Friday, November 15, 2013

निरंकुश सरकारी खर्च बिना बजट और केंद्र से मदद की गुहार ঋণমুক্তিতে সহায় হতে আর্জি মমতার

निरंकुश सरकारी खर्च बिना बजट और केंद्र से मदद की गुहार

ঋণমুক্তিতে সহায় হতে আর্জি মমতার



एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


मां माटी मानुष की सरकार की सर्वेसर्वा भले ही केंद्र के खिलाफ हमाशा बगावती तेवर में सार्वजनिकत हैं लेकिन केंद्र सरकार के वित्त प्रबंधन के आगे आर्थिक तौर पर कंगाल बंगाल की भिखारी दशा है। फिर राज्य के विकास के लिए तृणमूल सरकार की ओर से 14वें वित्त आयोग के समक्ष आर्थिक मदद बतौर और तीन लाख करोड़ रुपये की मांग की गयीहै। राज्य की आर्थिक बदहाली का हवाला देते हुए विकास परियोजनाओं को लागू करने और खाद्य सुरक्षा जैसी सामाजिक योजनाओं को लागू करने के लिए बागी बंगाल सरकार में हाथ पांव जोड़ लिये हैं।


वित्तमंत्री अमित मित्र के मुताबिक केंद्र ने सहानुभूति के साथ राज्य की मांग पर विवेचना करने का आश्वासन दिया है। जबसे परिवर्तन हुआ है,केंद्र राज्य वित्तीय संवाद का सार संक्षेप यही है।राज्य की और से मदद की गुहार,केंद्र की ओर से विवेचना का आश्वासन और फिर उपलब्धि शून्य।जाहिर है कि फिर वही कथा दोहरायी जानी है।


बंगाल एक अकेला राज्य है जहां वित्त मंत्री बजट पेश करने के बाद लापता हैं।वित्तीय अनुशासन लागू करने में या वित्तीय प्रबंधन में उनकी कोई भूमिका नहीं है। वाम शासन में ज्योति बसु और बुद्धदेव भट्टाचार्य के जमाने में जो महत्व तत्कालीन वित्तमंत्री अशोक मित्र या बाद में असीम दासगुप्त को मिलता रहा है,परिवर्तन राज में अरथशास्त्री वित्तमंत्री की उस तुलना में कोई भूमिका नहीं है। सरकारी खर्च निरंकुश हैं। बजट के बिना अनुदान,भत्ते,उत्सव,पुरस्कार,सम्मान राजकाज की दिनचर्या है। आर्थिक बदहाली से उबरने की कोई राह नहीं है और न उद्योग या कारोबार का माहौल सुधर रहा है। इस परिदृश्य में केंद्रीय वित्तमंत्री पी चिदंबरम की भूमिका के मद्देनजर असीम बाबू  कहीं नजर ही नही रहे हैं।उनका एक मात्र कार्यभार केंद्र से समय समय पर वित्तीय मदद की गुहार लगाना है। पैसा कहां से आयेगा,पैसा कहां से जायेगा,कम से कम बंगाल के वित्त मंत्री को ऐसे फैसले करने का कोई हक ही नहीं है।


बहरहाल केंद्र से मदद मांगने की भूमिका भी उनकी खत्म होती नजर आ रही है। राज्य का विकास करने के लिए तृणमूल सरकार ने फिर केंद्र के समक्ष मदद के लिए हाथ फैलाया है। गुरुवार को राज्य सरकार व केंद्रीय वित्त आयोग के बीच हुई बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि राज्य में नयी सरकार पर पहले से ही दो लाख करोड़ रुपये का कर्ज था, इसलिए राज्य सरकार जब तक इस कर्ज के बोझ से छुटकारा नहीं पाती है, तब यहां का समुचित विकास नहीं हो पायेगा। यही नहीं, इस बैठक में राज्य सरकार की ओर से मांग की गयी  कि खाद्य सुरक्षा योजना जैसी केंद्रीय योजनाओं के लिए केंद्र सरकार को ही राशि खर्च करनी चाहिए। बंगाल में इस योजना को लागू करने के लिए करीब सात हजार करोड़ रुपये का खर्च आयेगा, जिसकी क्षमता राज्य सरकार के पास नहीं है। इसलिए इस प्रकार की योजनाओं के लिए अगर केंद्र खर्च करे तो ही बेहतर है।




