आतंक का आरएसएस मॉड्यूल
हिंदू आतंकवादी नहीं होता लेकिन अगर कोई हिंदू आतंकवाद की वारदात में शामिल होता है तो वह पक्के तौर पर आरएसएस का सदस्य होता है
कह दो उनसे कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता
शेष नारायण सिंह
बोधगया के महाबोधि मंदिर में हुये धमाकों के दो दिन बाद चार लोगों को शक की बिना पर हिरासत में लिया गया। दिल्ली के एक नामी अखबार ने उनके नाम भी बता दिया। आनंद प्रकाश, गुंजन पटेल,हसन मालिक और प्रियंका नाम के यह लोग बोधगया के तथागत होटल में ठहरे हुये थे। यह होटल महाबोधि मंदिर के पास ही है। धमाके के दिन सुबह छह बजे ही होटल से चेक आउट कर गये थे लेकिन तीन दिन बाद तक गया में ही घूम घाम रहे थे। जाँच एजेंसियों को शक शायद इसी आधार पर था कि धमाके शुरू होने के तुरंत बाद यह लोग होटल से तो बाहर हो गये लेकिन बाद में भी शहर में मौजूद थे। धमाके के पहले वाली रात की जो सीसीटीवी फुटेज बरामद हुयी है उसमें भी यह लोग बहुत ही संदिग्ध तरीके से मन्दिर के परिसर में घूमते हुये नज़र आ रहे हैं। जाँच एजेंसियों को शक इसलिये भी हुआ कि यह लोग सात जुलाई को भी आधी रात के बाद मंदिर परिसर में अजीबो गरीब तरीके से टहलते नज़र आये थे। अभी कुछ भी कहना संभव नहीं है। सच्चाई जांच के बाद ही सामने आयेगी। इस बीच इंडियन मुजाहिदीन की तरफ से ट्वीट किये गये कुछ सन्देश भी कुछ अखबारों में छाप दिए गये हैं। और दावा किया गया है कि इंडियन मुजाहिदीन ने बोधगया धमाकों की जिम्मेदारी ले ली है और अब मुंबई को अपना अगला निशाना बताया है। जो चार लोग पकड़े गये थे और बाद में छोड़ दिये गये उनके बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है। बस इतना मालूम है कि अगर उनके नाम अब्दुल, रहमान या कुछ इस तरह के होते तो अपने देश के टी वी चैनलों में उनके नाम बहुत ही बुलन्द आवाज़ में सुनायी पड़ रहे होते और आरएसएस की कृपा से दिल्ली में रह रहे बहुत सारे पत्रकार उनकी मंशा का विश्लेषण कर रहे होते। उस हालत में जाँच एजेंसियाँ बहुत ही भरोसे का काम करती पायी जा रही होतीं और राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत मानी जा रही होतीं। लेकिन उनके नाम ऐसे थे कि आरएसएस वालों का कोई फायदा नहीं हो रहा था इसलिये टीवी चैनलों पर सन्नाटा ही छाया रहा क्योंकि पकड़े गये संदिग्ध लोगों के नाम ऐसे हैं जिससे इन चैनलों के राजनीतिक आकाओं का काम पूरा नहीं होता।
इस सूचना के सार्वजनिक हो जाने के बाद यह पक्का है कि अगर जल्द से जल्द बोधगया के अभियुक्तों को पकड़ न लिया गया तो मुंबई पर खतरा आ सकता है। जब दिल्ली पुलिस की जाँच में पकड़े गये इंडियन मुजाहिदीन के लोगों से पूछताछ से यह पता चल गया था कि उनका कोई मॉड्यूल बोधगया पर हमला करने वाला था तो बोधगया कि सुरक्षा बहुत ही चौकस की जानी चाहिए थी क्योंकि इस जानकारी के बाद बोधगया पर ख़तरा डबल हो गया था। सबसे बड़ा खतरा तो इंडियन मुजाहिदीन के उस मॉड्यूल से था जिसको वहाँ हमला करने का ज़िम्मा दिया गया था लेकिन दूसरा आतंकवाद के उस मॉड्यूल से था जो इंडियन मुजाहिदीन को कटघरे में खडा करना चाहता था। क्योंकि यह तय था कि बोधगया में हमला कोई भी करेगा शक हर हाल में इंडियन मुजाहिदीन पर ही जाएगा। जहाँ तक इंडियन मुजाहिदीन की बात है उनके संगठन ने देश में कई जगह आतंकवादी हमले किये हैं। उससे जुड़े हुये बहुत आतंकवादी पकड़े भी गये हैं और उन पर मुक़दमा भी चल रहा है। देश के दुश्मन आतंकवादी संगठनों में इंडियन मुजाहिदीन एक प्रमुख नाम है। इसके बावजूद यह भी सही नहीं है कि देश में हर आतंकवादी वारदात में इंडियन मुजाहिदीन ही शामिल होते हैं। अपने देश में बहुत सारे आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं और सब अपने मकसद को हासिल करने के लिये काम कर रहे हैं। कुछ आतंकवादी संगठनों का यही काम है कि वे वारदात करके हट जाएँ और उनके दुश्मन संगठन का नाम आ जाए। ऐसा अपने देश में कई बार हो चुका है। कई मामलों में तो आरएसएस से जुड़े लोग भी आतंकवादी वारदात करते पकड़े गये हैं और उन पर मुक़दमे भी चल रहे हैं। इसी तरह का एक मामला राजस्थान के अजमेर में हुआ बम धमाका है। जिस केस में आरएसएस के एक बड़े नेता पर अजमेर के धमाकों में शामिल होने की साज़िश में मुक़दमा चलेगा।
महाराष्ट्र पुलिस के अधिकारी स्वर्गीय हेमंत करकरे ने जब महाराष्ट्र में हुये कुछ आतंकवादी हमलों में आरएसएस से जुड़े कुछ लोगों पकड़ा और उन पर अपराध में शामिल होने सम्बंधी चार्जशीट दाखिल हो गयी तब से यह बात सार्वजनिक हुयी कि आरएसएस हिंसा को राजनीति का हथियार बनाता है और उसका भी आतंकवादी मॉड्यूल है। अब तो यह भी साबित हो गया है कि आरएसएस के बहुत बड़े नेता भी आतंकवादी वारदातों की योजना बनाने में शामिल होते हैं। गुजरात का नरसंहार, मालेगांव बम विस्फोट, हैदराबाद के धमाकेकुछ ऐसे काम हैं जिनमें आरएसएस के वरिष्ठ नेता खुद ही शामिल पाए गये हैं। मालेगाँव की मस्जिद में बम विस्फोट करने की अपराधी, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और उनके गिरोहके बाकी आतंकवादियों के ऊपर महाराष्ट्र में संगठित अपराधों को कंट्रोल करने वाले कानून, मकोका के तहत बुक किया गया है। मालेगांव के धमाकों के गिरोह को उस वक़्त के महाराष्ट्र के एंटी टेररिस्ट स्क्वाड के प्रमुख, शहीद हेमंत करकरे ने पकड़ा था।
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और उनके साथियों की गिरफ्तारी भारतीय न्याय प्रक्रिया के इतिहास में एक संगमील माना जाएगा। प्रज्ञा ठाकुर और ले कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित की मालेगांव धमाकों के मामले में गिरफ्तारी ने देश की एकता और अखंडता की रक्षा के मामले में एक अहम भूमिका निभाई थी। मुसलमानों के खिलाफ चल रही आरएसएस की मुहिम के तहत यह लोग कहते फिरते थे कि सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं होते लेकिन सभी आतंकवादी मुसलमान होते हैं। अब यह कहा जा रहा है कि कोई भी हिंदू आतंकवादी नहीं होता लेकिन अगर कोई हिंदू आतंकवाद की वारदात में शामिल होता है तो वह पक्के तौर पर आरएसएस का सदस्य होता है। अब तो आरएसएस के आतंकवादी मॉड्यूल को सभी जान गये हैं। अजमेर के धमाकों में भी आरएसएस के फुल टाइम कार्यकर्ता और बड़े नेता, इन्द्रेश कुमार पकड़े गये तो साफ़ हो गया कि आरएसएस ने बाकायदा आतंकवाद के लिये एक विभाग बना रखा है। 2010 में उत्तर प्रदेश के कुछ ज़िम्मेदार संघ प्रचारकों से सीबीआई ने पकड़ा था। कानपुर में अशोक बेरी और अशोक वार्ष्णेय से उन दिनों सीबीआई ने कड़ाई से पूछ ताछ की थी। अशोक बेरी आरएसएस का क्षेत्रीय प्रचारक था और आधे उत्तर प्रदेश का इंचार्ज था। वह आरएसएस की केंद्रीय कमेटी का भी सदस्य था। अशोक वार्ष्णेय उससे भी ऊँचे पद पर था। वह कानपुर में रहता था और प्रांत प्रचारक था। उसके ठिकाने पर 2010 में एक भयानक धमाका हुआ था। बाद में पता चला कि उस धमाके में कुछ लोग घायल भी हुये थे। घायल होने वाले लोग बम बना रहे थे। सीबीआई के सूत्र बताते हैं कि उनके पास इन लोगों के आतंकवादी घटनाओं में शामिल होने के पक्के सबूत हैं और हैदराबाद की मक्का मस्जिद, अजमेर और मालेगांव में आतंकवादी धमाके करने में जिस गिरोह का हाथ था, उस से उत्तर प्रदेश के इन दोनों ही प्रचारकों के सम्बंधों की पुष्टि हो चुकी हैं।
आरएसएस के आतंकवाद के काम का अब पर्दाफ़ाश हो चुका है। राम जन्मभूमि को मुद्दा बना कर उन्होंने राजनीति के लिये नयी पिच तैयार करने का फैसला जनवरी 1986 में ले लिया था। हुआ यह था कि जब इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद हुये चुनावों में कांग्रेस ने भी साफ्ट हिन्दुत्व का खेल चल दिया तो, भाजपा और आरएसएस जैसे संगठनों के लिये कोई स्पेस नहीं बचा था। उन दिनों अरुण नेहरू नाम के एक कॉरपोरेट नेता कांग्रेस के भाग्यविधाता हुआ करते थे। उन्होंने हिसाब किताब लगाया और देखा कि मुसलमानों के वोट की परवाह किये बिना अगर सॉफ़्ट तरीके से हिन्दूवादी पार्टी के ढाँचे में कांग्रेस को ढाल दिया जाए तो बहुत दिन तक राज किया जा सकता था। 1984 में भाजपा हार गयी। आरएसएस को अपने लिये ज़मीन तलाशनी थी, लिहाज़ा उस वक़्त के आरएसएस के बड़े नेताओं की एक बड़ी बैठक जनवरी 1985 में कलकत्ता में बुलायी गयी जिसमें संघ के बड़े नेताओं के अलावा भाजपा के लाल कृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी की भी शामिल हुये। तय पाया गया कि हिन्दुत्व का ऐसा काम शुरू किया जाए जिसे कांग्रेस के साफ्ट हिंदुत्व वाली लाइन कहीं से चुनौती न दे सके। बाबरी मस्जिद का मुद्दा निकाला गया और बात चल पड़ी। कांग्रेस के उस वक़्त की समझ में ही नहीं आया कि हमला हुआ कहाँ से है और उस वक़्त के कांग्रेसी नेता, संघी जाल में फंसते गये। भगवान् राम को केन्द्र में रख कर संघियों ने राजनीतिक अभियान शुरू किया और कांग्रेसियों की अदूरदर्शिता के चलते भाजपा को भगवान राम की पार्टी के रूप में पहचाना जाने लगा। जिसका चुनावी फायदा बाद में भाजपा को खूब हुआ।
उसके बाद गुजरात में नरेंद्र मोदी ने संघी फासिज्म की शुरुआती चाल चल दी। मुसलमानों को सरकारी तौर पर ख़त्म करने का अपना काम शुरू कर दिया जिसकी वजह से पूरे देश में संघी आतंकवाद के खिलाफ माहौल बनने लगा। एक बार तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम ने भगवा आतंकवाद कह दिया था, जो वास्तव में हिन्दू धर्म से जुड़ा रंग माना जाता है। आरएसएस ने बहुत हल्ला मचाया और एक बार फिर अपने को भगवा रंग और हिंदुओं का ठेकेदार बताने की कोशिश की लेकिन कांग्रेस ने फ़ौरन डैमेज कंट्रोल की बात शुरू कर दी। कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने मुंबई की एक सभा में भगवा साफा बाँध कर दिन भर का कार्यक्रम चलाया और बाद में कहा कि हिन्दू धर्म इस देश में बहुत बड़ी आबादी का धर्म है लेकिन उनमें बहुत मामूली संख्या में लोग भाजपा के साथ हैं। दिग्विजय सिंह ने कहा कि हिन्दुओं के अलावा अन्य धर्मों के लोग भी भगवा रंग को पवित्र मानते हैं इसलिये किसी एक पार्टी को भगवा रंग का इंचार्ज नहीं बनने दिया जाएगा। वह हमारा रंग है। और उस पर हर भारतवासी का बराबर का अधिकार है। दिग्विजय सिंह ने कहा कि संघी आतंकवाद को भगवा आतंकवाद कह कर पी चिदंबरम ने गलती की लेकिन यह भी सच है कि भाजपा हर उस इंसान की प्रतिनिधि नहीं है जो भगवा रंग को सम्मान देता है।
बहरहाल मुसलमानों को आतंकवादी बताने की आरएसएस की कोशिश को एक और झटका लग सकता है अगर गया के महाबोधि मंदिर में हुये हमले के लिये जिन संदिग्धों को पकड़ा गया है उनसे कोई ऐसी सूचना मिल जाए जो जांच को असली अपराधियों तक पहुँचा दे। लेकिन अभी बहुत जल्दी है, जाँच का काम पूरा होने के बाद ही तस्वीर साफ़ होगी लेकिन संघ की इस लाइन को तो नकारना ही होगा जिसमें मुसलमानों को ही आतंकवादी बताया जाता है क्योंकि अभिनव भारत वाले शुद्ध रूप से आतंक के सहारे ही हिंदुत्व का परचम लहराना चाहते हैं और अभिनव भारत राजनीतिक हिंदुत्व के आदि पुरुष वी डी सावरकर का मूल संगठन है।
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