अजेय कुमार जनसत्ता 8 अगस्त, 2013: अमेरिका के दो युवा ब्रैडली मानिंग और एडवर्ड स्नोडेन आजकल सुर्खियों में हैं। ब्रैडली को तो उसके 'अपराधों' के लिए एक सौ तीस वर्षों की कैद की सजा अमेरिकी अदालत ने हाल ही में सुनाई है, पर स्नोडेन कभी हांगकांग तो कभी रूस में होने के कारण अमेरिका के शिकंजे में नहीं आ सका है। क्या कारण है कि अमेरिकी प्रशासन इन युवाओं से इतना परेशान है, इसकी पृष्ठभूमि में जाना आवश्यक है। अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) का गठन 1952 में हुआ था। मकसद था कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 'शत्रु' सरकारों के बीच जो संवाद इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यमों द्वारा हो रहा है, उसे संचार के रास्ते में टैप कर उसका विश्लेषण किया जाए। पहले-पहल तो वे केवल रेडियो प्रसारण तक सीमित थे, लेकिन टेक्नोलॉजी के विकास और फिर सेटेलाइट आदि की मदद से सुरक्षा एजेंसी ने टेलीफोन वार्ताओं और टेलीग्राफ के संदेशों को भी पकड़ना शुरू कर दिया। शीतयुद्ध के दौरान अमेरिका अपने सहयोगी देशों के साथ मिल कर सोवियत संघ और तीसरी दुनिया के कईदेशों में चल रहे वामपंथी और गुरिल्ला ताकतों के आंदोलनों का जायजा लेने, उनका विश्लेषण करने के बाद पूंजीवादी शासक पार्टियों को सचेत करने का काम करता रहा। खाड़ी देशों में इस्लामी आंदोलन पर नजर रखने और उनमें अपने आर्थिक और राजनीतिक हित समायोजित करने का काम भी अमेरिका कई वर्षों से कर रहा है। आम अमेरिकावासियों ने अमेरिका की इन जासूसी गतिविधियों में कोई दिलचस्पी नहीं ली। इक्का-दुक्का खबरें मुख्यधारा के मीडिया में आती रहीं। अमेरिका की अधिकतर वामपंथी पत्रिकाओं जैसे कि रमपार्ट्स, टाइम-आउट आदि ने जरूर जनता को चेताने की कोशिश की, पर जैसा कि अक्सर होता है, किसी ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन आज जब यह जासूसी अमेरिकावासियों के अपने घरों तक दस्तक देने लगी है, मामला तूल पकड़ गया है। अमेरिकावासी, जो गूगल, याहू, एपल, स्काइप, माइक्रोसॉफ्ट जैसी इंटरनेट सेवादाता कंपनियों के बिना रहना सोच भी नहीं सकते, अपनी निजी स्वतंत्रता को लेकर परेशान हैं। ओबामा को अपने चुनावी घोषणापत्र में यह आश्वासन देना पड़ा था कि अमेरिकावासियों की इंटरनेट-सेवा से कोई व्यक्तिगत जानकारी नहीं खोदी जाएगी। आज स्थिति यह है कि एक अमेरिकी जब अपना फोन उठाता है तो उसे यह शक रहता है कि कहीं उसकी बातचीत राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी, सीआइए या एफबीआइ टैप न कर लें। एक अन्य तथ्य यह भी है कि तमाम बड़ी-बड़ी इंटरनेट कंपनियां अपने उपभोक्ताओं के डाटा को खुफिया विभागों के अधिकारियों तक पहुंचाने का काम करती हैं। इसका एक सबूत गूगल के सीइओ एरिक श्मिट ने दूसरे वाशिंगटन आइडियाज फोरम, 2010 में बोलते हुए दिया। उन्होंने कहा, 'आप अपनी मर्जी से, अपने बारे में, अपने दोस्तों के बारे में हमें बड़ी मात्रा में सूचनाएं उपलब्ध करवाते हैं जिससे हम अपने अनुसंधान को बेहतर ढंग से कर पाते हैं। आप बेशक टाइप न करें, हमें मालूम होता है कि आप कहां हैं, हम जानते हैं कि आप कहां थे। हम लगभग जान सकते हैं कि आप क्या सोच रहे हैं।' दरअसल, घरेलू जासूसी का काम 1970 के शुरू में आरंभ हुआ था। एक अमेरिकी सैन्य अधिकारी ने प्रेस को तब बताया था कि सेना नागरिकों की जासूसी करती है। इस पर सीनेट में हंगामा हो गया था। संवैधानिक अधिकारों पर बनी न्यायिक उप-समिति ने इसे स्वतंत्र समाज के लिए खतरा बताया। सरकार की तरफ से यह जवाब दिया गया कि मार्टिन लूथर किंग (जूनियर) की 1967-68 में हत्या के बाद यह जानना जरूरी हो गया था कि 'शत्रु' कौन हैं। सेना का मत था कि कुछ लोग (उन्हें अश्वेत कहे बिना) गैर-कानूनी कामों में संलिप्त हैं, वे ही 'शत्रु' हैं और इस तरह सीआइए और एफबीआइ को छूट मिल गई कि वे ऐसे अमेरिकियों की डाक को भी खोल कर पढ़ सकते हैं जिनके खिलाफ कोई वारंट नहीं है। बुश के 'आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध' के फलसफे ने राज्य को असीमित ताकत दे दी कि वह देश की सुरक्षा के नाम पर निजी स्वतंत्रता का गला घोंट सके। जो भी पत्रिका (या व्यक्ति) इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाने का प्रयास करती है, देश की सुरक्षा के नाम पर उस पर प्रतिबंध लग जाता है, बोलने या लिखने वाले को जेल में बंद कर दिया जाता है। क्या वजह है कि अमेरिका में ही युवा लोग अमेरिकी नीतियों के विरुद्ध उठ खड़े हुए हैं? दरअसल, आधुनिक पूंजीवाद को आधुनिक टेक्नोलॉजी की सख्त जरूरत है और यह टेक्नोलॉजी नए शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के पास है। इसलिए इन युवाओं को राष्ट्र की संवेदनशील जगहों पर भी रखना अमेरिकी प्रशासन की मजबूरी है। पर इन युवाओं को जब तथाकथित 'गुप्त दस्तावेजों' का पता चलता है और साथ में यह भी पता चलता है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियां अपने ही देशवासियों की निजी सूचनाओं की जांच करती हैं और कि अमेरिका ने अपने हाथ किन-किन जगहों पर किन-किन लोगों के खून से रंगे हैं तो ये युवा, जो किसी वामपंथी पार्टी या संगठन से नहीं जुड़े हैं, आक्रोशित हो उठते हैं। ये युवा जो जनतांत्रिक मूल्यों को सर्वोपरि मानते हैं, मानवता की खातिर हस्तक्षेप करना वे अपना फर्ज समझते हैं। अभी तक मीडिया में विकीलीक्स के जूलियन असांज का नाम ही लोकप्रिय हुआ है, पर जिस युवा ने विकीलीक्स को अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, उसका नाम है ब्रैडली मानिंग। इस बाईस वर्षीय युवक ने अपनी पढ़ाई में आ रहे खर्च को वहन करने के लिए दो अक्तूबर 2007 को अमेरिकी सेना में खुफिया विश्लेषक की नौकरी करने का फैसला किया। उसके ख्वाबो-खयाल में न था कि उसे अमेरिका द्वारा इराक और अफगानिस्तान में की जा रही हत्याओं के नंगे सच का सामना करना पड़ेगा। मासूम मॉनिंग ने अमेरिका के मुख्यधारा मीडिया को इन बेगुनाह नागरिकों की हत्याओं के कई सबूत देने चाहे। पर जब वहां से उसे निराशा हाथ लगी तो उसने विकीलीक्स को ये सारी सूचनाएं दे दीं। पिछली फरवरी में इस जुर्म के लिए उसे सेना के जज के सामने पेश होना पड़ा। वहां न कोई कैमरा था न कोई रिपोर्टर। हां, पूरी कार्यवाही की रिकार्डिंग की गई। इस रिकार्डिंग को अमेरिका में सक्रिय संस्था 'फ्रीडम आॅफ दी प्रेस फाउंडेशन' ने प्रेस को लीक कर दिया। इस भाषण में मानिंग ने कहा था: 'मेरा विश्वास है कि अगर अमेरिकी जनता के पास ये सूचनाएं पहुंचा दी जाएं तो देश भर में हमारी विदेश नीति और विशेषकर इराक और अफगानिस्तान में हमारी नीति पर एक बहस की शुरुआत हो सकती है।' इस एक वक्तव्य से स्पष्ट हो जाता है कि इस नवयुवक की मंशा तथाकथित 'शत्रु देशों' को सूचनाएं उपलब्ध करवाने की नहीं थी। बारह जुलाई, 2007 को जब अमेरिकी हेलिकॉप्टर 'अपाचे' द्वारा बारह निहत्थे नागरिकों, जिसमें रॉयटर के दो पत्रकार भी थे, को मौत के घाट उतारा गया तो रायटर ने सूचना अधिकार के तहत इस वीडियो की मांग की, जिससे पता चल सके कि वास्तव में क्या हुआ था, ताकि भविष्य में वे अपने पत्रकारों की सुरक्षा का इंतजाम ज्यादा पुख्ता कर सकें। विचित्र है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दम भरने वाले देश की सरकार ने रायटर को बताया कि ऐसा कोई वीडियो टेप उसके पास नहीं है। इस अकेले तथ्य से ब्रैडली मानिंग का दिमाग चकरा गया, और उसने इसका खुलासा जज के सामने किया भी। ब्रैडली ने कहा कि हेलिकॉप्टर पर सवार अमेरिकी सैनिकों ने जब उन लोगों को मारा, जो घायलों की मरहम-पट््टी कर रहे थे, तो वे एक-दूसरे को खुशी के मारे बधाई दे रहे थे, मारने की अपनी क्षमता पर इतरा रहे थे। ब्रैडली ने आगे कहा कि वह यह देख कर बहुत ही विचलित हो गया कि एक घायल व्यक्ति जब घिसटते हुए सुरक्षित स्थान पर जा रहा था तो हेलिकॉप्टर में बैठे नौजवान ने उसे चिढ़ाते हुए कहा कि बंदूक उठाओ ताकि मुझे तुम्हें मारने का एक कारण मिल सके। शांत दिखने वाले ब्रैडली को, दुनिया को यह सच दिखलाने के लिए तीस जुलाई को एक सौ तीस साल की सजा सुनाई गई है। जज ने माना कि ब्रैडली का मकसद दुश्मन देशों की मदद करना नहीं था, पर उसने 'गुप्त दस्तावेजों' को विकीलीक्स को देकर राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाला है। इस फैसले से एक अन्य युवा स्नोडेन के समर्थकों को यह कहने का मौका मिला है कि 'अच्छा हुआ, स्नोडेन अमेरिका से भाग गया, वरना उसे भी सजा भुगतनी पड़ती।' स्नोडेन ने पहले सीआइए और बाद में राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी में आइटी विशेषज्ञ के रूप में दस वर्ष तक काम किया। उसे ठीक-ठाक वेतन मिलता था और पदोन्नति के काफी अवसर थे। फिर क्या कारण था कि उसने इस आकर्षक नौकरी को त्यागना बेहतर समझा। सात जून को 'गार्डियन' के पत्रकारों को उसने 'प्रिज्म कंप्यूटर प्रोग्राम' का विवरण दिया, जिसके तहत अमेरिका न केवल अपने नागरिकों बल्किदुनिया भर के लोगों की इंटरनेट पर पड़ी सूचनाओं को एकत्र करता है और फिर उनका अपने हित में विश्लेषण करता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार उनसठ प्रतिशत अमेरिकी इस प्रिज्म कार्यक्रम के खिलाफ हैं। तैंतालीस प्रतिशत मानते हैं कि स्नोडेन ने बहादुराना काम किया है और उस पर मुकदमा नहीं चलाना चाहिए। इकतालीस प्रतिशत लोगों का मत है कि स्नोडेन ने सार्वजनिक हित की खातिर अपनी नौकरी कुर्बान कर दी। गार्डियन के पत्रकारों को सूचनाएं देने के फौरन बाद स्नोडेन ने अमेरिका छोड़ दिया और वह हांगकांग चला गया। वहां गार्डियन के पाठकों के साथ दो घंटे का सवाल-जवाब कार्यक्रम किया। जब पूछा गया कि आप अमेरिका से क्यों भागे तो उसका जवाब था, ''अमेरिकी सरकार ने जैसा अन्य 'विसलब्लोअरोंं' के साथ किया, उससे न्यायसंगत मुकदमे की उम्मीद नहीं है। उसने मुझे खुलेआम एक देशद्रोही कहा है। जबकि मैंने गुप्त, आपराधिक और गैर-संवैधानिक क्रियाकलापों को उजागर किया। यह न्याय नहीं है और अपने आपको उनके हवाले कर देना मूर्खता होगी। अगर आप जेल से बाहर अंदर की अपेक्षा बेहतर काम कर सकते हैं... मुझे उस डिक चेनी ने देशद्रोही कहा है जिसकी वजह से चौवालीस सौ अमेरिकी अपनी जान गंवा चुके हैं और बत्तीस हजार अमेरिकी अपाहिज हो चुके हैं और एक लाख इराकियों को मौत के घाट उतारा जा चुका है।'' रूस ने स्नोडेन को राजनीतिक शरण दे दी है। रूस में आम जनता स्नोडेन के साथ है। विभिन्न देशों की सरकारें अमेरिका से पूछ रही हैं कि यह क्या माजरा है, कहां तक उनके मंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति सुरक्षित हैं। लातिन अमेरिकी सरकारें खुलेआम प्रिज्म कार्यक्रम पर अपना विरोध प्रकट कर रही हैं। कोलंबिया के अमेरिका के साथ अच्छे संबंध हैं, पर उसने भी अमेरिकी प्रशासन से जवाब तलब किया है। ब्रैडली मानिंग हो या स्नोडेन, ऐसे युवा सच्चे स्वतंत्रता-सेनानी हैं। अगर वे देश-द्रोही होते तो गुप्त दस्तावेजों को लाखों डॉलरों में बेच कर फरार हो सकते थे। पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। इंटरनेट हमारे भविष्य की कुंजी है। इस पर दुनिया के साधारण जनों का कब्जा हो, इसके लिए जनांदोलन की जरूरत है। स्नोडेन ने तो केवल सीटी बजाई है। इंटरनेट को अमेरिकी कब्जे से मुक्त कराने का मुद््दा भविष्य में जोर पकड़ेगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है। फेसबुक पेज को लाइक करने के क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta |
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