रहे हैं उनका वेतन 5,000 से बढ़ाकर 7,000 रुपए करने का फैसला किया है। पुराने कर्मचारियों का वेतन 8,000 रुपए तक बढ़ाया गया है।औद्योगिक लॉबियों ने हालांकि कहा कि मसौदा नीति भूमि अधिग्रहण और भू-हदबंदी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चुप है, जो समस्या की मुख्य जड़ है। ममता बनर्जी सरकार ने अपने कार्यकाल के दो वर्ष पूरे होने के दो दिन पहले नई नीति का मसौदा जारी किया है। इससे पहले 1994 में तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार ने ओद्योगिक नीति की घोषणा की थी. स्वर्गीय ज्योति बसु उस वक्त मुख्यमंत्री थे।



मां माटी मानुष की सरकार ने अपने कार्यकाल के दो वर्ष पूरे होने के दो दिन पहले नई नीति का मसौदा जारी किया है। इससे पहले 1994 में तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार ने ओद्योगिक नीति की घोषणा की थी। स्वर्गीय ज्योति बसु उस वक्त मुख्यमंत्री थे।पश्चिम बंगाल में पिछले वित्त वर्ष के दौरान जमीन-जायदाद के क्षेत्र में घरेलू अथवा विदेशी किसी तरह का कोई नया निवेश नहीं आया। वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।इस सिलसिले में भी कोई खुलासा नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री ने परिवहन और पर्यटन के क्षेत्र में जो एक लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव का दावा किया, उनको कार्यान्वित करने की कोई परियोजना भी नहीं है।ममता बनर्जी समझती हैं कि औद्योगीकरण बंगाल के लिए अहम है। हाल में उन्होंने कोर कमेटी की कमान संभाली थी। दो साल पहले बनी यह समिति अभी तक उद्योग मंत्री के अधीन थी, जिसमें उद्योगों की समस्याओं के समाधान के लिए विभिन्न उद्योग संगठनों के प्रतिनिधियों को शामिल किया था। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उद्योग के लिए जमीन अधिग्रहण करने से साफ इनकार कर चुकी हैं। सरकार की उद्योग नीति को लेकर पूंजीपतियों में संशय है।सरकार उद्योगपतियों को आकर्षित करने के लिए उन्हें हर संभव मदद का आश्वासन दे रही हैं, लेकिन नतीजा सिफर है।


भारतीय सांख्यिकी संस्थान के पूर्व प्रोफेसर दीपंकर दासगुप्ता ने कहा, 'राजस्व में बढ़ोतरी के लिए बड़े निवेश अहम होते हैं। आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि 2004-05 और 2011-12 के बीच अन्य राज्य बंगाल के मुकाबले ज्यादा तेजी से आगे बढ़े थे।


राज्य सरकार ने शनिवार को यह मसौदा अपनी वेबसाइट पर डाला और औद्योगिक प्रतिनिधि संगठनों तथा कारोबारी जमात से सुझाव मांगे।लेकिन इस मसविदा से निवेशकों की आस्था पैदा करने के लिए भूमि समस्या के समाधान का कोई रास्ता नहीं निकला है और न राज्य में औद्योगीकरण का कोई नया रोडमैप दीख रहा है।मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में उद्योगों की कोर समिति की जिम्मेदारी संभाली है और नीतियों में बदलाव लाना शुरू किया है,इसके सबूत बतौर कोई नया दिशा निर्धेश इस मसविदे में नहीं है।मुख्यमंत्री ने उद्योगपतियों और विभिन्न कारोबारी प्रतिनिधि संगठनों की बैठक में कहा था कि नई नीति 15 दिनों में सरकारी वेबसाइट पर डाल दी जाएगी। उन्होंने कारोबारियों से सुझाव देने का भी अनुरोध किया था।यह मसविदा सही अर्तों में उसी वायदे को पूरा करने की कवायद मात्र है और सबसे बड़ी बात इसमें सरकार की कोई नीति स्पष्ट है नहीं बल्कि नीतियों के मुताबिक सुझाव मांगे गये हैं।तृणमूल कांग्रेस सरकार भले ही अपने शासन के तीसरे साल में कदम रख रही है लेकिन करोड़ों रूपए के चिटफंट घोटाले को लेकर वह एक बहुत बड़ी चुनौती से जूझ रही है। इस घोटाले ने राज्य में लाखों लोगों पर बुरा असर डाला है। शारदा समूह और इस तरह की कई छोटी चिटफंड कंपनियों के डूब जाने के बाद दो दर्जन से ज्यादा निवेशकों एवं एजेंटों ने आत्महत्या कर ली है। उद्योग नीति का मसविदा के बजाय उद्योगनीति पेश करके ही सरकार इस झंझावत से निकल सकती है। लेकिन सरकार तमाम मुद्दों पर अभी भारी दुविधा में है। उग्रतम जमीन ांदोलन के रास्ते से हटकर तृणमूल कांग्रेस और उसकी सुप्रीमो उद्योग बंधु बनकर लोकप्रिय जनाधार खोना नहीं चाहती जबकि वह इस वक्त सबसे भारी संकट के मधय है।



