Saturday, November 23, 2013

अब खतरा यह कि भारत सरकार देहात के कायाकल्प के लिए बेताब इंडिया इंक की रणनीति के तहत सारे के सारे गांव अब बन जायें दंडकारण्य या पूर्वोत्तर या फिर कश्मीर,ऐसी तैयारी हैं India Inc's 'go rural' strategy picks up pace

अब खतरा यह कि

भारत सरकार

देहात के  कायाकल्प

के लिए बेताब

इंडिया इंक की

रणनीति के तहत

सारे के सारे

गांव अब बन जायें

दंडकारण्य या

पूर्वोत्तर या फिर

कश्मीर,ऐसी तैयारी हैं

India Inc's 'go rural' strategy picks up pace


पलाश विश्वास

India Inc's 'go rural' strategy picks up pace


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अब खतरा यह कि

भारत सरकार

देहात के  कायाकल्प

के लिए बेताब

इंडिया इंक की

रणनीति के तहत


सारे के सारे

गांव अब बन जायें

दंडकारण्य या

पूर्वोत्तर या फिर

कश्मीर,ऐसी तैयारी हैं



छन छन कर होते विकास

की महिमा किसी बाबा

के चमत्कार से कम

नहीं है बंधु

इंडिया  इंक की मानें

तो मुक्त बाजार में शहरी

लोग अब फटीचर हैं

हालांकि पूरी तरह

कंगाल हुए नहीं

वे अबतक


जाहिर सी बात है

कि शहरों की की आबादी

को सबसे जरुरी है छत

जो अब भी गांवों में

लोगों के पास है

कुला आसमान

परिवहन का झमेला

है ही नहीं कि

सौ पांच सौ के

नोट जेब में डाले

निकले कार्यस्थल को

बीमार हो जायें

गांव वाले तो

इलाज कराने के

बजाय यूं ही मर

जाते हैं लोग

खुशी खुशी

परिवार के खातिर


इंडिया इंक अब

छीजते मुनाफा

से है परेशान

और महाजनी सभ्यता

में कसमसाते गांवों

को शापिंग माल

बनाने की उसकी

रणनीति है

जैसे कि इस देश

में सदियों से

बनिये जमकर

मुनाफा कमाते रहे हैं

उसी इतिहास को

दोहराने के फिराक

में है इंडिया इंक

इसी लिए उद्योग धंधे

के बजाय गांवों

को शहर बनाने

में लगी है अपनी

कारपोरेट सरकार

इसीलिए ग्रामीण

बाजार को

सर्वोच्च प्राथमिकता


फिर अनाज जो

खुद उगातें हों

और सब्जियां

जिनके खेतों में

उगती हों,वे लोग

जाहिर हैं

खुशहाल ही होंगे



उत्तराखंड में अपने

गांव बसंतीपुर में

लोगों के खेत

सही सलामत हैं

अभी तक

आसपास जबर्दस्त

शहरीकरण की आंधी

के बावजूद

आरक्षण बिना

नौकरियां भी मिल

गयी हैं युवा

हाथों को


जाहिर है

उनकी क्रयशक्ति

हमारी आय के

मुकाबले में

कमतर आय

के बावजूद

काफी है

खरीददारी के लिए

गांवों की चारों

दिशाओं में अब

पक्की सड़कें हैं

जिनपर अपनों की

फोर व्हीलर भी

खूब दौड़ती हैं

कंप्यूटर और फेसबुक

भी है बसंतीपुर में

इसके मुकाबले

हम दाने दाने को

मोहताज, हर

चीज,हर सेवा

जो खरीदनी

होती है तो

जरुरी चीजों

के अलावा बाकी

खरीददारी की

हमारी कोई

औकात ही नहीं


घर से दफ्तर

और दफ्तर से

घर यही जिंदगी

न गांव है

और न  रिश्तेदारियां

न सामाजिक

जिम्मेदारियां

देशाटन के रास्ते

पिता आ जाते

थे कभी कभार

पड़ाव डालने

पर लंबा वे कभी

ठहरे नहीं

हमारे यहां

जुनून के घोड़ों

पर थे वे हमेशा

मां गांव से  बाहर

व्याह के बाद

अपने मायके भी

नहीं गयीं कभी

पिता व्याप्त थे

देश के  चप्पे चप्पे में

पिता आज भी व्याप्त

देशभर के देहात

के धूल में

खेतों की माटी में

लेकिन मां अपने

नाम पर बसे

गांव बसंतीपुर को

ही मुकम्मल दुनिया

बनाकर जीती रही

मरकर वहीं रह

गयी हमेशा के लिए


पिता ने भी मरने

के लिए आखिर

बसंतीपुर को ही

चुना और 2001 से

अनंत विश्राम पर हैं

आंदोलन के अपने

साथियों के साथ

जिन्होंने बसाया

बसंतीपुर


मैंन बसंतीपुर के

लिए कभी कुछ

किया हो या नहीं

याद नहीं

पर गनीमत है

कि वे मुझसे

अब भी करते हैं

उतना ही प्यार

बदले में हम

कुछ भी तो

दे नहीं सकें कभी

न कोई जिम्मेदारी

निभा सकें कभी

ऐसी हमारा

नौकरीपेशा

ऐसी हमारी

शहरी औकात


शहर में नौकरी

खत्म होने के बाद

जैसे अपने यूपी

बिहार वालों की नियति

है गांव की माटी

उसी सोंधी महक

में वापसी के सिवा

हमारा कोई

विकल्प नहीं

कोई छत नहीं है

इस देश में कहीं

जहां शरण मिल

सकती है हमें


जबकि गांव में

हम अजनबी हैं

किसी फेसबुकिया

मित्र ने एकदम

सही लिखा है कि

बार बार उत्तराखंड

लिखते रटते रहने से

कोई नहीं हो

जाता उत्तराखंडी

जनमे जहां

वहां के लिए

आखिर किया ही

क्या हमने

नराई के सिवा

उत्तराखंड को

अब तक दिया

ही क्या हमने


हम शर्मिंदा हैं

लेकिन महज

हमारी शर्म से

बचेगा नहीं

हिमालय

अफसोस यही है

दुनियाभर  की

धारदार और तेज

छुरियां हलाक

करने में लगी हैं पहाड़


पहाड़ से अब

उत्तराखंड का

मैदान बिल्कुल

अलहदा है

और अलग राज्य

बनने से हमसे

न जाने कब

अलग हो गया

है समूचा  हिमालय

जो कभी हमारा था

अब नहीं है

उत्तराखंड में जनमकर

भी अब हम

उत्तराखंडी कहलाने

के हकदार नहीं


देश के बाकी गांव

पहले जैसे गांव

रहे नहीं हैं अब

मुश्किल यही है

गांव में भी

सजने लगा है

सर्वशक्तिशाली

खूबसूरत और

पुरअसर दिलकश

बाजार, जहां खो

जाने  का खतरा

अब उतना ही

खतरनाक है

जितना कि

किसी राजधानी में

महानगर में

या उपनगर में

किसी कस्बे में


जो हम पीछे

छोड़ आये अरसा

पहले अपने विकास

के मकसद से

उसका भी विकास

हो गया है

बाजार की तर्ज पर

मुझे सही मालूम नहीं

कि कितना बदल

गया है बसंतीपुर

या कितना बदल

गया है नैनीताल

या अपना पहाड़

महज फेसबुक

के जरिये डरावनी

तस्वीरों का समाना

होता है कभी कभार

गांव वापस लौटने तक

बसंतीपुर कितना

रहेगा बसंतीपुर

नैनीताल कितना

रहेगा नैनीताल

या अपना हिमालय

कितना बचा रहेगा

हिमालय, मुझे

उत्तराखंडी मुकम्मल

हुए बिना यही चिंता है

अपने लोगों की

माटी में कितना होंगे

हम शरीक

देश के वर्तमान

और भविष्य की तरह

हम इसका अंदाजा

लगा ही नहीं

सकते फिलहाल  


ऐसे गांव अब

देश में हो गये हैं खूब

पश्चिम उत्तर प्रदेश

के गांवों की तुलना

लेकिन आप नहीं कर

सकते मध्य बिहार

के गांवों के साथ

उसीतरह नासिक

जलगांव की तरह

नहीं हैं बाकी

महाराष्ट्र के गांव

तमिलनाडु के

गांवों से तुलना

नहीं हो सकती

आंध्र के गांवों की

और कर्नाटक में

तो स्वर्णिम राजमार्गों

के दोनों तरफ

गरीबी पसरी हुई

नंग धड़ंग

बसंतीपुर या तराई

के किसी गांवों की

कोई तुलना नहीं है

पहाड़ों में  डूब  में

शामिल गांवों की


देश के किसी आदिवासी

गांव की तुलना

नहीं हो सकती

देश के जमीन सलामत

किसी गांव से

जहां चप्पे चप्पे पर

जारी रंग बिरंगा

सलवा जुड़ुम


सिक्किम का शहरीकरण

और औद्योगीकरण

ठीक वैसा ही है

जैसा गुजरात में

विकास का माडल

लेकिन गुजरात हो

या राजस्थान

या फिर खेती के

लिए संपन्न

पंजाब और हरियाणा

के गांव, संकट हर कहीं

सबसे ज्यादा

अंधाधुंध विकास का है

जैसे नासिक जलगांव

के सारे गांव भी

विस्थापित होंगे

टिहरी की तरह

भट्टा परसौल

अब सारा देहात है

जो हुआ नहीं

हो जायेगा कल परसो

बाजार की पहुंच

से दूरी के मुताबिक

जो हरियाली और

खुशहाली है

देश के चुनिंदा

गांवों में अब भी


वे अब बन जायेंगे

दंडकारण्य या

पूर्वोत्तर या फिर

कश्मीर,ऐसी तैयारी हैं

विकास के खातिर

सुरसामुखी इंफ्रा

की महामारी

संक्रमित हो रही है

बहुत तेज

और बेहतर क्रयशक्ति

के खातिर शहरों,महानगरों

और कस्बों के बजाय

निशाने पर है समूचा देहात

इंडिया इंक की

योजना पर अमल

अभी बाकी है

कामरेडों ने  बंगाल

में गांवों का कायाकल्प

करने की कोशिश

की थी इसीतरह

वायव्रेंट गुजरात

की कथा भी यही है

ऊर्जा प्रदेश

उत्तराखंड और हिमाचल

के थीम सांग में

भी सिक्किम की गूंज


अब खबर खास है कि

वाणिज्य एवं उद्योग

मंत्री आनंद शर्मा

ने कहा है कि अपनी

भारत सरकार

बाली (इंडोनेशिया) में

होने वाली डब्ल्यूटीओ

मंत्रिस्तरीय बैठक में

हर चंद कोशिश करेगी

भारत के किसानों

और गरीबों के हितों

की रक्षा करने के

समाधान निकालने का

खाद्य सब्सिडी के

मामले में भारत

के सामने

अंतर्राष्टीय नियामों के

उल्लंघन के जोखिम

की बात को

स्वीकार करते हुए


शर्मा ने संसदीय दलों

के नेताओं को लिखे

एक पत्र में

कहा है कि

भारत यह सुनिश्चित

करेगा कि

हमारे राष्ट्रीय हित

की रक्षा हो

जिसमें समाज के

कमजोर वर्गों में

हमारे किसानों के

हित भी शामिल हैं

पत्र में कहा

गया है कि

हमने पूरी तरह

स्पष्ट कर दिया

है कि हम

खाद्य सब्सिडी पर

मोल संबंधी उपबंध

को लेकर

किसी तरह की

शर्तों को स्वीकार

नहीं करेंगे और

सभी दलों को

बाली सम्मेलन के

बाद के कार्यक्रम

के लिए प्रभावी

तरीके से काम

करने को प्रतिबद्ध

होना चाहिए

नौवां डब्ल्यूटीओ

मंत्रिस्तरीय सम्मेलन

3 से 6 दिसंबर तक

बाली में होगा

भारत सहित उभरते

देशों का समूह जी-33

डब्ल्यूटीओ के

कृषि पर समझौते में

संशोधन की मांग

कर रहा है ताकि

सरकारी खाद्य सुरक्षा

कार्यक्रमों को

डब्ल्यूटीओ की

ओर से बिना किसी

जुर्माने के जोखिम

के लागू किया जा सके


डब्ल्यूटीओ के

नियमों के मुताबिक

कोई विकासशील देश

अपने कुल

कृषि उत्पादन का

अधिक से अधिक

10 प्रतिशत

तक ही खाद्य सब्सिडी

उपलब्ध करा सकता है

भारत के दृष्टिकोण से

खाद्य सुरक्षा से

संबद्ध प्रस्ताव

महत्वपूर्ण है जो

जी-33 द्वारा

पेश किया गया है

भारत इस प्रस्ताव

का एक अहम

घटक रहा है


India Inc's 'go rural' strategy picks up pace

ET Bureau | Nov 23, 2013, 10.53AM IST

NEW DELHI: For a range of Indian companies in diverse sectors - such as automobiles, banking, consumer goods and food processing - "go rural" is a big strategy as the economic growth in rural areas is projected to be faster than urban centres.


Mahindra and Mahindra Financial Services, which has a presence in more than 2 lakh villages across the country, is now focusing on opening more branches in rural areas, said executives at The Economic Times Rural Strategy Summit on Friday.


"We are going deeper. The business and collection centres will be at village level. We realised that being 100 km from a village shrinks the difference between our executive and customers. By being closer it will make us attractive for the village, and competitive landscape gets reduced as you are the only competitive player," says Ramesh G Iyer MD, Mahindra and Mahindra Financial Services.


According to MART, a Knowledge-based consulting firm on emerging markets, rural India is an amalgamation of 7,800 small towns and 6.4 lakh villages with 75% of the country's purchasing power. According to them, in 2010-12, consumer spending in rural India was approximately 3.7 lakh crores compared to 2.98 lakh crores in cities.


The Gujarat cooperative milk marketing federation, which markets the Amul brand, has also expanded its rural network to reach over 4,000 villages with population below 5,000, managing director RS Sodhi said.


Pradeep Kashyap, CEO of MART, is also upbeat on villages. "The rural story is for real where spending is increasing and companies are showing interest, even as we see urban spending going down. This points that there is a potential in rural market but needs to be harnessed," he said.


The event was attended by Ashish Rai, head - rural business and alliances, Hindustan Unilever; Atrayee Sarkar, chief of marketing, Tata Steel; Piyush Kumar Sinha, professor - marketing, IIM Ahmedabad; Veerendra Jam dade, CEO, Vritti Solutions.

http://timesofindia.indiatimes.com/business/india-business/India-Incs-go-rural-strategy-picks-up-pace/articleshow/26246644.cms

सेल्स ग्रोथ अच्छी, लेकिन प्रॉफिट कोसों दूर

ईटी | Nov 18, 2013, 09.00AM IST


रंजीत शिंदे, शैलेश कदम, ईटीआईजी:

इंडिया इंक के लिए सितंबर क्वार्टर का रिजल्ट मिला-जुला रहा है। कंपनियों का ऑपरेटिंग प्रॉफिट स्टेबल है। सेल्स में 11.6 पर्सेंट की बढ़ोतरी हुई है, जो पिछली चार तिमाहियों में सबसे ज्यादा है। हालांकि नेट प्रॉफिट में 2.3 पर्सेंट की गिरावट आई है। यह तीसरा क्वार्टर है, जब कंपनियों के मुनाफे में कमी देखी गई है। इससे पता चलता है कि इंडिया इंक की नॉन-ऑपरेटिंग कॉस्ट बढ़ रही है।

ईटीआईजी ने 1,800 से ज्यादा कंपनियों के रिजल्ट की पड़ताल की है। बैंकिंग-फाइनेंशियल और ऑयल-गैस कंपनियों को इससे बाहर रखा गया। एनालिसिस से पता चला है कि रेवेन्यू बढ़ने के बावजूद कंपनियों के प्रॉफिट में बढ़ोतरी नहीं हुई है। रेवेन्यू ग्रोथ में आईटी और फार्मा जैसे कुछ सेक्टर्स का हाथ रहा। इन कंपनियों को डॉलर के मुकाबले रुपए की वैल्यू में आई तेज गिरावट का फायदा मिला है।

एंबिट कैपिटल में इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के वाइस प्रेसिडेंट गौरव मेहता ने बताया, 'इंडिया इंक के लिए यह क्वार्टर भी अच्छा नहीं रहा। मार्जिन पर प्रेशर बना हुआ है। रिटर्न रेशियो में भी कमी आई है। हालांकि, बहुत कम कंपनियों के रिजल्ट से बाजार को मायूसी हुई है।' सितंबर क्वार्टर में इंडस्ट्री का परफॉर्मेंस ईटीआईजी के एस्टिमेट के मुताबिक रहा। इकनॉमिक टाइम्स ने यह खबर 3 अक्टूबर के एडिशन में दी थी। इसमें कहा गया था कि सितंबर क्वार्टर में निफ्टी में शामिल 50 कंपनियों की एवरेज सेल्स 9 पर्सेंट बढ़ सकती है। इन कंपनियों के प्रॉफिट में 3.5 पर्सेंट की गिरावट का अनुमान हमने लगाया था।

सितंबर क्वार्टर में डेप्रिसिएशन और अदर इनकम से पहले कंपनियों का ऑपरेटिंग मार्जिन 0.20 पर्सेंट बढ़कर 15.8 पर्सेंट हो गया। पिछले 9 क्वार्टर्स से ऑपरेटिंग मार्जिन 14-16 पर्सेंट के बीच बना हुआ है। इससे पता चलता है कि इंडिया इंक ने कॉस्ट को कंट्रोल में रखा है। हालांकि, वह हायर रॉ मैटीरियल कॉस्ट का बोझ क्लाइंट्स पर नहीं डाल पा रही है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि कंपनियों के लिए प्रॉफिटेबिलिटी मेंटेन करना मुश्किल हो सकता है।

मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज के राकेश तिवारी ने बताया, 'सभी सेक्टरों पर कॉस्ट प्रेशर दिख रहा है। सितंबर क्वार्टर में सीमेंट सेक्टर की हालत इस मामले में सबसे खराब रही। ऑटो और एफएमसीजी सेक्टर की कंपनियां अगर दाम बढ़ाती हैं, तो उनकी सेल्स ग्रोथ कम हो सकती है।' एक्सपोर्ट ओरिएंटेड कंपनियों को छोड़कर डोमेस्टिक इकनॉमी के लिए हालात बहुत अच्छे नहीं दिख रहे हैं। हालांकि, सरकार का कहना है कि फाइनेंशियल ईयर के दूसरे हाफ में इकनॉमी रफ्तार पकड़ सकती है। एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि इंडिया इंक बॉटम आउट के करपीब है। एंबिट कैपिटल के मेहता ने बताया, 'सितंबर क्वार्टर में इंडस्ट्री बॉटम आउट हुई है या नहीं, यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन इसे ज्यादा दूर भी नहीं माना जा सकता।' बॉटम आउट का मतलब इकनॉमी का सबसे लोअर लेवल पर पहुंचना है। इस लेवल से इसमें रिबाउंड के चांसेज हैं।


http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/25945213.cms


अर्बन मार्केट में नेगेटिव ग्रोथ से डरी कंपनियों का रुख गांव की ओर

इकनॉमिक टाइम्स | Aug 23, 2013, 08.48AM IST

माधवी सैली/ऋतांकर मुखर्जी

नई दिल्ली/मुंबई/कोलकाता।। अब तक परेशानी में दिख रही इकॉनमी और इंडिया इंक अब गांवों का रुख कर रहा है। हालात सुधारने के लिए इनकी नजरें अब रूरल इंडिया पर हैं। बेहतर मॉनसून और शानदार उपज ने उनकी उम्मीदें और बढ़ा भी दी हैं। इस साल अब तक इकॉनमी और उसके साथ इंडिया इंक की हालत कुछ ठीक नहीं रही है। अर्बन इंडिया तो इतना डरा हुआ है कि उसने खर्च काफी कम कर दिया है। ऐसे में नजरें अब गांवों पर है। अक्टूबर में बंपर फसल से लगभग 70 करोड़ की आबादी वाले रूरल इंडिया की इनकम और खर्च दोनों बढ़ेंगे। इसे देखते हुए एलजी, विडियोकॉन जैसी कंज्यूमर गुड्स फर्में, वोडाफोन, भारती, एयरटेल, आइडिया और यूनिनॉर जैसे मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर्स और सुजुकी, होंडा और एमऐंडएम जैसे ऑटोमोबाइल मेकर्स रूरल मार्केटिंग स्ट्रैटिजी मजबूत बनाने में जुट गई हैं।


विडियोकॉन के सीओओ सीएम सिंह कहते हैं, 'रूरल मार्केट 10-14 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रहा है। अर्बन मार्केट नेगेटिव ग्रोथ दिखा रहा है या पिछले साल के लेवल पर है। पंजाब और यूपी के कंज्यूमर हमारे प्रॉडक्ट्स खरीदने को तैयार हैं।' एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स इंडिया के चीफ मार्केटिंग ऑफिसर संजय चितकारा बताते हैं कि कंपनी रूरल एरिया को अग्रेसिव तरीके से टारगेट कर रही है। फेस्टिव सीजन में कंपनी रूरल मार्केट में स्मार्टफोन और फ्लैगशिप फ्लैट पैनल टीवी सेट लॉन्च करने की सोच रही है। चितकारा ने कहा, 'हमें लगता है कि कंज्यूमर शॉपिंग अपग्रेड करेंगे।' एलजी इंडिया का रूरल मार्केट अर्बन मार्केट से 7-8 फीसदी ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। इसकी सेल्स में ग्रामीण क्षेत्र की हिस्सेदारी 15-18 फीसदी है।


ग्रामीण इंडिया से कंपनियों को यूं ही उम्मीद नहीं है। इस साल मॉनसून समय पर आया। बारिश अब तक औसत से 20-30 फीसदी ज्यादा रही है। इससे किसानों ने 9 फीसदी ज्यादा बुआई की है और रकबा 930 लाख हेक्टेयर हो गया है। सबसे ज्यादा रकबा दलहन, तिलहन और मोटे अनाजों का बढ़ा है। ऐग्रिकल्चर सेक्रेटरी आशीष बहुगुणा के मुताबिक, 'इस साल बंपर फसल हो सकती है।' मैक्वायरी का मानना है कि खासतौर पर खेती के चलते इकॉनमिक ग्रोथ 5 फीसदी से बढ़कर 5.4 फीसदी रह सकती है।


ऑटोमोबाइल और टेलिकॉम कंपनियों के लिए रूरल इंडिया पहले ही बड़ा कस्टमर है। इस फाइनैंशल इयर में मारुति सुजुकी की रूरल सेल्स 19 फीसदी बढ़ी है। वहीं, 9 महीने से इंडस्ट्री की ग्रोथ नेगेटिव है। मारुति की सेल्स में रूरल इंडिया का हिस्सा 2008 के 4 फीसदी से बढ़कर 28 फीसदी हो गया है। मारुति सुजुकी इंडिया के (मार्केटिंग ऐंड सेल्स) सीओओ मयंक पारीख के मुताबिक, 'हम 2008 के स्लोडाउन के समय से ही इस मार्केट पर फोकस कर रहे हैं।' गांवों में टू-वीलर्स की सेल्स बढ़ रही है। होंडा मोटरसाइकिल ऐंड स्कूटर इंडिया के वाइस प्रेजिडेंट (मार्केटिंग ऐंड सेल्स) वाई एस गुलेरिया कहते हैं, 'ज्यादा उपज और मिनिमम सपोर्ट प्राइस से रूरल इंडिया की इनकम बढ़ रही है। इसे देखते हुए हम इस अहम मार्केट को लेकर उत्साहित हैं।'

http://navbharattimes.indiatimes.com/business/business-news/india-inc-upbeat-on-bharat-700-mn-rural-indians-ready-willing-to-spend/articleshow/21985085.cms


कंज्यूमर गुड्स की सेल्स ग्रोथ 10 साल में सबसे कम

ईटी | Oct 22, 2013, 11.01AM IST


सागर मालवीय, रत्ना भूषण

मुंबई, नई दिल्ली।। कंज्यूमर गुड्स की सेल्स ग्रोथ 10 साल में सबसे कम हो गई है। इससे पता चलता है कि लोग खर्च में भारी कटौती कर रहे हैं। ज्यादा महंगाई और सुस्त इकनॉमी के चलते वे बुरे दौर की तैयारी कर रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि हालात सुधरने से पहले और खराब हो सकते हैं।


कंज्यूमर गुड्स कंपनियों की रॉ मैटीरियल कॉस्ट बढ़ गई है, लेकिन वे दाम बढ़ाने को लेकर दुविधा में हैं। प्रोडक्ट्स की कीमत बढ़ाने पर सेल्स और कम होने का डर है। वहीं, अगर वे दाम नहीं बढ़ातीं, तो मार्जिन कम होगा। वैल्यू यानी रकम के हिसाब से अगस्त में कंज्यूमर गुड्स की ग्रोथ 7.3 फीसदी रह गई, जो साल भर पहले 21.3 फीसदी थी। नीलसन के डेटा का हवाला देते हुए इंडस्ट्री ऑफिशियल्स ने यह बात कही है। साल भर से ज्यादातर कंपनियों की सेल्स ग्रोथ कम हो रही है। वहीं, एफएमसीजी सेक्टर की ओवरऑल ग्रोथ पिछले फाइनेंशियल ईयर में करीब 16 फीसदी थी।


नीलसन इंडिया के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर विजय उदासी ने कहा, 'मेट्रो में एफएमसीजी सेक्टर की ग्रोथ बहुत कम है। यह महंगाई का असर है।' दरअसल, फाइनेंशियल ईयर 2013 में देश की जीडीपी ग्रोथ 5 फीसदी रही, जो पिछले 10 साल में सबसे कम है। इस साल जून क्वार्टर में तो ग्रोथ 4.4 फीसदी रह गई थी। इसके बाद कई एजेंसियों ने इस फाइनेंशियल ईयर के लिए जीडीपी ग्रोथ एस्टिमेट में कमी की।

मोतीलाल ओसवाल के गौतम दुग्गड़ ने बताया, 'जीडीपी ग्रोथ सुस्त होने, ज्यादा महंगाई और खराब कंज्यूमर सेंटीमेंट के चलते कंज्यूमर गुड्स की सेल्स घटी है।' इस बीच, सरकार ने इनवेस्टमेंट ग्रोथ को रिवाइव करने के लिए कई उपाय किए हैं। उसे एक्सपोर्ट बढ़ने और अच्छे मानसून से इस फाइनेंशियल ईयर के आखिरी 6 महीनों में जीडीपी ग्रोथ तेज होने की उम्मीद है। वहीं, कंपनियों को भरोसा है कि भारत में कंजम्पशन स्टोरी लंबे समय तक बनी रहेगी।


पेप्सिको में एशिया, मिडल ईस्ट और अफ्रीका के सीईओ संजय चड्ढा ने बताया, 'ग्रोथ के लिहाज से मैं भारत के मैक्रो-इकनॉमिक ट्रेंड्स से खुश नहीं हूं। हालांकि, देश की लॉन्ग टर्म ग्रोथ स्टोरी पर मुझे पक्का भरोसा है।' अच्छे मानसून से रूरल एरिया में कंजम्पशन बढ़ने की उम्मीद है। डाबर जैसी कंपनियां इसका फायदा उठाने की कोशिश कर रही हैं। आज उसकी पहुंच 34,000 गांवों तक है, जो पहले 14,000 गांवों तक थी। बार्कलेज ने रिसर्च रिपोर्ट में लिखा है, 'पिछले साल डाबर के रेवेन्यू में रूरल मार्केट की हिस्सेदारी 48 फीसदी थी। कंपनी को अच्छे मानसून का इस साल फायदा मिल सकता है। हालांकि, शॉर्ट टर्म में एचयूएल और नेस्ले इंडिया की वॉल्यूम ग्रोथ कम रह सकती है।'

http://navbharattimes.indiatimes.com/business/business-news/sales-of-consumer-goods-growth-lowest-in-10-years/articleshow/24501413.cms


गांव वालों, रिटेल कंपनियां आपके पास आ रही हैं

पीटीआई | Sep 30, 2007, 10.35PM IST


नई दिल्ली (पीटीआई) : ऑर्गनाइज्ड रिटेल महानगरों और बड़े शहरों में बेशक अपनी जड़ें नहीं जमा पाया हो, पर रिटेल कंपनियों की नजर अब गांवों पर है। ये कंपनियां करीब 100 अरब डॉलर के संभावित ग्रामीण रिटेल मार्केट को खंगालने की कसरत में जुटी हैं। अपनी इनोवेटिव स्कीमों और ह्यूमन रिसोर्स पॉलिसी की बदौलत ये गांवों पर छा जाने की तैयारी में हैं।


यस बैंक के कंट्री हेड (फूड एंड एग्री बिजनेस स्ट्रैटिजीज) कल्याण चक्रवर्ती जी. के. डी. ने कहा कि भारत की कुल 1 अरब 12 करोड़ आबादी का 60 फीसदी से भी ज्यादा हिस्सा गांवों में रहता है। गांवों के 87 फीसदी बाजारों का संगठित मार्केटिंग और डिस्ट्रिब्यूशन नेटवर्क से कोई लेना देना नहीं है। जबकि सचाई यह है कि भारतीय ग्रामीण बाजार शहरी बाजारों के मुकाबले दोगुनी दर से बढ़ोतरी कर रहे हैं। ऐसे में इंडिया इंक. अपनी ऊर्जा को ग्रामीण रिटेल की ओर केंद्रित करने के लिए प्रेरित हुआ है।


ग्रामीण रिटेल में ज्यादातर प्रॉडक्ट कृषि आधारित होते हैं। लेकिन नई कंपनियां गांव की आबादी को क्रिकेट के बैट से लेकर कर्ज जैसे साधन मुहैया कराने की इच्छुक हैं।


भारती-वॉल-मार्ट ने अगले 3 से 4 साल के दौरान देश के गांवों में सप्लाई चेन स्थापित करने के लिए भारी निवेश करने की योजना बनाई है। रिलायंस रिटेल ने पंजाब, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और गुजरात में ग्रामीण हब योजना चलाने का फैसला किया है। पेंटालून ने भी कुछ इसी तरह की योजना बनाई है।


डीसीएम श्रीराम ने हरियाली किसान बाजार की शुरुआत की है। ये बाजार 2002 में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, एमपी, यूपी और उत्तराखंड में खोले गए। अब कंपनी के 70 से अधिक स्टोर हैं। डीसीएम श्रीराम के प्रेजिडेंट राजेश गुप्ता ने बताया - हमारी दुकानों में किसानों की जरूरतों की सभी चीजें मुहैया कराई जाती हैं। साथ ही हम उन्हें मुफ्त में कंसलटेंसी भी देते हैं। हमारे इग्जेक्युटिव शहरी रिटेल स्टोर्स के इग्जेक्युटिव की तरह स्मार्ट नहीं होते। वे एग्रोनॉमिस्ट होते हैं, जिनसे बातचीत करने में गांवों के लोगों को झिझक नहीं होती।


पब्लिक सेक्टर की कंपनियां भी इस मुहिम में शामिल हैं। इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) ने पिछले साल अपना रिटेल अभियान शुरू किया था। इसके तहत आईओसी ने यूपी, एमपी, पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक और बिहार में कुल 1400 से ज्यादा स्टोर खोले थे। आईओसी के जनरल मैनेजर (रिटेल सेल्स) के. आर. सुरेश कुमार ने बताया - हमारा जोर एग्रीकल्चरल और एफएमसीजी प्रॉडक्ट्स पर है। अगले 4-5 साल में हम 3 हजार और स्टोर खोलेंगे।



छोटे माज़ा से बड़े बाजार पर होगा कब्जा!

सुरजीत दास गुप्ता और सौनक मित्रा / नई दिल्ली April 16, 2013

पेय पदार्थ बनाने के मामले में दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी कोका कोला इंक ने भारत के ग्रामीण बाजार में पैठ बढ़ाने के लिए अपना लोकप्रिय पेय 'माज़ाÓ 6 रुपये के किफायती पैक में पेश किया है। फिलहहाल प्रायोगिक तौर पर इसे उत्तर प्रदेश के 3 जिलों में 100 मिलीलीटर के टेट्रा फाइनो पैक में उतारा गया है। ग्राहकों ने इसे पसंद किया तो अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में भी इसे बेचा जाएगा।

कंपनी का यह कदम काफी अहम है क्योंकि वापस नहीं होने वाली पैकिंग (कांच की बोतल के अलावा कोई पैकिंग) में कोक का यह सबसे सस्ता रेडी टु ड्रिंक उत्पाद है। इस जमात में 8 रुपये से लेकर 60 रुपये तक के उत्पाद कंपनी बेचती है। पैकिंग के आकार में भी यह सबसे छोटा पेय होगा। इससे पहले कंपनी के पास सबसे छोटी पैकिंग 200 मिली की कांच की बोतल है, जिसमें कोक आता है। करीब दस साल पहले कंपनी ने 5 रुपये में 200 मिली कोक भी उतारी थी, जिससे उसका बहीखाता बिगड़ गया था।

ग्रामीण बाजार के लिए कंपनी की रणनीति के बारे में कोका-कोला इंडिया के अध्यक्ष एवं मुख्य कार्याधिकारी अतुल सिंह ने कहा, 'ग्रामीण भारत में करीब 20 लाख रिटेल आउटलेट्स हैं, जहां हमें अपने उत्पाद बेचने होंगे। ऐसे ग्राहक भारी तादाद में हैं, जो कम कीमत में पैकेज्ड पेय पदार्थ चाहते हैं। हम इसके लिए अपने आपूर्तिकर्ताओं से बात कर रहे थे और हमें माजा सटीक कीमत पर मिल गई।Ó

सिंह ने कहा कि कार्बोनेटेड पेय पदार्थों को भी इस बाजार के लिए कम कीमत पर लाना असली चुनौती होगी। फिलहाल इन्हें 8 से 12 रुपये में बेचा जाता है, जो कई ग्रामीणों की पहुंच से बाहर हैं। उन्होंने कहा, 'हमें इसके लिए टिकाऊ मॉडल चाहिए और लागत की बंदिश भी है। इससे कम कीमत पर हम इसे नहीं बेच सकते। लेकिन हम मानते हैं कि बड़ी तादाद में उपभोक्ता इस कीमत पर हमारे पेय खरीदने को तैयार नहीं हैं। इसे किफायती बनान ही सबसे बड़ी चुनौती है और हमें पैकेजिंग, वितरण, यातायात, कूलिंग उपकरण में कुछ नया करना होगा।Ó

फिलहाल दोनों दिग्गज पेय कंपनियों में से किसी का भी रेडी टु ड्रिंक उत्पाद 6 रुपये में नहीं मिलता। उदाहरण के लिए कोक 5 रुपये में फैंटा फन टेस्ट पाउडर लाई थी, लेकिन उसे पानी में मिलाना पड़ता था। कंपनी सूक्ष्म पोषक तत्वों वाले पाउडर के सैशे भी ढाई और 3 रुपये में उतार चुकी है। दूसरी दिग्गज पेप्सिको 10 रुपये में फ्रूट जूस पाउडर बेच रही है और टाटा के साथ साझे उपक्रम में 6 रुपये का टाटा ग्लूकोज भी लाई है।

सिंह ने कहा, 'मुमकिन है कि हम आगे जाकर आईसक्रीम या चॉकलेट बनाने वाली कंपनियों के साथ मिलकर टिकाऊ बुनियादी ढांचा तैयार करें, जिसमें कोल्ड चेन ट्रक्स या रेफ्रिजरेटर हो सकते हैं। इसका साझा उपयोग किया जाएगा।Ó

सिंह ने कहा कि उन्होंने देश भर में 6.40 लाख गांव तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने कहा, 'एफएमसीजी उत्पादों के मुकाबले हमें अपने उत्पाद ठंडे बेचने होंगे। लेकिन कई गांवों में न बिजली है और न ढंग की सड़क। वहां महज एक या दो आउटलेट हैं, जिससे वितरण महंगा हो जाता है। हमें इस चुनौती से पार पाना होगा।Ó

http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=71478

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