अब इस संबंध में गुरुवार को राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने कहा कि बंगाल में आधारभूत सुविधाओं का विकास करना जरूरी है। इसके लिए राज्य सरकार ने अगले पांच वर्षो में केंद्र सरकार से एक लाख करोड़ रुपये की मांग की है। इसके अलावा राज्य सरकार के 41 सरकारी विभागों का समुचित विकास के लिए भी फंड की कमी है। इसके लिए भी राज्य सरकार ने करीब 1.55 लाख करोड़ रुपये का प्रस्ताव पेश किया है। उन्होंने बताया कि सरकार ने यहां के विकास कार्यो के लिए 2.55 लाख करोड़ रुपये की मांग की है। इसके अलावा राज्य सरकार की ओर से स्पेशल पर्पज लोन के तहत वित्त आयोग के सामने और 51 हजार करोड़ रुपये मांगे गये हैं। इसके साथ ही राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से यहां से वसूले गये कुल कर का 50 फीसदी राज्य को वापस करने की मांग की है। इसके अलावा नगरपालिका व पंचायत क्षेत्रों के लिए और चार फीसदी राशि वापस करने की मांग की है।


गौरतलब है कि फिलहाल केंद्र  द्वारा राज्यों से वसूले गये कर का 32 फीसदी ही राज्यों को वापस किया जाता है। राज्य से केंद्र सरकार प्रत्येक वर्ष करीब 44 हजार करोड़ रुपये वसूलती है। उन्होंने कहा कि अगर इस राशि को वापस किया गया तो इससे राज्यों का विकास होगा।



गौरतलब है कि वित्त मंत्री अमित मित्रा ने विधानसभा में बजट पर हुई बहस के जवाबी भाषण में राज्य में आर्थिक संकट होने की बात स्वीकार की है और कहा है कि केंद्र की यूपीए सरकार राज्य को संकट से उबारने में कोई मदद नहीं की। मित्रा ने कहा संघीय ढांचे में राज्य को आर्थिक मदद उपलब्ध कराने में वित्त आयोग की भूमिका होती है। 12वें वित्त आयोग ने कर्ज से जर्जर राज्य को आर्थिक संकट से उबारने के लिए कुछ दिशा-निर्देश तय किए जिसमें कर्ज अदायगी पर रोक, ऋण प्रदान कर राहत देने आदि कई सुझाव हैं। वित्त आयोग ने 2004 में ही पश्चिम बंगाल, केरल और पंजाब को कर्ज प्रभावित राज्य घोषित किया था। मित्रा ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को साथ लेकर कम से कम 10 बार केंद्र के साथ बैठक की। उन्होंने अकेले भी इस मुद्दे पर कई बार बातचीत की लेकिन राज्य को आर्थिक संकट से उबारने के लिए केंद्र ने सहयोग का हाथ नहीं बढ़ाया जबकि पश्चिम बंगाल संवैधानिक नियमों के तहत मदद पाने का हकदार है। राज्य के वर्तमान आर्थिक संकट के लिए पूर्ववर्ती वाममोर्चा सरकार जिम्मेदार है।



ঋণমুক্তিতে সহায় হতে আর্জি মমতার


এই সময়: কেন্দ্রের কাছে ঋণমুক্তির দাওয়াই চাইল রাজ্য সরকার৷ প্রায় আড়াই লক্ষ কোটি টাকার অনুদান-সহ নানা আর্থিক ব্যবস্থার সংস্কারের প্রস্তাবনা চর্তুদশ অর্থ কমিশনের দরবারে পেশ করলেন মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়৷ যুক্তরাষ্ট্রীয় ব্যবস্থার অঙ্গ হিসেবেই কেন্দ্রের উচিত রাজ্যের অভাব-অভিযোগের প্রতি নজর দেওয়া৷ এই প্রসঙ্গে অর্থমন্ত্রী অমিত মিত্রের দাবি, কমিশনের তরফেও রাজ্যের এই অবস্থান অত্যন্ত সহানুভূতির সঙ্গেই বিচার করা হচ্ছে৷ কমিশন সাধুবাদ জানিয়েছে, রাজ্যের রেকর্ড হারে আয় বৃদ্ধির ঊর্ধ্বগামী রেখচিত্রকেও৷


সরকারি সূত্রে জানা গিয়েছে, জঙ্গলমহল ও পাহাড়ের মতো রাজ্যের অনুন্নত এলাকাগুলির জন্য বিশেষ আর্থিক সহায়তাও চেয়েছে রাজ্য৷ আসন্ন লোকসভা ভোটের প্রেক্ষিতে কেন্দ্র-রাজ্য দর কষাকষিতে অর্থ কমিশনের এই বৈঠক বিশেষ তাত্‍পর্য পেয়েছে৷ তবে আরও তাত্‍পর্যপূর্ণ হল, এই সুবাদে মমতার দাবিপত্রে উঠে এসেছে বিগত বাম সরকারের তোলা দাবিও৷ যেমন, আদায়কৃত রাজস্বের ৫০ শতাংশ দাবি করেছে বর্তমান সরকারও৷ ক্ষমতায় থাকাকালীন বারে বারেই এই দাবিতে সরব ছিল বাম সরকার৷


বৃহস্পতিবার রাজারহাটের হিডকো ভবনে অর্থ কমিশনের চেয়ারম্যান ওয়াইবি রেড্ডির সঙ্গে এদিন মুখ্যমন্ত্রী এক ঘণ্টার উপর বৈঠক করেন৷ কন্যাশ্রী প্রকল্পের উপর একটি বিশেষ প্রেজেন্টেশনও দেওয়া হয়৷ যথারীতি মুখ্যমন্ত্রী কমিশনের কর্তাদের সামনে এই ছবিটাই তুলে ধরার চেষ্টা করেন যে, পূর্বতন জমানার নেতিবাচক আর্থিক উত্তরাধিকারের দায় কী ভাবে তাঁর সরকারকে বহন করতে হচ্ছে৷ রীতিমতো পরিসংখ্যান দিয়েই মুখ্যমন্ত্রী দেখিয়েয়েছেন, কী ভাবে রাজ্যের আয়বৃদ্ধি হওয়া সত্ত্বেও ঋণের বোঝা পশ্চিমবঙ্গের আর্থিক বিকাশের পথে কাঁটা হয়ে দাঁড়াচ্ছে৷ অমিতবাবু সাংবাদিকদের বলেন, 'আমরা রাজস্ব খাতে আয় বাড়িয়ে প্রায় ৪০ হাজার কোটি টাকা করতে চলেছি৷ তার মধ্যে ২১ হাজার কোটি টাকাই বেরিয়ে যায় ধার শোধ করতে৷ মুখ্যমন্ত্রী অর্থ কমিশনকে বোঝানোর চেষ্টা করেছেন, কী অবস্থার মধ্যে আমরা সরকারে এসেছি৷ ঋণের এক ভয়ঙ্কর বোঝা আমাদের বইতে হচ্ছে৷ বাম জমানার এই নেতিবাচক উত্তরাধিকার যে কতটা সমস্যার সৃষ্টি করেছে, তা অবশ্য খুবই সহানুভূতির দৃষ্টিতে দেখেছেন অর্থ কমিশনের কর্তারা৷ '


এর প্রতিবিধানে কতগুলি আর্থিক প্রস্তাবনা কমিশনে পেশ করেছে রাজ্য সরকার৷ অমিতবাবু জানান, রাস্তা, সেতু, হাসপাতাল-সহ পরিকাঠামোর উন্নয়নে রাজ্য কেন্দ্রের কাছে প্রতি বছর ২০ হাজার টাকা করে আগামী ৫ বছরে ১ লক্ষ কোটি টাকা চেয়েছে৷ পরিকাঠামোর ক্ষেত্রে নানা অভাব ও অসঙ্গতি দূর করতেই এক লক্ষ কোটি টাকার এই 'স্পেশাল পারপাস ভেহিকল' (এসপিভি) তৈরি করা উচিত৷ দ্বিতীয়ত, ২০১৫-২০ আর্থিক বছরে ৪১টি দপ্তরের জন্য ১ লক্ষ ৫৫ হাজার কোটি টাকার বিশেষ অনুদানও চেয়েছে রাজ্য৷ উল্লেখ্য, এই আড়াই লক্ষ কোটি টাকার দরবার রাজ্যের মোট ঋণের অঙ্কের চেয়ে বেশি৷


তবে, জঙ্গলমহল বা পাহাড়ের মতো এলাকাগুলির উন্নয়নের তাগিদে কমিশনকে ইতিবাচক অবস্থান নিতেও আর্জি জানিয়েছেন মুখ্যমন্ত্রী৷ জঙ্গলমহলে মাওবাদী জঙ্গিদের কোণঠাসা করা ও পাহাড়ে বিভেদকামী শক্তিগুলিকে ঠেকানোর যুক্তির উপর নির্ভর করেই কেন্দ্রের নজর কাড়ার চেষ্টা চালিয়েছেন মুখ্যমন্ত্রী৷


যে আর্থিক সংস্কারের উপর জোর দিয়েছেন মমতা, সেগুলি অবশ্য যুক্তরাষ্ট্রীয় কাঠামোয় কেন্দ্র-রাজ্য সম্পর্কের মৌলিক পুর্নবিন্যাসের অনুঘটক হিসাবে বিবেচিত হতেই পারে৷ যেমন, কেন্দ্রের উচিত আদায়কৃত করের ৫০ শতাংশ রাজ্যকে ফেরত দেওয়া৷ এর সঙ্গে কেন্দ্রীয় করের আরও ৪ শতাংশ পঞ্চায়েত, পুরসভা ইত্যাদি স্বায়ত্বশাসিত সংস্থাকে ফেরত দেওয়া উচিত৷ দ্বিতীয়ত, প্রস্তাবিত 'গুডস অ্যান্ড সার্ভিসেস ট্যাক্স' (জিএসটি)-এর প্রেক্ষিতে রাজ্যের রাজস্বখাতে যে ক্ষতি হতে পারে, কেন্দ্র যেন তা পুষিয়ে দেয়৷ তৃতীয়ত, রাজ্য সরকারের অনুপাতেই কেন্দ্রীয় বিক্রয় করের হার কমানো প্রয়োজন৷ চতুর্থত, ঋণ পরিশোধের ক্ষেত্রে অন্তত তিন বছরের জন্য স্থগিতাদেশ ঘোষণা করুক কেন্দ্র৷


ঋণের বোঝার তাড়না যে রাজ্যের চরম মাথাব্যথার কারণ হয়ে দাঁড়িয়েছে, তা বার বার রাজ্য সরকারের তরফে জানানো হয়েছে কমিশনকে৷ অমিতবাবু বলেন, 'এমন পরিস্থিতি হয়েছে যে ৩০ শতাংশ হারে রাজস্ব বাড়লেও, ২০১৭-১৮ সালেও আমাদের এই বিপুল ঋণ ঘাড়ে করে বইতে হবে৷'

চতুর্দশ অর্থ কমিশনে রাজ্যের দরবার

ধ্রুবজ্যোতি প্রামাণিক, এবিপি আনন্দ

Thursday, 14 November 2013 21:09কলকাতা: চতুর্দশ অর্থ কমিশনের কাছে পরিকাঠামো উন্নয়ন এবং দফতর ভিত্তিক অনুদান বাবদ প্রায় ২ লক্ষ ৫৫ হাজার কোটি টাকা দাবি করল রাজ্য সরকার৷ একইসঙ্গে কেন্দ্রীয় ঋণ মকুব এবং ঋণ কাঠামে পুনর্বিন্যাসের আবেদনও জানানো হল৷ বৈঠক শেষে অর্থমন্ত্রী অমিত মিত্র জানালেন, রাজ্যের দাবি বিবেচনা করা হবে বলে সরকার আশাবাদী৷ বৃহস্পতিবার দুপুরে নিউটাউনে হিডকো দফতরে চতুর্দশ অর্থ কমিশনের চেয়ারম্যান ওয়াই ভি রেড্ডির সঙ্গে বৈঠক করেন মুখ্যমন্ত্রী৷ বৈঠকে কমিশনের চার সদস্য সুষমা নাথ, গোবিন্দ রাও, অভিজিত্‍ সেন ও সুদীপ্ত মুন্ডলও উপস্থিত ছিলেন৷

অন্যদিকে, অর্থমন্ত্রী অমিত মিত্র ছাড়াও রাজ্যের তরফে উপস্থিত ছিলেন পুরমন্ত্রী, বিদ্যুত্‍মন্ত্রী এবং স্বাস্থ্য প্রতিমন্ত্রী৷ এদিন কমিশনের সামনে নিজেদের বক্তব্য যুক্তিসহ তুলে ধরেন মুখ্যমন্ত্রী ও অন্যান্য মন্ত্রীরা৷ রাজ্যের দাবি, আগের থেকে রাজস্ব আদায় বেড়েছে প্রায় ৩১ শতাংশ৷ তার সঙ্গে সামঞ্জস্য রেখেই অনুদান বাড়াক কেন্দ্র৷ এছাড়াও কমিশনের সামনে একাধিক দাবি তুলে ধরা হয়৷ রাজ্যের পরিকাঠামো উন্নয়নে বিপুল খরচের ঘাটতি মেটাতে ২০১৫-২০ পর্যন্ত বছরে ২০ হাজার কোটি টাকা করে ১ লক্ষ কোটি টাকা দেওয়ার দাবি করা হয়৷ ৪১টি দফতরের উন্নয়নমূলক কাজের জন্য ১ লক্ষ ৫৫ হাজার কোটি টাকা অনুদানেরও দাবি জানানো হয়৷ পাশাপাশি ১৪ হাজার ৩৩৮ কোটি টাকার কেন্দ্রীয় ঋণ মকুব ও তিন বছরের জন্য কেন্দ্রীয় ঋণে সুদ স্থগিত রাখার দাবিও জানায় রাজ্য৷ এছাড়াও, বাজার থেকে নেওয়া ঋণ পরিশোধের সময়সীমা ১০ বছর থেকে বাড়িয়ে ১৫ থেকে ২০ বছর করা এবং ক্ষুদ্র সঞ্চয় প্রকল্প থেকে নেওয়া বাধ্যতামূলক ঋণ পরিশোধের জন্য ৫১ হাজার কোটি টাকা অনুদানের দাবিও জানানো হয়৷ বৈঠক শেষে অর্থমন্ত্রী দাবি করেন, রাজ্যের দাবিদাওয়া যথেষ্ট গুরুত্ব দিয়েই শুনেছেন কমিশনের চেয়ারম্যান ও সদস্যরা৷ তাঁরা বুঝেছেন মুখ্যমন্ত্রী ইতিমধ্যেই পশ্চিমবঙ্গের অর্থনৈতিক উন্নতির জন্য দৃঢ় অবস্থান নিয়েছেন৷

রাজ্যের তরফে বৈঠকে আরও বেশ কয়েকটি দাবি করা হয়৷ যেমন, রাজ্যগুলি থেকে কেন্দ্র যে করের টাকা নিয়ে যায়, এখন তার ৩২% ফিরিয়ে দেওয়া হয়৷ রাজ্যের দাবি, তা বাড়িয়ে ৫০% করুক কেন্দ্র৷ পাশাপাশি পুরসভা ও পঞ্চায়েতের জন্য আরও ৪ % ফেরত দেওয়া হোক৷ পণ্যপরিষেবা কর চালু হলে রাজ্যের যে আর্থিক ক্ষতি হবে, তার দায় নিতে হবে কেন্দ্রকে৷ খাদ্য সুরক্ষা আইন বা শিক্ষার অধিকার আইনের জন্য রাজ্যের ঘাড়ে যে বাড়তি খরচের বোঝা চেপেছে তা কেন্দ্রকেই বহন করার দাবি জানায় রাজ্য৷ দাবিগুলি গুরুত্ব দিয়ে বিবেচনা করা হবে বলে আশাবাদী রাজ্য৷

এবার দেখার কত টাকা বরাদ্দ করার সুপারিশ করে চতুর্দশ অর্থ কমিশন৷(ফাইল চিত্র)

http://www.abpananda.newsbullet.in/state/34-more/43575-2013-11-14-15-42-36

আলুর `কাটা ঘায়ে` নুনের ছেঁটার ভয়ে আতঙ্ক, গুজবের জেরে নুন কেনার হুড়হুড়ি, নুনের লরি লুঠহঠাত্‍ করেই আকাশ ছুঁতে পারে নুনের দাম! এমনই আতঙ্ক ছড়িয়েছে উত্তর দিনাজপুর, দক্ষিণ দিনাজপুর ও মালদায়। নুনের জন্য দোকানে দোকানে ভিড় করেছেন ক্রেতারা। যদিও নুন পাওয়া যাবে না বা দাম বাড়বে এমন কোনও আশঙ্কা নেই বলে জানিয়েছেন মন্ত্রী সাবিত্রী মিত্র। মানুষের মধ্যে আতঙ্ক ছড়ানোর পাশাপাশি শুরু হয়েছে কালো বাজারি।


পরিস্থিতি নিয়ন্ত্রনে আনতে উত্তর দিনাজপুরে কিছু কিছু এলাকায় লাঠি চালায় পুলিস। মালদার মানিকচকে কাল রাতে নুন বোঝাই লরি লুঠ হয়।  ছটি দোকান লুঠ হয় ইংরেজ বাজারের নেতাজি পৌর বাজারে । প্রশাসনের তরফে পরিস্থিতি নিয়ন্ত্রণে আনার চেষ্টা চলছে বলে জানিয়েছেন মালদার এসপি ও জেলাশাসক।

http://zeenews.india.com/bengali/zila/salt-rumor-in-malda_17869.html


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