बंगाल नेशनल चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के सचिव डी.पी. नाग ने कहा, 'औद्योगिक नीति के मसौदे में भूमि अधिग्रहण और भू-हदबंदी जैसे प्रमुख मुद्दों पर कुछ नहीं कहा गया है. इसमें भूमि के (कृषि भूमि से औद्योगिक भूमि में) बदलाव के बारे में भी कुछ नहीं कहा गया है। '


नीति के मिशन बयान के मुताबिक सरकार विनिर्माण क्षेत्र की विकास दर 2010-11 के 4.7 फीसदी से बढ़ाकर नीति की पूर्णता के वर्ष में 20 फीसदी करना चाहती है और 2013-14 में 13.14 लाख लोगों के लिए रोजगार का सृजन करना चाहती है और आगे भी यह गति बनाए रखना चाहती है। सरकार ने कहा कि नीति में मनोरंजन, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भी तेज विकास का लक्ष्य रखा गया है।


ममता बनर्जी ने बार बार कहा कि उन्हें पिछली वाम मोर्चा सरकार से विरासत के रूप में दो करोड़ रूपए का ऋण का बोझ मिला और उन्होंने संप्रग पर राज्य को आर्थिक रूप से वंचित रखने का आरोप लगाया। तृणमूल सरकार ने दावा किया कि आर्थिक समस्या के बाद भी उसकी नीतियों के कारण उसने पिछले वित्त वर्ष में 7.6 की विकास दर हासिल की जबकि राष्ट्रीय औसत विकास दर 4.96 फीसदी है। विपक्ष इस दावे की खिल्ली उड़ाने में लगा है। इस मसविदे के जरिये वृद्धिदर के सबूत पेश करने का मौका भी खो दिया सरकार ने।


पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने रविवार को दावा किया कि वर्ष 2012-13 के दौरान उनके राज्य ने आर्थिक एवं सामाजिक विकास के कई क्षेत्रों में राष्ट्रीय औसत से अधिक बेहतर प्रदर्शन किया। पश्चिम बंगाल में अपनी सरकार के दो साल पूरे करने के अवसर पर ममता ने कहा कि राज्य ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), कृषि, उद्योग तथा सेवा क्षेत्र में राष्ट्रीय औसत की तुलना में अधिक विकास किया।


ममता ने सोशल नेटवर्किंग साइट फेससबुक पर लिखा कि वर्ष 2012-13 में जहां देश की जीडीपी 4.96 प्रतिशत, कृषि विकास दर 1.79 प्रतिशत, उद्योग विकास दर 3.12 प्रतिशत और सेवा क्षेत्र में विकास दर 6.59 प्रतिशत रही, वहीं पश्चिम बंगाल की जीडीपी 7.6 प्रतिशत, कृषि विकास दर 2.56 प्रतिशत, उद्योग विकास दर 6.24 प्रतिशत और सेवा क्षेत्र में विकास दर 9.48 प्रतिशत रही।ममता ने यह भी दावा किया कि इस साल 32,000 करोड़ रुपये का राजस्व एकत्र किया गया, जो पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक है।उन्होंने यह भी दावा किया कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत वर्ष 2012-13 के दौरान मिले अनुदान को खर्च करने के मामले में भी पश्चिम बंगाल देश में पहले स्थान पर है।सरकार के दो साल पूरे होने की पूर्व संध्या पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि उनकी सरकार का मूल्यांकन करने के लिए दो साल पर्याप्त नहीं हैं।ममता बनर्जी ने कहा कि उनकी सरकार पर पूर्ववर्ती वाममोर्चा शासन का 'बोझ' है।


ममता ने फेसबुक पोस्ट के जरिये कहा,'एक नई सरकार का आकलन करने के लिए दो साल का समय ज्यादा नहीं है। उसके सिर पर पिछली सरकार के 34 वर्ष के शासन की विरासत के रूप में दो लाख करोड़ रूपये ज्यादा के ऋण का बोझ और पूरी तरह से अपंग सरकारी मशीनरी है जिसका मनोबल गिरा हुआ है।'


ममता बनर्जी के नेतृत्व में नई सरकार 20 मई 2011 को सत्ता में आई थी।


तमाम वित्तीय संकटों के बावजूद पिछले दो वर्ष में अपनी सरकार की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए ममता बनर्जी ने कहा कि पश्चिम बंगाल ने कुछ प्रमुख प्रदर्शन पैमानों में राष्ट्रीय औसत को पीछे छोड़ा है।उन्होंने जीडीपी, कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों, उद्योग और सेवाओं का उदाहरण देते हुए कहा कि राज्य ने इस दौरान पूरे भारत की तुलना में तेज विकास किया है।उन्होंने दावा किया कि 2012-13 वित्तीय वर्ष के दौरान एकत्रित राजस्व ने पिछले वित्तीय वर्ष के आंकड़े को करीब 30 प्रतिशत से पीछे छोड़ दिया है।


गौरतलब है कि 2012 में आर्थिक समीक्षा में कहा गया था कि राज्य में 312.24 करोड़ रुपये के निवेश से महज 12 औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की गई, जबकि 2011 में 15,000 करोड़ रुपये के निवेश से 322 इकाइयों की स्थापना की गई थी।लेकिन शहर और जिलों में लगे होर्डिंगों और स्टालों में इन आंकड़ों का कोई उल्लेख नहीं है। इसके विपरीत उद्योग विभाग द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक बीते दो साल में राज्य को 1.12 लाख करोड़ रुपये के प्रस्ताव मिले हैं। आंकड़ों से जवाब के बजाय कई सवाल खड़े होते हैं। उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी के मुताबिक 2011 में सरकार को 2011 में 95,000 करोड़ रुपये के प्रस्ताव मिले थे, जो 2012 की तुलना में खराब थे। इस बीच चटर्जी ने दावा किया कि सरकार ने निवेशकों को आकर्षित किया है, जो पुरानी सरकार में राज्य को छोड़कर जा रहे थे।


उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी ने मुख्यमंती ममता बनर्जी की मौजूदगी में संवाददाताओं से कहा कि राज्य सरकार ने अपनी उद्योग नीति तैयार की है जिसमें निजी सार्वजनिक भागीदारी माडल की तर्ज पर औद्योगिक पार्क और औद्योगिक केंद विकसित किए जाने पर जोर दिया गया है।


उन्होंने कहा 'भूमि आवंटन और पोत्साहन की पेशकश भी नीति के मसौदे में शामिल की गई है।'


उद्योग मंती ने कहा, 'औद्योगिक नीति का मसौदा तैयार करते हुए हमने आठ से 10 राज्यों की औद्योगिक नीतियों को ध्यान में रखा है ताकि राज्य में औद्योगीकरण की रफ्तार बढ़ाई जा सके। चटर्जी ने कहा कि राज्य सरकार उद्योग नीति पर विभिन्न चेंबरों और उद्योगों के सुझावों का स्वागत करेगी और यदि ये सुझाव व्यावहारिक रहे थे इन्हें उद्योग नीति को अंतिम रूप देते समय शामिल किया जाएगा।


राज्य सरकार ने इसके अलावा नई कपड़ा नीति और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग नीति की भी घोषणा की।


मुख्यमंती ने कहा कि यह पहला मौका है जबकि राज्य ने कपड़ा नीति की घोषणा की जिससे बुनकरों, परिधान विनिर्माताओं और होजरी इकाइयों को पोत्साहन मिलेगा ताकि पश्चिम बंगाल से बाहर के बाजारों में अपनी पहुंच बना सके।


सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक मों की नीति पर उन्होंने कहा, ''एमएसएमई और कपड़ा दोनों को ही राज्य सरकार अनेक लाभ देगी। इसमें पूंजी निवेश सब्सिडी, कर्ज पर ब्याज सब्सिडी, बिजली शुल्क माफी, ऊर्जा सब्सिडी, स्टांप ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क हटाने जैसे अनेक लाभ दिये जाएंगे। इसके अलावा सयंत एवं मशीनरी पर पवेश शुल्क क्षतिपूर्ति भी की जाएगी।


राज्य के वित्त मंती अमित मिता ने कहा कि इन सबके अलावा राज्य सरकार मानक गुणवत्ता के अनुपालन, मालभाड़ा सब्सिडी और हथकरघा, पावरलूम, होजरी, परिधान एवं गामेर्ंट जैसी अतिरिक्त लाभ भी देगी।



उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा है कि नई औद्योगिक नीति पर सरकार शीघ्र ही दस्तावेज प्रकाशित करेगी। नई नीति इस साल जनवरी में ही पेश की जाने वाली थी। चटर्जी ने कहा कि नई नीति तैयार किए जाने से पहले सरकार ने 10 अन्य राज्यों की औद्योगिक नीतियों का अध्ययन और विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि सरकार 30 जून तक उद्योग जगत के सुझावों का इंतजार करेगी और यदि कोई सुझाव व्यावहारिक लगा तो उसे अंतिम नीति में शामिल किया जाएगा।


एसोचैम की क्षेत्र विशेष के विश्लेषण पर जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है पश्चिम बंगाल में पिछले वित्त वर्ष के दौरान रीएल एस्टेट क्षेत्र में घरेलू अथवा विदेशी कहीं से कोई नया निवेश प्रस्ताव नहीं आया। हालांकि, इस दौरान देश भर में रीएल एस्टेट क्षेत्र में 42,000 करोड़ रुपये के नये घरेलू एवं विदेशी निवेश की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई।रिपोर्ट में कहा गया है हालांकि, मार्च 2013 की स्थिति के अनुसार राज्य में रीएल एस्टेट क्षेत्र में 37,000 करोड़ रुपये का निवेश होना बाकी था, लेकिन जहां तक नये निवेश प्रस्ताव का मुद्दा है इस मामले में राज्य में एक साल पहले की तुलना में 100 प्रतिशत गिरावट आई है।


