Friday, July 31, 2015

साभार आउटलुकः डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक: निशाने पर निजता

साभार आउटलुकः डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक: निशाने पर निजता


भारत के नागरिकों को निजता का अधिकार है या नहीं? क्या यह मौलिक अधिकार है?  ये सवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने देश की सर्वोच्च अदालत में पूछ कर एक सिरहन-सी पैदा की है। चिंता और अधिक इसलिए भी है क्योंकि ये सवाल ऐसे समय पूछा गया जब देश की संसद में डीएनए  प्रोफाइलिंग बिल पेश होने को है और सर्वोच्च न्यायालय में आधार कार्ड और आधार परियोजना पर बहस चल रही है। क्या संकेत यह है कि नागरिक की निजता का जबर्दस्त उल्लंघन करने की तैयारी है?

कम से कम मानसून सत्र में पेश होने वाले डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक के प्रावधान तो इसी ओर इशारा कर रहे हैं। इस विधेयक के मसौदे में जिंदा लोगों के शरीर से जांच के लिए नमूने लेने का प्रावधान किया गया है। नए कानून में व्यक्ति के शरीर से इनटिमेट बॉडी सैंपल (शरीर के गुप्तांगों के नमूने) लेने की तैयारी चल रही है। इसमें  गुप्तांग, कूल्हे, स्त्री के स्तनों के नमूने लेने की तैयारी हो रही है। गुप्तांगों का बाहरी परीक्षण के अलावा प्यूबिक हैयर्स से सैंपल्स लेने का भी अधिकार जांच एजेंसियों को दिया जा रहा है। विधेयक में शरीर से न केवल नमूने लिए जाएंगे बल्कि उस हिस्से की फोटो या वीडियो रिकॉर्डिंग करने की भी छूट होगी। यानी एक व्यक्ति के शरीर का सारा ब्यौरा, उसका डीएनए प्रोफाइल राज्य के पास होगा। अभी तो कहा जा रहा है कि सार्वजनिक नहीं किया जाएगा, लेकिन इस आश्वासन पर खुद ही वैज्ञानिक तैयार नहीं है। वैज्ञानिक दिनेश अब्रॉल का कहना है कि यह सीधे-सीधे नागरिकों की निजता पर हमला है और बड़ी कंपनियों के लिए भारतीय शरीर को प्रयोग के लिए गिनी पिग बनाने की खूली छूट है। इसका इस्तेमाल किसी जाति-किसी वर्ग, किसी समुदाय के खिलाफ किया जा सकता है। ऐसी कोई कानून किसी भी आजाद देश के नागरिक को गवारा नहीं हो सकता।

इन तमाम प्रावधानों के सामने आने से जबर्दस्त हंगामा मचा हुआ है। डीएनए प्रोफालिंग विधेयक के बारे में सîाा खेमे से जो सूचनाएं मिल रही हैं, उनके मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे मौजूदा मानसून सत्र में ही पारित कराने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं। डीएनए प्रोफाइलिंग और डाटा मूल्यांकन क्षेत्र से जुड़े एक वरिष्ठ टेक्नोक्रेट ने बताया कि अगर यह विधेयक आ जाता है तो इससे न सिर्फ डीएनए प्रोफाइलिंग करने वाली कंपनियों का कारोबार हजारों गुना बढ़ेगा बल्कि करोड़ों लोगों के डीएनए प्रोफाइल भी मिलेंगे, जो उच्चतर के शोध में भी काम आ सकते हैं।

ऐसी आशंकाएं लंबे समय से जाहिर भी की जा रही है।

इस बिल के मसौदे दस्तावेज में एक और बेहद चिंताजन पहलू भी है और वह यह कि इसका इस्तेमाल सिर्फ आपराधिक मामलों के निपटारे में ही नहीं बल्कि दीवानी मामलों में किया जाएगा। मिसाल के तौर पर सेरोगेसी, मातृत्व या पितृत्व, अंग प्रत्यारोपण, इमिग्रेशन और व्यक्ति की शिनाक्चत आदि में भी डीएनए प्रोफाइलिंग के इस्तेमाल की बात कही गई है। और तो और डीएनए प्रोफाइल के जरिए जमा की गई जानकारी का प्रयोग जंनसंख्या को नियंत्रित करने के प्रयासों में भी किया जाएगा। इसे लेकर पहले अल्पसंख्यक समुदायों, आदिवासियों और दलितों में गहरी आशंकाएं हैं। इस तरह से जुटाई गई जानकारी को इन तमाम तबकों को निशाने पर लेने, उन्हें सामाजिक रूप से अपमानित करने और नियंत्रित करने में किया जा सकता है।

जहां तक अपराधियों को नियंत्रित करने, उनका ट्रैक रखने और उनसे संबंधित सारी जानकारियों को एक जगह जमा करने ताकि वह प्लासिट सर्जरी आदि कराकर भी बच न पाए-ये सब इस प्रस्तावित विधेयक का मुख्य लक्ष्य बताया जा रहा। इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि यह फोरेंसिक प्रक्रिया केवल सजायाफ्ता के लिए ही नहीं बल्कि विचाराधीन कैदियों पर भी अपनाई जाएगी। 

ये मसौदा बिल गई आपत्त‌ियों को सिरे से नजरंदाज करके संसद की दहलीज तक पहुंचा है। इस विधेयक के लिए जो उच्च स्तरीय समीक्षा कमेटी बनाई गई थी, जिसने लंबी अवधि तक सघन चर्चा हुई, उसके दो सदस्यों ने इन तमाम प्रावधानों की जमकर आपत्त‌ि जताई थी। लेकिन उन्हें हैरानी है कि उनकी आपत्त‌ियों को मसौदे में कोई जगह नहीं मिली और न ही उनका उल्लेख किया गया। इस समिति के जिन दो सदस्यों ने निजता का हनन करने वाले इन प्रावधानों को हटाने की मांग की थी, वे है अंतर्राष्टीय कानूनविद उषा रमानाथन और सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी के निदेशक सुनील अब्राहम।

इस पूरे मसले पर उषा रमानाथन ने आउटलुक से बातचीत के दौरान बताया कि यह विधेयक बेहद खतरनाक है। यह नागरिकों की निजता का खुलेआम उल्लंघन करते हुए राज्य और जांच एजेंसियों को व्यक्ति के जीवन ही नहीं, बल्कि शरीर पर भी अतिक्रमण करने की अपार छूट देता है। यह तानाशाही को बढ़ावा देने वाला है और कहीं से भी वैज्ञानिक नहीं है। खासतौर से आज के दौर में जब जानकारियां कहीं भी सुरक्षित नहीं रहती, तब व्यक्तियों की निजी जिंदगी से जुड़ी जानकारियों का क्या इस्तेमाल हो सकता है, इसका किसी को अंदाजा नहीं है। ऐसे में डीएएन डाटा बैंक बनाना कितना खतरनाक हो सकता है, इस बारे में समाज को सोचना चाहिए।

एक तरफ केंद्र इस बिल को संसद में पेश करने की जुगत बैठा रहा है, वहीं ठीक उसी समय आधार कार्ड की वैधानिकता और उसे अनिवार्य किए जाने के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे मामले की सुनवाई के दौरान सरकारी पक्ष में कहा कि नागरिकों को निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। अदालत में सरकार ने निजता के अधिकार पर सवाल उठाकर दो तरफा मार की। एक तो उसने आधार की वैधानिकता पर चल रही सुनवाई को बिल्कुल दूसरी तरफ मोड़ने की कोशिश की, वहीं यह आभास देने की भी कोशिश की कि यह अधिकार कभी भी छीना जा सकता है। इस बारे में वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर का कहना है कि एक तरफ जहां आधार पर सर्वोच्च न्यायालय का आदेश है कि किसी को भी आधार कार्ड न होने की वजह से किसी भी लाभ या हक से वंचित नहीं किया जा सकता है, ऐसे में केंद्र सरकार तमाम योजनाओं को खुलेआम जोडक़र अदालत के आदेश की अवमानना कह रही है। उषा रमानथन कहती है कि दरअसल, सरकार की कोशिश है कि आधार के आधार को इतना फैला दिया जाए कि कल वे अदालत में कहें कि अब इतने अधिक लोग इससे जुड़ गए हैं, कि इसे खारिज नहीं किया जा सकता।

आधार को किस तरह से तमाम बुनियादी योजनाओं, सुविधाओं के लिए बाध्यकारी बना दिया गया है और किस तरह से इसके जरिए भी नागरिकों की सारी जानकारी को जमा किया जा रहा है, अगर इसकी पड़ताल हो तो दूसरी ही तस्वीर सामने आएगा।  देश की राजधानी दिल्ली में भी मतदाता पहचान पत्र बनवाने के लिए आधार कार्ड की मांग हो रही है और इसके बिना मना किया जा रहा है। अधिकारी न तो पासपोर्ट कार्ड और न ही ड्राइविंग लाइसेंस को पहचान पत्र मानने को तैयार हैं। यानी सीधे-सीधे लोगों को आधार की ओर ढकेला जा रहा है। और, जब आधार की वैधानिकता पर चर्चा होती है तो सरकारी वकील (एटॉर्नी जनरल) इस अंदाज में  दलील देते हैं कि नागरिकों की निजता सरकार के लिए कोई मायने नहीं रखती।

ये सारा परिदृश्य निजता के हनन के राज के आगमन की तुरही बजाता दिखा रहा है। वह भी ऐसे समय में जब प्रधानमंत्री से लेकर मंत्रियों की यात्राओं पर हो रहे खर्चे बेहद गोपनीय विषय बने हुए हैं।

 

डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक के खतरे

व्यक्ति के शरीर से इनटिमेट बॉडी सैंपल (शरीर के गुप्तांगों के नमूने) लेने का प्रावधान।

 

-शरीर से न केवल नमूने लिए जाएंगे बल्कि उस हिस्से की फोटो या वीडियो रिकॉर्डिंग करने की भी छूट होगी

 

-इसका इस्तेमाल सिर्फ आपराधिक मामलों के निपटारे में ही नहीं बल्कि दीवानी मामलों में होगा।

 

-इसका प्रयोग जंनसंख्या को नियंत्रित करने के प्रयासों में भी किया जाएगा

 

 

 

-- 
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Census 2010

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors