सोशल मीडिया पर लिखने से दलित चिंतक कंवल भारती गिरफ्तार,कलम पर हमला कोई नई बात नहीं
-संजय कुमार
कलम पर हमला कोई नई बात नहीं है। सत्ता के नशे में मदहोश नेता, अपराधी, पुलिस गठजोड़ गाहे-बगाहे इसकी धार को भोथरा बनाने के लिए कलम चलाने वालों पर हमला बोलते रहते हैं। इस बार दलित चिंतक-लेखक कंवल भारती की कलम ज्योंहि आरक्षण और दुर्गा नागपाल के मुद्दे को लेकर चली, बस नेता-अपराधी-पुलिस के गठजोड़ ने अपना खेल दिखा दिया। फेसबुक पर कंवल भारती ने आरक्षण और दुर्गा नागपाल के मुद्दे पर जो टिप्पणी की, उससे उत्तर प्रदेष की सरकार हिल गयी। आनन-फानन में कलम के योद्धा को गिरफ्तार कर लिया गया। यह घटना 6 अगस्त 2013 की है। अभिव्यक्ति की आजादी पर यह हमला, अधोषित इमरजेंसी की ओर बढ़ रहे कदम तो नहीं है ? अखिलेश सरकार के इस कदम के विरोध में लेखक-पत्रकार-बुद्धिजीवी गोलबंद हुए सबसे पहले सोशल मीडिया पर विरोध के स्वर फुटे। हर किसी ने इस कृत्य के लिए आलोचना की और निंदा की। और होनी भी चाहिये।
प्रख्यात दलित चिंतक अरूण खोटे कंवल भारती की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए कहते हैं, दरअसल यह मामला सिर्फ इतना ही नहीं है. अपनी गैरलोकतांत्रिक शैली और आकंठ गरूर में डूबे सत्ता के नशे में चूर समाजवादी (?) को प्रतिरोध का कोई भी स्वर सुनना मंजूर नहीं है। वह जानते है कि भोपों की तरह चीखने वाले मुख्या धारा के मीडिया का मुँह बहुत आसानी से बंद किया जा सकता है। लेकिन सोशल मीडिया में हर पल उनके खिलाफ में जो विरोध के स्वर तेजी पकड़ रहे थे उन्हें रोकने का यही एक रास्ता था की सोशल मीडिया में गतिशील महवपूर्ण व्यक्ति को इस तरह प्रताड़ित करो कि पूरे सोशल मीडिया में उनके गैरलोकतांत्रिक रवैये और उनकी सरकार के करप्शन पर चर्चा बंद हो जाय। यदि लोहिया आज होते तो वह फिर हुंकार कर कहते कि, 'जिन्दा कौमे पांच साल इन्तजार नहीं करती'। दलित लेखक और बुद्धिजीवी कँवल भारती की गिरफ्तारी से उन्होंने कई सन्देश देने की कोशिश की है। उन्होंने आरक्षण के समर्थन में खड़े वर्ग को भी चेतावनी भी देने की कोशिश की है। सोशल मीडिया के माध्यम से लाम बंद हो रहे लोगों के लिये भी यह गंभीर चेतावनी है! साथियों ! अब समय गया है कि यदि हमे अपने अभिव्यक्ति के इस एक मात्र माध्यम का सामाजिक व राजनैतिक मुद्दों के लिये इस्तेमाल करना है तो इस अधिकार को बचाये रखने के लिये हमे आपस में वास्तविक तौर पर जुड़ना होगा। सोशल मीडिया से एक कदम आगे लामबंद होने की आवश्यकता है। सोशल मीडिया के संवाद से आगे आन्दोलन का भी हिस्सा बनना होगा। अन्यथा अगला नंबर हममे से ही किसी एक का है और वह शायद ज्यादा तीखा भी हो सकता है( अरूण खोटे के फेसबुक वाल से)।
जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय सहसचिव सुधीर सुमन कहते हैं, कंवल भारती की फेसबुक पर की गई एक टिप्पणी के संदर्भ में रामपुर (उत्तर प्रदेश) में यूपी पुलिस द्वारा की गई गिरफ्तारी बेहद निंदनीय है। यह लेखक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है। कंवल भारती ने आरक्षण और दुर्गा नागपाल के मुद्दे को लेकर फेसबुक पर जो टिप्पणी की है, वह लोकतंत्र और सामाजिक समानता के प्रति प्रतिबद्ध एक जिम्मेवार लेखक की चिंता और बेचैनी को ही जाहिर करती है। सरकार और मंत्रियों के नकारेपन और उनके द्वारा अपराधियों की सरपरस्ती के खिलाफ किसी भी लोकतंत्रपसंद व्यक्ति का गुस्सा वाजिब है। न्यायालय से जरूर कंवल भारती को जमानत मिल गई है, पर हमारी मांग है कि अखिलेश सरकार इस कृत्य के लिए माफी मांगे और कंवल भारती को आरोपमुक्त करे। मीडिया विशेषज्ञ आंदन प्रधान अपने फेसबुक वाल पर लिखते हैं कि, लेखक कँवल भारती की गिरफ्तारी की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई और मुख्यमंत्री से माफी की मांग करता हूँ। यह सीधे-सीधे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है और इसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।
फेसबुक पर सरकार की आलोचना करने से यह पहली गिरफ्तारी नहीं है। इससे पहले बिहार में मुसाफिर बैठा को फेसबुक पर सरकार की आलोचना करने के कारण नौकरी से निलंबित कर दिया गया था। महाराष्ट्र में दो लड़कियों को शिव सेना सुप्रीमो बाल ठाकरे की मौत पर टिप्पणी की वजह से जेल जाना पड़ा था। इन मामलों के बाद हाई कोर्ट ने साफ निर्देश दिया हैं कि ऐसी टिप्पणियों के मामले में गिरफ्तारी के लिए वरिष्ठ अधिकारियों से अनुमति ली जानी चाहिए। अभी यह साफ नहीं है कि कंवल भारती मामले में आला अधिकारियों की अनुमति थी या नहीं लेकिन इतना साफ है कि सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर अखिलेश सरकार की आलोचना और बढ़ ही गई है।
जिस तरह से अभिव्यक्ति की आजादी को छीनने की कोषिष नेता-अपराधी-पुलिस गठजोड ने किया है उसका पूरजोर विरोध होना चाहिये। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यहां यह है कि आरक्षण और दुर्गा नागपाल के मुद्दे को उठाने वाले पर यह हमला क्यों। थोड़ी देर के लिए दुर्गा नागपाल को हटा दिया जाये तो 'आरक्षण' बचता है। जो दलित-पिछड़ों की हक-हूके के लिए है। वहां की सरकार किस की है? जवाब ढूंढने की जरूरत नहीं। कहीं, इसके पीछे बाह्मणवाद तो नहीं ? अगर ऐसा नहीं है तो फिर, आरक्षण की मांग पर गिरफ्तारी क्यों ? यह मांग तो संवैधानिक मांग है। बहरहाल, कंवल भारती ने लिखा क्या देखिये-
कंवल भारती के हालिया पोस्ट इस प्रकार हैं:
कंवल भारती- 05 अगस्त- आरक्षण और दुर्गा शक्ति नागपाल इन दोनों ही मुद्दों पर अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार पूरी तरह फेल हो गयी है. अखिलेश, शिवपाल यादव, आजम खां और मुलायम सिंह (यू.पी. के ये चारों मुख्य मंत्री) इन मुद्दों पर अपनी या अपनी सरकार की पीठ कितनी ही ठोक लें, लेकिन जो हकीकत ये देख नहीं पा रहे हैं, (क्योंकि जनता से पूरी तरह कट गये हैं) वह यह है कि जनता में इनकी थू-थू हो रही है, और लोकतंत्र के लिए जनता इन्हें नाकारा समझ रही है. अपराधियों के हौसले बुलंद हैं और बेलगाम मंत्री इंसान से हैवान बन गये हैं. ये अपने पतन की पट कथा खुद लिख रहे हैं. सत्ता के मद में अंधे हो गये इन लोगों को समझाने का मतलब है भैस के आगे बीन बजाना।
कंवल भारती-02 अगस्त- आपको तो यह ही नहीं पता कि रामपुर में सालों पुराना मदरसा बुलडोजर चलवा कर गिरा दिया गया और संचालक को विरोध करने पर जेल भेज दिया गया जो अभी भी जेल में ही है। अखिलेश की सरकार ने रामपुर में तो किसी भी अधिकारी को सस्पेंड नहीं किया. वह इसलिए कि रामपुर में आजम खां का राज चलता है, अखिलेश का नहीं।
कंवल भारती-01 अगस्त- दलित नेता सिर्फ दलितों के वोट से चुनाव नहीं जीतता है और न ओबीसी का नेता ओबीसी के वोट से चुनाव जीतता है। उन्हें दूसरे समुदायों और वर्गों का वोट भी चाहिए. इस हकीकत को समझिए और एक वर्ग के रूप में संगठित होइए। वर्गीय लड़ाई ज्यादा व्यापक और कामयाब होती है।
कंवल भारती-01 अगस्त- राजनीति की मधुशाला में कौन किसके साथ जाम चीयर करता है, जिस दिन जनता यह समझ लेगी, उसी दिन वो पढ़ी-लिखी और जागरूक हो जायेगी, और उसी दिन देश में क्रान्ति आ जायेगी।
कंवल भारती-01 अगस्त- अखिलेश और मुलायम सिंह यादव को यह अच्छी तरह पता है कि यादव कितना ही उनके खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर ले, पर वो वोट उन्हीं को देगा। जिस तरह जाटव (चमार) मायावती को नहीं छोड़ता, उसी तरह यादव भी मुलायम को छोड़ कर कहीं नहीं जायेगा। इसलिए यादवों के आरक्षण-आन्दोलन से अखिलेश सरकार डरने वाली नहीं है। यही मसला अगर मुसलमानों का होता, तो मुलायम और अखिलेश दोनों उनके सामने हाथ जोड़े खड़े होते। जैसा कि उन्होंने दिल्ली के शाही इमाम और बरेली के मौलाना तौकीर रजा खां के मामले में किया। वे जानते हैं कि सवर्ण और मुसलमान पढ़ा-लिखा तबका है, जो अपने हित के लिए अपनी राजनीतिक ताकत किसी भी पार्टी को दे सकता है। क्या दलित और पिछड़ा वर्ग अपने आर्थिक हितों के लिए ऐसी जागरूकता दिखा सकता है?
कंवल भारती-29 जुलाई- आरक्षण के मुद्दे पर मुख्यमंत्री से मिलकर छात्र नेताओं को कुछ भी हासिल नहीं हुआ. क्यों? कारण वही है, जो मैंने उस पोस्ट में उठाया था कि दलित-पिछड़े नेता समझौता क्यों करते हैं? हकीकत यह है कि मुलायमसिंह यादव और मायावती जैसे नेता यह अच्छी तरह जानते हैं कि दलित-पिछड़ी जातियों के लोग वोट उन्हीं को देंगे। वे कितना ही अपने नेताओं को गरिया लें, पर जब चुनाव होगा, तो वोट उन्हीं को देंगे। कहेंगे कि विकल्प ही नहीं है, क्या करें? मजबूरी है। जब तक यह मजबूरी रहेगी, तब तक छात्र आरक्षण आंदोलन का कोई प्रभाव नहीं होने वाला है। उलटे छात्र नेता भी समझौता कर लेंगे और उनके नेता तो उन्हें बेच ही रहे हैं। आंदोलन करो या मरो की तर्ज पर सफल होता है. आन्दोलन का आधार यह होना चाहिए कि आरक्षण दो या गद्दी छोडो।
कंवल भारती-29 जुलाई- उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार ने नोएडा में आईएस ऑफिसर दुर्गाशक्ति नागपाल को निलम्बित करने का कारण यह बताया है कि उन्होंने रमजान के महीने में एक मस्जिद का निर्माण गिरवा दिया था, जो अवैध रूप से सरकारी जमीन पर बनायी जा रही थी। लेकिन रामपुर में रमजान के महीने में ही जिला प्रशासन ने एक सालों पुराने इस्लामिक मदरसे को बुलडोजर चलवाकर गिरवा दिया और विरोध करने पर मदरसा संचालक को जेल भिजवा दिया. पर अभी तक किसी भी ऑफिसर को समाजवादी अखिलेश सरकार ने न निलम्बित किया है और न हटाया है। जानते हैं क्यों? क्योंकि यहाँ अखिलेश का नहीं, आजम खां का राज चलता है। वह रमजान में मदरसा गिरवा सकते हैं, कुछ भी कर सकते हैं. उनको रोकने की मजाल तो खुदा में भी नहीं है।
कंवल भारती-27 जुलाई- मुलायम सिंह यादव यदि आरक्षण के सवाल पर समझौता नहीं करते तो क्या करते? कोई बताएगा?
(लेखक इलैक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े है)
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