औद्योगिक भूमि को लेकर बंगाल सरकार की नीति चाहे जो भी हो, लेकिन जानकार इसे सही नहीं मानते। ऐसे में अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता जोसफ स्टिग्लिज का उक्त बयान काफी महत्वपूर्ण है, जिसमें उन्होंने कहा है कि उद्योग स्थापित करने के लिए जमीन खरीदने में सरकार की भूमिका होनी चाहिए, जबकि बंगाल सरकार की भूमिका औद्योगिक जमीन को लेकर ठीक इसके विपरीत है। जोसफ स्टिग्लिज ने उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी की मौजूदगी में कहा कि जो अलग-अलग मालिकाना हक वाले भूखंड खरीदना चाहते हैं उनके लिए सरकार की उक्त नीति समस्या खड़ी करने वाली है। वह बंगाल सरकार की भू अधिग्रहण नीति के बारे में प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे। स्टिग्लिज का मानना है कि भूमि अधिग्रहण वास्तव में पूरे विश्व में संवेदनशील मुद्दा है और इस पर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय की एक घटना का हवाला देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय को विस्तार के लिए बहुत सी जमीन चाहिए थी। विश्वविद्यालय जमीन का अधिग्रहण करने में असमर्थ था और विस्तार की प्रक्रिया रोक दी गई। आखिरकार स्थानीय सरकार ने यह कहते हुए हस्तक्षेप किया कि यह विश्वविद्यालय का विस्तार लोकहित का मामला है। तभी भूमि अधिग्रहण हो सका। स्टिग्लिज कोलंबिया विश्वविद्यालय में ही प्रोफेसर हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि सरकार कहती आ रही है कि उद्योग लगाने के लिए जमीन बड़ी समस्या नहीं है। नई सरकार ने सत्ता में आते ही राज्य में उद्योग लगाने के लिए भूमि आवंटित करने को \'लैंड बैंक\' तैयार करने की घोषणा की थी। उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा था कि सरकार की नीति बिल्कुल स्पष्ट है। जब भी कोई उद्योगपति बंगाल में निवेश करने की इच्छा जाहिर करेंगे, उन्हें लैंड बैंक में मौजूद भूमि दिखाई जाएगी। अगर वह भूमि उन्हें पसंद नहीं आती है, तो खुद से भूमि खरीदने को कहा जाएगा। पर, प्रश्न यह उठ रहा है कि कोई भी उद्योगपति निवेश वहां क्यों करेगा जहां जमीन को लेकर इतनी माथापच्ची हो? दूसरी ओर उद्योगपतियों के सम्मेलन बंगाल लीड्स में मुख्यमंत्री खुद कह चुकी हैं कि सिलिंग को लेकर कुछ समस्या है। इसे दूर कर लिया जाएगा। ऐसे में यदि उद्योग के लिए जमीन अधिग्रहण में सरकार की भूमिका नहीं होगी तो क्या औद्योगिकीकरण की गाड़ी पटरी पर आ सकेगी?


विफल बताया है उस पर तृणमूल कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। तृणमूल कांग्रेस महासचिव व उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी ने रविवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा कि कांग्रेस को सरकार का विकास कार्य नजर नहीं आ रहा है। सरकार के खिलाफ कुप्रचार करने में कांग्रेस व माकपा दोनों एक साथ हो गयी हैं। दोनों दलों के नेताओं में मामा-भांजा का रिश्ता कायम हुआ है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप भंट्टाचार्य को पता होना चाहिए कि माकपा ने सरकार पर 2 लाख 3 हजार करोड़ रुपया का कर्ज थोपा है। केंद्र सरकारी खजाने से कर्ज व सूद के तौर पर 25 हजार रुपया काट ले रहा है। सरकार ने बार-बार केंद्र सरकार से आर्थिक सहयोग की मांग की लेकिन कुछ नहीं मिला। प्रदीप भंट्टाचार्य ने पश्चिम बंगाल के हित में केंद्र से एक बार भी सहयोग का हाथ बढ़ाने को नहीं कहा। प्रदेश कांग्रेस ने राज्य के हित में कभी आवाज नहीं उठायी। इसलिए प्रदेश कांग्रेस क्लब के रूप में परिणत हो गयी है। आज मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में बंगाल विकास कर रहा है तो कांग्रेस को यह बर्दाश्त नहीं हो रहा है। माकपा के साथ कांग्रेस भी सरकार के खिलाफ कुप्रचार में उतर गयी है।


श्री चटर्जी ने कहा कि विमान बोस और सूर्यकांत मिश्रा को अब जनता के सामने आने में डर लग रहा है। इस लिए सरकार की आलोचना के लिए माकपा ने अपने सीटू नेता श्यामल चक्रवर्ती को उतारा है। श्री चक्रवर्ती को भी सरकार के दो वषरें में कोई काम नजर नहीं आ रहा है। 34 वषरें में बंद हड़ताल करने से बड़ी कंपनियों के कार्यालय बंगाल से हटाए गए। श्री चक्रवर्ती को बताना चाहिए कि किसके शासन में बड़ी कंपनियों ने अपना कारोबार समेटा।


No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Census 2010

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors