'परमाणु संपन्न होने के बाद दोनों देश और भी असुरक्षित हो गए हैं'
Author: समयांतर डैस्क Edition : March 2013
भौतिक विज्ञानी परवेज हूदभाय से बातचीत
प्रस्तुति एवं अनुवाद: भारत भूषण तिवारी
भौतिकविज्ञानी परवेज हूदभाय अकादमिक और परमाणु हथियार विरोधी एक्टिविस्ट दोनों के तौर पर जाने जाते हैं। पाकिस्तान के रहने वाले हूदभाय का इस्लामाबाद के कायदे-आजम विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर के तौर पर यह चालीसवां साल है। वह एमआईटी (जहां उन्होंने पढ़ाई की थी), कार्नेगी मेलॉन विश्वविद्यालय, यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड और लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज में विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे हैं।
परमाणु प्रसार विरोध और निरस्त्रीकरण में उनका महती योगदान है। वह बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट्स के प्रायोजक, वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ साइंटिस्ट्स पर्मनेंट मॉनिटरिंग पैनल ऑन टेररिज्म (आतंकवाद पर नजर रखने वाले वैज्ञानिकों के वैश्विक संघ के स्थायी पैनल) के वर्तमान सदस्य और पगवाश काउंसिल के पूर्व सदस्य हैं। फॉरेन पॉलिसी पत्रिका ने 2011 में उन्हें सर्वाधिक प्रभावशाली वैश्विक चिंतकों की सूची में शामिल किया था।
लाहौर की गैरलाभ संस्था 'मशाल बुक्स' के चेयरमैन के तौर पर वह आधुनिक विचार, मानवाधिकार, नारी मुक्ति की संकल्पनाओं का प्रसार करने वाली पुस्तकों का उर्दू में अनुवाद करवाने की पहल की अगुवाई कर रहे हैं। हाल ही में उन्होंने कंफ्रंटिंग द बॉम: पाकिस्तानी एंड इंडियन साइंटिस्ट्स स्पीक आउट (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2013) नाम की पुस्तक का संयोजन और संपादन किया है जिसमें प्रिंसटन विश्वविद्यालय के दक्षिण एशिया में शांति और सुरक्षा पर परियोजना (प्रोजेक्ट ऑन पीस एंड सिक्योरिटी इन साउथ एशिया) के लिए लिखे गए 17 लेख संकलित हैं। फिजिक्स टुडे ने पिछले महीने उनसे इस पुस्तक को लेकर बातचीत की।
प्रश्न: यह पुस्तक तैयार करने की प्रेरणा आपको कहां से मिली?
उत्तर: परमाणु हथियारों को लेकर पाकिस्तानियों और हिंदुस्तानियों से झूठ पर झूठ कहा गया है। उग्र राष्ट्रवादी और कट्टरवादी राष्ट्रीय उत्तेजना को बढ़ावा देने के लिए झूठ का इस्तेमाल करते हैं। मगर वे कभी इस बारे में बात नहीं करते कि अगर कुछ गड़बड़ी हो गई तो उसके क्या विनाशकारी परिणाम होंगे या इस हकीकत के बारे में कि परमाणु शक्ति संपन्न होने के बाद हमारे दोनों ही देश दरअसल और भी असुरक्षित हो गए हैं। मुझे लगा कि यही वक्त है कि सच्चाई बयां की जाए और मेरे विभिन्न लेखों को और दीगर भौतिकविज्ञानी साथियों के निबंधों को एक पुस्तक के रूप में साथ लाया जाए। जो अनाप-शनाप प्रचलित है उसे बेनकाब करना और तकनीकी एवं राजनीतिक दोनों प्रकार के तथ्यों को जस का तस सामने रखना इसका मकसद है।
प्र: भारत और पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रमों में सीधे तौर पर शामिल रहे वैज्ञानिकों में से किसी ने क्या इसमें योगदान दिया है या आपने उनसे सहयोग लेने की कोशिश की थी?
उत्तर : आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अधिकतर भारतीय और पाकिस्तानी वैज्ञानिक और इंजीनियर जो वास्तव में बम बनाने और उसका परीक्षण करने से जुड़े रहे हैं उनका रुख अपनी भूमिका को लेकर, कभी-कभी आक्रामक तौर पर, अति रक्षात्मक होता है। वे उसे अपने जीवन की उपलब्धि मानते हैं और बम का विरोध करने वाले अपने साथियों को या तो किसी विदेशी शक्ति का एजेंट मानते हैं या पागल डॉन किहोटी। जिन्होंने सचमुच बम पर काम किया था उन्हें शामिल करना मैं इस कदर चाहता था, मगर यह एकदम नामुमकिन था। फिर भी कुछ लोग बहुत भले और सहृदय हैं, और व्यक्तिगत बातचीत में इन भयंकर हथियारों को तैयार करने में अपनी मदद को लेकर पछतावा जाहिर करते हैं। मगर वे इस बात को कभी सार्वजनिक नहीं करेंगे।
प्र: पश्चिमी जगत के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकने वाला तथाकथित इस्लामिक बम या भारत और पाकिस्तान के बीच क्षेत्रीय परमाणु युद्ध इन दोनों में क्या अधिक आसन्न है। आपके अनुसार इस खतरे को चिंगारी देने वाली या रोकने वाली क्या प्रमुख वजहें हो सकती हैं?
उत्तर : इन दोनों में भारत-पाकिस्तान युद्ध की संभावना अधिक है। यह किसी भी तरह से आसन्न तो नहीं, मगर भारी तनाव के पिछले पांच कालखंडों में दोनों तरफ के नेताओं ने चीख-चीखकर एक दूसरे को परमाणु हमले की धमकियां दी थीं। जहां तक इस्लामिक बम की बात है, तो वह अब तक वास्तविकता नहीं है। पाकिस्तान ने जो बम बनाया वह कम से कम शुरू में तो भारत द्वारा 1974 में किए गए परमाणु परीक्षण की प्रतिक्रिया स्वरूप था। पाकिस्तान में बढ़ते कट्टरपंथ के कारण यह स्थिति बदल सकती है, और कुछ धार्मिक-राजनीतिक दल इस्लाम की खातिर बम का दावा करते हैं। हम लगातार घेरे जा रहे हैं ऐसा मनवाकर वे पाकिस्तानियों को डराना चाहते हैं और इस तरह ऐसा माहौल बनाना चाहते हैं जिसमें नफरत और हिंसा की दक्षिणपंथी विचारधारा फले-फूले। वे इस बात पर जोर देते हैं कि अमेरिका हमारे परमाणु हथियार छीन लेना चाहता है। वैसे यह बात कुछ हद तक जरूर सच है – अगर अमेरिका ऐसा कर सकता है तो करेगा। हमारे परमाणु हथियारों की वजह से दुनिया के बहुत कम देश हम पर भरोसा करते हैं, खासकर अब जबकि हमारी सेना लगातार हमारे अपने घर में पैदा हुए आतंकियों के हमले झेल रही है।
प्र: हाल ही में लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज के साथ आपके अनुबंध का नवीनीकरण नहीं हुआ। क्या आपको लगता है कि इसमें इस पुस्तक के प्रकाशन की कोई भूमिका रही है?
उत्तर : मैं पक्की तरह से नहीं कह सकता, लेकिन अगर यह पुस्तक उसकी वजह रही है तो बहुत कम सीमा तक, क्योंकि मेरे पाप बहुतेरे हैं और दशकों में फैले हुए हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने मुझे कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है, और मुझे क्यों निकाला गया इसकी वजह वे हर आदमी को अलग बताते हैं। दुख की बात है कि जो पाकिस्तानी बम का विरोध करते हैं उन्हें देशद्रोही माना जाता है और भारत, अमेरिका और इस्राइल का एजेंट कहा जाता है। जो भारतीय अपने बम का विरोध करते हैं उन्हें पाकिस्तान और अमेरिका का एजेंट कहा जाता है।
प्र: इस क्षेत्र में वैज्ञानिक स्तर को बढ़ाते जाने की जरूरत के बरक्स व्यापक संहार की क्षमता रखने वाले हथियारों के प्रसरण के खतरे से बचाव को लेकर संतुलन बनाने के बारे में आपका क्या खयाल है?
उत्तर : बम बनाना अब कोई बड़ी बात नहीं रही और ऐसा करने से किसी देश का वैज्ञानिक स्तर एकदम बढ़ नहीं जाता। गरीब देश उत्तर कोरिया जहां के नागरिक भूखे मर रहे हैं और जो दुनिया के सबसे दयनीय स्थिति वाले देशों में एक है, उसने भी बम और मिसाइलें तैयार कर ली हैं। आज बम बनाने के लिए आण्विक सामग्री को बने-बनाए विस्फोटकों और इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ जोडऩा भर होता है। परमाणु विस्फोटों की भौतिकी बड़ी आसानी से स्नातक स्तर के छात्रों को पढ़ाई जा सकती है। पाकिस्तान और भारत के पास जैसे बम और मिसाइलें हैं उन्हें बनाना साधारण-सा काम है जिसके लिए अच्छे इंजीनियरों की जरूरत होती है न कि भारी-भरकम वैज्ञानिकों की।
पाकिस्तान के वैज्ञानिक स्तर को बढ़ाने का एक आसान-सा तरीका है: भारत के साथ अपनी सरहदें खोल देना और अकादमिक विद्वानों को अपनी मर्जी से आने-जाने की छूट देना। भारत का वैज्ञानिक स्तर पाकिस्तान से कम-से-कम दो दर्जे ऊपर है और इससे हमें बेहद फायदा होगा। कैसे मैं आरजू करूं कि दोनों देशों की संकीर्ण वृत्ति राष्ट्रवाद इसके आड़े न आए। अगर किसी करिश्मे से हम उसे दूर कर पाएं, तो और परमाणु हथियार तैयार करने की हसरत भी दूर हो जाएगी।
प्र: इधर आप कौन सी किताबें पढ़ रहे हैं?
उत्तर : मैं एंथनी जी की क्वांटम फील्ड थिअरी इन अ नटशेल (प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस, 2010) पढ़ रहा हूं। क्वांटम फील्ड थिअरी का यह सबसे उत्कृष्ट और दिलचस्प विवरण है – जो बातें आपको पता हैं वे भी अलग किस्म की रौशनी में चमक उठती हैं। मेरे पढऩे के एजेंडे में अगली चीज है लॉरेंस हैरिसन की ज्यूज, कंफ्युशियंस एंड प्रोटेस्टंट्स: कल्चरल कैपिटल एंड दि एंड ऑफ मल्टीकल्चरिज्म (रोवान एंड लिटिलफील्ड, 2012) मैं अभी से महसूस कर रहा हूं कि कुछ हिस्सों से मेरी असहमति है, मगर दलीलें दिलचस्प हैं।
साभार: फिजिक्स टुडे
No comments:
Post a Comment